देश के विकास में बैंकों का योगदान पर निबंध | बैंकों का महत्व पर निबंध | importance of bank essay in hindi

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  देश के विकास में बैंकों का योगदान पर निबंध | बैंकों का महत्व पर निबंध | importance of bank essay in hindi प्रस्तुत करता है।

Contents

देश के विकास में बैंकों का योगदान पर निबंध | बैंकों का महत्व पर निबंध | importance of bank essay in hindi

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) देश की प्रगति में बैंकों की भूमिका पर निबंध
(2) देश की प्रगति का आधार हमारी बैंकिंग प्रणाली पर निबंध
(3) बैंकों का राष्ट्रीयकरण पर निबंध
(4) देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में बैंकों की भूमिका पर निबंध

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देश के विकास में बैंकों का योगदान पर निबंध | बैंकों का महत्व पर निबंध | importance of bank essay in hindi

पहले जान लेते है देश के विकास में बैंकों का योगदान पर निबंध | बैंकों का महत्व पर निबंध | importance of bank essay in hindi की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना
(2) हमारे देश में बैंकों की स्थापना एवं उनका विकास
(3) बैंकों के राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य
(4) राष्ट्रीयकृत बैंक तथा राष्ट्रीयकरण के मुख्य उद्देश्य
(5) विविध ऋण योजनाएं
(6) देश के विकास में बैंकों का योगदान
(7) उपसंहार

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प्रस्तावना

किसी भी देश की उन्नति का आधार उस देश में बैंक जाल का होता है। बैंकों की अधिकता से हम उन्नति के शिखर पर पहुँचते हैं। हमारी आर्थिक उन्नति का आधार बैंक होते हैं।

देशवासियों को जितना कम ब्याज पर ऋण मिलेगा, देशवासी समयानुसार अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करके उसे यथासमय में चुका देगे। बैंकों के ईमानदार अधिकारी ही बैंक की शान होते हैं और अच्छे वैक ही देश की शान होते हैं।

हमारे देश में भी बैंकों की स्थापना देश की आर्थिक स्थिति को सूदृद बनाने हेतु की गयी थी बैंक हमारे देश की अर्थव्यवस्था की सबल धुरी हैं।




हमारे देश में बैंकों की स्थापना एवं उनका विकास

देश में अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में मुम्बई एवं कोलकाता में एजेंसीघरों ने बैंकों का कार्य प्रारम्भ किया। इनका प्रमुख कार्य प्रतिबन्धित व्यापार एवं उद्योगों को विशेष बैकिंग सेवाएँ प्रदान करना था ।

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1929 – 30  ई० में आर्थिक संकट आया जिसके कारण एजेंसीगृह पनप न सके तथा वे आर्थिक दृश्यपटल से पूर्णरूपेण लूप्त हो गये भारतीय बैकिंग का इतिहास तो वास्तव में प्रेसीडेंसी बैंकों की स्थापना से प्रारम्भ होता है।

सबसे पहले बैंक ऑफ बंगाल’ की स्थामना सन् 1806 ई० में हुई थी इसके बाद 1840 ई० में बैंक ऑफ बम्बई तथा 1843 ई० में ‘बैंक ऑफ मद्रास’ स्थापित हुआ। इन बैंकों को नोट निर्गमन कार्य दिया गया। लगभग 1880 ई० तक व्यापारिक अस्थिरता के कारण भारत में बैकिंग व्याय की विशेष उन्नति नही हो सकी।

स्वतन्त्रता आन्दोलन के कारण भारतीय वैंक स्थापना को
अनुकूल स्थिति मिल गयी आन्दोलन काल में व्यापारियों एवं उद्योगपतियों ने अपने खाते विदेशों बैकों से हटाकर भारतीय बैंकों में खोले।

सन् 1921 ई० में इम्पीरियल बैंक स्थापित हुआ। यह सरकार के बैंकर के रूप में विकसित हुआ। 1933 ई० में केन्द्र सरकार ने भारतीय हाथों में जिम्मेदारी देने से पूर्व संविधान में सूधार किया तथा ।

अप्रैल, 1935 ई० को ‘रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया’ की स्थापना की। 1937 ई० में वर्मा भारत से अलग हुआ। 1947 ई० में भारत विभाजन हुआ। पाकिस्तान के अलग होने से बैंक के कार्य क्षेत्र में काफी परिवर्तन हुआ।

स्वन्त्रता प्राप्ति के बाद इम्पीरियल बैंक के राष्ट्रीयकरण की माँग हुई। 1955 ई० में पूराने ‘इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया की समस्त परिसम्पत्तियाँ एवं देयताएँ लेकर ‘स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया’ की स्थापना की गयी।

जुलाई, 1955 ई० में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। भारतीय बैंकिंग के बिकास तथा सुदृढ़ ब्यवस्था हेतु बैंकों का एकीकरण हुआ। 1967 ई० में निजी क्षेत्रों के बैंकों पर सामाजिक नियन्त्रण व्यवस्था लागू की गयी।

19 जून, 1969 ई० में देश के 14 बड़े व्यापारिक बैंको का राष्ट्रीयकरण किया गया फलतः रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के नियम एवं. आदेशों का पालन प्रत्येक बैंक के लिए अनिवार्य हो गया। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के उपरान्त व्यावसायिक बैंकों की अनेकानेक शाखाएँ खुलने लगीं ।




बैंकों के राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य

बैंक राष्ट्र के आर्थिक तन्त्र की रीढ़ हैं । बैंकों के स्वामित्व के विषय
में अनेक राजनीतिज्ञो एवं अर्थशास्त्रियों का मत है कि बैंक गैर-सरकारी व्यक्तियों के हाथों में नहीं रहने चाहिए।

बैंकों के राष्ट्रीयकरण से तात्पर्य है कि किसी प्रकार अथवा राष्ट्र द्वारा किसी कार्य, उद्योग तथा व्यापार को राष्ट्रहित में अपने हाथों में लेना।

राष्ट्रहित की दृष्टि से ही भारत सरकार ने श्रीमती इन्दिरा गांधी के प्रधानमन्त्रित्व काल में बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर उनके प्रबन्ध, संचालन तथा लाभ पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया।

जुलाई, 1969 ई० में चौदह बड़े व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ। ठीक दस वर्ष बाद 15 अप्रैल, 1980 ई० को छ: अन्य व्यावसायिक बैंक राष्ट्रीयकृत हुए।






राष्ट्रीयकृत बैंक तथा राष्ट्रीयकरण के मुख्य उद्देश्य

हमारे प्रमुख राष्ट्रीयकृत बैंक अधोलिखित है-

1. सेन्टरल बैंक ऑफ इण्डिया, 2. बैंक ऑफ इण्डिया, 3. पंजाब नेशनल बैंक, 4. बैंक ऑफ बड़ौदा, 5. यूनाइटेड बैंक ऑफ इण्डिया, 6. केनरा बैंक, 7. यूनाइटेड कॉमर्शियल बैंक, 8. इण्डियन ओवरसीज वैक,9.इलाहाबाद बैंक, 10. सिण्डीकेट बैंक, 11 देना बैंक, 12. यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया, 13. इण्डियन बैंक, 14. विजया बैंक, 15. ओरिएण्टल बैंक ऑफ कॉमर्स, 16. बैंक ऑफ महाराष्ट्र, 17. आन्ध्रा बैंक, 18. कॉर्पोरेशन बैंक, 19. न्यू बैंक ऑफ इण्डिया, 20. पंजाब एण्ड सिन्ध बैंक।

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इन बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

1. बचत को प्रोत्साहन देते हुए उसके अधिकांश लाभ को राष्ट्रहित में लगाना।

2. बैंकों की कार्यप्रणाली को राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक उद्देश्यों के अनुरूप रखना।

3. प्राथमिक क्षेत्रों में बैंक साख का समुचित वितरण करना।

4. बैकिंग सुविधाओं का विस्तार एवं ग्रामीणक्षेत्रों को प्रोत्साहित करना।

5. क्षेत्रीय विषमता में कमी लाने हेतु बैकिंग सुविधाओं  को बैंक सहित क्षेत्रों में विकसित करना ।

बैंक राष्ट्रीयकरण से बैंक शाखा में विस्तार हुआ है। विकास कार्यों में आप्चर्यजनक प्रगति हुई है। सभी राष्ट्रीयकृत एवं अन्य अराष्ट्रीयकृत बैंक देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में अपना भरपूर योगदान दें रहे हैं।

आम आदमी इनसे जुड़कर अपना जीवन स्तर ऊँचा उठा सकता है। हाँ, बैंक विस्तार से कुछ हानियाँ भी हुई हैं। अलाभकर खातों के ताम पर बैंकों ने कुछ खातों को तो बन्द ही कर दिया और उसमें जमा कम पैसों को हड़प लिया।

इसके लिए बैंकों को खातेदारों को सूचना देनी चाहिए थी। लोकतन्त्र में किसी का कम पैसा होने के कारण बैंक खातों को बन्द कर उनके पैसों को हड़प लेना न्यायसंगत नहीं । किसी के खाते में दस पैसा भी है तो वह बहाँ बैंक में सुरक्षित होना चाहिए।

बैंको की ईमानदारी पर प्रश्नचिह्न नहीं लगना चाहिए।
खाते कभी बन्द न हों, उनमें रहने वाली धनमीमा समाप्त हो। दीन-हीन कहाँ से सौ रुपये, दो सौ रुपये, पाँच सौ रुपये अथवा एक हजार रुपये सुरक्षित धन के रूप में लाये? कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि राष्ट्रीयकरण से बैंक का सेवा स्तर गिर गया है।





बैंक की विविध ऋण योजनाएँ

आम आदमियों का जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए बैंकों ने विविध ऋण योजनाएँ चला रखी हैं। बैंक मकान हेतु त्ण देते हैं, मकान कय, सुधार एवं जीर्णोद्वार हेतु बैंक ऋण दे रहे है।

घर के लिए उपयोगी सामान खरीदने हेतु भी बैंक ऋण देते हैं । मोटर साइकिल, कार एवं अन्य वाहनों के लिए बैंकों द्वारा ऋण दिया जाता है।

बेरोजगारों को दुकान चलाने हेतु भी तण का विधान है इतना ही नहीं, अच्छे, तथा योग्य छात्रों को देश-विदेश में अध्ययन करने के लिए भी श्रहण की व्यवस्था है। इससे योग्य एवं दरिद्र छात्र अपने जीवन को उन्नत बना सकते हैं।

इन ऋणों के अतिरिक्त अन्य अनेक ऋण योजनाएँ चालू हैं जिनमें औद्योगिक ऋण योजना  प्रमुख है।





देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में बैंकों की भूमिका

एक समय था जब बैंक मानव धन संरक्षण था परन्तु आज बैंक सामाजिक आकांक्षाओं का भी संरक्षक है। बैंक की सीमा आम आदमी की सेवा करने तक पहुँच गयी है।

बैंक सामाजिक संस्था है जो आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं अपितु अन्य क्षेत्रों में एक समाज कल्याण प्रेरक के रूप में मानी जाती है। समाज की समस्याएँ, जैसे-गरीबी हटाना, जीवन-स्तर सुधारना तथा मानव मात्र को नवीन गौरव प्रदान करते हुए उपभोक्ताओं की समुचित सेवा करना।

आधुनिक युग में राष्ट्र की अर्थव्यवस्था बैंकों द्वारा नियन्त्रित होती है। राष्ट्र एवं समाज के साथ बैंकों का घनिष्ठ सम्बन्ध है। बैंक ग्राहेक सेवा के माध्यम से ही समाज सेवा करते हैं। मानव का आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विकास बैंकों से जुडा है।

बैकों के समक्ष अनेक महत्त्वपूर्ण दायित्व हैं उनमें से एक है हमारे उपेक्षाग्रस्त जनजाति समाज का उद्धार एवं उत्थान करना। उपेक्षित बर्ग को बैंक आत्मनिर्भर बनाने में योग देने में सक्षम है।

अन्धे, बधिर तथा विकलांगों के संस्थानों को आर्थिक सहायता देकर बैंक उन्हें रोजगार के अवसर सुलभ कराते हैं। कृत्रिम अंग निर्मणि में भी बैंक सहायता दे रहे हैं।

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नगरों के विकास में बैंक बढ़-चढ़कर अपना योगदान कर रहे हैं। मलिन बस्तियों के निवासियों, मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों एवं अन्य तिरस्कृत समाज के लोगों को बैंक सहानुभूतिपूर्वक सहायता दे रहे हैं।

चिकित्सा शिविर, औषधि वितरण, शौच-स्नानादि व्यवस्था तथा बच्चों को अध्ययन सामग्री आदि की सुविधाएँ जुटाने में बैंक भरपूर सहयोग प्रदान कर रहे हैं। कलाकार चाहे किसी वर्ग का हो बैंक उन्हें सहायता प्रदान करके कला के साथ-साथ कलाकार को भी समृद्ध बना रहे हैं।

कुटीर उद्योगों हेतु ब्रहण सुविधाएँ भी प्रदान की जा रही है। इस प्रकार जीवन को विकासोन्मख बनाने में बैंक अपना योगदान कर समाज एवं राष्ट्र की सेवा करते हुए जीवनाधार स्तम्भ बन गये हैं।

ग्राहकों के माध्यम से बैंक समूचे राष्ट्र को बचत का पाठ पढ़ा रहे हैं। आज की बचत कल का सुख का आदर्श लेकर चलने वाले बैंक मानव को समृद्ध बना रहे हैं।





उपसंहार

इस प्रकार हम देखते हैं कि राष्ट्रीय बैंक आर्थिक तन्त्र के आधार के साथ जन-जन का सुकर बन चुके हैं। कृषि कार्यों के लिए ऋण देकर किसानों के जीवन-स्तर सुधार हेतु भी बैंक प्रयत्नशील हैं।

आज बैंक अपनी सेवाओं के बल पर समाज में अपती गहरी जड़ें जमा चुके हैं और जनसाधारण तक पहुँच चुके हैं । ग्रामों तक बैंक पहुँच रहे हैं तथा बैंकों के विस्तार से देश की सम्पन्नता का विस्तार हो रहा है।

देश की प्रगति दिन दूनी रात चौगुनी हो रही है। इसके पीछे बैंक अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। भविष्य में बैंक प्रसार और अधिक होगा तथा देश भी भौतिक रूप से सुसम्पन्न होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है।

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