संवेगात्मक विकास,विभिन्न अवस्थाओं में संवेगात्मक विकास,बालक का संवेगात्मक विकास– दोस्तों आज hindiamrit आपको बाल विकास का सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक की सारी जानकारी प्रदान करेंगे।
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बालक का संवेगात्मक विकास emotional development in child
संवेगात्मक विकास, physical development,विभिन्न अवस्थाओं में संवेगात्मक विकास दोस्तों आइये जानते है बालक में मुख्य रूप से कितने विकास होते हैं।
बालक में कुल 6 प्रकार के विकास होते हैं। हम शिक्षा मनोविज्ञान में शारीरिक विकास,मानसिक विकास,सामाजिक विकास,भाषा विकास,नैतिक विकास,संवेगात्मक विकास आदि को मुख्य रूप से पढ़ते है।
तो आइये आज जानते है की संवेगात्मक विकास क्या है,शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास,बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास,किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास कैसे होता है।
संवेगात्मक विकास का अर्थ (meaning of emotional development)
संवेगात्मक विकास मानव जीवन के विकास व उन्नति के लिये अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। यह मानव जीवन
को सम्पर्ण रूप से प्रभावित करता है। संवेगात्मक विकास सही नहीं होने पर व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यक्तित्व विघटित हो
जाता है।
जब व्यक्ति अपने संवेगों का सही प्रकाशन करना सीख लेता है, तो उसे संवेगात्मक विकास कहा जाता है।
विभिन्न अवस्थाओं में बालक का संवेगात्मक विकास
अलग अलग अवस्थाओं में बालक के संवेगात्मक विकास को निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है।
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शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास
इस अवस्था के संवेगों का विकास अस्पष्ट होता है।क्योंकि शिशु संवेग मन्द गति से आदत से जुड़ते हैं। शारीरिक आयु के साथ-साथ संवेगात्मक विकास में तीव्रता आती है।
आयु | उत्पन्न संवेग |
जन्म के समय | उत्तेजना |
1 माह | पीड़ा – आनंद |
3 माह | क्रोध |
4 माह | परेशानी |
5 माह | भय |
10 माह | प्रेम |
15 माह | ईर्ष्या |
24 माह | प्रसन्नता |
बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास
संवेगात्मक विकास बाल्यावस्था में किस प्रकार होता है?
इसको हम निम्न बिंदुओं की सहायता से समझ सकते हैं-
(1) इस अवस्था में संवेगों में स्थायित्व आने लगता है।
(2) समाज के नियमों व संवेगों में समायोजन करना सीख जाता है।
(3) प्रत्येक क्रिया के प्रति प्रेम, ईर्ष्या, घृणा व प्रतिस्पर्धा की भावना प्रकट करना प्रारम्भ करता है।
किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास
संवेगात्मक विकास किशोरावस्था में निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है।
(1) संवेग परिपक्व अवस्था में होता है।
(2) चेतन व जागरूक होते हैं। वे समय-समय पर क्रोध, प्यार, ईष्ष्या, प्रतिस्पर्धा एवं संवेगों का खुलकर प्रयोग करते हैं।
(4) संवेगों में अत्यधिक तीव्रता पायी जाती है।
संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
(1) परिपक्वता
यदि बालक अधिक परिपक्व है। तो उसके संवेग अधिक स्थिर होंगे। अर्थात उसका संवेगात्मक विकास अधिक होता है क्योंकि परिपक्वता ही संवेग का नियंत्रण करती है।
(2) शारीरिक विकास और स्वास्थ्य
संवेगात्मक विकास के लिए बालक का शारीरिक स्वास्थ्य सही होना बहुत आवश्यक है।जो बालक अधिक दुबले होते हैं उनमें चिड़चिड़ापन अधिक होता है। अपने संवेग को स्थिर नहीं रख पाते हैं। बात-बात पर गुस्सा करते हैं ।इसलिए संवेग को नियंत्रण करने के लिए या संवेगात्मक विकास के लिए शारीरिक विकास और स्वास्थ्य का अच्छा होना बहुत आवश्यक है।
(3) बुद्धि
जिन बालकों में बुद्धि अधिक होती है अर्थात उनकी बुद्धि लब्धि अधिक होती है वह अपने संवेग को अधिक नियंत्रण करते हैं और उनका संवेगात्मक विकास भी सामान्य बालक की तुलना में अधिक होता है।
(4) सीखना
अधिगम संवेगात्मक विकास में अधिक सहायता करता है।यदि बालक अपने आसपास से परिवार से विद्यालय से कुछ न कुछ सीखता रहता है तो इससे उसके संवेगात्मक विकास पर वृद्धि होती है।
(5) विद्यालयी वातावरण
संवेगात्मक विकास को विद्यालय वातावरण भी अधिक प्रभावित करता है। यदि विद्यालय का वातावरण सही है अर्थात बालक विद्यालय में रुचि ले रहा है वह खुश रहता है तो उसका संवेगात्मक विकास अधिक होता है।
(6) परिवार
बालक जिस परिवार में रहता है वहां का माहौल सही है तो बालक का संवेगात्मक विकास सही तरीके से होता है। यदि परिवार में लड़ाई झगड़े या कलह, मारपीट होती है तो इससे बालक का संवेगात्मक विकास बाधित होता है।
(7) मित्र
बालक के संवेगात्मक विकास में मित्रों का भी योगदान है। यदि बालक के मित्र अच्छे हैं। वह भी अपने संवेग को नियंत्रित रखते हैं। सबसे प्रेम से बात करते हैं,गुस्सा नहीं करते हैं उनमें कोई बुरी आदत नहीं है। तो बालक भी उस समूह में यह सब नहीं करता है। वह भी मित्रों की भांति ही समूह में रहने की कोशिश करता है। जिससे उसका संवेगात्मक विकास होता है।
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