दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए गणित विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक गणित शिक्षण का पाठ्यक्रम (NCF 2005 के अनुसार) | CTET MATH PEDAGOGY है।
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गणित शिक्षण का पाठ्यक्रम (NCF 2005 के अनुसार) | CTET MATH PEDAGOGY
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गणित पाठ्यक्रम का अर्थ / पाठ्यक्रम किसे कहते हैं
पाठ्यक्रम (Curriculum) शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘Currere’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है- “दौड़ का मैदान।” शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यक्रम वह मार्ग है जिस पर दौड़ कर शिक्षार्थी अपनी मंजिल तक पहुँचता है। पाठ्यक्रम शिक्षा का एक अभिन्न अंग है जिसके द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति होती है। पाठ्यक्रम में विषयों के साथ-साथ स्कूल के सारे कार्यक्रम आते हैं। अतः पाठ्यक्रम एक ऐसा साधन है,जिसके द्वारा अध्यापकों, छात्रों, परीक्षकों और लेखकों को उचित मार्ग का प्रदर्शन किया जाता है।
पाठ्यक्रम का महत्व
(1) पाठ्यक्रम वह साधन है जिसके द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति होती है।
(2) पाठ्यक्रम शिक्षण सामग्री का निर्धारण करता है।
(3) पाठ्यक्रम शिक्षण विधियों के प्रयोग का साधन है।
(4) पाठ्यक्रम सीखने के अनुभवों को नियोजित, क्रमबद्ध एवं श्रेणीबद्ध रखने का तरीका है।
पाठ्यक्रम सम्बन्धी विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाएं
कनिंघम के अनुसार,”पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथ में वह साधन है जिससे वह अपनी चित्रशाला (विद्यालय) में अपनी सामग्री (छात्र) को अपने आदर्शों (उद्देश्यों) के अनुसार ढालता है। “
क्रो और क्रो के अनुसार,”पाठ्यक्रम शिक्षार्थी के समस्त अनुभवों को जो उसे विद्यालय के अन्दर तथा बाहर प्राप्त होते हैं और जो एक ऐसे कार्यक्रम में होते हैं जिसका निर्माण उसके मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक,सामाजिक, आध्यात्मिक तथा नैतिक विकास में सहायता देने हेतु होता है सम्मिलित किया जाता है। “
फ्रेडरिक के अनुसार,“आधुनिक पाठ्यक्रम व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन के समस्त विस्तृत क्षेत्र को अपने अन्दर समेटता है। यह स्कूल से बाहर तभी सार्थक एवं उचित क्रियाओं को भी अपनाता है। शर्त इतनी है कि इनका शैक्षिक रूप से प्रयोग संगठित तथा सुनियोजित किया गया है। “
माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार,”विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यक्रम है जो छात्रों के सभी पक्षों को प्रभावित करता है और उनके सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता दे सकता है। “
गणित शिक्षण का पाठ्यक्रम: एन.सी.एफ.-2005 के अनुसार
(1) यह शिक्षा उद्देश्यों के अनुकूल होना चाहिए।
(2) यह महत्वाकांक्षी होनी चाहिए ताकि यह मात्र संकीर्ण उद्देश्यों को प्राप्त करने की बजाय ऊँचे उद्देश्य को प्राप्त कर सके।
(3) यह सुसंगत होना चाहिए ताकि यह विभिन्न प्रकार की विधियाँ और कौशल जो कि अंकगणित, बीजगणित आदि से संबंधित है, संयुक्त रूप से बच्चे को हाई स्कूल में विज्ञान और सामाजिक विज्ञान में आने वाली समस्याओं को हल करने में मदद कर सके।
(4) यह महत्वपूर्ण होना चाहिए ताकि शिक्षार्थी समस्याओं को हल करने की आवश्यकता महसूस करें, शिक्षार्थी और शिक्षक इन समस्याओं को हल करने में अपने समय और ऊर्जा देना उचित समझें और गणितज्ञ इसे एक गतिविधि समझें जो गणितीय रूप से लाभकर हो।
(5) स्कूली गणित गतिविधियों पर केन्द्रित होना चाहिए।
(6) पाठ्यचर्या/पाठ्यक्रम ऐसी होनी चाहिए जो शिक्षार्थियों के मस्तिष्क को संलग्न कर सके और उनकी क्षमताओं को सुदृढ़ कर सके।
(7) पाठ्यक्रम बच्चों की जीवंत वास्तविकताओं से सम्बन्धित होना चाहिए।
(8) पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो बच्चों को महत्व दे, विषय को नहीं।
(9) पाठ्यचर्या केवल उच्चतर माध्यमिक और विश्वविद्यालयी शिक्षा की तैयारी के लिए निर्मित नहीं होनी चाहिए।
(10) पाठ्यक्रम में प्रतिदिन की भाषा, गणितीय परिस्थिति की भाषा, गणित की समस्याओं को हल करने की भाषा एवं गणितीय परिस्थिति की भाषा का प्रयोग होना चाहिए।
(11) पाठ्यक्रम रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा न दे।
विभिन्न स्तरों पर गणित शिक्षण का पाठ्यक्रम
(1) प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण का पाठ्यक्रम
इस स्तर पर गणित पाठ्यक्रम निम्न तत्वों पर आधारित होना चाहिए:
(i) बालक के स्वयं के अनुभवों पर आधारित होना चाहिए।
(ii) बालक की जिज्ञासा को शांत करने वाला होना चाहिए।
(iii) इस स्तर पर पाठ्यक्रम संख्याओं, साधारण जोड़, घटाव, गुणा, भाग, लघुत्तम, महत्तम, भिन्न,दशमलव, क्षेत्रफल, काम और समय, साधारण ब्याज, लाभ-हानि आधारित होना चाहिए।
(iv) पाठ्यक्रम विभिन्न आकृतियों- त्रिभुज, चतुर्भुज आदि, के ज्ञान पर आधारित होना चाहिए।
(v) इस स्तर पर मूर्त से अमूर्त की तरफ बढ़ा जाना चाहिए ताकि बच्चा अपने दैनिक जीवन की तार्किक क्रियाओं व गणितीय चिंतन के बीच सम्बन्ध को समझने लायक बन सके।
(vi) इस स्तर पर पाठ्यक्रम गणितीय खेल पहेलियाँ तथा कथाएँ आधारित होना चाहिए। खेल बच्चों को अनुपदेशात्मक की फीड बैक देने वाले हों जिसमें शिक्षण का बहुत कम हस्तक्षेप हो ताकि अनुमान/पूर्वज्ञान, योजना एवं रणनीति तैयार करने को बढ़ावा मिले।
(2) उच्चतर प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण का पाठ्यक्रम
(i) पाठ्यक्रम बच्चों को रुचि एवं योग्यता के अनुसार चयन को बढ़ावा दे।
(ii) पाठ्यक्रम रेखागणित के साध्यों पर आधारित होना चाहिए क्योंकि बच्चा इस स्तर पर सूक्ष्म बातों को समझने लगता है।
(iii) पाठ्यक्रम बीजगणित के प्रारंभिक ज्ञान आधारित होना चाहिए।
(iv) पाठ्यक्रम गणितीय नियम, वर्गमूल, अनुपात और समानुपात, प्रतिशत, क्षेत्रफल एवं ग्राफ आधारित होनी चाहिए।
(v) पाठ्यक्रम आँकड़ों के प्रहस्तन की प्रक्रिया को समझने, निरूपित करने और दिन-प्रतिदिन के आँकड़ों के ग्राफीय निरूपण को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।
(vi) पाठ्यक्रम बच्चों में दृश्यीकरण कौशलों को विस्तार देने वाला होना चाहिए क्योंकि ये कौशल बच्चों में समझ, संगठन एवं कल्पनाशीलता को बढ़ावा देते हैं।
(3) माध्यमिक स्तर पर गणित शिक्षण का पाठ्यक्रम
(i) पाठ्यक्रम संकेतन एवं उपत्ति आधारित होना चाहिए।
(ii) पाठ्यक्रम गणित सम्प्रेषण की विशेषता आधारित होना चाहिए।
(iii) पाठ्यक्रम गणित की संकल्पनाओं, प्रतिक्रियाओं, सूत्रों आदि का ज्ञान प्रदान करने वाला होना चाहिए।
(iv) पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो गणित का सम्बन्ध भौतिक एवं सामाजिक विज्ञान से स्पष्ट करे।
(v) पाठ्यक्रम अन्तर्विषयक को प्रतिबिम्बित करने वाला होना चाहिए।
(vi) पाठ्यक्रम बीजगणित, त्रिकोणमिति, ज्यामिति और क्षेत्रमिति विषय क्षेत्रों की समस्या आधारित होनी चाहिए।
(vii) पाठ्यक्रम प्रायोगीकरण एवं अन्वेषण को बढ़ावा देना वाला होना चाहिए।
(viii) पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो बच्चों में क्रियात्मकता, नियमितता, एकाग्रता, सत्यता, धैर्यता,स्पष्टता एवं शुद्धता आदि का विकास करे।
पाठ्यक्रम निर्माण के चरण
पाठ्यक्रम निर्माण के निम्न चरण हैं:
(1) उद्देश्यों का निर्धारण
(2) अधिगम सामग्री (उपयुक्त विषय वस्तु) का चयन एवं संगठन
(3) उपयुक्त अधिगम- अनुभवों का चयन
(4) मूल्यांकन के लिए उचित सामग्री का चयन
बहुविकल्पीय प्रश्न (खुद को जांचिए)
1. गणित की पाठ्यपुस्तक में विभिन्न प्रकरणों में खण्ड ” अभ्यास समय’ को समावेशित करने का उद्देश्य है:
(a) विस्तृत अधिगम अवसर प्रदान करना
(b) विद्यार्थियों को आनन्द व मस्ती प्रदान करना
(c) दैनिक जीवनचर्या में बदलाव करना
(d) समय का बेहतर सदुपयोग सुनिश्चित करना
2. ‘वैदिक गणित’. आजकल विशेष रूप से प्राथमिक विद्यालय के बच्चों में बहुत लोकप्रिय होता जा रहा है। इसका प्रयोग निम्नलिखित में से किसके विकास/संवर्धन में होता है ?
(a) गणित में गणना के कौशल तथा गति
(b) विद्यार्थियों की गणित में परिकलन प्रक्रिया की समझ
(c) विद्यार्थियों के गणित में समस्या समाधान कौशल
(d) विद्यार्थियों की गणित में एकाग्रता
3. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 के अनुसार, विद्यालयों में गणित शिक्षण का संकीर्ण उद्देश्य है:
(a) परिकलन व मापन पढ़ाना
(b) रैखिक बीजगणित से सम्बन्धित दैनिक जीवन की समस्याओं की शिक्षा
(c) संख्यात्मक कौशलों का विकास
(d) बीजगणित पढ़ाना
4. जब आकृतियों’ की इकाई से अध्यापक, विद्यार्थियों से आकृतियों के उपयोग की सहायता से किसी भी चित्र की रचना करने” के लिए कहता है। इस क्रियाकलाप से निम्नलिखित में से कौन-सा उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है ?
(a) रचना / सृजन
(b) अनुप्रयोग
(c) ज्ञान
(d) समझ / बोध
5. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के अनुसार, प्राथमिक स्तर पर संख्याओं और उन पर संक्रियाओं, मात्राओं का मापन, आदि का शिक्षण –
(a) बच्चे की चिंतन प्रक्रिया के गणितीयकरण के उद्देश्य को पूरा करता है
(b) महत्वपूर्ण गणित शिक्षण के उद्देश्य को पूरा करता है
(c) गणित शिक्षण के संकीर्ण उद्देश्य को पूरा करता है
(d) गणित शिक्षण के उच्च उद्देश्य को पूरा करता है।
6. अमूर्तता, विशिष्टिकरण एवं व्यापीकरण किस विषय की समझ बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है?
(a) हिन्दी
(b) विज्ञान
(c) सामाजिक विज्ञान
(d) गणित
7. बच्चों में ” गोलाई” की अवधारणा धीरे-धीरे विकसित होती है
(a) विशिष्टिकरण से
(b) मूर्त से अमूर्त से
(c) व्यापीकरण से
(d) कोई भी नहीं
8. अमूर्त गणित के अधिगम का प्रथम चरण प्रारम्भ होता है।
(a) प्राथमिक स्तर पर
(b) माध्यमिक स्तर पर
(c) उच्चतर माध्यमिक स्तर पर
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
9. छोटे बच्चों में गणितीय विचार निम्न क्रम में विकसित किए जा सकते हैं:
(a) चित्र, संकेत, ठोस वस्तुएँ
(b) संकेत, चित्र, ठोस वस्तुएँ
(c) ठोस वस्तुएँ, चित्र,
(d) ठोस वस्तुएँ, संकेत, चित्र
उत्तरमाला – 1. (a) 2. (a) 3. (c) 4. (a) 5 .(c)
6.(d) 7.(b) 8. (a) 9. (c)
◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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