ध्वनि की चाल ,ध्वनि के गुण / श्रवण परास किसे कहते हैं

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ध्वनि की चाल ,ध्वनि के गुण / श्रवण परास किसे कहते हैं

ध्वनि की चाल ,ध्वनि के गुण / श्रवण परास किसे कहते हैं
ध्वनि की चाल ,ध्वनि के गुण / श्रवण परास किसे कहते हैं

श्रवण परास किसे कहते हैं / ध्वनि की चाल ,ध्वनि के गुण

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ध्वनि की परिभाषा / definition of sound in physics

जो कुछ हम अपने कानों द्वारा सुनते हैं, ध्वनि कहलाता है। दैनिक जीवन में हम भिन्न-भिन्न प्रकार की ध्वनियाँ सुनते हैं। उदाहरण- सड़क पर वाहनों के हॉर्न की आवाज, किसी पार्क में पक्षियों के कलरव की आवाज आदि।

ध्वनि स्रोत किसे कहते हैं /  Source of Sound

प्रत्येक कम्पन करती वस्तु ध्वनि का एक स्रोत होती है। जब किसी ध्वनि स्रोत को कम्पित करते हैं, तो वायु में विक्षोभ (Disturbance) उत्पन्न होता है जो एक नियत वेग से आगे बढ़ता जाता है तथा माध्यम के कण अपनी साम्य स्थिति के इधर-उधर कम्पन करते हैं। इस प्रकार विक्षोभ एक कण से दूसरे कण को स्थानान्तरित होता जाता है। यही विक्षोभ हमारे कानों तक तरंग के रूप में वायु में चलकर हमें सुनाई देता है। ध्वनि सदैव कम्पनों के कारण उत्पन्न होती है, बिना कम्पनों के ध्वनि उत्पन्न नहीं हो सकती।

ध्वनि की प्रकृति Nature of Sound

ध्वनि ऊर्जा का एक प्रारूप है जिसके कानों में पड़ने से प्रत्येक प्राणी में सुनने की संवेदना उत्पन्न होती है। ध्वनि तभी उत्पन्न होती है जब ध्वनि स्रोत कम्पन अवस्था में होता है तथा यह तरंगों के रूप में माध्यम के चारों ओर फैलती है।

विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का संचरण
Propagation of Sound in Different Media

ध्वनि, तरंग के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक संचरित होती है, जिनके संचरण के लिए किसी भौतिक माध्यम की आवश्यकता होती है। यह माध्यम ठोस, द्रव अथवा गैस किसी भी अवस्था में हो सकता है। जैसे— वायु, विभिन्न गैसें, जल, स्टील इत्यादि सभी ध्वनि तरंगों के लिए माध्यम प्रदान करते हैं।
ध्वनि के संचरण में केवल ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है, माध्यम का नहीं अर्थात् ध्वनि के संचरण के दौरान माध्यम अपना स्थान नहीं छोड़ता। स्टील में ध्वनि तरंगों की चाल अधिकतम होती है। निर्वात् में ध्वनि तरंगों का संचरण नहीं हो सकता है। अतः ध्वनि के संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता है।

वायु या गैस में ध्वनि तरंगों का संचरण
Transmission of Sound Waves in Air or Gas

वायु में अनुदैर्ध्य ध्वनि तरंगों के संचरण से वायु के दाब में परिवर्तन होने से सम्पीडन व विरलन उत्पन्न होते हैं। यदि किसी स्वरित्र को कम्पित किया जाए, तो स्वरित्र की भुजा सामान्य स्थिति से बाहर की ओर अथवा अन्दर की ओर कम्पन करती है। जब स्वरित्र की भुजा बाहर की ओर कम्पन करती है, तो उसके समीप की वायु सम्पीडित होती है। यह सम्पीडन वायु में आगे बढ़ता जाता है। जब भुजा अन्दर की ओर कम्पन कर रही होती है, तो इसके समीप की वायु विस्तृत हो जाती है और स्वरित्र से उत्पन्न ध्वनि विरलन के रूप में पुनः आगे बढ़ जाती है। इस प्रकार सम्पीडन व विरलनों की श्रृंखला स्थापित हो जाती है तथा ध्वनि आगे संचरित होती जाती है।

जब किसी कम्पित करने वाली वस्तु से चलने वाली ध्वनि तरंगें वायु के माध्यम से हमारे कानों तक पहुँचकर, कानों के पर्दे से टकराती हैं, तो पर्दे में भी उसी प्रकार के कम्पन होने लगते हैं, जो तंत्रिकाओं द्वारा स्पंदन के रूप में हमारे दिमाग तक पहुँचते हैं व हमें ध्वनि का अनुभव होता है।

ध्वनि की चाल Speed of Sound

किसी माध्यम में विक्षोभ जिस गति से संचरित होता है, उसे ध्वनि की चाल अथवा वेग कहते हैं। किसी माध्यम में ध्वनि की चाल मुख्यतः माध्यम की प्रत्यास्थता तथा घनत्व पर निर्भर करती है। विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का वेग भिन्न-भिन्न होता है। यदि किसी माध्यम की प्रत्यास्थता E तथा घनत्व d है, तो वेग

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v = √(E/d)

गैसों की अपेक्षा द्रवों की प्रत्यास्थता अधिक होती है तथा ठोसों की सबसे अधिक होती है। इसी कारण द्रवों में ध्वनि का वेग, गैसों से अधिक होता है तथा ठोसों में सबसे अधिक होता है। वायु में ध्वनि तरंगों का वेग 330 मी/से होता है, जबकि पानी में ध्वनि का वेग 1450 मी/से होता है तथा धातुओं में लगभग 5000 मी/से होती है। माध्यम परिवर्तित होने पर ध्वनि की चाल परिवर्तित हो जाती है अर्थात् जब ध्वनि तरंगें एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं, तो ध्वनि का वेग तथा तरंगदैर्ध्य बदल जाते हैं लेकिन आवृत्ति नियत रहती है।

नोट–  प्रकाश की चाल (3×108 मी/से) ध्वनि की चाल की तुलना में बहुत अधिक होती है, इसलिए आकाश में बिजली कड़कने पर प्रकाश पहले दिखाई देता है तथा उसके कुछ समय बाद ध्वनि सुनाई देती है।

ध्वनि की चाल पर भौतिक राशियों का प्रभाव Effects of Physical Parameters on Speed of Sound

ध्वनि की चाल निम्न भौतिक पैमाने द्वारा प्रभावित होती है।

(i) दाब का प्रभाव (Effect of Pressure)
ताप समान होने पर गैस में ध्वनि की चाल पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

(ii) ताप का प्रभाव (Effect of Temperature)
गैसों में ध्वनि की चाल, गैस के परमताप के वर्गमूल के समानुपाती होती है।
अर्थात् v ∝ √T
अतः माध्यम का ताप बढ़ने पर उसमें ध्वनि की चाल बढ़ जाती है। वायु में 1°C ताप बढ़ने पर ध्वनि की चाल 0.61 मी/से बढ़ जाती है।

(iii) आर्द्रता का प्रभाव (Effect of Humidity)
नमीयुक्त वायु का घनत्व, शुष्क वायु के घनत्व से कम होता है। अतः नमीयुक्त वायु अर्थात् आर्द्रता में ध्वनि की चाल शुष्क वायु की तुलना में बढ़ जाती है। यही कारण है कि बरसात के मौसम में सीटी की आवाज बहुत दूर तक सुनाई देती है।

(iv) वायु का प्रभाव (Effect of Wind)
यदि वायु चल रही है, तब ध्वनि की चाल बदलती रहती है। यदि ध्वनि की चाल बढ़ रही है, तो यह दर्शाती है कि ध्वनि तरंगों के संचरण की दिशा में वायु बह रही है।

(v) आवृत्ति अथवा तरंगदैर्ध्य का प्रभाव
(Effect of Frequency or Wavelength)

गैस में ध्वनि की चाल पर आवृत्ति अथवा तरंगदैर्ध्य का कोई प्रभाव नहीं होता है। अर्थात् विभिन्न आवृत्तियों की ध्वनि तरंगें वायु में समान चाल से चलती हैं,किन्तु भिन्न-भिन्न आवृत्तियों की संगत तरंगदैर्ध्य भिन्न-भिन्न होती हैं। यदि वायु में भिन्न-भिन्न आवृत्तियों की ध्वनि तरंगें भिन्न-भिन्न चाल से चलती होती, तो हम आरकैस्ट्रा (Orchestra) का आनन्द नहीं उठा सकते थे।

वायु में ध्वनि की चाल अथवा वेग को प्रभावित करने वाले कारक
Factors Affecting Velocity or Speed of Sound in Air

(i) ताप बढ़ने पर, ध्वनि की चाल बढ़ जाती है। यदि माध्यम का ताप 1°C बढ़ जाए, तो ध्वनि की चाल 0.61 मी/से बढ़ जाती है।
(ii) वायु की आर्द्रता बढ़ने पर ध्वनि की चाल बढ़ जाती है।
(iii) यदि ध्वनि का संचरण, वायु के संचरण की दिशा में है, तो ध्वनि की चाल बढ़ जाएगी। यदि विपरीत दिशा में है, तो घट जाएगी।
(iv) माध्यम परिवर्तित होने पर भी चाल परिवर्तित हो जाती है। शा

श्रवण परास Audible Range

मनुष्य के कानों द्वारा आवृत्ति परिसर के सुनने की सुग्राहिता को श्रव्य परिसर कहते हैं। मनुष्य में ध्वनि की श्रव्यता का परिसर लगभग 20 Hz से 20000 Hz तक होता है। पाँच वर्ष तक के बच्चे तथा कुछ जन्तु जैसे कुत्ते 25000 Hz तक की ध्वनि सुन सकते हैं। जैसे-जैसे व्यक्तियों की आयु बढ़ती जाती है, उनके कान उच्च आवृत्तियों के लिए कम सुग्राही होते जाते हैं। ध्वनि तरंगों की आवृत्तियों को परास के आधार पर निम्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है–

1. श्रव्य तरंगें Audible Waves

वह ध्वनि तरंगें, जिनकी आवृत्ति 20 हर्ट्ज से 20000 हर्ट्ज परास की होती है, श्रव्य तरंगें कहलाती हैं। 20 हर्ट्ज से कम व 20000 हर्ट्ज से अधिक आवृत्ति की ध्वनि तरंगों को एक स्वस्थ मनुष्य के कानों द्वारा नहीं सुना जा सकता है। श्रव्य तरंगें संगीत के वाद्ययन्त्रों, मनुष्य व पशु-पक्षियों की आवाज द्वारा उत्पन्न होती है।

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2. अवश्रव्य तरंगें Infrasonic Waves

वे ध्वनि तरंगें, जिनकी आवृत्ति श्रव्य तरंगों की न्यूनतम परास (20 हर्ट्ज) से कम होती है, अवश्रव्य तरंगें कहलाती हैं। इन तरंगों को उत्पन्न करने के लिए ध्वनि स्रोत का आकार बहुत बड़ा होना चाहिए। उदाहरण- पृथ्वी के पृष्ठ के अन्दर भूकम्प आने के समय अवश्रव्य तरंगें उत्पन्न होती हैं।

3. पराश्रव्य तरंगें ultrasonic Waves

वह तरंगें जिनकी आवृत्ति, श्रव्य तरंगों की उच्चतम आवृत्ति (20000 हर्ट्ज) से अधिक होती है, पराश्रव्य तरंगें कहलाती हैं। यह तरंगें गाल्टन की सीटी, पिजो विद्युत प्रभाव की विधि द्वारा क्वार्ट्ज के क्रिस्टल के कम्पनों से उत्पन्न की जाती हैं। इन तरंगों की तरंगदैर्ध्य अतिसूक्ष्म होने के कारण एक किरण पुँज के रूप में दूरस्थ स्थानों को भेजी जाती है। इन तरंगों के अन्य लाभदायक उपयोग निम्न प्रकार हैं।
(i) संकेत भेजने में।
(ii) समुद्र की सतह में स्थित खनिज पदार्थों का पता लगाने में।
(iii) कृषि उत्पादन के क्षेत्र में।
(iv) उद्योग क्षेत्र में।
(v) चिकित्सा विज्ञान में बैक्टीरया आदि को नष्ट करने में।

ध्वनि के गुण Properties of Sound

ध्वनि के गुण निम्नलिखित हैं

1. ध्वनि का तारत्व अथवा पिच (Pitch of Sound)

तारत्व ध्वनि का वह गुण है जिससे ध्वनि का मोटा या पतला होना ज्ञात होता है, जैसे पुरुषों की आवाज की अपेक्षा स्त्रियों की आवाज पतली होती है अर्थात् उच्च तारत्व की होती है। मोटी ध्वनि को निम्न तारत्व की ध्वनि तथा पतली ध्वनि को उच्च तारत्व की ध्वनि कहा जाता है। ध्वनि का तारत्व उसकी आवृत्ति पर निर्भर करता है। अधिक तारत्व वाली ध्वनि की आवृत्ति अधिक होती है और कम तारत्व वाली ध्वनि की आवृत्ति कम होती है। किसी ध्वनि के तारत्व की माप सम्भव नहीं है। निम्न तारत्व की ध्वनि की आवृत्ति कम तथा उच्च तारत्व की ध्वनि की आवृत्ति अधिक होती है।

2. प्रबलता (Loudness)

प्रबलता ध्वनि का वह लक्षण है, जिसके आधार पर कोई ध्वनि कान को धीमी या तेज सुनाई पड़ती है। जब कोई ध्वनि हमें धीमी सुनाई पड़ती है, तो प्रबलता कम होती है, जबकि तेज सुनाई पड़ने वाली ध्वनि की प्रबलता अधिक होती है। यदि ध्वनि तरंगों के आयाम छोटे हैं, तब ध्वनि धीमी या मृदु होगी और यदि ध्वनि तरंगों के आयाम बहुत बड़े हैं, तब ध्वनि अधिक या असहज होगी। ध्वनि की प्रबलता व्यवहारतः डेसीबल (dB) में मापी जाती है। यह हमारे कानों की सुग्राहिता पर निर्भर करती है। इसका SI मात्रक वाट/मीटर होता है। उदाहरण- एक ही तीव्रता की ध्वनि एक सामान्य व्यक्ति के लिए काफी प्रबल होगी, किन्तु एक बहरे व्यक्ति के लिए प्रबलता शून्य ही होगी।

3. गुणता (Quality or Timbre)

गुणता ध्वनि का वह लक्षण है, जिसके आधार पर दो भिन्न-भिन्न वाद्य यंत्रों द्वारा उत्पन्न की गई समान आवृत्ति एवं समान तीव्रता की ध्वनियों में भी अन्तर प्रतीत होता है। एकल आवृत्ति की ध्वनि को टोन कहते हैं तथा अनेक आवृत्तियों के मिश्रण से उत्पन्न ध्वनि को स्वर (Note) कहते हैं। ये हमारे कानों को सुनने में सुखद लगते हैं। जबकि शोर कानों को कर्कश लगता है। अच्छी गुणवत्ता का संगीत कानों के लिए सुखद होता है। उदाहरण- यदि हारमोनियम, सितार और सारंगी से समान आवृत्ति की ध्वनियाँ उत्पन्न की जाएँ, तो उन्हें सुनते ही हमें उनके उत्पादन स्रोत का ज्ञान हो जाता है।

4. तीव्रता (Intensity)

किसी एकांक क्षेत्रफल से, प्रत्येक सेकण्ड में प्रवाहित ध्वनि ऊर्जा की मात्रा, ध्वनि तीव्रता कहलाती है। प्रबलता तथा तीव्रता समान पद नहीं है। परन्तु ये एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं, इसका SI मात्रक वाट/मी होता है। उदाहरण- जब दो ध्वनियाँ, जिनकी तीव्रताएँ समान हैं, फिर भी हम एक को दूसरे की अपेक्षा अधिक प्रबल ध्वनि के रूप में सुन सकते हैं, क्योंकि हमारे कान इसके लिए अधिक संवेदनशील होते हैं। नोट – तरंग की तीव्रता (1) कम्पन के आयाम के वर्ग (a) के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात्

I ∝  a^2

संगीतिक ध्वनि तथा शोर (Musical Sound and Noise)

वे ध्वनियाँ जिनमें निश्चित आवृत्तियों के नियमित स्वर होते हैं, संगीतिक ध्वनि कहलाती हैं, ये वस्तु की आवर्ती गति से उत्पन्न होती हैं। वह ध्वनि, जो किसी वस्तु की अनियमित कम्पनों द्वारा उत्पन्न होती है शोर कहलाती है। संगीत कानों को प्रिय लगता है जबकि शोर नहीं।

ध्वनि तरंगों का परावर्तन (Reflection of Sound Waves)

दो माध्यमों के अन्तरापृष्ठ, जिसे परावर्तक सतह कहते हैं, से टकराकर ध्वनि के वापस लौटने की घटना ध्वनि का परावर्तन कहलाती है।

ध्वनि के परावर्तन के विभिन्न उपयोग (Multiple Uses of Reflection of Sound)

ध्वनि का परावर्तन विभिन्न यन्त्रों, जैसे मेगाफोन, हॉर्न, स्टेथोस्कोप तथा ध्वनि हॉल में उपयोग होता है। ये उपकरण ध्वनि तंरगों के कई परावर्तन के लिए उपयोग किए जाते हैं।

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1. मेगाफोन या हॉर्न (Megaphone or Horn)

हॉर्न तथा शहनाई जैसे वाद्ययन्त्र, सभी इस प्रकार बनाए जाते हैं कि ध्वनि सभी दिशाओं में फैले बिना, केवल एक विशेष दिशा में ही जाए। इन यन्त्रों में एक नली का आगे का खुला भाग शंक्वाकार होता है। यह स्रोत से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगों को बार-बार परावर्तित करके श्रोताओं की ओर आगे की दिशा में भेज देता है।

2. स्टेथोस्कोप (Stethoscope)

यह एक चिकित्सा यन्त्र है, जिसका उपयोग डॉक्टरों द्वारा शरीर के अन्दर, मुख्यतः हृदय तथा फेफड़ों में, उत्पन्न होने वाली ध्वनि को सुनने के काम में लाया जाता है। स्टेथोस्कोप में रोगी के हृदय की धड़कन की ध्वनि, बार-बार परावर्तन के कारण डॉक्टर कानों तक पहुँचती है।

3. ध्वनि बोर्ड (Sound Boardoint)

सम्मेलन कक्षों तथा सिनेमा हॉल की छतें वक्राकार बनाई जाती हैं, जिससे कि परावर्तन के पश्चात् ध्वनि हॉल के सभी भागों में पहुँच जाए, कभी-कभी वक्राकार ध्वनि-पट्टों को मंच के पीछे रख दिया जाता है, जिससे कि ध्वनि, पट्टे से परावर्तन के पश्चात् समान रूप से पूरे हॉल में फैल जाए।

4. समुद्र की गहराई नापना (Measure the Depth of Ocean)

समुद्र की गहराई नापने के लिये जहाज पर लगे यन्त्र की सहायता से बहुत ऊँची आवृत्ति की पराश्रव्य तरंगें जल में नीचे भेजते हैं तथा समुद्र के तल से परावर्तित तरंगें एक अन्य यन्त्र से ग्रहण कर ली जाती हैं। तरंगों की इस पूरी दूरी को तय करने में लिए गए समय को ज्ञात कर लिया जाता है, जिसकी सहायता से की गहराई ज्ञात की जा सकती है।

प्रतिध्वनि की परिभाषा / what is Echo sound

किसी विस्तृत अथवा बड़े अवरोध से ध्वनि के परावर्तित होकर पुनः सुने जाने की घटना को प्रतिध्वनि कहते हैं। यदि परावर्तक श्रोता के पास होता है, तो प्रतिध्वनि स्पष्ट सुनाई नहीं देती है। हमारे मस्तिष्क में ध्वनि की संवेदना लगभग 0.1 सेकण्ड तक बनी रहती है। अतः स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए मूल ध्वनि तथा परावर्तित ध्वनि के बीच कम से कम 0.1 सेकण्ड का समयान्तराल अवश्य होना चाहिए। ध्वनि के स्रोत तथा अवरोधक के बीच की न्यूनतम दूरी 17.2 मी होती है। यह दूरी वायु (माध्यम) के ताप के साथ बदल जाती है, क्योंकि ताप के साथ ध्वनि के वेग में भी परिवर्तन होता है। ध्वनि के बार-बार परावर्तन के कारण   हमें एक से अधिक प्रतिध्वनियाँ भी सुनाई दे सकती हैं। बादलों के गड़गड़ाहट की ध्वनि कई परावर्तक पृष्ठों; जैसे बादलों तथा भूमि से बार-बार परावर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।

प्रतिध्वनि का उपयोग /  Uses of Echo sound

प्रतिध्वनि का उपयोग ध्वनि की चाल ज्ञात करने में, अल्ट्रासोनिक ग्राफी में, समुद्र की गहराई ज्ञात करने में, समुद्र के अन्दर बर्फ की चट्टानी अथवा पहाड़ी चट्टानों का पता लगाने में, वायुयान की ऊँचाई ज्ञात करने में किया जाता है।  यदि ध्वनि स्रोत से प्रेषित ध्वनि तथा वस्तु से परावर्तित ध्वनि के बीच समयान्तर t हो तथा ध्वनि वेग v हो, तो
स्त्रोत से वस्तु की दूरी = (v × t)/2

                           ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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