विद्यालय में पुस्तकालय का प्रबंधन / विद्यालय में पुस्तकालय कैसा होना चाहिए / लर्निंग कॉर्नर की उपयोगिता

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विद्यालय में पुस्तकालय का प्रबंधन / विद्यालय में पुस्तकालय कैसा होना चाहिए / लर्निंग कॉर्नर की उपयोगिता

विद्यालय में पुस्तकालय का प्रबंधन / विद्यालय में पुस्तकालय कैसा होना चाहिए / लर्निंग कॉर्नर की उपयोगिता
विद्यालय में पुस्तकालय का प्रबंधन / विद्यालय में पुस्तकालय कैसा होना चाहिए / लर्निंग कॉर्नर की उपयोगिता


लर्निंग कॉर्नर की उपयोगिता / विद्यालय में पुस्तकालय का प्रबंधन / विद्यालय में पुस्तकालय कैसा होना चाहिए

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लर्निंग कॉर्नर प्रबन्धन
Learning Corner Management

लर्निंग कॉर्नर के शाब्दिक अर्थ पर विचार किया जाय तो यह तथ्य स्पष्ट होता है कि लर्निंग (Learning) का अर्थ सीखना तथा कॉर्नर (Corner) का अर्थ कोना है अर्थात सीखने का कोना।
इससे यह स्पष्ट होता है कि वह स्थान विशेष जो कि सीखने में सहायता प्रदान करता है वह लर्निंग कॉर्नर कहलाता है। लर्निंग कॉर्नर में वह समस्त सामग्री सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ढंग से रखी जाती है जो कि अधिगम सहायता प्रदान करती है। लनिंग कॉर्नर विषय विशेष के आधार पर तैयार किया जाता है जिससे कि विद्यार्थी उस स्थान पर पहुँचकर उस विषय से सम्बन्धित ज्ञान को आत्मसात कर लें। लर्निंग कॉर्नर की सजावट भी प्रदत्त ज्ञान को ध्यान में रखकर की जाती है। उस स्थान पर शिक्षण करने से छात्रों शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावशील हो जाती है। उस स्थान पर उस विषय से सम्बन्धित शिक्षण सामग्री सजायी जाती है जिस विषय का अधिगम करना होता है।

शिक्षण में लर्निंग कॉर्नर की उपयोगिता (Utility of learning corner in teaching)

लर्निंग कॉनर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। शिक्षण में लर्निग कॉर्नर निम्नलिखित रूप में उपयोगी सिद्ध होता है-

(1) लर्निंग कॉर्नर के माध्यम से गणित जैसे नीरस विषय को रोचक बनाया जा सकता है जिससे छात्र उसमें रुचि लेने लगते हैं। (2) लनिंग कॉर्नर के माध्यम शिक्षण अधिगम सामग्री का व्यवस्थित स्वरूप प्रदर्शित होता है जो कि उच्च अधिगम स्तर के लिये आवश्यक होता है। (3) लनिंग कॉर्नर से शैक्षिक वातावरण तैयार होता है जो कि सम्बन्धित विषय में छात्रों को अधिगम करने के लिये प्रेरित होता है। (4) लर्निंग कॉर्नर बाल केन्द्रित शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अंग है क्योंकि इसको छात्रों की रुचि योग्यता एवं स्तर के अनुसार तैयार किया जाता है।

(5) लर्निंग कॉर्नर को तैयार करने में सम्बन्धित विषय एवं प्रकरण से सम्बन्धित शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग किया जाता है। (6) लर्निंग कॉर्नर का प्रयोग प्रत्येक विषय के कठिन प्रकरणों को सरलतम रूप में प्रस्तुत करने में किया जाता है।   (7) लर्निंग कॉर्नर शैक्षिक नवाचारों की नवीन धारणा है लर्निंग कॉर्नर तैयार करने में शिक्षक के साथ-साथ छात्रों का भी सहयोग किया जाता है। (8) लर्निंग कॉर्नर में विद्वानों के चित्र, शिक्षण के उपकरण एवं शिक्षण सामग्री का प्रयोग होता है।

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उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि लर्निंग कॉर्नर का प्रयोग शिक्षण में अनिवार्य रूप से करना चाहिये क्योंकि प्रत्येक विषय में छात्र प्रायः कठिनता के कारण रुचि नहीं लेते हैं। इसलिये यह आवश्यक है कि सभी विषयों को रुचिपूर्ण एवं सरल बनाने के लिये लर्निंग कॉर्नर का प्रयोग किया जाय। लर्निंग कॉर्नर के प्रयोग से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्राय: सरल हो जाती है क्योंकि इसमें शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों ही क्रियाशील रहते हैं।

पुस्तकालय का  प्रबन्धन
Library Management

प्रत्येक विद्यालय में छात्रों के चरित्र-विकास की दृष्टि से तथा शैक्षिक कार्यक्रम की गुणात्मकता की दृष्टि से पुस्तकालय का बहुत महत्त्व है। किसी भी विद्यालय के विद्यार्थियों के चरित्र तथा शैक्षिक निपुणता का मापदण्ड वहाँ के पुस्तकालय से लगाया जा सकता है। वास्तव में प्रधानाध्यापक विद्यालय का मस्तिष्क है, अध्यापक नाड़ी संस्थान है और पुस्तकालय उसका हृदय । यह नवीन ज्ञान की खोज का केन्द्र होता है। अत: पुस्तकालय को विद्यालय का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना गया है। पुस्तकालय को विद्यालय की ‘बौद्धिक प्रयोगशाला’ के रूप में देखा जाता है। पुस्तकालय को बौद्धिक एवं साहित्यिक अभिवृद्धि का स्थान भी माना जाता है। कालाईल ने पुस्तकालय की परिभाषा देते हुए कहा है-“पुस्तकों का संकलन आज के युग का वास्तविक विद्यालय है।”

पुस्तकालय के महत्त्व की चर्चा करते हुए ‘माध्यमिक शिक्षा आयोग’ ने लिखा है- “व्यक्तिगत कार्य, समूह-प्रयोजन कार्य, शैक्षणिक एवं मनोरंजक कार्य तथा पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के लिये अच्छे तथा दक्ष पुस्तकालय का होना आवश्यक है। छात्रों की रुचियों का विकास, उसके शब्द-भण्डार का वर्द्धन तथा कक्षा में अर्जित ज्ञान की वृद्धि करना-यह सभी इस बात पर निर्भर करता है कि छात्रों को पुस्तकालय में कितने साधन उपलब्ध हैं ?” इस प्रकार की पुस्तकें हमारे जीवन की पथ-प्रदर्शक हैं। महान् दार्शनिक सिसरो के अनुसार-“A room without book is a without soul.” अतः संसार में महान् व्यक्तियों ने सदैव पुस्तकों द्वारा स्वयं को प्रेरित किया है।

पुस्तकालय का महत्व


1. सामान्य ज्ञान की वृद्धि (Improvement of general knowledge)-पुस्तकालय एक ऐसा स्थान है जहाँ पर बैठकर छात्र पुस्तकों का अध्ययन करता है एवं इससे उसका ज्ञान-क्षेत्र विस्तृत होता है। पुस्तकालय छात्रों के ज्ञान की वृद्धि करने में बहुत सहायक है। बालक यहाँ बिना किसी व्यय के अधिक से अधिक पुस्तकों का अध्ययन कर सकता है। इससे उसके सामान्यज्ञानको वृद्धि के साथ-साथ उसके शब्द भण्डारमें भी वृद्धि होती है। पुस्तकालय में सभी प्रकार की पुस्तकें होती है, जिन्हें पढ़कर छात्र अपने सामान्य ज्ञान की वृद्धि करते हैं।

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2. स्वाध्ययन की आदत का विकास (Development of the habit of self-study)– पुस्तकों का अध्ययन करक छात्र अपने अन्दर स्वाध्ययन की आदत का विकास करते है। पुस्तकालय में छात्रों को ऐसा आनन्दमय वातावरण प्रदान किया जाता है, जिसमें रहकर उनमें स्वतन्त्र अध्ययन एवं स्वाध्ययन की आदत का विकास होता है। इससे उनमें पढ़ने की आदत भी विकास होता है।

3. शिक्षकों के लिये उपयोगी (Useful for teachers)- शिक्षक को सदैव विद्यार्थी को रहना चाहिये। उसे सदैव अपने ज्ञान की वृद्धि में संलग्न रहना चाहिये। उनकेबौद्धिक एवं व्यावसायिक विकास के लिये पुस्तकालय बहुत ही आवश्यक है। पुस्तकालय एक शैक्षिक प्रयोगशाला भी है, जिसके द्वारा वे शिक्षण-विधान में अनुसन्धान कार्य कर सकते हैं। माध्यमिक शिक्षा आयोग के प्रतिवेदन में कहा गया है- “पुस्तकालय प्रगतिशील शिक्षण-विधियों को व्यवहार में लाने के लिये एक प्रमुख साधन है।” पुस्तकालय शिक्षकों को अवकाश के समय का सदुपयोग करना सिखाता है।

4. छात्रों के लिये उपयोगी (Useful for students)-पुस्तकालय एक ऐसा स्थान है जहाँ सभी छात्रों को अपनी रुचि, शक्ति तथा योग्यता के अनुसार कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है। प्रत्येक छात्र की रुचि, क्षमता, योग्यता एवं गति आदि एक-दूसरे से भिन्न होती हैं परन्तु पुस्तकालय सबको समान अवसर प्रदान करके, क्षमता के अनुसार विकास करना सिखाता है। पुस्तकालय छात्रों की मानसिक शक्तियों को विकसित करके उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाता है। जिससे छात्र अपने अवकाश के समय का सदुपयोग करना सीख जाते हैं। वे अपना खाली समय पुस्तकालय में ही व्यतीत करना चाहते हैं।

इस प्रकार पुस्तकालय छात्रों में अनुशासन स्थापित करने का उपयोगी साधन है। पुस्तकालय छात्रों के ज्ञान में वृद्धि करता है एवं उनके व्यक्तित्व के विकास में पर्याप्त सहायता प्रदान करता है। पुस्तकालय निर्धन छात्रों के लिये अति उपयोगी है। निर्धनता के कारण जो छात्र पुस्तकें नहीं खरीद पाते, वे पुस्तकालय से उनको प्राप्त करके, उनका अध्ययन कर सकते हैं। पुस्तकालय द्वारा छात्रों में उन आदतों का निर्माण किया जाता है जो कि भावी जीवन के लिये अत्यन्त उपयोगी हैं। छात्र पुस्तकों का उचित उपयोग करना सीख जाते हैं एवं उनमें समय की पाबन्दी की भावना विकसित हो जाती है। पुस्तकालय छात्रों को बौद्धिक रूप से भी अनुशासित करता है।

5. पाठ्य-सहगामी क्रियाओं में सहायक (Helpful inco-curricular activities)- विद्यालय में होने वाली विभिन्न पाठ्य-सहगामी क्रियाओं; जैसे-वाद-विवाद, निबन्ध प्रतियोगिता, कविता प्रतियोगिता एवं सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता आदि में पुस्तकालय द्वारा सहायता ली जाती है। छात्र इन क्रियाओं में भाग लेने के लिये विभिन्न पुस्तकों का अध्ययन करते हैं एवं अपनी ज्ञान-पिपासा को शान्त करते हैं। पुस्तकालय को विद्यालय की सामाजिक क्रियाओं का केन्द्र कहा गया है। छात्र अपने प्रिय लेखकों की पुस्तकों को पढ़कर बहुत से सामाजिक गुणों को ग्रहण करते हैं। अत: पाठ्य सामग्री क्रियाओं के संगठन तथा संचालन के सम्बन्ध में उपलब्ध सामग्री को पढ़कर उनको सुव्यवस्थित रूप से चलाने में सहायता मिलती है।

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6. विभिन्न रुचियों का विकास (Development of variousinterest)- पुस्तकालय छात्रों में विभिन्न रुचियों का विकास करता है। छात्र वहाँ अनेक विषयों पर पुस्तकें पढ़ते हैं तथा अपनी विशेष रुचि एवं मानसिक सामर्थ्य के अनुसार अपने मस्तिष्क का विकास करते हैं।

7. सामूहिक शिक्षण के दोषों के निवारण में सहायक (Helpful in removing the defects of group teaching)-शिक्षक के पास प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत रूप से पढ़ाने के लिये समय नहीं होता परन्तु पुस्तकालय सामूहिक शिक्षण के दोषों को दूर करने में अत्यन्त लाभदायक है। पुस्तकालय में जाकर छात्र अपनी योग्यता एवं गति के अनुसार अध्ययन कर सकते है। इस प्रकार पुस्तकालय द्वारा सामूहिक अध्ययन के दोषों को दूर किया जा सकता है। अध्यापक छात्रों को किसी विशेष विषय से सम्बन्धित पर्याप्त पुस्तकें पढ़ने के लिये बता सकता है एवं छात्र उन पुस्तकों को पढ़कर कक्षा में पढ़े गये विषय को सरलतापूर्वक समझ सकता है।

8. मौन बाजन की आदत का विकास (Development of the habits of silent reading)- पुस्तकालय का सबसे बड़ा लाभ छात्रों में मौन पाठ का अभ्यास डालना है। छात्र पुस्तकालय में जोर-जोर से नहीं पढ़ सकते, उन्हें पुस्तक मौन रूप से पढ़नी पड़ती है। उच्च स्वर में अध्ययन करने से अन्य पढ़ने वालों के अध्ययन में बाधा उत्पन्न होगी। इस प्रकार बालकों में मौन पाठ की आदत का विकास हो जाता है।

9. विद्यालय के पश्चात् भी शिक्षा (Education after school)-पुस्तकालय छात्रों को अध्ययन के लिये इतना प्रेरित कर देता है कि शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् भी वे पुस्तकें पढ़ना नहीं छोड़ते। इस प्रकार उनकी शिक्षा का क्रम चलता रहता है।

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