सम्प्रेषण के प्रकार | types of communication in hindi | शाब्दिक एवं अशाब्दिक सम्प्रेषण

सम्प्रेषण के प्रकार | types of communication in hindi | शाब्दिक एवं अशाब्दिक सम्प्रेषण  – दोस्तों सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में शिक्षण कौशल 10 अंक का पूछा जाता है। शिक्षण कौशल के अंतर्गत ही एक विषय शामिल है जिसका नाम शिक्षण अधिगम के सिद्धांत है। यह विषय बीटीसी बीएड में भी शामिल है। आज हम इसी विषय के समस्त टॉपिक को पढ़ेगे।  बीटीसी, बीएड,यूपीटेट, सुपरटेट की परीक्षाओं में इस टॉपिक से जरूर प्रश्न आता है।

अतः इसकी महत्ता को देखते हुए hindiamrit.com आपके लिए सम्प्रेषण के प्रकार | types of communication in hindi | शाब्दिक एवं अशाब्दिक सम्प्रेषण  लेकर आया है।

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सम्प्रेषण के प्रकार | types of communication in hindi | शाब्दिक एवं अशाब्दिक सम्प्रेषण

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सम्प्रेषण के प्रकार (Types of Communication)

प्रभावशाली शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को गत्यात्मक, सक्रिय एवं जीवन्त बनाने के लिए सम्प्रेषण की निरन्तरता या अनवरता आवश्यक होती है । सभी प्रकार के सम्प्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक अभिसूचनाओं का संचार किया जाता है । कक्षा में शिक्षक पाठ्यवस्तु सम्बधी तथ्यों व प्रत्ययों को शाब्दिक तथा अशाब्दिक आदि सम्प्रेषणों द्वारा शिक्षार्थी तक पहुँचाता है।

शिक्षण में सम्प्रेषणों को निम्न भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है –


(1) शाब्दिक सम्प्रेषण (Verbal Communication)

शाब्दिक सम्प्रेषण में भाषा का प्रयोग किया जाता है । यह सम्प्रेषण मौखिक रूप में वाणी द्वारा तथा लिखित रूप में शब्दों, संकेतों, विचार, भावनाओं आदि के द्वारा दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए प्रयोग किया जाता है ।

शाब्दिक सम्प्रेषण को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

(i) मौखिक सम्प्रेषण (Oral Communication)

इस सम्प्रेषण में वाणी द्वारा तथ्यों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है । इसमें वार्ता, परिचर्चा, सामूहिक चर्चा, व्याख्या, कहानी, प्रश्नोत्तर आदि के माध्यम से अभिव्यक्ति की जाती है। इसमें सन्देश देने वाला तथा सन्देश ग्रहण करने वाला दोनों ही परस्पर आमने-सामने रहते हैं।

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(ii) लिखित सम्प्रेषण (Written Communication)

इसमें सन्देश देने वाला लिखित रूप में शब्दों या संकतों के द्वारा इस प्रकार से सन्देश प्रदान करता है कि सन्देश ग्रहण करने वाला व्यक्ति उसकी भावनाओं को समझ सके ।

(2) अशाब्दिक सम्प्रेषण (Non-verbal Communication)

अशाब्दिक सम्प्रेषण में भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसमें वाणी संकेत, चक्षु-सम्पर्क, मुख मुद्राओं एवं स्पर्श सम्पर्क आदि का प्रयोग किया जाता है।

(i) वाणी सम्प्रेषण वाणी सम्प्रेषण में विचारों तथा भावनाओं की अभिव्यक्ति व्यक्तिगत रूप से अथवा छोटे-छोटे समूहों में आमने-सामने रहकर वाणी द्वारा की जाती है; जैसे-“हाँ-हाँ”, “हाँ-हूँ” हूँ-हूँ” कहना, सीटी बजाना, जोर से बोलना, चीखना, मुस्कराना आदि।

(ii) मुख मुद्राएँ एवं चक्षु-सम्पर्क-कक्षा में चक्षु-सम्पर्क (Eye to eye contact) के द्वारा शिक्षक अपने छात्रों की मनःस्थिति का ही अन्दाजा लगा लेते हैं।
संवेगात्मक स्थिति की अभिव्यक्तियों में छात्रों की मुख मुद्राएँ अहम् भूमिका निभाती हैं ।
मुख मुद्राओं के माध्यम से प्रसन्नता, भय, क्रोध, शोक तथा आश्चर्य आदि का सम्प्रेषण आसानी से किया जा सकता है।

(iii) स्पर्श सम्पर्क

इसमें स्पर्श को ही प्रमुख माध्यम बनाया जाता है । स्पर्श के माध्यम से व्यक्ति अपनी भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति करने में समर्थ होते हैं।
प्रशंसा की शाबासी, प्यार का एक चुम्बन अपने आप बहुत-सी भावनाओं, संवेदनाओं तथा विचारों की अभिव्यक्ति का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।



(1) शैक्षिक सम्प्रेषण (Educational Communication)

शिक्षण के आधार पर सम्प्रेषण को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है-

1. वैयक्तिक सम्प्रेषण (Individual ComCommunication )

जब शिक्षक बालक को अलग-अलग शिक्षण देता है तो इसे वैयक्तिक सम्प्रेषण कहते हैं।

ए. जी. मेलविन के अनुसार-“विचारों का आदान-प्रदान अथवा व्यक्तिगत वार्तालाप द्वारा बालकों को अध्ययन में सहायता, आदेश तथा निर्देश प्रदान करने के लिए शिक्षक का प्रत्येक बालक से पृथक्-पृथक् साक्षात्कार करना ।”


वैयक्तिक सम्प्रेषण के उद्देश्य (Aims of Individual Communication)

वैयक्तिक शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-


(1) शिक्षार्थियों में व्यक्तिगत विभिन्नताएँ होती हैं, उनकी रुचियों, अभिरुचियों आवश्यकताओं और मानसिक योग्यताओं को ध्यान में रखा जाता है।


(2) साधारण शिक्षार्थियों के लिए व्यक्तिगत शिक्षण आवश्यक है।

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(3) शिक्षार्थियों की विशिष्ट योग्यताओं और व्यक्तित्व का विकास करना ।


(4) शिक्षार्थियों को क्रियाशीलता का अवसर प्रदान करना ।



वैयक्तिक सम्प्रेषण के गुण (Merits of Individual Communication)

वैयक्तिक सम्प्रेषण के गुण निम्नलिखित हैं-


(1) यह विधि बाल-केन्द्रित होने के कारण मनोवैज्ञानिक है।

(2) यह विधि बालक को क्रियाशील बनाती है । इससे बालक अधिक ज्ञान अर्जित करने में समर्थ होता है।

(3) इस विधि में बालक को ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रेरित किया जाता है । अतः वह स्वयं करके सीखता है।

(4) इस विधि में शिक्षक बालक के ऊपर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालने में समर्थ रहता है।

(5) इस विधि में शिक्षा व्यक्तिगत भिन्नताओं के
अनुसार दी जाती है।

(6) यह विधि सीखने के व्यक्तिगत सिद्धान्त पर आधारित है।

(7) इस विधि में शिक्षक, बालक पर व्यक्तिगत ध्यान देता है।

(8) इस विधि में बालक की प्रकृति के अनुसार शिक्षा देने की व्यवस्था है।

(9) इसमें शिक्षक को शिक्षण के प्रति अपने उत्तरदायित्व के कारण अधिक परिश्रम करना पड़ता है।

(10) यह विधि मन्द-बुद्धि एवं प्रखर-बुद्धि दोनों प्रकार के छात्रों के लिए उपयोगी है।

वैयक्तिक सम्प्रेषण के दोष (Demerits of Commmunication)

वैयक्तिक सम्प्रेषण के कुछ दोष निम्नलिखित हैं-


(1) यह विधि अधिक खर्चीली है अतः प्रत्येक समाज इसकी व्यवस्था नहीं कर सकता।


(2) प्रत्येक छात्र के लिए व्यक्तिगत रूप से शिक्षक का प्रबन्ध करना असम्भव है।


(3) इसमें शिक्षक और बालक दोनों के समय और शक्ति का अपव्यय होता है।


(4) यह विधि अव्यवहारिक है।


(5) इस विधि से बालकों में प्रेम, सहयोग, आत्मविश्वास, आत्म त्याग की भावना का विकास नहीं हो पाता।


(6) इस विधि में प्रेरणा, प्रोत्साहन आदि प्रतिस्पर्धा का अभाव रहता है।


(7) प्रत्येक बालक के लिए यह विधि उपयोगी नहीं है।




(2)  सामूहिक सम्प्रेषण (Collective Communication)

सामूहिक सम्प्रेषण का अर्थ कक्षा-शिक्षण से है । सामूहिक सम्प्रेषण के लिए एक-सी मानसिक योग्यता वाले छात्रों के अनेक समूह बना लिए जाते हैं । इन समूहों के कक्षा कहते हैं । ये कक्षाएँ सामूहिक इकाइयाँ होती हैं । शिक्षक इन कक्षाओं में शिक्षण कार्य करते हैं । इस प्रकार सामूहिक शिक्षण में शिक्षक सामूहिक शिक्षण द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं।

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सामूहिक सम्प्रेषण के गुण (Merits of Collective Communication)

इस सम्प्रेषण के गुण निम्नलिखित हैं-


(1) यह विधि सरल एवं व्यावहारिक है।


(2) इस विधि से शिक्षा देने में बालकों की तर्क-शक्ति, कल्पना-शक्ति एवं चिन्तन शक्ति का विकास होता है।


(3) इस विधि में बालक सामूहिक भावना से कार्य करते हैं, उनमें प्रतियोगिता की भावना का विकास होता है।


(4) इससे बालकों में अनुकरण की भावना उत्पन्न होती है।


(5) यह विधि छात्रों में पढ़ने के लिए उत्साह पैदा करती है तथा उन्हें नवीन ज्ञान एव सुझाव प्रदान करती है।


(6) यह विधि संकोची एवं लज्जाशील बालकों के लिए अधिक उपयोगी है।


(7) कक्षा में विचारों का आदान-प्रदान होने के कारण बालकों की कार्यकुशलता बढ़ती है।


(8) यह विधि छात्रों को योग्य नागरिक बनने और भावी जीवन की तैयारी करने के अवसर प्रदान करती है।


सामूहिक सम्प्रेषण के दोष (Demerits of Collective Communication)

सामूहिक सम्प्रेषण के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं-

(1) इस विधि में बालकों की रुचियों और आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा जाता है। अत: यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है।


(2) यह विधि कक्षा केन्द्रित एवं शिक्षा बाल केन्द्रित है।
है । अत: इसका क्षेत्र संकुचित है।


(3) इस विधि में शिक्षक निर्धारित पाठ्यक्रम के अन्तर्गत ही शिक्षण कार्य करता बालकों की व्यक्तिगत कठिनाइयाँ दूर नहीं हो पाती है।


(4) इस विधि में शिक्षक बालकों से व्यक्तिगत सम्पर्क नहीं बना पाता ।


(5) इस विधि में शिक्षक सक्रिय एवं छात्र निष्क्रिय रहते हैं।


(6) इस विधि से प्रखर-बुद्धि बालकों का हित नहीं हो पाता ।


(7) इस विधि में बालकों के व्यक्तिगत भेदों पर ध्यान नहीं दिया जाता । सभी बालकों को एक समान ही शिक्षा दी जाती है।



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