मनोविज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा,बाल मनोविज्ञान का महत्व एवं आवश्यकता

दोस्तों आज हम आपके लिए मनोविज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा,बाल मनोविज्ञान का महत्व एवं आवश्यकता नामक महत्त्वपूर्ण पाठ लेकर आये हैं।

हम लोग बाल मनोविज्ञान पढ़ते है,तो आज हिन्दीअमृत के इस आर्टिकल में जानेंगे की बालमनोविज्ञान क्या है,बाल मनोविज्ञान की आवश्यकता एवं महत्व क्या है,मनोविज्ञान का अर्थ और परिभाषा।

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मनोविज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा,बाल मनोविज्ञान का महत्व एवं आवश्यकता

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मनोविज्ञान का अर्थ meaning of psychology

इसको अंग्रेजी में psychology (साइकोलॉजी) कहते हैं।

psychology (साइकोलॉजी) की उत्पत्ति यूनानी भाषा के दो शब्द pyscho (साइको) तथा logic (लॉजिक) से मिलकर हुई है।

pyscho (साइको) का अर्थ– आत्मा तथा logic (लॉजिक) शब्द का अर्थ– अध्ययन से है।

इस अंग्रेजी शब्द pyschology का अर्थ है– आत्मा का अध्ययन।।

इस प्रकार विज्ञान की वह शाखा जो किसी व्यक्ति या बालक की भाव भंगिमा का आंतरिक अध्ययन अथवा आत्म चिंतन के विषय में अध्ययन करती है, मनोविज्ञान कहलाती है।

मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ– मन का विज्ञान है। अर्थात मन के विषय में चिंतन करना ही मनोविज्ञान है।

meaning of child psychology || बाल मनोविज्ञान का अर्थ

यह बाल मनोविज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है– बाल + मनोविज्ञान।

जिसमे बाल का अर्थ– बालक एवं मनोविज्ञान का अर्थ– मन का विज्ञान है। अर्थात बालक के मन का विज्ञान ही बाल मनोविज्ञान है।

मनोविज्ञान की परिभाषाएं || definition of psychology

थाउलैस के अनुसार 

“मनोविज्ञान मानव अनुभव एवं व्यवहर का यथार्थ विज्ञान है |”

गार्डनर मर्फी के अनुसार

“मनोविज्ञान वह विज्ञान है जिसमे जीवित प्राणियों की उन क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। जिनको हम वातावरण के प्रति तैयार करते है |”

वारेन के अनुसार

 “ मनोविज्ञान जीवधारी तथा वातावरण की प्रारंभिक अंतः क्रिया से संबंधित विज्ञान है |”

मैक्डूगल के अनुसार

“मनोविज्ञान व्यवहर अथवा आचरण का विधायक विज्ञानं है |”

वुडवर्थ  के अनुसार

“ सर्वप्रथम मनोविज्ञान ने अपनी आत्मा का त्याग करके, मन का त्याग फिर चेतना का त्याग किया अब यह व्यवहार की विधि को स्वीकार करता है |”

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बाल मनोविज्ञान और बाल विकास में अंतर

कुछ मनोवैज्ञानिक बाल मनोविज्ञान के स्थान पर बाल विकास शब्द का प्रयोग करते हैं।

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वस्तुतः देखा जाए तो यह एक जैसे ही प्रतीत होते हैं।

किंतु अगर इनके अध्ययन के क्षेत्र का विस्तृत रूप देखा जाए तो इन में अंतर देखा जा सकता है।

बाल विकास के अंतर्गत बालक का समस्त विकास अर्थात शारीरिक, मानसिक, भाषा या अभिव्यक्ति, नैतिक, संवेगात्मक, सामाजिक का अध्ययन किया जाता है। जबकि बाल मनोविज्ञान के अंतर्गत बाल विकास की समस्याएँ,प्रभावित करने वाले कारक,प्रभावी तत्व एवं बालक की शिक्षा को प्रभावशाली कैसे बनाया जाए यह सब अध्ययन किया जाता है।

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मनोविज्ञान का विकास || development of psychology

हमें मनोविज्ञान का विकास, development of psychology,मनोविज्ञान का विकास कैसे हुआ।

यह विस्तृत रूप से जानने के लिए हमें 16वी शताब्दी से 19वी शताब्दी के बीच मनोविज्ञान के विकास को समझना होगा। इस समय के बीच हुए प्रयोग एवं नियमो को जानना होगा।

तो आइये जानते हैं 16वी शताब्दी में बाल मनोविज्ञान,17वी शताब्दी में बाल मनोविज्ञान,18वी शताब्दी में बाल मनोविज्ञान,19वी शताब्दी में बाल मनोविज्ञान,आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के नाम,प्राचीन मनोवैज्ञानिकों के नाम,मध्यकालीन मनोवैज्ञानिकों के नाम।।

(1) आत्मा के रूप में मनोविज्ञान (16वी शताब्दी)

16वी शताब्दी (प्राचीन मनोवैज्ञानिक) पूर्व के मनोवैज्ञानिक प्लेटो,अरस्तु और डेकार्टे आदि यूनानी दार्शनिक मनोविज्ञान को आत्मा के विज्ञान के रूप में स्वीकार किया करते थे।

16 में शताब्दी तक यह प्रचलित रहा। परंतु धीरे-धीरे समय परिवर्तन के साथ-साथ इस परिभाषा में परिवर्तन होना स्वभाविक रहा।

इस आत्मा की प्रकृति के संबंध में अनेकों प्रकार की शंकाएं उत्पन्न होने लगी।

तत्कालीन मनोवैज्ञानिकों ने आत्मा की स्पष्ट परिभाषा, शक्ल, स्वरूप, स्थिति का चिंतन करने की विधियों को स्पष्ट करने में असफल रहे।

और 16वीं शताब्दी के बाद विद्वानों द्वारा मनोविज्ञान की इस परिभाषा को अस्वीकार कर दिया गया।

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(2) मन के रूप में मनोविज्ञान(17वी शताब्दी)

आत्मा के विज्ञान के रूप में मनोवैज्ञानिक की परिभाषा स्वीकृत होने के बाद मध्ययुग के दार्शनिकों अपने मनोविज्ञान के अध्ययन को मानव के आंतरिक मस्तिष्क या मन के अध्ययन का विषय वस्तु माना।

परंतु आत्मा की परिभाषा की तरह यह भी काफी दिन तक अपना रूप बनाने में सफल न हो सकी।

अतः मनोविज्ञान मन के रूप का विज्ञान है, यह परिभाषा भी अस्वीकार कर दी गयी।

(3) चेतना के रूप में मनोविज्ञान(18वी शताब्दी)

आत्मा और मन के विज्ञान के रूप में मनोविज्ञान की परिभाषा मान्य हो जाने पर तत्पश्चात के मनोवैज्ञानिकों द्वारा मनोविज्ञान को चेतना के विज्ञान के रूप में अभिव्यक्त किया गया।

18 वी शताब्दी (मध्यकालीन मनोवैज्ञानिक) के प्रमुख मनोवैज्ञानिक विलियम वुंट, जॉन लॉ, रूसो,फ्रोवेल,जेम्स सली, विलियम जेम्स रहें।

इन दार्शनिकों ने स्वीकार किया कि मनोविज्ञान मानव चेतना संबंधी क्रियाओं का अध्ययन है।

परंतु इसी समय के चिंतक इस विषय पर एकमत नहीं हो सके। चेतन क्रियाओं पर अर्ध चेतन व अचेतन क्रियाओं के प्रभावी होने से इन परिभाषा में भी प्रश्नचिन्ह लग गया।

और मनोवैज्ञानिकों में काफी विवाद उत्पन्न होने से मनोविज्ञान को चेतना के विज्ञान के रूप में परिभाषित करने वाला यह प्रयास असफल हो गया।

(4) व्यवहार के रूप में मनोविज्ञान(19वी शताब्दी)

मनोविज्ञान को आत्मा, मन और चेतना के बाद अस्वीकृति मिलने के बाद मनोवैज्ञानिक चिंतित हुए। मनोविज्ञान ने भी अपना स्वरूप परिवर्तन किया।

20वी शताब्दी आते-आते मनोविज्ञान को व्यवहार के विज्ञान के रूप में स्वीकार किया जाने लगा।

19वी शताब्दी (आधुनिक मनोवैज्ञानिक) के प्रमुख मनोवैज्ञानिक स्किनर,टैन,प्रेयर,वाटसन, वुडवर्थ आदि मनोवैज्ञानिक थे।

इन मनोवैज्ञानिक ने मनोविज्ञान को व्यवहार के रूप में परिभाषित किया।

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जो वर्तमान में किसी सर्वमान्य परिभाषा के रूप में स्वीकार किया गया।

इस प्रकार मनोविज्ञान वर्तमान समय में व्यवहार का विज्ञान कहलाने जाने लगा।

बाल मनोविज्ञान का महत्व || मनोविज्ञान की आवश्यकता

बाल मनोविज्ञान की आवश्यकता क्यों है, बाल मनोविज्ञान का महत्व मनोविज्ञान की आवश्यकता क्यों पड़ी, आदि सारी बातें हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं।

(1) बालक बालिकाओं के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए

(2) बालक बालिकाओं के व्यवहार को समझने के लिए

(3) व्यक्तित्व पर कौन कौन से कारक प्रभाव डालते हैं यह जानने के लिए

(4) व्यक्तित्व निर्धारण के लिए

(5) विकास की बाधाएं जानने के लिए एवं उनका निवारण करने के लिए

(6) बालक की समस्याएं जानने के लिए

(7) बालक की शिक्षा में उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करने के लिए।

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