समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com आपको निबंध की श्रृंखला में essay on patriotism in hindi | देशभक्ति पर निबंध | देशप्रेम पर निबंध प्रस्तुत करता है।
Contents
essay on patriotism in hindi | देशभक्ति पर निबंध | देशप्रेम पर निबंध
इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम
(1) मातृभूमि प्रेम पर निबंध
(2) प्राणों से प्यारा देश हमारा पर निबंध
(3) सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा पर निबंध
(4) राष्ट्रभक्ति पर निबन्ध
(5) राष्ट्रप्रेम पर निबंध
essay on patriotism in hindi | देशभक्ति पर निबंध | देशप्रेम पर निबंध
पहले जान लेते है essay on patriotism in hindi,देशभक्ति पर निबंध,देशप्रेम पर निबंध की रूपरेखा ।
निबंध की रूपरेखा-
1. प्रस्तावना
2. देशप्रेम एक व्यापक भावना
3. भारत में देशप्रेम
4. सार्वभौम एवं सार्वजनिक भावना
5. देशभक्ति का कठिन मार्ग
6. देशभक्ति / देशप्रेम पर शायरी और सुविचार
7. उपसंहार
essay on patriotism in hindi | देशभक्ति पर निबंध | देशप्रेम पर निबंध
प्रस्तावना
देश में रहने वाला प्रत्येक नागरिक अपने देश से प्रेम करता है,इस प्रेम को ही उसका देश प्रेम या देश भक्ति कही जाती है।
देशभक्ति की भावना मनुष्य में स्वाभाविक और सर्वोपरि है, जिसके अन्न-जल का सेवन करके वह बड़ा होता है।
जिसकी धूलि में खेल कर वह पुष्ट होता है, जिसके जल-वायु का सेवन करके वह जीवन धारण करता है, जिसकी मिट्टी में अन्त समय में मिल जाता है।
जो जन्मदात्री माता से अधिक सहनशील , स्नेहमयी और गरिमाशालिनी हैं,उस मातृभूमि का नाम सुनकर कौन पाषाण हृदय होगा कि जो श्रद्धा से न झुंक जाये?
जिसके अन्न-जल से हमारा शरीर पोषित होता है, उसके प्रति हमारा कुछ दायित्व होता है, कुछ कर्तव्य होता है जिसका निर्वाह करना प्रत्येक मानव का कर्तव्य होता है।
मनुष्यों का तो क्या कहना, पशु और पक्षियों में भी देशप्रेम देखा जाता है।
जिस मनुष्य के हृदय में देशप्रेम नहीं, वह मनुष्य नहीं, शव है। उसका हृदय, हदय नहीं पत्थर है।
देशभक्ति / देशप्रेम एक व्यापक भावना
देशभक्ति या देशप्रेम की भावना सर्वत्र और सब कालों में विद्यमान रहती है। विश्व के सभी देशों में सदा ही देशभक्त होते रहते हैं।
यही वह भावना है जो मनुष्य में त्याग, बलिदान तथा सहयोग की भावना को जाग्रत करती है।
मातृभूमि को मनुष्य अपनी जन्म देने वाली माता से भी कहीं अधिक महिमामयी तथा वन्दनीय समझता है।
वह उसे कभी भी संकट में नहीं देख सकता है। उसकी रक्षा के लिए मनुष्य हँसते-हँसते अपना तन-मन-धन सर्वस्व न्यौछावर कर देता है और स्वयं बलिदान हो जाता है।
यह एक ऐसी भावना है कि जो सब कालों में और सब देशों में मानवमात्र के हृदय में विद्यमान रहती है।
जिस देश के नागरिकों में देशभक्ति की भावना का अन्त हो जाये, उस देश का दिवाला निकल जाता है और वह पतन के गहरे गड्ढे में गिर जाता है।
जिस मनुष्य के हृदय में देशप्रेम की सरिता नीरस हो जाये, वह मनुष्य नहीं पशु है, उसका हृदय पत्थर है।
कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है –
“जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं नर पशु निरा हैं, और मृतक समान है॥”
भारत में देशभक्ति या देशप्रेम
जापान, जर्मनी तथा भारत देशप्रेम के लिए प्रसिद्ध है। भारत तो देशप्रेम में अपनी उपमा ही नहीं रखता।
यहाँ शिवाजी और प्रताप जैसे देशभक्त हुए, जिन्होंने अपनी मातृभूमि तथा स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दे दी।
यहाँ झाँसी की रानी जैसी देशभक्त महिलाओं ने जन्म लिया जिन्होंने देश की स्वतन्त्रता के लिए ज्योति जगायी थी ।
आधुनिक काल में भी यहाँ महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, पं० जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, राजकुमारी अमृतकौर तथा विजयलक्ष्मी पंडित आदि अनेक देशभक्तों का जन्म हुआ।
जिन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के बल पर हजारों वर्ष की खोई हुई स्वतन्त्रता को पुनः प्राप्त किया और अँग्रेजों की महती शक्ति को भारत से बाहर निकाल खड़ा किया।
अपने देश के इन देशभक्तों के बलिदान, त्याग तथा तपस्या के बल पर ही आज हम स्वतन्त्र वायुमण्डल में साँस ले रहे हैं।
वर्तमान समय में भी हमारे देश में अनेकों ऐसे वीर हैं अपने देश के खातिर अपनी जान को न्योछावर कर सकते हैं। यह उनका देश प्रेम ही है।
बॉर्डर पर तैनात हमारे सेना के जवान अपने देश से अत्यधिक प्रेम करते हैं उनकी हर देश भक्ति किसी संत की ईश्वर की भक्ति से कम नहीं है।
हमारे देश में सेना के जवान , डॉक्टर , अध्यापक , पुलिस तथा अन्य समाजसेवी भी अपने देश से बहुत प्रेम करते हैं।
और वह देश के विकास के लिए अपना योगदान देते हैं यह सब भी उनकी देशभक्ति ही है।
हमारे देश के लिए कहा गया है –
अनेकता में एकता ही इस देश की शान है,
इसीलिए मेरा भारत महान है।
सार्वभौम एवं सार्वजनिक भावना
वैसे तो सभी मनुष्य देशभक्त होते हैं, सभी के हृदय में मातृभूमि के प्रति प्रेम होता है।
परन्तु मनुष्य अपने सांसारिक कार्यों में इतना व्यस्त रहता है कि उसकी यह भावना दब- सी जाती है।
समय पाकर जब कोई योग्य नेता या देशभक्त उन्हें मिल जाता है तो देशप्रेम की यह भावना जाग्रत हो जाती है।
उनकी रग-रग में देशप्रेम की लहर दौड़ जाती है ।
इसीलिए जब कभी देश पर आपत्ति हो और स्वतन्त्रता खतरे में हो, उस समय ऐसे देशभक्तों की आवश्यकता होती है ।
जो जनसाधारण के हृदय में देशप्रेम की भावना की जाग्रत कर सकें तथा उनका पथ-प्रदर्शन कर सकें । हमारे देश में समय-समय पर ऐसे देशभक्त नेता होते रहे हैं।
देशप्रेम का कठिन-मार्ग
देशप्रेम की भावना बहुत उच्च है, परन्तु इसका मार्ग कठिन है। देशभक्त की सेज काँटों की सेज होती है ।
दुनिया का सुख और आराम उसके लिए त्याज्य वस्तु है। मातृभूमि को सुखी और स्वतंत्र देखकर ही उन्हें सुख होता है।
मातृभूमि की रक्षा में जीवन का बलिदान देकर ही उन्हें आनन्द का अनुभव होता है ।
मातृभूमि की रक्षा में अनेक संकट झेलते हुए आगे बढ़ते चलना ही उनका काम है।
राष्ट्र की बलिवेदी पर आत्म-बलिदान कर देना ही उनका सबसे बड़ा कर्तव्य होता है।
वीर सपूतों के लिए देशभक्ति में कहा गया है –
जो अब तक ना खौला, वो खून नहीं पानी है,
जो देश के काम ना आये, वो बेकार जवानी है
देशभक्ति / देशप्रेम पर शायरी या सुविचार
सच्चा प्रेम वही है जिसकी, तृप्ति आत्म- बलि पर हो निर्भर।
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है, करो प्रेम पर प्राण निछावर ॥
देश-प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है, अमल असीम त्याग से विलसित।
आत्मा के विकास से जिसमें, मनुष्यता होती है विकसित ॥
“जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं नर पशु निरा हैं, और मृतक समान है॥”
“मुझे तोड़ लेना वन माली, उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक।।”
“अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो ।।”
उपसंहार
देशभक्ति वह पवित्र भावना है कि जिससे मनुष्य मरकर भी अमर हो जाता है। उसकी समाधि पर मेले लगते हैं। फूल चढ़ाये जाते हैं और जनता उसके आदर्श जीवन से प्रेरणा प्राप्त करती है ।
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गांधी, लक्ष्मीबाई, जार्ज वाशिंगटन तथा लेनिन आदि देशभक्तों का नाम भला क्या कभी मर सकता है? उनकी तो चरणों की धूल के लिए भी लोग भटकते हैं।
फूल के रूप में कवि की लालसा कितनी सुन्दर हैं-
“मुझे तोड़ लेना वन माली, उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक।।”
देशप्रेम की इस पवित्र भावना से प्रेरित होकर ही प्रसाद जी ने कहा था-
“अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो ।।”
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Final words
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