दोस्तों विज्ञान की श्रृंखला में आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक न्यूक्लिक अम्ल की संरचना एवं प्रकार / DNA और RNA है। हम आशा करते हैं कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपकी इस टॉपिक से जुड़ी सभी समस्याएं खत्म हो जाएगी ।
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न्यूक्लिक अम्ल की संरचना एवं प्रकार / DNA और RNA
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न्यूक्लिक अम्ल Nucleic Acid
किसी कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले वे अम्लीय पदार्थ है, जो कोशिका के कार्यों का नियमन करते हैं न्यूक्लिक अम्ल कहलाते हैं।
न्यूक्लिक अम्ल की सामान्य संरचना
न्यूक्लिक अम्ल मूलतया निम्नलिखित तीन अणुओं से बना होता है।
(i) शर्करा (Sugar) – यह निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं।
डीऑक्सीराइबोस (Deoxyribose) राइबोस (Ribose)
(ii) फॉस्फोरिक अम्ल (Phosphoric Acid : P) – इसकी उपस्थिति के कारण न्यूक्लिक अम्ल की प्रवृत्ति अम्लीय होती है।
(iii) नाइट्रोजनी क्षारक (Nitrogenous Base) – ये नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक यौगिक हैं और मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं
(a) प्यूरिन क्षारक (Purine base) ये दो प्रकार के होते हैं।
एडीनीन (Adenine : A) एवं ग्वानीन (Guanine: G)
(b) पिरिमिडीन क्षारक (Pyrimidine base) ये तीन प्रकार के होते हैं।
थाइमीन (Thymine T), साइटोसीन (Cytosine : C) तथा यूरेसिल (Uracil: U)
इनमें से चार अर्थात् एडीनीन (Adenine), ग्वानीन (Guanine), थाइमीन (Thymine) व साइटोसीन (Cytosine) DNA में पाए जाते हैं, जबकि RNA में थाइमीन के स्थान पर यूरेसिल (Uracil) होता है।
प्रत्येक न्यूक्लिक अम्ल की दो मूलभूत इकाइयाँ होती हैं
(i) न्यूक्लियोसाइड्स (Nucleosides) न्यूक्लिक अम्ल में उपस्थित शर्करा, नाइट्रोजनी क्षारक के साथ जुड़कर न्यूक्लियोसाइड बनाती है।
(ii) न्यूक्लियोटाइड्स (Nucleotides) शर्करा एवं नाइट्रोजनी क्षारक से बने न्यूक्लियोसाइड्स, फॉस्फोरिक अम्ल से फॉस्फोडाइएस्टर बन्धों के द्वारा जुड़कर न्यूक्लियोटाइड्स बनाते हैं। ये न्यूक्लियोटाइड्स ही न्यूक्लिक अम्लों के वास्तविक एकलक (Monomers) होते हैं।
इन न्यूक्लियोसाइड्स एवं न्यूक्लियोटाइड्स के नाम क्रमश: इनमें उपस्थित शर्करा नाइट्रोजनी क्षारक एवं अम्ल के नाम पर होते हैं। उदाहरण के लिए DNA में उपस्थित एडीनीन नामक नाइट्रोजनी क्षारक के न्यूक्लियोसाइड का नाम डीऑक्सीएडीनोसीन (Deoxyadinosine) = शर्करा + नाट्रोजनी क्षारक एवं न्यूक्लियोटाइड का नाम डीऑक्सीएडीनाइलिक अम्ल (Deoxyadynylic Acid) = शर्करा + नाइट्रोजनी क्षारक + अम्ल की तरह लिया जाता है।
न्यूक्लिक अम्ल के प्रकार
न्यूक्लिक अम्ल मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं
1. डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (DNA)
2. राइबोन्यूक्लिक अम्ल (RNA)
1. डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल
Deoxyribonucleic Acid-DNA
DNA की खोज सन् 1869 में जर्मन रसायनशास्त्री फ्रेडरिक मीश्चर
(Frederick Meischer) ने की। उन्होंने मानव कोशिका के केन्द्रक से एक सफेद द्रव्य संश्लेषित किया एवं इसका नाम ‘न्यूक्लिइन’ (Nuclein) दिया। अम्लीय प्रकृति तथा केन्द्रक में उपस्थित होने के कारण इसे न्यूक्लिक अम्ल (Nucleic acid) कहा गया। DNA के संश्लेषण के लिए डॉ. हरगोविन्द खुराना (Dr. Har Govind Khurana) को 1968 में नोबेल पुरस्कार मिला था। DNA की अधिकांश मात्रा केन्द्रक में होती है, यद्यपि कुछ मात्रा माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) एवं हरितलवक (Chloroplast) में भी मिलती है। सभी पादपों, जन्तुओं तथा कुछ विषाणुओं में DNA द्विकुण्डलित (Double helical) होता है। इसके अतिरिक्त 6×174 नामक विषाणु में एक कुण्डलित DNA (Single helical DNA) पाया जाता है। DNA की आण्विक संरचना या DNA का वाटसन एवं क्रिक मॉडल Atomic Structure of DNA or Watson and Crick’s Model of DNA वाटसन एवं क्रिक ने सन् 1953 में DNA का द्विचक्राकार एक कार्यकारी मॉडल प्रस्तुत किया। इसके लिए वाटसन एवं क्रिक को सम्मिलित रूप में सन् 1962 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
इनके अनुसार DNA की संरचना निम्न प्रकार से हैं
(i) DNA का प्रत्येक अणु दो कुण्डलित पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखलाओं का बना होता है, दोनों श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से सर्पिल क्रम में जुड़ी रहती हैं, इस द्विकुण्डलन का व्यास लगभग 20 एंगेष्ट्राम होता है।
(ii) प्रत्येक पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखला में डीऑक्सीराइबोस शर्करा और फॉस्फेट समूह एकान्तर क्रम में जुड़े होते हैं। इसी क्रम के द्वारा श्रृंखला का आधार बनता है। फॉस्फेट समूह एक तरफ की शर्करा के 5′ कार्बन दूसरी ओर 3′ कार्बन पर एस्टर बन्धों (Ester bonds) द्वारा जुड़े रहते हैं। इन एस्टर बन्धों को फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध (Phosphodiester bonds) कहते हैं।
(iii) दोनों शृंखलाएँ प्रतिसमान्तर (Antiparallel) दशा में कुण्डलित होती हैं। अर्थात् एक श्रृंखला में डाइएस्टर बन्ध 35 दिशा में तथा दूसरी श्रृंखला में 5’3′ दिशा में होते हैं।
(iv) दोनों शृंखलाओं की प्रत्येक शर्करा के 1′ कार्बन पर एक नाइट्रोजनी क्षारक लगा होता है। यह चारों प्रकार के नाइट्रोजनी क्षारकों में कोई भी हो सकता है, ये क्षारक द्विकुण्डलन में अन्दर की तरफ शृंखला आधार से समकोण (Perpendicular) बनाते हुए लगे रहते हैं।
(v) एक श्रृंखला के प्यूरीन, दूसरी शृंखला के पिरिमिडीन से हाइड्रोजन आबन्धों द्वारा जुड़े होते हैं। A सदैव T से तथा C सदैव G से जुड़ा होता है।
(vi) एडीनीन व थाइमीन के मध्य दो हाइड्रोजन आबन्ध तथा साइटोसीन व ग्वानीन के मध्य तीन हाइड्रोजन आबन्ध होते हैं।
(vii) एक ही शृंखला के किन्हीं दो न्यूक्लियोटाइड्स के बीच 3.4Â की दूरी होती है।
चारगॉफ का नियम Chargaff’s Rule
सन् 1950 में इरविन चारगॉफ (Erwin Chargaff) ने विभिन्न स्रोत्रों से DNA लेकर उनमें उपस्थित क्षारकों की मात्रा का अध्ययन किया और निम्नलिखित निष्कर्ष दिए DNA को चाहे किसी भी कोशिका या किसी भी जीव से लिया हो, सभी में प्यूरीन की मात्रा पिरिमिडीन्स की मात्रा के बराबर होती है। अतः A+G= C+T या प्यूरीन्स = पिरिमिडीन्स
• एडीनीन की मोलर मात्रा थाइमीन के बराबर (A = T) होती है तथा
साइटोसीन क्षारक की मोलर मात्रा ग्वानीन के बराबर (C = G) होती है।
A+ T तथा G + C का आधार अनुपात (Base ratio) एक ही जाति के जीवों में समान किन्तु विभिन्न जाति के जीवों में अलग-अलग होता है।
DNA का महत्त्व Importance of DNA
इसके निम्नलिखित महत्त्व हैं
(i) DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है, जो सजीवों में आनुवंशिक सूचनाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचाता है।
(ii) DNA कोशिका की सभी उपापचयी व अन्य जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण करता है।
(iii) DNA स्वयं के संश्लेषण को निर्देशित करता है, इसे DNA प्रतिकृति (Replication) या ग्रिफिथ (Griffith) का लिपिकरण कहते हैं।
(iv) DNA द्वारा RNA का संश्लेषण किया जाता है। RNA प्रोटीन संश्लेषण के लिए अति आवश्यक होता है।
2. राइबोन्यूक्लिक अम्ल Ribonucleic Acid RNA
इसका निर्माण DNA से होता है। यह भी पॉलीन्यूक्लियोटाइड्स श्रृंखला से बना होता है, जिसका निर्माण हजारों न्यूक्लियोटाइड्स से होता है। RNA का न्यूक्लियोटाइड भी DNA जैसा ही होता है, परन्तु यह निम्न दो बातों में DNA न्यूक्लियोटाइड से भिन्न होता है।
(i) इसमें उपस्थित शर्करा राइबोस (Ribose) होती है, डीऑक्सीराइबोस नहीं।
(ii) इसमें थाइमीन नामक नाइट्रोजन क्षारक के स्थान पर यूरेसिल (Uracil) होता है। सामान्यता यह आनुवंशिक पदार्थ नहीं होता है, परन्तु अपवाद स्वरूप यह द्विरज्जुकी (Double helical) एवं आनुवंशिक भी होता है; जैसे-रियोवायरस में यह आनुवंशिक भी होता है।
RNA के प्रकार Types of RNA
यह तीन प्रकार के होते हैं
(i) राइबोसोमल RNA (rRNA) यह कुल RNA का 80% होता है। यह राइबोसोम में पाया जाता है। इसके लूप में नाइट्रोजन बेस परस्पर
हाइड्रोजन बन्धों द्वारा जुड़े रहते हैं।
(ii) स्थानान्तरण RNA (tRNA) यह कुल RNA का 15% होता है। ये कोशिकाद्रव्य में पाए जाते हैं। इनका मुख्य कार्य अमीनो अम्ल के अणुओं को पकड़कर राइबोसोम पर लाना है तथा सन्देशवाहक RNA अणुओं की सहायता से इन्हें जोड़कर प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करना है।
(iii) सन्देशवाहक RNA (mRNA) ये राइबोसोम्स की सतह पर प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करते हैं तथा DNA में उपस्थित आनुवंशिक सन्देशों को कोडॉन के रूप में केन्द्रक से कोशिकाद्रव्य में पहुँचाते हैं।
◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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