पर्यवेक्षण को प्रभावित करने वाले कारक / factors affecting to supervision in hindi

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पर्यवेक्षण को प्रभावित करने वाले कारक / factors affecting to supervision in hindi

पर्यवेक्षण को प्रभावित करने वाले कारक / factors affecting to supervision in hindi
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पर्यवेक्षण को प्रभावित करने वाले कारक / Factors Affecting to Supervision

पर्यवेक्षण का उद्देश्य होता है कि वह विद्यालय के प्रत्येक क्षेत्र की समस्याओं को समझने, उन कारणों पर विचार करे तथा उन समस्याओं के समाधान हेतु सम्बन्धित विद्यार्थियों एवं अभिभावकों से विचार-विमर्श कर उपयुक्त सुझाव दे । इस दृष्टि से विद्यालय में आयोजित होने वाली प्रत्येक गतिविधि, शिक्षण कार्य, भौतिक एवं मानवीय संसाधन, अभिभावक वर्ग आदि सभी पर्यवेक्षण को प्रभावित करने वाले कारक हैं। विद्यालय भवन, विद्यालय में उपलब्ध सुविधाएँ, शिक्षकों का स्तर, उनका अध्यापन कार्य,शैक्षिक सामग्री, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक खेलकूद तथा अन्य सहगामी क्रियाएँ सभी पर्यवेक्षण को प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबन्धन के विभिन्न तत्त्व और पर्यवेक्षकों की विभिन्न समस्याएँ भी ऐसे कारक हैं जो पर्यवेक्षण की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। पर्यवेक्षण प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले इन कारणों को निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किया जा सकता है

1. प्रधानाचार्य (Principal)

प्रधानाचार्य संस्था प्रमुख है जो विद्यालय के प्रशासनिक अधिकारी के रूप में जाना जाता है। प्रधानाचार्य के सहयोग से ही विद्यालय में पर्यवेक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। प्रधानाचार्य पर्यवेक्षक के कार्यों में सहयोग करता है और उसे विद्यालय के शैक्षिक स्तर और वस्तुस्थिति के बारे में अवगत कराता है। यदि प्रधानाचार्य अपने इस उत्तरदायित्व को ठीक ढंग से न निभाये और विद्यालय की वास्तविक स्थिति को पर्यवेक्षक से छुपाये तो निश्चित रूप से पर्यवेक्षण के परिणाम भी अवास्तविक होंगे परन्तु यदि प्रधानाचार्य अपने विद्यालय के वास्तविक शिक्षण स्तर और शिक्षण प्रक्रियाओं की जानकारी पर्यवेक्षक सम्मुख रखता है तो पर्यवेक्षण के परिणामों में यथार्थता दृष्टिगोचर होती है।

इससे शिक्षण प्रणाली में आवश्यक सुधार किये जा सकते हैं और विद्यालय की शैक्षिक प्रक्रिया को उन्नत किया जा सकता है। अत: स्पष्ट है कि प्रधानाचार्य विद्यालयी पर्यवेक्षण की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला प्रमुख घटक है। यदि वह सहयोगी, चरित्रवान्, ईमानदार, सत्यप्रिय और कर्मठ है तो पर्यवेक्षण प्रभावशाली और सार्थक है परन्तु यदि वह इन गुणों से युक्त नहीं है तो पर्यवेक्षक को उसका सहयोग नहीं मिलेगा फिर चाहे पर्यवेक्षक कितना भी योग्य क्यों न हो, पर्यवेक्षण प्रक्रिया की सार्थकता पर प्रश्न चिह्न लगा रहेगा।

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2. शिक्षक और छात्र (Teacher and students)

शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु है। विद्यालयों के छात्रों से सबसे अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध शिक्षक का ही होता है। अत: छात्रों की प्रगति में शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पर्यवेक्षण का मुख्य उद्देश्य भी विद्यार्थियों को प्रगति के मार्ग पर ले जाना है। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये पर्यवेक्षक विद्यालयों के शिक्षकों से उनके विद्यार्थियों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी एकत्रित करता है और इसके आधार पर वह अपनी पर्यवेक्षण प्रक्रिया को सम्पन्न करता है। यदि विद्यार्थियों से सम्बन्धित यह जानकारी सही रूप में है तो अवश्य ही पर्यवेक्षण प्रक्रिया के उपरान्त छात्रों को इसका लाभ मिलेगा लेकिन यदि शिक्षकों ने अपना कार्य भली-भाँति नहीं किया एवं विद्यार्थियों से सम्बन्धित तथ्यों जैसे उनकी रुचि, कमियों एवं विशेषताओं को छुपाया तो पर्यवेक्षक के पास गलत जानकारी एकत्रित हो जायेगी और उसका पर्यवेक्षण भी त्रुटिपूर्ण होगा।

अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षक पर्यवेक्षण प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है। शिक्षक का प्रतिबिम्ब विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क पर अंकित होता है। शिक्षक अपने छात्रों में सहकारिता, सत्यता और विनम्रता जैसे गुणों का विकास करता है। वह अपना कार्य ठीक प्रकार से करे, अपने विद्यार्थियों में इन गुणों को विकसित करे तो विद्यार्थी भी पर्यवेक्षण प्रक्रिया में अपना सहयोग करेंगे और विद्यालय एवं अपनी स्थिति को छुपायेंगे नहीं फलस्वरूप पर्यवेक्षण के परिणामों में वास्तविकता एवं प्रभावशीलता का समावेश होगा।

3. अन्य विद्यालयी कर्मचारी (Other school staff)

विद्यालय से सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति पर्यवेक्षण की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। एक अच्छे पर्यवेक्षक का कार्य है कि विद्यालय के प्रत्येक कर्मचारी से मिले, बात करे और शिक्षण प्रक्रिया में उनके सहयोग की जानकारी रखे। यदि पर्यवेक्षक को अपने प्रश्नों के सही उत्तर इन व्यक्तियों के द्वारा नहीं दिये जाते हैं तो पर्यवेक्षण प्रक्रिया भटक जाती है जबकि सभी व्यक्ति पूछे गये प्रश्नों का वास्तविक उत्तर दें तो पर्यवेक्षक सही मार्ग पर आगे बढ़ता है। इसके अतिरिक्त विद्यालयी गतिविधियों से जुड़े अन्य व्यक्ति भी पर्यवेक्षण की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।

4. प्रशासनिक कारक (Administrative factors)

प्रशासनिक कार्यों में सबसे महत्त्वपूर्ण है योग्य और सक्षम पर्यवेक्षकों का चयन एवं उनकी नियुक्ति । यदि गुणों, विशेषताओं, योग्यताओं एवं क्षमताओं से युक्त प्रशिक्षित पर्यवेक्षक चयनित किये जाते हैं तो निश्चित रूप से पर्यवेक्षण प्रक्रिया भी प्रभावशाली होती हैं। परन्तु विडम्बना यह है कि अधिकांश पर्यवेक्षक मानकों के आधार पर चयनित नहीं किये जाते । अनुशंसा, सम्बन्ध और धन के कारण अयोग्य पर्यवेक्षक चुन लिये जाते हैं तो पर्यवेक्षण प्रक्रिया की गुणवत्ता का स्तर स्वाभाविक रूप से गिर जाता है।

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शैक्षिक प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार इस प्रवृत्ति को बढ़ाता है। अत: पर्यवेक्षण प्रक्रिया में सुधार के लिये शैक्षिक प्रशासन में भी सुधार होना आवश्यक है। जैसी शिक्षा प्रशासन की प्रकृति होगी, वैसी ही शैक्षिक पर्यवेक्षण की प्रक्रिया का स्तर होगा। अत: प्रशासन पर्यवेक्षण प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक है। जिस देश में राजनीतिक उथल-पुथल अधिक नहीं होती वहाँ शैक्षिक प्रशासन देश की आवश्यकतानुसार शीघ्र ढलकर उपयोगी सिद्ध होता है, जो पर्यवेक्षण प्रक्रिया को भी प्रभावशाली बनाता है।

5. राजनीतिक कारक (Political factor)

किसी भी देश की राजनीतिक व्यवस्था उस देश की शैक्षिक विचारधारा को प्रभावित करती है, जिससे शिक्षा प्रशासन भी प्रभावित।होता है और इससे पर्यवेक्षण प्रक्रिया भी प्रभावित होती है। राजनीतिक सम्बन्ध, राजनीतिक घटनाएँ, राजनीतिक आदर्शों तथा राजनीतिक प्रभाव शिक्षा प्रशासन को प्रभावित करते हैं। देश में होने वाले राजनैतिक परिवर्तन शैक्षिक प्रशासन के स्वरूप, कार्य प्रणाली और व्यवस्था में परिवर्तन कर देते हैं, जिससे पर्यवेक्षण की प्रक्रिया में भी परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगते हैं।

6. आर्थिक कारक (Economic factor)

पर्यवेक्षण प्रक्रिया की सफलता आर्थिक स्थिति पर भी निर्भर करती है। वित्त व्यवस्था सुदृढ़ होने पर ही शैक्षिक प्रशासन कुशलतापूर्वक कार्य कर सकता है और शैक्षिक प्रशासन की कुशल कार्य व्यवस्था पर ही शैक्षिक पर्यवेक्षण की सफलता और सार्थकता आधारित होती है।

7. पर्यवेक्षक का दृष्टिकोण और उसकी विशेषताएँ

पर्यवेक्षण की प्रक्रिया का आधार स्तम्भ पर्यवेक्षक है। पर्यवेक्षक का दृष्टिकोण विद्यालयी व्यवस्था में सुधार और विद्यार्थियों की प्रगति होना चाहिये। यदि उसका दृष्टिकोण मात्र औपचारिकता पूर्ण करना है तो पर्यवेक्षण प्रक्रिया प्रभावी रूप से सम्पन्न नहीं हो सकती। पर्यवेक्षण में धैर्य, सूक्ष्म दृष्टि और शैक्षिक मामलों की जानकारी से सम्बन्धित सभी गुण होने चाहिये। इसके अतिरिक्त उसे सहयोगी, विनम्र एवं मृदुभाषी होना चाहिये। शैक्षिक पर्यवेक्षण के स्वरूप और विकास को प्रभावित करने वाले उपर्युक्त कारक किसी एक विद्यालय से सम्बन्धित न होकर समस्त विद्यालयों से सम्बन्धित हैं। कुशल और सफल पर्यवेक्षण की दृष्टि से शिक्षा के क्षेत्र में इनकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये। यदि पर्यवेक्षण प्रक्रिया को उपयोगी बनाना है तो उपरोक्त कारकों को वास्तविक रूप से क्रियान्वित करना होगा।

शैक्षिक पर्यवेक्षण के उपयुक्त कारकों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिये हमें कुशल प्रशासन की आवश्यकता होती है। देश की वर्तमान स्थिति में जबकि सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक गतिविधियों में तीव्रता से परिवर्तन हो रहा है ऐसी स्थिति में इन कारकों को परिवर्तित रूप में अपनाना आवश्यक हो गया है। यदि हम इनकी उपेक्षा करते रहेंगे तो पर्यवेक्षण के निर्धारित उद्देश्यों से दूर हो जायेंगे और वांछित परिणामों को प्राप्त करने में असफल रहेंगे। हमें शैक्षिक पर्यवेक्षण के माध्यम से शिक्षा में अपेक्षित सुधार करने हैं। अत: पर्यवेक्षण को प्रभावित करने वाले मूल कारकों की कभी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये।

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भारत में पर्यवेक्षण सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन इस प्रकार किया जा सकता है-
(1) पर्यवेक्षकों का अभाव।

(2) कार्य-भार की अधिकता।

(3) पर्यवेक्षण कार्य शीघ्र में होना।

(4) पर्यवेक्षकों का प्रशिक्षित न होना ।

(5) अध्यापकों को समुचित निर्देशन न मिलना। उपरोक्त समस्त कारणों से पर्यवेक्षण कार्य निष्प्रभावी, अनुपयोगी तथा औपचारिक सा हो गया है। समय-समय पर विभिन्न शिक्षा-आयोगों ने पर्यवेक्षण सम्बन्धी समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है जिनका वर्णन निम्नांकित हैं-

1. कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग (1919)-“पर्यवेक्षण कार्य बहुत शीघ्रता से होता है। इसका परिणाम यह होता है कि शिक्षण विधियों को उन्नत बनाने तथा समुचित रूप से उन्हें संगठित करने के सुझाव दिये ही नहीं जाते जो पर्यवेक्षण का मुख्य उद्देश्य है।”

2. हर्टाग समिति (1929)–“पर्यवेक्षकों की संख्या अपर्याप्त होने के कारण शिक्षा में अपव्यय की मात्रा अधिक होती है।”

3. वुड तथा ऐबट प्रतिवेदन (1937)-“अपने क्षेत्र से बाहर का अनावश्यक कार्य होने के कारण पर्यवेक्षक अपना वास्तविक कार्य सुचारु रूप से नहीं कर पाते।”

4. आचार्य नरेन्द्र देव समिति (1949)-“शिक्षा-पर्यवेक्षण का कार्य यान्त्रिक तथा नैत्यिकी (Routine) रह गया है।”

5.माध्यमिक शिक्षा आयोग(1953)-“अनेक स्थानों पर पर्यवेक्षण केवल औपचारिक ही रहता है। कई बार बहुत ही कम समय लगाया जाता है। यदि कहीं लगाया भी जाता है तो उसका व्यय नैत्यिकी कार्यों में ही हो जाता है।”

भारत में पर्यवेक्षण सम्बन्धी समस्या के निराकरण के लिये निम्नलिखित अन्य भी सुझाव दिये जा सकते हैं-
(1) पर्यवेक्षकों को प्रशासकीय कार्य से मुक्त किया जाय। (2) शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थाएँ आसपास के क्षेत्रों में विचार गोष्ठियाँ आयोजित करें, जिनमें शैक्षिक समस्याओं के निराकरण हेतु विचार-विमर्श किया जाय।

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