पर्यवेक्षण के प्रकार / पर्यवेक्षण की प्रविधियां

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय समावेशी शिक्षा में सम्मिलित चैप्टर पर्यवेक्षण के प्रकार / पर्यवेक्षण की प्रविधियां आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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पर्यवेक्षण के प्रकार / पर्यवेक्षण की प्रविधियां

पर्यवेक्षण के प्रकार / पर्यवेक्षण की प्रविधियां
पर्यवेक्षण के प्रकार / पर्यवेक्षण की प्रविधियां


Types of Supervision / पर्यवेक्षण के प्रकार / पर्यवेक्षण की प्रविधियां

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पर्यवेक्षण के प्रकार / Types of Supervision

शैक्षिक शब्दकोष (Educational Dictionary) में पर्यवेक्षण के 23 प्रकारों का उल्लेख है। उदाहरणार्थ-निरंकुश, सहयोगी, रचनात्मक, लोकतन्त्रीय, समन्वयात्मक, राज्य निर्देशित आदि । जे. ए. बर्टकी (J.A. Bartky : Supervision As Human Relations) के अनुसार पर्यवेक्षण के प्रकार, आयोजन के उद्देश्य एवं परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। पर्यवेक्षण के प्रमुख प्रकार अनलिखित रूप में स्पष्ट किये जा सकते हैं-

1. निरीक्षणात्मक पर्यवेक्षण (संशोधात्मक पर्यवेक्षण)

यह पर्यवेक्षण का परम्परागत स्वरूप है। इसमें पर्यवेक्षण अधिकारी को सर्वज्ञाता माना जाता है तथा पर्यवेक्षक का मुख्य उद्देश्य केवल त्रुटियों का पता लगाना होता है। इस पर्यवेक्षण के अनुसार यह माना जाता है कि भिन्न-भिन्न परिस्थितियों एवं विषयों की भिन्न-भिन्न विधियाँ हैं, जिनके प्रयोग से शिक्षण को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। अधिकारियों का दृष्टिकोण छिद्रान्वेषण होता है।

अत: इसे अधिकारिक पर्यवेक्षण के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार के पर्यवेक्षण में आज्ञा, निर्देश एवं नियमों पर अधिक बल दिया जाता है। पर्यवेक्षण की पारम्परिक विधि होने के कारण इसमें पूर्व नियोजित क्रियान्वयन पर अधिक बल होता है। पर्यवेक्षण के पश्चात् पर्यवेक्षक निर्धारित मानदण्डों के आधार पर शिक्षण की सफलता अथवा प्रशासन की सफलता को आँकता है। उन कार्यविधियों की निन्दा की जाती है, जिन्हें पर्यवेक्षक उपयुक्त नहीं समझते। इस पर्यवेक्षण की सर्वाधिक आलोचना होती है। पर्यवेक्षक का शिक्षकों के प्रति हीन दृष्टिकोण इसके लिये उत्तरदायी है।

निरीक्षणात्मक पर्यवेक्षण के गुण (Merits of inspective supervision)

इस पर्यवेक्षण के गुण अग्रलिखित हैं-(1) यह पर्यवेक्षण निश्चित कार्यविधि,कार्य-व्यवस्था की दृष्टि से उपयुक्त है। (2) अधिकारी के भय से कार्यक्रम नियमित एवं विधिपूर्वक सम्पन्न होते हैं । (3) दण्ड के भय से शिक्षक पूर्ण निष्ठा और लगन से कार्य करते हैं। (4) समय एवं साधनों की बचत होती है । (5) कार्य-प्रणाली में सुधार शीघ्रता से होता है।

निरीक्षणात्मक पर्यवेक्षण के दोष (Demerits of inspective method)

इस पर्यवेक्षण के कुछ दोष भी हैं, जो निम्नांकित हैं-(1) यह संकुचित मनोवृत्ति पर आधारित है। (2) यह अविश्वास एवं संकीर्ण मनोवृत्ति पर आधारित है। (3) यह पर्यवेक्षण मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के विपरीत है। (4) यह वैयक्तिक सृजनशीलता में बाधक है। (5) यह मानवीय मूल्यों
के विपरीत है। (6) यह छिद्रान्वेषी है। (7) इसमें शिक्षकों की मौलिकता एवं स्वत्व का ह्यस होता है। (8) यह शिक्षकों के मनोभावों को दबाता है एवं उनकी अभिव्यक्ति में बाधक है।

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2. नियन्त्रणात्मक पर्यवेक्षण (Controlled supervision)

नियन्त्रणात्मक पर्यवेक्षण प्रधानाध्यापक एवं शिक्षकों दोनों की कठिनाइयों को जानने के लिये होता है। पर्यवेक्षक शिक्षकों की कठिनाइयों के निराकरण में सहयोग देता है। यह पर्यवेक्षण भी निरीक्षणात्मक पर्यवेक्षण के समान है। अन्तर केवल यह है कि नियन्त्रणात्मक पर्यवेक्षण में पर्यवेक्षक शिक्षकों की समस्याओं को जानकर, उनके आधार पर सुधार के लिये कार्य करता है। अत: इसमें पर्यवेक्षक को शिक्षण का अनुभव होना आवश्यक है एवं उसे पर्यवेक्षण तकनीकों में भी दक्ष होना चाहिये।

3. सहयोगी लोकतन्त्रीय पर्यवेक्षण (Co-operative democratic supervision)

इस प्रकार के पर्यवेक्षण में प्रधानाध्यापक, शिक्षक, विषय-विशेषज्ञ आदि सभी परस्पर सहयोग से योजनानुसार एक-दूसरे की समस्या का निदान करने में सहयोग देते हैं। इसमें शिक्षक यह जानता है कि पर्यवेक्षण उसके शैक्षिक एवं व्यावसायिक विकास के लिये है। यह पर्यवेक्षण आधुनिक दर्शन के अनुरूप है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान से देखा जाता है। इस प्रकार के पर्यवेक्षण में लोकतन्त्र के आदर्शों को ध्यान में रखा जाता है।

सहयोगी लोकतन्त्रीय पर्यवेक्षण की विशेषताएँ

इस पर्यवेक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (1) यह नेतृत्व के गुणों का विकास करता है। (2) इसमें समग्र शिक्षण एवं प्रशिक्षण सम्बन्धी परिस्थितियों का व्यापक मूल्यांकन सम्भव है। (3) अध्यापन सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण करना सम्भव है। (4) लोकतन्त्रीय मूल्यों का सम्मान किया जाता है। (5) शिक्षक के व्यक्तित्व का सम्मान किया जाता है।

सहयोगी लोकतन्त्रीय पर्यवेक्षण की सीमाएँ

इसकी निम्नलिखित सीमाएँ हैं-(1) अप्रशिक्षित अध्यापकों की संख्या अधिक होना। (2) अल्पकालीन प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक । (3) अध्यापकों के ज्ञान और मौलिकता में कमी। (4) कुशल पर्यवेक्षकों की तुलना में अध्यापकों की संख्या अधिक होना।

4. वैज्ञानिक पर्यवेक्षण (Scientific supervision)

वैज्ञानिक पर्यवेक्षण, क्रमबद्ध, वैध तथा विश्वसनीय है। यह पूर्णतया वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर विकसित है। अयर ने वैज्ञानिक पर्यवेक्षण को अग्रलिखित रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया है-

वैज्ञानिक पर्यवेक्षण के मुख्य रूप से चार आधार हैं-
(1) नियोजन (2)  लचीलापन (3) वस्तुनिष्ठता (4) मूल्यांकन

इस प्रकार वैज्ञानिक पर्यवेक्षण के लिये पूर्व योजना, आवश्यकतानुसार विधियों एवं कार्य-प्रणाली में लचीलापन, विषय-वस्तु के परीक्षण के लिये वस्तुनिष्ठता तथा समुचित मूल्यांकन विधियों को अपनाया जाना चाहिये।

वैज्ञानिक पर्यवेक्षण की विशेषताएँ

इस पर्यवेक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-(1) न्य शैक्षिक विकास के लिये आधार प्रस्तुत करते हैं। (2) इसमें व्यवस्थित, क्रमबद्ध, वैध तथा विश्वसनीय विधियों का प्रयोग होता है। (3) अविश्वास की स्थिति में प्रक्रिया की पुनरावृत्ति की जा सकती है। (4) निष्कर्ष पर्यवेक्षण सिद्धान्तों के विकास में योग देते हैं।

वैज्ञानिक पर्यवेक्षण के दोष

वैज्ञानिक पर्यवेक्षण में निम्नलिखित दोष भी हैं-(1) अध्यापकों एवं पर्यवेक्षकों का इन विधियों में दक्ष न होना। (2) अनेक परिस्थितियों में व्यावहारिक निर्णन नदे पाना । (3) अनेक उपकरण-वीडियो,
टैप, सी. सी. टी. वी. कम्प्यूटर आदि का आसानी से उपलब्ध न होना।

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5.रचनात्मक पर्यवेक्षण (Creative supervision)

रचनात्मक पर्यवेक्षण वैयक्तिक सृजनात्मकता एवं मौलिकता के विकास का आधार प्रस्तुत करता है। रचनात्मक पर्यवेक्षण के अन्तर्गत पर्यवेक्षक स्टॉफ के कर्मचारियों के विशेष गुणों का पता लगाकर उन गुणों के विकास के लिये समुचित पर्यावरण सुविधाएँ तथा प्रोत्साहन प्रदान करता है। इसमें नवीन शैक्षणिक विधियों एवं प्रयोगों की सराहना की जाती है, जिससे कर्मचारियों में उच्च रचनात्मकता का विकास होता है। रचनात्मक पर्यवेक्षण स्वीकार करता है कि प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ श्रेष्ठ गुण होते हैं, उनको समुचित अवसर प्रदान करके विकसित किया जा सकता है।

इसमें समुचित वैयक्तिक अभिव्यक्ति विचार-विमर्श को प्रोत्साहित किया जाता है। पर्यवेक्षक का व्यवहार सहयोगी होता है। इस प्रकार के पर्यवेक्षण में छात्र, शिक्षक, विद्यालय एवं समुदाय की सृजनशील शक्तियों का विकास होता है। यह पर्यवेक्षण वैज्ञानिक तथा लोकतन्त्रीय विधियों का प्रयोग करता है। अत: पर्यवेक्षक का पूर्ण योग्य एवं अनुभवी होना आवश्यक है। उसे आधुनिक पर्यवेक्षण तकनीकों का भी ज्ञान रखना चाहिये।

रचनात्मक पर्यवेक्षण के गुण

इस पर्यवेक्षण में निम्नलिखित गुण होते हैं-(1) शिक्षकों और छात्रों के सृजनशील गुणों का विकास होता है। (2) नयी-नयी शिक्षण विधियों के प्रयोग परीक्षण के अवसर प्राप्त होते हैं। (3) नवीन कार्य के प्रति रुचि जाग्रत होती है।

रचनात्मक पर्यवेक्षण की सीमाएँ

इस पर्यवेक्षण की सीमाएँ या दोष निम्नलिखित है-(1) प्रत्येक विद्यालय शिक्षा विभाग और बोर्ड के नियम एवं निर्देशों का पालन करते हैं, जिससे नवीन प्रयोगों के अवसर प्राप्त नहीं होते। (2) भौतिक एवं वित्तीय संसाधनों के अभाव के कारण नये प्रयोग सम्भव नहीं हो पाते। (3) नेतृत्व परिवर्तन के साथ नये प्रयोग समाप्त हो जाते हैं। (4) प्रशासन में तानाशाही के प्रभाव के कारण सार्थक सहयोग का अभाव रहता है।

6.व्यक्तियों की संख्या के आधार पर पर्यवेक्षण

व्यक्तियों की संख्या के आधार पर पर्यवेक्षण को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(1) पैनल पर्यवेक्षण
(2) वैयक्तिक पर्यवेक्षण

1. पैनल पर्यवेक्षण (Panel supervision)

देश के अधिकांश भागों में विद्यालयों की मान्यता एवं क्रमोन्नति के लिये अब प्राय: पैनल पर्यवेक्षण ही किया जाता है। पैनल में एक विषय विशेषज्ञ, दूसरा शिक्षण तकनीकी विशेषज्ञ तथा तीसरा विभागीय अधिकारी होता है परन्तु इसमें परस्पर विश्वास का अभाव प्रतीत होता है। यदि विद्यालय शिक्षकों को यह विश्वास हो जाये कि उनके शिक्षण या कार्यों का पर्यवेक्षण उनके कौशलों के विकास के लिये
है तो पैनल पर्यवेक्षण सभी लोगों द्वारा सहर्ष स्वीकार किया जा सकता है।


2. वैयक्तिक पर्यवेक्षण (Individual supervision)

वैयक्तिक पर्यवेक्षण एकल निरीक्षण सिद्धान्त पर आधारित होता है, जो कि विद्यालय के सर्वोच्च अधिकारी-प्रधानाचार्य द्वारा किया जाता है। यह पर्यवेक्षण वैयक्तिक कमियों को दूर करने में सहायक होता है।
वर्तमान समय में पर्यवेक्षण निम्नलिखित कार्यों के लिये किया जाता है-
(1) शिक्षा विभाग द्वारा विद्यालयों के त्रिवार्षिक विषय मूल्यांकन के लिये। (2) विद्यालयों को क्रमोन्नत करने के लिये। (3) विद्यालयों को सरकारी मान्यता प्रदान करने के लिये। (4) विद्यालयों को अनुदान देने के लिये। (5) विद्यालयों के शिक्षकों की शैक्षिक एवं व्यावसायिक उन्नयन के लिये।

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पर्यवेक्षण की प्रविधियाँ
Techniques of Supervision

अमरीका के प्रोफेसर वेबर (Weber) ने अपने अध्ययन के आधार पर पर्यवेक्षण की प्रविधियों की एक सूची बनायी एवं निम्नलिखित प्रमुख प्रविष्टियों को अपनी सूची में स्थान दिया-
(1) समस्याओं का अध्ययन करने के लिये शिक्षकों को विभिन्न समितियों में संगठित करना। (2) विशेष प्रकरणों के लिये शिक्षक वर्ग की मीटिंग बुलाना। (3) विचार गोष्ठियों का आयोजन करना। (4) शिक्षकों का ग्रीष्मकालीन संस्थाओं में भाग लेना । (5) एक विद्यालय के शिक्षकों द्वारा दूसरे विद्यालय को देखने जाना । (6) व्यावसायिक पुस्तकालय की व्यवस्था करना।

विकसिन,हरवार्ड तथा मिनेसोटा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बार, बर्टन तथा ब्रेकनर ने अपनी सूची में निम्नलिखित प्रविधियों को स्थान दिया है-
(1) प्रधानाचार्य द्वारा कक्षाओं का परिदर्शन। (2) प्रधानाचार्य द्वारा विभिन्न प्रकरणों पर भाषण देना। (3) छात्रों की समस्याओं को जानने के लिये पर्यवेक्षण करना। (4) शिक्षक वर्ग की अनौपचारिक मीटिंग बुलाना। (5) निर्देशन सम्बन्धी सम्मेलनों का आयोजन करना तथा उनमें शिक्षकों को भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करना।
अत: पर्यवेक्षण की प्रविधियों को विभिन्न ढंगों से वर्गीकृत किया गया है परन्तु सुविधा तथा सरलता से दृष्टिकोण से इनको दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-

पर्यवेक्षण की प्रविधियाँ

(1) सामूहिक प्रविधियाँ (Group Techniques)
(2) वैयक्तिक प्रविधियाँ  (Individual Techniques)

सामूहिक तथा वैयक्तिक प्रविधियों को तीन उपवर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) क्रियात्मक प्रविधियाँ
(i) सामूहिक प्रविधियाँ  (वर्कशॉप, समितियाँ आदि)
(ii) वैयक्तिक प्रविधियाँ  (शिक्षण कार्य में सक्रिय भाग लेना,
                  वैयक्तिक रूप से समस्याओं का समाधान करना आदि)

(2) मौखिक प्रविधियाँ
(i)सामूहिक प्रविधियाँ (शिक्षक-वर्ग की मीटिंग,सामूहिक मन्त्रणा, निर्देशित अध्ययन )
(ii) वैयक्तिक प्रविधियाँ  (वैयक्तिक सम्मेलन, व्यवस्था सम्बन्धी मन्त्रणा,साक्षात्कार)

(3) निरीक्षणात्मक प्रविधियाँ
(i) सामूहिक प्रविधियाँ (निर्देशित निरीक्षण,भ्रमण आदि)
(ii) वैयक्तिक प्रविधियाँ (निर्देशित निरीक्षण, आन्तरिक परिदर्शन आदि)

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