प्रमुख शिक्षण विधियां / युक्तियां / प्रविधियां || main teaching methods / devices in hindi – दोस्तों सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में शिक्षण कौशल 10 अंक का पूछा जाता है। शिक्षण कौशल के अंतर्गत ही एक विषय शामिल है जिसका नाम शिक्षण अधिगम के सिद्धांत है। यह विषय बीटीसी बीएड में भी शामिल है। आज हम इसी विषय के समस्त टॉपिक को पढ़ेगे। बीटीसी, बीएड,यूपीटेट, सुपरटेट की परीक्षाओं में इस टॉपिक से जरूर प्रश्न आता है।
अतः इसकी महत्ता को देखते हुए hindiamrit.com आपके लिए प्रमुख शिक्षण विधियां / युक्तियां / प्रविधियां || main teaching methods / devices in hindi लेकर आया है।
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प्रमुख शिक्षण विधियां / युक्तियां / प्रविधियां || main teaching methods / devices in hindi
main teaching methods / devices in hindi || प्रमुख शिक्षण विधियां / युक्तियां / प्रविधियां
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शिक्षण विधि ( परिचय )
शिक्षण प्रक्रिया एक जटिल विषय है । कक्षा में जाने से पूर्व शिक्षक योजना बनाता है कि उसे कक्षा में क्या पढ़ाना है । योजना के पश्चात वह सोचता है कि विषय-वस्तु को शिक्षार्थियों तक सुलभता से कैसे पहुँचाया जा सकता है । इस प्रश्न के उत्तर को ही शिक्षण विधि कहते हैं ।
कुशल एवं उत्तम शिक्षण के लिए शिक्षक को कुछ युक्तियों या प्रविधियों का प्रयोग करना पड़ता है । युक्तियाँ या प्रविधियाँ शिक्षण में बहुत उपयोगी होती हैं । इन युक्तियों का प्रयोग शिक्षण की विधियों के अन्तर्गत आता है।
विभिन्न प्रविधियाँ भिन्न- भिन्न अवसरों पर प्रयोग में लायी जाती हैं । वस्तुतः इन सबका अभिप्राय ज्ञानार्जन को प्रभावशाली, ग्राह्य, बोधगम्य, सरल एवं रोचक बनाना होता है । यह शिक्षण विधियों को महत्त्वपूर्ण बनाती हैं।
शिक्षण विधि की परिभाषाएँ (Definitions of Teaching Method)
एस. के क्रोचर के अनुसार—“जिस प्रकार एक सैनिक को अनेक हथियारों का ज्ञान आवश्यक है। उसी प्रकार शिक्षक को भी शिक्षण की विभिन्न विधियों का ज्ञान होना चाहिए । किस समय उसे कौन-सी विधि अपनानी है । यह उसके निर्णय पर निर्भर करता है।”
जॉन ड्यूवी के अनुसार – “व्यवस्थित विधि वह रास्ता है जिससे व्यवस्थित सामग्री के विकास का निर्णय किया जाता है।
थट तथा ग्रबैरिच के अनुसार-“विधि प्रक्रियाओं की सुपरिभाषित संरचना होती हैं। कोई भी शिक्षण विधि बिना प्रक्रिया या प्रविधि के अधूरी रहती है ।”
एम. पी. माँफेट के अनुसार-“शिक्षक विद्यार्थियों को प्रविधियों द्वारा कार्य करने के योग्य बनाता है तथा स्वयं यह दर्शाने में लगा रहता है कि यह कैसे करो और इस बात के लिए सावधान रहना है कि वे उसे करें।”
स्टोन्स तथा मौरिस के अनुसार-“शिक्षण युक्तियाँ अनुदेशन के विपरीत पक्ष में आव्यूह की अपेक्षा अधिक सम्मिलित रहती हैं । शिक्षण की समान युक्तियाँ शिक्षण की विभिन्न आव्यूह में प्रयुक्त की जा सकती है।
स्टोन्स एवं मौरिस के अनुसार-“शिक्षण युक्तियाँ उद्देश्यों से सम्बन्धित होती हैं और शिक्षक के व्यवहार को प्रभावित करती हैं। शिक्षक किसी परिस्थिति विशेष में कैसा व्यवहार करता है, कैसे वह कक्षा में छात्रों के साथ विभिन्न भूमिकाओं में कार्य को पूरा करता है और कैसे छात्र, शिक्षक तथा पाठ्य-वस्तु में अन्तः प्रक्रिया होती है आदि बातें इसमें आती हैं।”
प्रमुख शिक्षण विधियां / युक्तियां / प्रविधियां || main teaching methods in hindi
(1) प्रश्नोत्तर प्रविधि
(2) विवरण प्रविधि
(3) वर्णन प्रविधि
(4) व्याख्यान प्रविधि
(5) स्पष्टीकरण प्रविधि
(6) कहानी कथन प्रविधि
(7) निरीक्षण अवलोकन प्रविधि
(8) उदाहरण प्रविधि
(9) खेल गतिविधि प्रविधि
(10) समूह चर्चा, वाद विवाद प्रविधि
(11) प्रयोगात्मक कार्य प्रविधि
(12) समूह कार्य ( कार्यशाला )प्रविधि
(13) भ्रमण प्रविधि
(14) प्रयोग प्रदर्शन प्रविधि
(1) प्रश्नोत्तर प्रविधि (Questions Answer Device)
सुकरात के समय से चली आने वाली यह एक प्राचीन पद्धति है । इस पद्धति के तीन सोपान हैं-
(1) प्रश्नों को व्यवस्थित रूप से निर्मित करना ।
(2) उन्हें समुचित रूप से छात्रों के सामने रखना ताकि नये ज्ञान के लिए उनमें उत्सुकता जाग्रत हो सके, तथा छात्रों के माध्यम से उनमें सम्बन्ध स्थापित करते।
(3) हुए नवीन ज्ञान देना । इसमें आवश्यकतानुसार निम्न स्तर, मध्यम स्तर एवं उच्च स्तर के प्रश्न आवश्यकतानुसार प्रयोग किये जा सकते हैं।
पूर्वज्ञान का पता लगाकर आगे आने वाले ज्ञान से सम्बन्ध जोड़ने के लिए ही प्रश्न पूछने की आवश्यकता है । इसीलिए यह प्रविधि बहुत ही आवश्यक है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चे का ध्यान चंचल होता है ।
कक्षा में बैठकर भी वह दुनिया की उड़ान भरता है । ऐसे समय में बच्चे का ध्यान कक्षा में लाने के लिए शिक्षक को प्रश्नों का सहारा लेना पड़ता है। इस प्रकार बच्चे के अवधान को आकर्षित करने हेतु प्रश्नों की आवश्यकता पड़ती है। बच्चों ने पढ़ा हुआ पाठ कितना अर्जित किया है इस हेतु प्रश्नों की आवश्यकता पड़ती है।
(2) विवरण प्रविधि (Narration)
कथन-विवरण शिक्षण या सूचना देने की एक महत्त्वपूर्ण प्रविधि है । विवरण की कला प्रत्येक शिक्षक में जन्मजात रूप में पायी जाती है। हम सभी ओर विशेषत: शिक्षक किसी भी बात को विस्तृत रूप से, घटनाओं को वर्णन में कल्पना का पुट देकर उसे रोचक बनाते हुए प्रस्तुत करते हैं । यही कहानी या कथानक रूप में घटना को प्रस्तुत करना ही विवरण प्रविधि है।
डॉ. एस. के. अग्रवाल के अनुसार–“कथन मौखिक शिक्षण का एक पहलू है। कथन का तात्पर्य मौखिक रूप से कहकर, बतलाकर ज्ञान देने से है । इस युक्ति के प्रयोग में शिक्षक किसी वस्तु घटना या प्रसंग को बालकों के सम्मुख ऐसे आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करता है कि बालकों के मस्तिष्क में उसका चित्र बन जाता है और बालक उसका ज्ञान सरलतापूर्वक ग्रहण कर लेते हैं।”
पैन्टन (Panton) के शब्दों में “विवरण या कथन स्वयं में एक कला है जिसका उद्देश्य बच्चों के समक्ष घटनाओं को भाषा के माध्यम से स्पष्ट, विस्तृत, रुचिकर और श्रृंखला-बद्ध रूप में इस तरह प्रस्तुत करना है कि घटनाएँ बच्चों के मस्तिष्क में चित्र का वाला अनुभव करने लगे,रूप बना लें और बच्चे अपनी कल्पना में अपने को उस घटना का दर्शक या भाग करने लगे ।”
(3) वर्णन विधि
किसी व्यक्ति या स्थान का वर्णन किया जाता है । वर्णन वास्तव में स्पष्टीकरण’ का रूप होता है। वर्णन’ का प्रयोग लगभग सभी विषयों में किया जाता है।
वर्णन का अर्थ
एच. एच. गार्लिक ने वर्णन का स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है-“वर्णन से आशय है-शब्दों या संकेतों या दोनों के द्वारा किसी वस्तु का चित्र प्रस्तुत करने की व्यवस्था । इस प्रक्रिया से शाब्दिक चित्र बनते । यह किसी वस्तु का विवरण देने का प्रयास करता है जिससे बालक उसके विषय में उचित धारणा बना सके।”
वर्णन का प्रयोग
इतिहास, भूगोल तथा भाषा के रसानुभूति पाठों में वर्णन का प्रयोग किया जाता है। भूगोल शिक्षण में इसका प्रयोग, किसी प्रदेश का वर्णन छात्रों के मस्तिष्क में चित्र अंकित करता है ।
‘वर्णन शक्ति’ का प्रयोग ऐसे विषयों में किया जाना चाहिए जहाँ किसी घटना या वस्तु का स्पष्ट वर्णन बालकों के समक्ष प्रस्तुत करना है । वर्णन वास्तव में स्पष्टीकरण का एक रूप है ।
(4) व्याख्यान प्रविधि (Lecture Techniques)
निर्देशन की सबसे पुरानी युक्ति व्याख्यान ही है । जिस काल में पुस्तकें उपलब्ध नहीं थीं तथा हस्तलिखित सामग्री भी उपलब्ध नहीं थी तब व्याख्यान से ही शिक्षण कार्य होता है ।
आज व्याख्यान का रूप कॉलेजों में काफी विस्तृत रूप से दिखाई देता है । उच्च कक्षाओं में सारे विद्यार्थी सिर्फ विषय के सीमित ज्ञान से ही सन्तुष्ट नहीं होते, व्याख्यान देना ही उनके लिए पर्याप्त नहीं व्याख्यान के साथ आवश्यक है। कि उनकी जिज्ञासा के लिए प्रश्न किये जाएँ तथा श्रव्य-दृश्य सामग्रियों का प्रयोग किया जाए ।
व्याख्यान से अभिप्राय होता है शिक्षक द्वारा किसी विषय की ‘बाल की खाल’ निकाल देना अर्थात् विषय-वस्तु की गहराई तक उसका विश्लेषण करके छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करना । यह परिचर्चा का विस्तृत अंश है ।
यह माना जाता है कि जो अध्यापक जितना अच्छा व्याख्यान दे सकता है उसकी कक्षा उतनी ही भरी रहती है। व्याख्यान शिक्षक की मौखिक अभिव्यक्ति होती है । इसमें शिक्षक विषय पर अधिकार रखता हुआ क्रमबद्ध अपने ज्ञान के छात्रों क समक्ष प्रस्तुत करता है।
आधुनिक शिक्षाशास्त्री व्याख्यान युक्ति को परम्परागत, एकमार्गीय, वैज्ञानिकता से दूर विधि मानते हैं । इसमें शिक्षक की भूमिका को ही सर्वोपरि व प्रभावयुक्त माना जाता । अतः यह कहा जा सकता है कि व्याख्यान उच्चतम रूप से औपचारिक भाव से, उच्चतम अनौपचारिक भाव तक पहुँचने की प्रक्रिया है।
व्याख्या के प्रकार व्याख्यान दो प्रकार का होता है-
(1) औपचारिक (Formal)
(2) अनौपचारिक (Informal)
(5) स्पष्टीकरण प्रविधि (Techniques of Exposition)
स्पष्टीकरण भी एक प्रकार का वर्णन ही होता है । स्पष्टीकरण के द्वारा छात्रों के अथवा शिक्षक के विचार स्पष्ट किये जाते हैं । यह एक कला है। यह कला विचारों को स्पष्ट करती है।
इसका उद्देश्य विचारों को एक प्रकार स्पष्ट करना है कि बालक उस ज्ञान को सरलता से ग्रहण कर लें । जिस विषय के बारे में छात्र बहुत कम जानते हैं, उस समय स्पष्टीकरण का प्रयोग किया जाता है।
स्पष्टीकरण की विशेषताएँ
(1) भाषा
(2) समग्रता
(3) विशिष्टता
(4) क्रमबद्धता
(5) उपयुक्तता
(6) कहानी-कथन प्रविधि (Story Telling)
कहानी कहना एक विधि है । इसका प्रयोग विधि प्रविधि दोनों रूपों में किया जाता है। कहानी विधि के अन्तर्गत कथन, बातचीत, भाषण इत्यादि का समावेश रहना है । कहानी कहने का अभिप्राय है बच्चों की भावनाओं, उनके संवेगों को स्पर्श कर उन्हें रचनात्मक कार्य करने के लिए प्रेरित करना । कहानी एक ऐसी कला है जो हर अवस्था, हर स्तर तथा हर समूह द्वारा रोचकता व सरलतापूर्वक ग्रहण कर ली जाये। कहानी को मुख्यत: तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) सत्य कहानियाँ (True Stories),
(2) पुराण सम्बन्धी (Myths),
(3) पौराणिक (Jegend) रामायण, महाभारत ।
मनोवैज्ञानिकों का यह कहना है कि बच्चे के विकास के साथ-साथ उसकी रुचियों, प्रवृत्तियों, संवेगों, भावनाओं तथा अभिरुचियों में अन्तर आता है ।
इसीलिए बच्चे को उसकी अवस्था के अनुकूल कहानियों का अध्ययन कराये जाये । बच्चे को प्रारम्भिक अवस्था में परियों की बाल्यावस्था में मारधाड़ और किशोरावस्था में साहसिक कहानियों को सुनने में आनन्द आता है ।
(7) अवलोकन प्रविधि (Observation Method)
किसी परिस्थिति में किसी व्यक्ति के कार्य के बाह्य व्यवहार को देखना ही अवलोकन है। दूसरे रूप में हम कह सकते हैं कि किसी घटना अथवा कार्य का ध्यानपूर्वक अध्ययन ही अवलोकन है।
प्राचीन समय में इस विधि का प्रयोग चिकित्सालय तक ही सीमित था ।
वैद्य, हकीम या डॉक्टर मरीज का अवलोकन कर उसकी बीमारी का कारण जानते थे । धीरे-धीरे मनोवैज्ञानिकों ने इसका प्रयोग शिक्षण के अन्तर्गत करना प्रारम्भ किया । मनोवैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्ति के व्यवहार तथा उसकी आन्तरिक दशा का पता उसके व्यवहार के
अवलोकन से किया जा सकता है ।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अवलोकन द्वारा बच्चे की रुचि व अभिरुचि का पता लगाकर उसी के अनुकूल शिक्षा दी जा सकती है।
(8) उदाहरण प्रविधि (Illustration Technique)
शिक्षण प्रक्रिया में उदाहरण रीति बहुत महत्त्वपूर्ण है चूँकि यह शिक्षण को प्रभावशाली व रोचक बनाने में मदद देती है । विद्वानों का मत है कि “उदाहरणों में केवल प्रकाश डालने की ही शक्ति नहीं होती, वरन् उनमें स्थिरता लाने (या स्थायी प्रभाव डालने) की क्षमता भी होती है।”
पिन्सेण्ट का विचार है कि “अच्छे उदाहरण बौद्धिक रूप से मृत प्रस्तुतीकरण को जीवन प्रदान करते हैं।
उदाहरणों के प्रकार (Types of Illustration)
(i) मौखिक या शाब्दिक उदाहरण
(iI) दृश्य या अशाब्दिक उदाहरण
(9) खेल विधि (Playway Method)
बालक स्वाभाविक रूप से खेलने में रुचि लेते हैं। वे खेल के द्वारा ही अपनी इच्छाओं की प्रवृत्तियों को प्रकट करते हैं । बालक खेलने में विशेष रुचि लेते हैं।
बालक के जीवन में खेल का विशेष महत्त्व होता है । बालकों के जीवन में खेल का इतना महत्त्व होने के कारण बालकों को शिक्षा देने के लिए खेल विधि का आविष्कार किया गया है।
खेल की परिभाषा–म्यूलिक के अनुसार-“जो कार्य अपनी इच्छा से
स्वतन्त्रतापूर्वक करें वही खेल है।”
विद्यालयों में खेल का महत्त्व-
(1)खेलों के द्वारा बालकों में कुशलता का विकास किया जा सकता है।
(2) खेलों के द्वारा छात्र अपनी कुशलता सम्बन्धी गुणों का परिमार्जन कर सकते हैं।
(3) खेल सामाजिक भावना का विकास करते हैं।
(4) खेल बालकों का बौद्धिक विकास करते हैं।
(5) खेल बालकों के अनुभव में वृद्धि करते हैं।
(6) क्रिया द्वारा सीखना” (Learning by Doing”) खेलों के द्वारा ही सम्भव जाता है।
(10) समूह चर्चा, वाद-विवाद (वार्तालाप ) (Group Discussion)
समूह चर्चा का अर्थ स्पष्ट करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि वार्तालाप, वाद-विवाद एवं नायिका परिचर्चा इसी विधि के उपनाम हैं ।
इस विधि से छात्रों के समूह को आमने-सामने बैठाकर निश्चित विषय-वस्तु पर विचार-विमर्श किया जाता है । तथा छात्र उसमें से प्रश्न भी पूछते थे और पाठकगण उन्हें सन्तुष्ट करने का प्रयास करते हैं।
अर्थात् किसी भी बिन्दु का सामूहिक रूप से विश्लेषण किया जाता है । यह विधि उच्च स्तरीय स्तर पर विचार गोष्ठी, विचार संगोष्ठी, सम्मेलन, विचार समिति एवं कार्यशाला (Workshop) द्वारा प्रयोग में लायी जाती है।
वार्तालाप शिक्षण विधि का अर्थ
यह एक ऐसी विधि है इसमें आठ या 10 सदस्य होते हैं, निश्चित पाठ्य बिन्दु (समस्या) उस पर एक-एक करके अपने विचार प्रस्तुत करते हैं तथा आपस में प्रश्न पूछकर समस्या का समाधान निकालते हैं।
वार्तालाप विधि की परिभाषा
समूह चर्चा या वार्तालाप की तैयारी करना आवश्यक होता है । प्रकरण का चुनाव करना पड़ता है तथा इस प्रकरण पर अपने आदर्श एवं मूल्यों के आधार अपने विचार-विमर्श करते हैं तथा आपस में पूछे प्रश्नों का उत्तर देकर एक-दूसरे को करते हैं ।
इसकी परिभाषा निम्नवत् है हरबर्ट गुली के अनुसार “हरबर्ट ने वार्तालाप को परिभाषित करते हुए लिखा है, – “वार्तालाप उस समय होता है, जब व्यक्तियों का एक समूह आमने-सामने एकत्रित होकर मौखिक अन्त:क्रिया द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।
(11) प्रयोगशाला पद्धति (Laboratory Method)
यह विधि विज्ञान शिक्षण में प्रयोग की जाती है। शिक्षण में जब इस विधि का प्रयोग किया जाता है तो छात्रों को कुछ उपकरण कुछ निर्देशों के साथ दे दिये जाते हैं। छात्र प्रयोगशाला में स्वाभाविक पर्यावरण में प्रयोग करते हैं।
प्रयोगशाला पद्धति का प्रयोग
इसमें जब बालक विज्ञान से सम्बन्धित कोई प्रयोग करते हैं तो वे प्रयोग सम्बन्धी गणनाओं को अपनी उत्तर-पुस्तिका में अंकित करते जाते हैं ।
प्रयोग में अन्त में बालक प्रयोग का परिणाम निकलते हैं। बालकों को प्रयोग करते समय यदि कोई जिज्ञासा, शंका या कठिनाई होती है तो शिक्षक उसका समाधान करता है । इस विधि में बालक सक्रिय होकर कार्य करते हैं।
(12) समूह कार्य ( कार्यशाला ) प्रविधि
आज उच्च शिक्षा के क्षेत्र में जटिल समस्याओं के समाधान हेतु कार्य संगोष्ठी का महत्त्व बढ़ रहा है । वि. वि. अ. आयोग (U. G. C.) द्वारा 1982-83 में ही 27 कार्य संगोष्ठियों का आयोजन किया।
‘कार्यशाला के कार्यक्रम शिक्षकों को अपने कार्य में कुशलता दिलाने हेतु आयोजित किये जाते हैं ।
ये कार्यक्रम योग्य विभागीय सदस्यों के निर्देशन में अति आधुनिक व चुने हुए या विशिष्ट महत्त्व के क्षेत्रों की संक्षिप्त किन्तु विशिष्ट जानकारी देने हेतु आयोजित होते हैं।”इस प्रकार कार्यशाला समस्या का सामूहिक समाधान खोजने की नवीनतम प्रविधि है।
डॉ. प्रीतम सिंह-कार्य संगोष्ठी किसी समस्या पर विचारत वह प्राथमिक समूह है, जो कि सम्भागियों के मध्य अन्त:क्रिया स्थापित करते हुए, उन पर व्यक्तिगत रूप से प्रत्यक्ष एवं महत्त्वपूर्ण सामाजिक नियन्त्रण रखता है।
(13) समूह कार्य एवं क्षेत्रीय पर्यटन युक्ति (Group Working and Field Trip Technique)
छात्रों व बालकों की यह मनोवृत्ति होती है कि वे समूह में रहना, समूह में खेलना तथा अपनी अधिकतम क्रियाओं को समूह में करना चाहते हैं। तथा उनका अधिगम भी समूह में उत्तम प्रकार का देखा है क्योंकि छात्र जब समूह के साथ करके सीखना’ (Learning by doing) है। तो वह अधिक स्थायी होता है ।
इसके ही साथ छात्र पर्यटन (Trip) के माध्यम से वस्तुओं का साक्षात निरीक्षण करने का अवसर प्राप्त होता है । इस युक्ति से जो ज्ञान प्राप्त करते हैं । वह वस्तु की आकृति या वातावरण की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेता है।
क्योंकि बालकों को घूमना-फिरना बहुत पसन्द होता है और हँसते-हँसते, घूमते-फिरते पर्यटन युक्ति के माध्यम से आवश्यक जानकारी प्राप्त कर लेते हैं । अध्यापक को इस युक्ति में दो प्रकार से सहायता करनी पड़ती है-
(1) पर्यटन पर छात्रों को ले जाने की व्यवस्था करना।
(2) पर्यटक स्थान पर छात्रों को निर्देशन देना तथा वस्तु की वास्तविकता से परिचित कराना।
क्षेत्रीय पर्यटन युक्ति की परिभाषा
क्षेत्रीय पर्यटन युक्ति के विषय में सबसे पहले प्रो, रॉन (Prof. Ran) ने क्षेत्रीय पर्यटन पर अपने विचार देते हुए कहा-“बालक की इन्द्रियाँ किसी कार्य को करने में जितनी क्रियाशील होती हैं । वह विषय उतना ही अधिक समय तक स्मृति में रहता है।” अन्य विद्वानों ने इसको परिभाषित करते हुए कहा है-“क्षेत्रीय पर्यटन एक सुव्यवस्थित एवं पूर्व निर्धारित कार्यक्रम की प्रयोजना है।”
अर्थात् क्षेत्रीय पर्यटन में अध्यापकों द्वारा किसी निश्चित स्थान पर छात्रों को एक निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लेकर जाया जाता है।और वहाँ छात्रों को मूल पाठ्यवस्तु से सम्बन्धित बिन्दु का अध्ययन साक्षात् अवलोकन, स्पर्श करना आदि माध्यम से कराया जाता है। अन्य परिभाषा देते हुए लिखा- ‘बालकों का अनुभव बढ़ाने के लिए अध्यापकों द्वारा आयोजित विद्यालयी यात्रा को क्षेत्रीय पर्यटन कहते हैं।”
क्षेत्रीय पर्यटन के प्रकार (Types of Field Tour)
(1) लघु क्षेत्रीय पर्यटन (Short field tour)
(2) सामान्य क्षेत्रीय पर्यटन (General field tour)
(3) व्यापक क्षेत्रीय पर्यटन (Wider field tour )
(14) प्रयोग प्रदर्शन प्रविधि (Demonstration Techniques)
शिक्षण युक्तियों में प्रयोग प्रदर्शन युक्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसके माध्यम से छोटे स्तर पर छात्रों का ज्ञान प्रदान किया जाता है क्योंकि इस स्तर पर बालक ज्ञान प्राप्त करने में अबोध होता है ।
इसलिए उनके ये आवश्यक है उनको किसी पाठ्यवस्तु उससे सम्बन्धित वस्तु को दिखाकर ज्ञान दिया जाता है जिससे बालक आसानी से ज्ञान को ग्रहण कर लेते हैं । इसके साथ की यह ज्ञान स्थायी होता है क्योंकि युक्तियों से साक्षरता प्राप्त ज्ञान अधिक स्थायी होता है।
प्रदर्शन युक्ति का अर्थ
प्रदर्शन युक्ति में छात्रों को विषय में मूर्त वस्तुएँ कक्षा में शिक्षण द्वारा दिखाई जाती है, जो वस्तुएँ दिखायी जाती हैं छात्रों को उन्हीं वस्तुओं का ज्ञान कराया जाता है । जब छात्र वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप से देखते हैं तो उनको उस वस्तु की वास्तविक जानकारी होती है।
शिक्षक जो मूर्त वस्तुएँ कक्षा में दिखाकर उनका सैद्धान्तिक ज्ञान कराने के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान (Practical knowledge) भी करता है । प्रभुत्ववादी प्रदर्शन नीतियों में व्याख्यान के बाद दूसरी महत्त्वपूर्ण विधि पाठ प्रदर्शन की आती है । “इस तकनीकी का प्रयोग शिक्षक अधिकतर विभिन्न विषयों के, विचारों, क्रियाओं, अभिवृत्तियों और प्रक्रियाओं को प्रदर्शित करने के लिए करते हैं।
बोले गये शब्दों को विभिन्न सहायक-सामग्रियों में प्रदर्शन के द्वारा विकसित किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप श्रव्य व दृश्य सीखना होता है । ठोस प्रदर्शन को जब सहायक-सामग्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है तो यह दो स्रोत आँख और कान को उत्तेजित करते हैं।”
प्रदर्शन विधि की उपयोगिता
1. छोटी कक्षाओं को कम समय में उपयुक्त ज्ञान दिया जाता है।
2. बालक दृश्य-श्रव्य सामग्री के माध्यम से सीखता है अत: उसकी पाठ में रुचि उत्पन्न होती है तथा ज्ञान स्थायी होता है।
3. उपकरणों की कमी होने पर भी शिक्षण प्रभावशाली होता है।
4. छात्रों की निरीक्षण, तर्क व विचार शक्ति का विकास होता है।
5. छात्र स्वयं देखकर सीखते हैं।
6. शिक्षण विधि कम खर्चीली व कम समय में प्रयुक्त की जा सकती है।
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final words –
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