दोस्तों आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक संवेग और मैक्डूगल की 14 मूल प्रवृत्तियां हैं। जिसके अंतर्गत हम लोग संवेग क्या है, संज्ञान क्या है, संवेग और संज्ञान का संबंध,संवेग के प्रकार,संवेग की प्रकृति, संवेग की विशेषताएं तथा मैक्डूगल के 14 संवेग और उनकी मूल प्रवृत्तियां आदि को विस्तृत रूप से पढ़ेगे।

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संवेग का अर्थ-
संवेग शब्द अंग्रेजी के EMOTION (इमोशन) शब्द का हिंदी रूपांतर है।EMOTION शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द EMOVERE (इमोवेयर) से मानी जाती है जिसका अर्थ उत्तेजित करने,हलचल मचाने,उथल पुथल,जैसे अर्थों में प्रयुक्त होता है।
इस प्रकार संवेग को व्यक्ति की उत्तेजित दशा कहते हैं। संवेग शरीर को उत्तेजित करने वाली एक प्रक्रिया है।मनुष्य अपने रोजाना की जिंदगी में सुख,दुख,भय, क्रोध,प्रेम, ईर्ष्या, घृणा आदि का अनुभव करता है। वह ऐसा व्यवहार किसी उत्तेजना वस करता है। यह अवस्था संवेग कहलाती है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार संवेग की परिभाषाएं-
वुडवर्थ के अनुसार ” संवेग, व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।”
जरसील्ड के अनुसार ” किसी भी प्रकार के आवेश आने, भड़क उठने तथा उत्तेजित हो जाने की अवस्था को संवेग कहते हैं।”
ड्रेवर के अनुसार ” संवेग प्राणी की जटिल दशा है। जिसमें शारीरिक परिवर्तन प्रबल भावना के कारण उत्तेजित दशा और एक निश्चित प्रकार का व्यवहार करने की प्रवृत्ति निहित रहती है।”
रॉस के अनुसार ” संवेग, चेतना की वह अवस्था है जिसमें रागात्मक तत्व की प्रधानता रहती है।”
क्रो एंड क्रो के अनुसार ” संवेग वह भावनात्मक अनुभूति है जो व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक उत्तेजनापूर्ण अवस्था तथा सामान्यीकृत आंतरिक समायोजन के साथ जुड़ी होती है। जिसकी अभिव्यक्ति द्वारा प्रदर्शित बाहरी व्यवहार द्वारा होती है।”
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संज्ञान का अर्थ-
इसका अर्थ सीधी भाषा में समझ या ज्ञान होता है। संज्ञान में मुख्यतः ज्ञान, समग्रता, अनुप्रयोग, विश्लेषण तथा मूल्यांकन पक्ष सम्मिलित होते है। संज्ञान से अभिप्राय एक ऐसी प्रक्रिया से होता है जिसमें संवेदन, प्रत्यक्षण, प्रतिभा, धारणा, प्रत्यास्मरण, समस्या समाधान,तर्क जैसी मानसिक क्रियाएं सम्मिलित होती हैं। अतः संज्ञान से तात्पर्य है संवेदी सूचनाओं को ग्रहण करके उसका रूपांतरण, विस्तरण, संग्रहण उसका समुचित प्रयोग करने से होता है।
संज्ञानात्मक विकास से तात्पर्य बालकों में किसी संवेदी सूचनाओं को ग्रहण करके उस पर चिंतन करने तथा क्रम से उसे इस लायक बना देना होता है जिसका प्रयोग विभिन्न परिस्थितियों में करके इस तरह तरह की समस्या समाधान कर सकते हैं। संज्ञानात्मक विकास के अध्ययन के क्षेत्र में जीन पियाजे का सिद्धांत एक अभूतपूर्व सिद्धांत माना गया है उन्होंने बालक के चिंतन व तर्क के विकास में जैविक व संरचनात्मक तत्व पर प्रकाश डालकर संज्ञानात्मक विकास की व्याख्या की है। बाद में ब्रूनर तथा वाइगोत्सकी ने भी संज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान दिया है।
उपयोगी लिंक-
पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त
थार्नडाइक के मुख्य एवं गौण नियम
स्किनर का क्रिया प्रसूत सिद्धान्त
कोहलर का अन्तर्दृष्टि या सूझ का सिद्धान्त
संवेग के प्रकार | मैक्डूगल की 14 मूल प्रवृत्तियां | मैक्डूगल के 14 संवेग-
मैक्डूगल ने मूल प्रवृत्तियों को जन्मजात प्रवृत्तियां मानते हुए उन्हें सभी प्रकार के संवेगों के जन्म देने वाला कहा है। उनके अनुसार मूल प्रवृत्ति जन्म व्यवहार के 3 पक्ष होते है-ज्ञानात्मक भावात्मक तथा क्रियात्मक।संवेग का संबंध मूल प्रवृत्तियों से होता है मैक्डूगल ने 14 मूल प्रवृत्तियां बताई हैं तथा प्रत्येक से जुड़ा एक संवेग बताया है।
मैक्डूगल की 14 मूल प्रवृत्तियां-
मूल प्रवृत्तियां | सम्बन्धित संवेग |
पलायन (Escape) | भय (fear) |
युयुत्सा (Combat) | क्रोध (Anger) |
निवृत्ति (Repulsion) | घृणा (Disgust) |
जिज्ञासा (Curiosity) | आश्चर्य (Wonder) |
शिशुरक्षा (Parental) | वात्सल्य (Love) |
शरणागति (Apeal) | विषाद (Distress) |
रचनात्मक (Construction) | संरचनात्मक भावना (feeling of creativeness) |
संचय प्रवृत्ति (Acquistion) | स्वामित्व की भावना (feeling of ownership) |
सामूहिकता (Gregariousness) | एकाकीपन (feeling of loneliness) |
काम (Sex) | कामुकता (Lust) |
आत्म-गौरव (Self-assertion) | श्रेष्ठता की भावना (positive self-feeling) |
दैन्य (Submission) | आत्महीनता (Negative self-feeling) |
भोजन-अन्वेषण (food seeking) | भूख (Appetite) |
हास (Laughter) | आमोद (Amusement) |
संवेगों की प्रकृति या विशेषतायें
इनकी प्रकृति या विशेषताएं निम्नलिखित है-
(1) संवेग की व्यापकता- संवेग सभी प्राणियों में पाए जाते हैं परंतु इनकी प्रबलता प्रत्येक प्राणी में भिन्न-भिन्न होती है।
(2) शारीरिक परिवर्तन- संवेग की दशा में शारीरिक परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं-आंतरिक शारीरिक परिवर्तन और बाहरी शारीरिक परिवर्तन।आंतरिक शारीरिक परिवर्तन में जल्दी-जल्दी सांस लेना,हृदय की धड़कन तेज होना, पाचन क्रिया प्रभावित होना आदि सम्मिलित हैं। जबकि बाहरी शारीरिक परिवर्तन में मुख्य मंडल के प्रकाशन में अंतर आना, आवाज में परिवर्तन होना आदि दिखाई देते हैं।
(3) विचार प्रक्रिया का लुप्त होना- संवेगात्मक दशा में व्यक्ति अपनी सामान्य स्थिति में नहीं रहता और उचित अनुचित पर विचार नहीं कर पाता। जैसे- क्रोध आने पर मारने पीटने को तैयार हो जाना।
(4) मूल प्रवृत्तियों से संबंध- संवेग की उत्पत्ति मूल प्रवृत्तियों से होती है
(5) वैयक्तिकता– संवेगों के प्रकाशन में वैयक्तिकता होती है। संवेग व्यक्ति में स्वभाव, अवस्था तथा परिस्थिति के अनुसार भिन्न-भिन्न रूप में प्रकट होता है।
(6) संवेगों में अस्थिरता- संवेग अस्थिर होते हैं। संवेग की दशा थोड़े समय तक होती है। जैसे क्रोध में मां बालक की पिटाई कर दी थी परंतु थोड़ी देर बाद करुणा व वात्सल्य से पूर्ण हो जाती है।
(7) संवेग में क्रियात्मक प्रवृत्ति का होना- प्रत्येक संवेग का संबंध एक क्रियात्मक प्रवृत्ति से होता है। जैसे- भय में भागना, आमोद में हँसना, क्रोध में मुट्ठी बंध जाना और भुजाएं फड़कना।
संवेगों के घटक-
संवेगों के घटक निम्न है-
(1) व्यवहार में बदलाव
(2) संवेगात्मक अभिव्यक्ति
(3) संवेगात्मक भावनाएं
(4) शारीरिक परिवर्तन
बालक के संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व / बालक के संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
इसके अंतर्गत निम्न कारक तत्व आते हैं
(1) वंशानुक्रम
(2) परिवार
(3) बुद्धि की मानसिक योग्यता
(4) थकान
(5) माता-पिता का दृष्टिकोण
(6) सामाजिक स्थिति
(7) बालक का स्वास्थ्य
(8) सामाजिक स्वीकृति
(9) विद्यालय व शिक्षक
संवेगों का शिक्षा में महत्व-
संवेग ओं का कक्षा शिक्षण में विद्यालय में क्या महत्व है चलिए इसको निम्न बिंदुओं से समझते हैं-
(1) बालकों के संवेग को जागृत कर पाठ में उनकी रुचि उत्पन्न की जा सकती है।
(2) विद्यार्थियों के संवेगों का ज्ञान प्राप्त करके उपयुक्त पाठ्यक्रम का निर्माण करने में सफलता प्राप्त किया जा सकता है।
(3) बच्चों में उपयुक्त संवेगों को जागृत करके उनको महान कार्यों को करने की प्रेरणा दी जा सकती है।
(4) शिक्षक बालकों की मानसिक शक्तियों के मार्ग को प्रशस्त करके उन्हें अपने अध्ययन में अधिक क्रियाशील बनने की प्रेरणा प्रदान कर सकता है।
(5) शिक्षक बालकों के संवेगों को परिष्कृत करके उनको समाज के अनुकूल व्यवहार करने की क्षमता प्रदान कर सकता है।
(6) विद्यार्थियों को अपने संवेग के ऊपर नियंत्रण करने की विधियां बताकर उनको शिष्ट और सभ्य बनाया जा सकता है।
(7) बच्चों के संवेगों का विकास करके उनमें उत्तम विचारों, आदर्शों गुणों और रूचिओं का निर्माण किया जा सकता है।
FAQS
उत्तर – संवेग वह मानसिक और शारीरिक प्रतिक्रिया है जो किसी उत्तेजना (Stimulus) के प्रति उत्पन्न होती है। यह हमारी सोच, व्यवहार और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है।
उत्तर – विलियम मैकडूगल (William McDougall) एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने “मूल प्रवृत्तियों” (Instincts) के सिद्धांत को विकसित किया, जो मानव व्यवहार के आधारभूत कारकों को समझाने का प्रयास करता है।
उत्तर – मैकडूगल के अनुसार, मानव व्यवहार कुछ जैविक प्रवृत्तियों (Instincts) पर आधारित होता है, जो जन्मजात होती हैं और व्यवहार को प्रेरित करती हैं।
उत्तर – मूल प्रवृत्ति वे स्वाभाविक जैविक प्रवृत्तियाँ होती हैं जो व्यक्ति को बिना किसी पूर्व अनुभव के किसी विशेष व्यवहार को करने के लिए प्रेरित करती हैं।
उत्तर – मैकडूगल ने 14 मूल प्रवृत्तियाँ बताई हैं, जो विभिन्न संवेगों से जुड़ी होती हैं।
उत्तर – पलायन
उत्तर – यह प्रवृत्ति व्यक्ति को नई चीजों को जानने, सीखने और समझने के लिए प्रेरित करती है।
उत्तर – यह प्रवृत्ति व्यक्ति को खतरे से बचने और स्वयं की सुरक्षा करने के लिए प्रेरित करती है।
उत्तर – यह प्रवृत्ति व्यक्ति को समाज में रहने, सहयोग करने और सामूहिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करती है।
उत्तर – यह प्रवृत्ति व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से लड़ने और अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रेरित करती है।
उत्तर – यह प्रवृत्ति व्यक्ति को भूख लगने पर भोजन प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है, जो जीवन के लिए आवश्यक है।
उत्तर – यह प्रवृत्ति व्यक्ति को दूसरों के आदेशों का पालन करने, विनम्र रहने और सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है।
उत्तर – यह प्रवृत्ति व्यक्ति को आनंद का अनुभव कराने और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने में मदद करती है।
उत्तर – यह प्रवृत्ति माता-पिता को अपने बच्चों की देखभाल करने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करती है।
उत्तर – यह प्रवृत्ति व्यक्ति को शक्ति प्राप्त करने, नेतृत्व करने और दूसरों पर प्रभाव डालने के लिए प्रेरित करती है।
उत्तर – यह प्रवृत्ति व्यक्ति को भय की स्थिति में भागने और स्वयं को बचाने के लिए प्रेरित करती है।
उत्तर – सभी मनुष्यों में ये प्रवृत्तियाँ जन्मजात होती हैं, लेकिन इनके प्रभाव और अभिव्यक्ति सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत अनुभवों पर निर्भर करती है।
उत्तर – मूल प्रवृत्तियाँ जन्मजात होती हैं, लेकिन अनुभव और समाज के प्रभाव से उनका व्यवहारिक स्वरूप बदल सकता है।
उत्तर – हाँ, यह सिद्धांत आज भी मनोविज्ञान, शिक्षा, समाजशास्त्र और मानव व्यवहार को समझने के लिए उपयोग किया जाता है, हालाँकि आधुनिक शोधों ने इसमें कुछ संशोधन किए हैं।
उत्तर – यह सिद्धांत प्रवृत्तियों को बहुत अधिक महत्व देता है और सीखने की प्रक्रिया की भूमिका को कम आंकता है।इसमें सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया है।सभी व्यवहारों को प्रवृत्तियों के आधार पर समझाना हमेशा संभव नहीं होता।
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