दोस्तों विज्ञान की श्रृंखला में आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक ठोस द्रव और गैस में ऊष्मीय प्रसार / thermal expansion in solid liquid and gas है। हम आशा करते हैं कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपकी इस टॉपिक से जुड़ी सभी समस्याएं खत्म हो जाएगी ।
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ठोस द्रव और गैस में ऊष्मीय प्रसार / thermal expansion in solid liquid and gas
thermal expansion in solid liquid and gas
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ऊष्मा किसे कहते हैं / what is Heat
ऊष्मा एक प्रकार की ऊर्जा है, जिसे ग्रहण करने पर वस्तु के ताप में वृद्धि हो जाती है तथा परित्याग करने पर वस्तु के ताप में कमी हो जाती है।
ऊष्मीय प्रसार Thermal Expansion
जब किसी पदार्थ को गर्म किया जाता है, तो वह पदार्थ गर्मी पाकर फैलने लगता है, जिस कारण उसके आकार में वृद्धि हो जाती है। गर्मी पाकर पदार्थ का फैलना ही ऊष्मीय प्रसार कहलाता है। ठोस, द्रव तथा गैस सभी में ऊष्मीय प्रसार होता है। प्रायः सभी पदार्थ गर्म करने पर फैल जाते हैं तथा ठण्डा करने पर अपनी पूर्वावस्था में आ जाते हैं। ऊष्मीय प्रसार गैसों में सबसे अधिक, द्रवों में उससे कम तथा ठोसों में सबसे कम होता है।
उदाहरण- (i) सड़क पर लगे टेलीफोन के तार ग्रीष्म ऋतु में गर्मी के कारण लम्बाई में बढ़ जाते हैं तथा खम्भों के बीच ढीले पड़ जाते हैं।
(ii) धूप में साइकिल खड़ी करने पर कभी-कभी गर्मी पाकर ट्यूब में भरी हवा काफी अधिक फैल जाती है और ट्यूब फट जाती है।
अपवाद (Exception) कुछ पदार्थ ऊष्मीय प्रसार के अपवाद भी हैं, जो गर्म करने पर सिकुड़ते हैं तथा ठण्डा करने पर फैलते हैं।
जैसे-जल 0°C से 4°C तक गर्म करने पर सिकुड़ता है तथा 4°C के बाद गर्म करने पर फैलता है। सिल्वर आयोडाइड भी 80°C से 142°C तक गर्म करने पर सिकुड़ता है।
ऊष्मीय प्रसार की व्याख्या Explanation of Thermal Expansion
पदार्थ की रचना अणुओं से मिलकर हुई है। जब किसी पदार्थ को ऊष्मा दी जाती है, तो यह ऊष्मा पदार्थ के अणुओं द्वारा अवशोषित अर्थात् ग्रहण कर ली जाती है और उसकी गतिज ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है। इससे पदार्थ के अणुओं के मध्य अन्तर-आकर्षण बल कम हो जाता है और इसके अणुओं के बीच की दूरी बढ़ जाती है। जिस कारण सामान्यतया पदार्थ की सभी अवस्थाओं में ऊष्मा अवशोषण से वृद्धि अथवा प्रसार होता है।
ठोसों में ऊष्मीय प्रसार
Thermal Expansion in Solids
ठोसों का एक निश्चित आयतन व एक निश्चित आकार होता है, जिस कारण यदि किसी ठोस को ऊष्मा दी जाती है अर्थात् गर्म किया जाता है, तो ठोस ऊष्मा ग्रहण करके सभी दिशाओं में समान रूप से फैल जाता है, यह प्रसार ठोसों में ऊष्मीय प्रसार कहलाता है। समान रूप से गर्म करने पर भिन्न-भिन्न ठोसों में ऊष्मीय प्रसार भिन्न-भिन्न होता है। इस तथ्य को निम्न प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।
1. एकल धातु में प्रसार Expansion in Single Metal – कमरे के ताप पर एक साधारण धातु का गोला छल्ले में से निकाला जाए, तो वह छल्ले में से पार निकल जाता है। यदि इस धातु के गोले को गर्म किया जाए, तो गोला छल्ले में से पार नहीं जा पाता, क्योंकि गर्म किए जाने पर गोले के आकार में वृद्धि हो जाती है। यदि गोले को पुन: ठण्डा करके छल्ले में से निकाला जाए तो वह निकल जाता है। स्पष्ट है कि गर्म करने पर गोले में प्रसार होता है।
2. भिन्न-भिन्न धातुओं में प्रसार Expansion in Multiple Metals – यदि दो भिन्न धातुओं (ताँबा और लोहा) की छड़ों को एक-दूसरे के ऊपर रखकर रिवट द्वारा जोड़ दिया जाए तथा छड़ों के युग्म को गर्म किया जाए, तो छड़ों का युग्म मुड़ जाता है। ताँबे की छड़ मोड के बाहरी ओर व लोहे की छड़ भीतर की ओर रहती है। इससे स्पष्ट होता है कि समान रूप से गर्म किए जाने पर ताँबे की छड़ में लोहे की छड़ की अपेक्षा प्रसार अधिक होता है। अतः स्पष्ट है कि समान ताप दिए जाने पर भिन्न-भिन्न धातुओं में प्रसार भिन्न-भिन्न होता है अर्थात् ठोसों का ऊष्मीय प्रसार उनकी प्रकृति पर निर्भर करता है।
ठोसों में ऊष्मीय प्रसार के प्रकार
Types of Thermal Expansion in Solids
जब किसी ठोस पदार्थ को गर्म किया जाता है, तो उस पदार्थ की लम्बाई, चौड़ाई व मोटाई में वृद्धि होती है।
इस आधार पर ठोसों में ऊष्मीय प्रसार तीन प्रकार का होता है।
1. अथवा रेखीय प्रसार Linear Expansion
यदि किसी धातु की पतली छड़ को गर्म किया जाता है, तो छड़ की चौड़ाई तथा मोटाई में हुई वृद्धि, उसकी लम्बाई में हुई वृद्धि की अपेक्षा बहुत कम होती है, इस कारण यह मान लिया जाता है कि छड़ को गर्म करने पर केवल उसकी लम्बाई में ही वृद्धि होती है। छड़ की लम्बाई में हुई यह वृद्धि ही अनुदैर्ध्य अथवा रेखीय प्रसार कहलाती है।
रेखीय प्रसार गुणांक Coefficient of Linear Expansion
माना किसी छड़ की किसी ताप पर लम्बाई L है तथा इसके ताप में At की वृद्धि करने पर इसकी लम्बाई में ∆ल की वृद्धि हो जाती है। लम्बाई में हुई यह वृद्धि प्रारम्भिक लम्बाई व ताप-वृद्धि के अनुक्रमानुपाती होती है।
अर्थात्
यहाँ α (एल्फा) एक नियतांक है, जिसे छड़ के पदार्थ का रेखीय प्रसार गुणांक (Coefficient of linear expansion) कहते हैं। α छड़ के पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है, उसकी लम्बाई, आकार या आयतन पर नहीं। इसका मात्रक, प्रति°C होता है। SI पद्धति में α का मात्रक प्रति केल्विन है।
α = लम्बाई में वृद्धि / (प्रारम्भिक लम्बाई x ताप में वृद्धि)
β = ∆L / L × ∆t
2. क्षेत्रीय प्रसार Superficial Expansion
जब किसी धातु की आयताकार पतली प्लेट (अर्थात् मोटाई नगण्य है) को गर्म किया जाता है, तो पदार्थ की लम्बाई व चौड़ाई दोनों में वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप उसके क्षेत्रफल में वृद्धि होती है। ताप-वृद्धि के कारण ठोस पदार्थ के क्षेत्रफल में हुई यह वृद्धि ही क्षेत्रीय प्रसार कहलाती है।
क्षेत्रीय प्रसार गुणांक Coefficient of Superficial Expansion
माना किसी पटल का प्रारम्भिक क्षेत्रफल A है तथा इसके ताप में ∆t की वृद्धि करने पर इसके क्षेत्रफल में ∆A की वृद्धि हो जाती है। क्षेत्रफल में हुई यह वृद्धि प्रारम्भिक क्षेत्रफल तथा ताप-वृद्धि के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती होती है।
अर्थात्
β = क्षेत्रफल में वृद्धि / (प्रारम्भिक क्षेत्रफल x ताप में वृद्धि)
β = ∆A / A × ∆t
जहाँ, β (बीटा) एक नियतांक है, जिसे ठोस पदार्थ का क्षेत्रीय प्रसार गुणांक कहते हैं। B केवल पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है। इसका मात्रक, प्रति°C होता है।
3. आयतन प्रसार Volume Expansion
किसी धातु के घनाकार ब्लॉक को गर्म करने पर उसकी लम्बाई, चौड़ाई तथा मोटाई में वृद्धि होती है, फलस्वरूप उसका आयतन बढ़ता है। आयतन में होने वाली इसी वृद्धि को आयतन प्रसार कहते हैं।
आयतन प्रसार गुणाक Coefficient of Volume Expansion
माना किसी पिण्ड का प्रारम्भिक आयतन V है तथा ताप में ∆t की वृद्धि करने पर आयतन में ∆V की वृद्धि हो जाती है। आयतन में हुई यह वृद्धि, प्रारम्भिक आयतन व ताप-वृद्धि के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती होती है।
γ = आयतन में वृद्धि / (आयतन क्षेत्रफल x ताप में वृद्धि)
γ = ∆V / V × ∆t
जहाँ γ (गामा) एक नियतांक है, जिसे ठोस पदार्थ का आयतन प्रसार गुणांक कहते हैं। भी केवल पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है।
नोट – पाइरेक्स काँच की प्लेट को बहुत गर्म करने पर भी नहीं चटकती, क्योंकि पाइरेक्स काँच का आयतन प्रसार गुणांक साधारण काँच से बहुत अधिक होता है।
α β और γ में सम्बन्ध
γ = 3 α
β = 2α
अर्थात
α : β : γ = 1 : 2 : 3
दैनिक जीवन में ठोसों के ऊष्मीय प्रसार का उपयोग
दैनिक जीवन में ऊष्मीय प्रसार के मुख्यतः निम्न उपयोग हैं।
(i) लकड़ी के पहिए पर लोहे की हाल चढ़ाना लकड़ी के पहिए को लम्बे समय तक उपयोग में लेने के लिए इनके ऊपर लोहे की हाल चढ़ाई जाती है। लोहे की हाल का आकार पहिए के आकार से थोड़ा छोटा होता है। अतः इसे गर्म करके प्रसारित किया जाता है तथा लकड़ी के पहिए पर चढ़ा दिया जाता है। यह ठण्डा होकर सुगमता से लकड़ी के पहिए की ऊपरी सतह पर फिट हो
जाता है।
(ii) रेल की पटरियों के बीच रिक्त स्थान रेल की पटरियाँ बिछाते समय थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रेल की पटरियों के टुकड़ों के बीच थोड़ा-सा रिक्त स्थान रखा जाता है, जिससे गर्मियों में रेल गुजरते समय ऊष्मा के कारण पटरी में जो वृद्धि हो, वह समायोजित हो जाए और पटरी टेढ़ी होने से बच जाए। जिससे दुर्घटना होने का खतरा न रहे।
(iii) काँच के गिलास में गर्म पानी डालने पर टूटना यदि किसी काँच के गिलास में उबलता हुआ पानी अथवा चाय डाल दी जाए, तो कभी-कभी गिलास चटक जाता है, क्योंकि उबलता हुआ पानी डालने पर गिलास के आन्तरिक पृष्ठ का प्रसार हो जाता है तथा बाहरी पृष्ठ का ताप कम रहता है। जिससे बाहरी सतह का प्रसार नहीं हो पाता। अतः गिलास टूट जाता है।
नोट – प्लेटिनम और काँच के प्रसार गुणांक लगभग बराबर होते हैं। अतः यदि कभी काँच में तार डालना हो तो काँच को गलाकर उसमें प्लेटिनम का ही तार डालते हैं जिससे कभी काँच गर्म होगा तो प्लेटिनम के तार की मोटाई में भी उतनी ही वृद्धि होगी जितनी कि काँच में होगी। अत: काँच चटखेगा नहीं।
(iv) काँच की बोतल के मुँह से कॉर्क निकालना काँच की बोतल के मुँह को धीरे-धीरे गर्म करते हैं, जिससे प्रसार के कारण मुँह का आकार बढ़ जाता है। और कॉर्क आसानी से बाहर निकल जाती है। चूँकि कॉर्क की चालकता काँच की अपेक्षा बहुत कम है, अत: कॉर्क का ताप बोतल के ताप की तुलना में शीघ्र नहीं बढ़ पाता।
(v) लोहे के पुल का आधार लोहे का पुल बनाते समय, उपयोग में लिए जाने वाले गर्डरों का एक सिरा सतह पर रखते हैं तथा गर्डरों के दूसरे सिरे को ठोस बेलनों पर रखते हैं। जिससे गर्मियों में उनकी लम्बाई में आसानी से प्रसार हो सके।
(vi) टेलीफोन तथा विद्युत तार टेलीफोन तथा विद्युत तारों को दो खम्बों के मध्य थोड़ा ढ़ीला रखा जाता है। जिससे सर्दियों में तापक्रम कम होने पर तनाव के कारण उन्हें टूटने से बचाया जा सके।
(vii) पाइप लाइनों में लूप बनाना जब किसी फैक्ट्री में पाइप लाइन में कोई गर्म द्रव प्रवाहित होता है, तो लाइन के गर्म होने से उसमें प्रसार होता है जिससे उसके क्षतिग्रस्त होने का खतरा होता है। इस समस्या से बचने के लिए उसमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लूप बना दिए जाते हैं। जिससे गर्म होने पर उसकी लम्बाई में वृद्धि के कारण लूप का आकार बदल जाता है और लाइन क्षतिग्रस्त होने से बच जाती है।
द्रवों में ऊष्मीय प्रसार
Thermal Expansion in Liquids
ठोसों की भाँति द्रवों में भी प्रसार होता है। द्रवों का कोई निश्चित आकार अथवा आकृति नहीं होती। जिस पात्र में द्रव को रखा जाता है, वह उसी पात्र का आकार ग्रहण कर लेता है। अतः द्रवों में केवल आयतन प्रसार ही होता है। द्रवों में आयतन प्रसार द्रवों की प्रकृति पर निर्भर करता है। जब किसी द्रव को गर्म किया जाता है, तो पहले बर्तन का प्रसार होता है फिर द्रव का। इसी आधार पर द्रवों का प्रसार दो प्रकार का होता है।
1. आभासी प्रसार Apparent Expansion
यदि द्रव के प्रसार को लेते समय जिस पात्र में वह द्रव रखा है उसके प्रसार को गणना में नहीं लिया जाए, तो यह प्रसार आभासी प्रसार होगा।
2. वास्तविक प्रसार Real Expansion
यदि पात्र का प्रसार भी, द्रव के प्रसार के साथ सम्मिलित किया जाए, तो यह प्रसार वास्तविक प्रसार होगा। द्रव के प्रसार को निम्न प्रयोग द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
गैसों में ऊष्मीय प्रसार
Thermal Expansion in Gases
गैसों का कोई निश्चित आकार नहीं होता है, अतः इन्हें गर्म करने पर केवल आयतन प्रसार होता है। ताप-वृद्धि करने पर गैसों में आयतन प्रसार ठोसों तथा द्रवों की अपेक्षा अधिक होता है, परन्तु समान तापान्तर के लिए विभिन्न गैसों के आयतन में प्रसार समान होता है।
जल का असामान्य प्रसार
Anomalous Expansion of Water
सामान्यतः ताप बढ़ाने पर द्रव का आयतन बढ़ता है और घनत्व घटता है तथा इसका आयतन प्रसार गुणांक, ठोस की तुलना में 10 गुना बड़ा होता है। जल इस नियम का एक अपवाद (Exception) है। 0°C से 4°C तक जल का आयतन घटता है तथा 4°C से ऊपर ताप में वृद्धि करने पर जल का आयतन बढ़ता है। अतः जल का घनत्व 4°C पर अधिकतम 1000 किग्रा मी” होता है। इस प्रकार 0°C से 4°C तक जल का असामान्य प्रसार होता है, जबकि 4°C से ऊपर के तापों पर इसका प्रसार सामान्य होता है।
जल के असामान्य प्रसार का दैनिक जीवन में प्रभाव
(i) ध्रुवों व अन्य ठण्ड़े प्रदेशों में मछलियों का जीवित रहना ठण्डे देशों में शीतकाल में वायु का ताप 0°C से भी कम हो जाता है। अत: वहाँ की झीलों में जल जमने लगता है। वायु का ताप गिरने पर पहले झीलों की सतह का जल ठण्डा होता है। यह जल भारी होकर नीचे बैठता रहता है और नीचे का हल्का जल ऊपर आने लगता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि पूरी झील का पानी 4°C तक नहीं गिर जाता है।
जब सतह के जल का ताप 4°C से नीचे गिरने लगता है, तो इसका घनत्व कम होने लगता है। अतः यह तब तक नीचे नहीं जाता है तथा 0°C पर ठण्डा होकर जल बर्फ के रूप में सतह पर ही जमने लगता है। इस प्रकार बर्फ जमने की प्रक्रिया ऊपर से नीचे की ओर होती है। बर्फ की इस परत के नीचे अब भी 4°C का जल रहता है। चूँकि बर्फ ऊष्मा का कुचालक है। अत: वह नीचे के 4°C वाले जल की ऊष्मा को बाहर नहीं जाने देता है। इस प्रकार जल का ताप 4°C ही बना रहता है और इसमें मछलियाँ जीवित रहती हैं।
(ii) जाड़ों में पहाड़ी चट्टानें स्वयं फट जाती हैं वर्षा जल में चट्टान के छिद्रों और दरारों में से होकर जल भीतर चला जाता है। जब यह जल जमता है, तो आयतन प्रसार के कारण चट्टान पर इतना दाब डालता है कि वे फट जाती हैं।
(iii) अत्यधिक ठण्ड में जल ले जाने वाले नल फट जाते हैं ठण्डे स्थानों पर जाड़े के दिनों में नलों में बहने वाले जल का ताप 4°C से नीचे गिर जाने पर जल के आयतन में वृद्धि होती है परन्तु नल (पाइप) सिकुड़ता है। इन विपरीत दशाओं के कारण नलों की दीवारों पर इतना अधिक दाब पड़ता है कि वे फट जाते हैं।
(iv) पौधों के अन्दर जल जम जाने पर उनकी नसें फट जाती हैं जब पौधों की नसों में बहने वाला जल जमकर बर्फ बनता है तो उसका आयतन बढ़ता है। इससे नसों पर इतना दाब पड़ता है कि वे फट जाती हैं।
◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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