बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय शैक्षिक मूल्यांकन क्रियात्मक शोध एवं नवाचार में सम्मिलित चैप्टर शैक्षिक मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्व | need and importance of evaluation in hindi आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।
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शैक्षिक मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्व | need and importance of evaluation in hindi
need and importance of evaluation in hindi | शैक्षिक मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्व
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शैक्षिक मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्व | मूल्यांकन की आवश्यकता और महत्व
मापन एवं मूल्यांकन के महत्व एवं उपयोगिता पर निम्नलिखित रूप में
प्रकाश डाला जा सकता है-
(1) शिक्षा शिक्षण में मूल्यांकन की आवश्यकता
(2) छात्र के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता
(3) शिक्षक के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता
(4) अभिभावक के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता
(5) समाज के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता
(6) प्रशासनिक दृष्टिकोण से मूल्यांकन की आवश्यकता
(7) परीक्षा सुधार हेतु मूल्यांकन की आवश्यकता
(1) शिक्षा शिक्षण में मूल्यांकन की आवश्यकता
(1) मापन एवं मूल्यांकन, शैक्षिक-प्रक्रिया में अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे शिक्षणोपरान्त अधिगमकर्ता (छात्र) की उपलब्धि की जानकारी प्राप्त होती है।
(2) इसके द्वारा छात्र के विभिन्न विषयों की कमजोरी मालूम हो जाती है। इस कमजोरी को दूर करने के लिए शिक्षक उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) की व्यवस्था करता है।
(3) मापन एवं मूल्यांकन द्वारा शिक्षक अपनी शिक्षण विधियों तथा शिक्षण योजना की उपयोगिता की जानकारी प्राप्त कर लेता है। शिक्षण विधियों का मूल्यांकन करने के उपरान्त शिक्षक आवश्यकतानुसार उसमें वांछित परिवर्तन या परिमार्जन कर लेता है।
(4) बालक को स्वयं अपनी कमजोरी या सीखने से सम्बन्धित कठिनाइयों एवं दुर्बलताओं की जानकारी मूल्यांकन के उपकरणों द्वारा ज्ञात हो जाती है। वह तद्नुरूप अपने में वांछित सुधार लाने का प्रयास करता है।
(5) मूल्यांकन एवं मापन के उपकरणों द्वारा छात्र (अधिगमकर्ता) की उपलब्धि की जानकारी उसे हो जाती है। अच्छी सफलता प्राप्त करने के बाद वह प्रेरित होकर अपने मुख्य लक्ष्य ओर अग्रसर हो जाता है।
(6) मूल्यांकन एवं मापन द्वारा छात्र (सीखने वाला) की व्यक्तिगत विभिन्नता का ज्ञान हो जाता है तथा छात्र की योग्यता, बुद्धि, अभिक्षमता, रुचि, व्यक्तित्व के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था की जा सकती है।
(7) शैक्षिक, व्यावसायिक एवं व्यक्तिगत निर्देशन में मापन एवं मूल्यांकन के टपकरणों की विशेष उपयोगिता स्पष्ट होती है।
(8) व्यावसायिक प्रशिक्षण की कक्षाओं में प्रवेश के समय अभ्यर्थियों के
चयन हेतु मापन व मूल्यांकन के उपकरणों; यथा-बुद्धि परीक्षण, व्यक्तित्व प्रश्नावली, अभिक्षमता परीक्षण आदि का विशेष महत्व होता है।
(9) छात्रों को कक्षोन्नति प्रदान करते समय मापन एवं मूल्यांकन का विशेष महत्व है।
(2) छात्र के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता
छात्र के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता के कारण निम्नलिखित हैं-
(1) छात्र को अपनी अच्छाई व कमियों का ज्ञान हो जाता है।
(2) छात्र को यह ज्ञात हो जाता है कि उसकी योग्यता में कैसा सुधार हो रहा है।
(3) छात्र में समय तत्परता के गुण का विकास होता है।
(4) छात्र को अपनी प्रगति की जानकारी हो जाती है।
(5) छात्र में स्पर्धा की भावना का उदय होता है।
(6) मूल्यांकन के आधार पर छात्र पुरस्कार प्राप्त करने के योग्य हो जाता है।
(7) छात्र में आत्मसन्तोष एवं आत्मविश्वास के गुणों का निर्माण होता है।
(8) मूल्यांकन के द्वारा प्रत्येक छात्र के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
(9) मूल्यांकन छात्र को यगह जानने में सहायता प्रदान करता है कि उसे अपने व्यवहार को किस प्रकार विकसित एवं परिवर्तित करना चाहिए।
(3) शिक्षक के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता
शिक्षक के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता के पक्ष में निम्नलिखित तर्क
उपस्थित किए जा सकते हैं-
(1) मूल्यांकन के द्वारा शिक्षक को अपनी शिक्षा की योजना, शिक्षण की विधियाँ शिक्षण के उपकरणों की सफलता एवं असफलता का ज्ञान होता है।
(2) शिक्षक को शिक्षा के लक्ष्यों की प्राप्ति या अप्राप्ति का स्पष्ट बोध होता है।
(3) शिक्षक इस बात को ज्ञात कर सकता है कि उसकी शिक्षण-विधियाँ कितनी उपयुक्त हैं।
(4) शिक्षक को छात्र की उपलब्धि का ज्ञान होता है।
(5) शिक्षक को छात्रों की सहायता करने का अवसर प्राप्त होता है।
(4) अभिभावक के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता
अभिभावक के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता के निम्नलिखित कारण
स्वीकार किए जाते हैं-
(1) अभिभावक को अपने बच्चे की वास्तविक स्थिति का ज्ञान होता है।
(2) मूल्यांकन द्वारा प्राप्त प्रगति-पत्र से अभिभावक को अपने बच्चों की योग्यता, रुचि, निष्पत्ति आदि गुणों का ज्ञान होता है।
(3) अभिभावक अपने बच्चे की कमियाँ ज्ञात करके, उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं।
(4) अभिभावक, मूल्यांकन द्वारा अपने बच्चे की योग्यता के अनुरूप व्यवसाय का चयन कर सकते हैं।
(5) अभिभावक को अपने बच्चे का भविष्य उज्ज्वल बनाकर उसको सुख एवं सन्तोष का जीवन व्यतीत करने का अवसर प्राप्त होता है।
(5) समाज के लिए मूल्यांकन की आवश्यकता
समाज के लिए जिन कारणों से मूल्यांकन की आवश्यकता का अनुभव
किया जाता है, वे सामान्य रूप से निम्नांकित हैं-
(1) समाज को प्रचलित शिक्षा के स्तर का ज्ञान होता है।
(2) समाज, शिक्षा के स्तर को उठाने के प्रयास कर सकता है।
(3) मूल्यांकन से किसी देश या समाज की प्रगति का ज्ञान होता है, क्योंकि प्रगति-साहित्यिक, वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिक क्षेत्र से ज्ञात होती है तथा सबका आधार शिक्षा-व्यवस्था है।
(4) मूल्यांकन द्वारा यह ज्ञात होता है कि शिक्षा के स्वरूप, उद्देश्यों एवं पाठ्यक्रम में समाज का कितना प्रभाव है।
(5) मूल्यांकन द्वारा यह ज्ञात होता है कि छात्र की अभिवृत्तियाँ, रुचियाँ, शारीरिक कुशलताएँ आदि समाज के हित में हैं अथवा नहीं।
उपर्युक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि मूल्यांकन का बहुत महत्व है। तथा यह बहुत आवश्यक है। मूल्यांकन समय-समय पर छात्र, शिक्षक, अभिभावक एवं समाज की सहायता करता है।
(6) प्रशासनिक दृष्टिकोण से मूल्यांकन की आवश्यकता
आधुनिक समय में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रशासनिक कार्यों में
मूल्यांकन की आवश्यकता होती है। जैसे-विद्यालय में छात्रों को प्रवेश देते समय इंजीनियरिंग, चिकित्सा (मेडीकल), शिक्षक परीक्षण (बी.एड.) महाविद्यालयों में प्रवेश करने, औद्योगिक कर्मचारियों को भर्ती करने, सरकारी कर्मचारियों तथा अधिकारियों का चयन करने तथा बैंक के कर्मचारियों का चयन करने के लिए विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं एवं प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त पठन-पाठन के उपरान्त छात्र/छात्राओं की उपलब्धियों का मूल्यांकन करना पड़ता है। इन सभी प्रकार की परीक्षाओं एवं उपलब्धि मूल्यांकन के लिए हमें उपलब्धि परीक्षण का उपयोग या प्रयोग करना पड़ता है। इस प्रकार उपलब्धि परीक्षण का उपयोग एक अध्यापक, शिक्षाशास्त्री, मनोवैज्ञानिक तक ही सीमित न होकर चिकित्सशास्त्री, अनुसन्धानकर्ता, सैनिक अधिकारी तथा शिक्षा के अधिकारियों तक प्रचलित है।
यहाँ हम संक्षेप में कुछ प्रमुख उपयोगों पर प्रकाश डालेंगे-
(1) शैक्षिक स्तर की जाँच करना।
(2) विभिन्न कक्षाओं में प्रवेश।
(3) औद्योगिक प्रतिष्ठानों तथा सरकारी सेवाओं में कर्मचारियों का चयन।
(4) वर्गीकरण एवं नियुक्ति करने में प्रयोग।
(5) शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन।
(6) व्यक्तिगत एवं उपचारात्मक शिक्षण
(7) अध्यापक एवं शिक्षण पद्धतियों का मूल्यांकन।
(8) शिक्षण में सुविधा।
(9) छात्रों को अभिप्रेरणा।
(10) विद्यालय के प्रशासनिक अधिकारियों एवं पर्यवेक्षकों के लिए उपयोगी।
(11) छात्रों के समायोजन में सहायक।
(7) परीक्षा सुधार हेतु मूल्यांकन की आवश्यकता
मापन का उद्देश्य विद्यार्थियों के अर्जित ज्ञान का मूल्यांकन करना ही नहीं वरन् इसका लक्ष्य परीक्षा प्रणाली में सुधार करना भी है। इन दोनों लक्ष्यों की पूर्ति तभी हो सकती है जब हम उस सारे ज्ञान की जाँच कर लें जो छात्रों को पढ़ाया गया है तथा जो ज्ञान जाँचना होता है उसे भी भली प्रकार पढ़ाना अध्यापक का कर्तव्य होता है। दूसरे शब्दों में, परीक्षा लेने से पूर्व हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि हमें परीक्षा का क्षेत्र कहाँ तक सीमित रखना है, बालकों को कितना ज्ञान दिया जा चुका है तथा किस रूप में दिया गया है, बालकों में कौन-कौन से व्यावहारिक परिवर्तन किये जा चुके हैं जो उनकी प्रगति के सूचक हैं आदि।
परीक्षा के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि बालकों में अपेक्षित व्यवहारीय परिवर्तन (Desired behavioural changes) हुए भी हैं अथवा नहीं। यदि हुए हैं तो किस सीमा तक और अगर नहीं हो पाये हैं तो क्यूँ? चूँकि, शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालक के व्यवहार में परिवर्तन लाना होता है इस दृष्टि से उसके व्यवहार में ऐसे परिवर्तन लाये जायें जो उसके स्वयं की तथा समाज की दृष्टि से उपयोगी हों, साथ ही, उसे सीखने के अनुभव भी व्यवस्थित क्रम में प्रदान किये जायें। इसके विपरीत यदि उन्हें उचित अनुभव समुचित ढंग से प्रदान नहीं किये जाते तब हमारी परीक्षा का औचित्य ही समाप्त हो जाता है।
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Final word
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