जंतु ऊतक के प्रकार / types of animal tissues in hindi

दोस्तों विज्ञान की श्रृंखला में आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक जंतु ऊतक के प्रकार / types of animal tissues in hindi है। हम आशा करते हैं कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपकी इस टॉपिक से जुड़ी सभी समस्याएं खत्म हो जाएगी ।

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जंतु ऊतक के प्रकार / types of animal tissues in hindi

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पादपों के समान ही जटिल जन्तुओं की संरचना भी ऊतकों द्वारा निर्मित होती है। हमने पिछले अध्याय में पढ़ा है, कि पादपों की तुलना में जन्तुओं के ऊतकों में ज्यादा विविधता होती है, क्योंकि पादप स्थिर होते हैं, वे गति नहीं करते, लेकिन जन्तु भोजन और आश्रय की खोज में इधर-उधर गति करते हैं। अतः जन्तुओं में गमन और शरीर का समन्वयन करना अति महत्त्वपूर्ण हो जाता है। सभी जन्तुओं में ऊतक समान नहीं होते हैं। एककोशिकीय एवं निम्न स्तर के बहुकोशिकीय जन्तुओं (संघ-पोरीफेरा) में ऊतक अनुपस्थित होते हैं। संघ – निडेरिया एवं उससे आगे के संघों में ऊतकों की संरचना एवं कार्यों में जटिलता जन्तु शरीर की जटिलताओं के साथ बढ़ती जाती है।

जन्तु ऊतक की सामान्य संरचना

सामान्य संरचना में जन्तु ऊतकों की कोशिकाएँ एक आधार द्रव्य या ऊतक द्रव्य या मैट्रिक्स (Ground fluid or tissue fluid or matrix) में डूबी हुई दिखाई देती हैं, जोकि स्वयं उन्हीं के द्वारा स्त्रावित होता है। प्रत्येक कोशिका का इस द्रव्य का डूबा रहना इस बात का सूचक है, कि यह द्रव्य एक माध्यम की तरह कार्य करता है, जिसके द्वारा यह कोशिका अपने वातावरण से विभिन्न रसायनों का आदान-प्रदान करती है। यह ऊतक द्रव्य प्रायः अर्धद्रव्य या जैली सदृश होता है, परन्तु कुछ ऊतकों में यह कोलैजन तन्तुओं के कारण दृढ व अत्यधिक तन्यता दृढ व अत्यधिक तन्यता सामर्थ्य वाला होता है। कशेरुकी जन्तुओं में ऊतक परिसंचरण तन्त्र से पूर्णतया सम्बद्ध होते हैं, जोकि इन ऊतकों को उपयोगी पदार्थ (जैसे- ग्लूकोस, अमीनो अम्ल, 02, आदि) पहुँचाते हैं तथा इनसे अपशिष्ट पदार्थों (जैसे – CO2, नाइट्रोजन, अपशिष्ट, आदि) को वापिस ले जाते हैं।
जन्तु ऊतकों की बहुसंख्य कोशिकाओं के आकार, माप एवं कार्य के आधार पर जन्तु ऊतकों का वर्गीकरण होता है।

उपकला या एपिथीलियमी ऊतक Epithelial Tissues

उपकलाएँ शरीर की विभिन्न सतहों ग्रन्थिल या अग्रन्थिल आवरण बनाती हैं। सतह पर होने के कारण इस ऊतक में रुधिर कोशिकाएँ नहीं होती हैं। ‘एपिथीलियम’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम डच वैज्ञानिक रयूश (Ruysch) में 18वीं सदी में किया था।

इन्हें दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

1. आच्छादी उपकला ऊतक
Covering Epithelium Tissues

आच्छादी उपकलाएँ कोशिकाओं के एक अथवा अधिक स्तरों के रूप में शरीर और आन्तरांगों की बाह्य और भीतरी सतहों पर रक्षात्मक आवरण बनाती हैं। ये उपकलाएँ भ्रूणीय परिवर्धन में तीनों ही प्राथमिक जनन स्तरों अर्थात् एक्टोडर्म, मीसोडर्म और एण्डोडर्म से बनती हैं। इन उपकलाओं में कोशिकाएँ परस्पर सटी हुई तथा एक आधार कला (Basement membrane) पर टिकी होती हैं। ये कोशिकाएँ विभिन्न आसंजनों (Adhesions) या बन्धनों अर्थात् दृढ़ बन्धनों (Tight junctions), डेस्मोसोम्स (Desmosomes), पार्श्व प्रवर्थों, आदि द्वारा परस्पर जुड़कर उपकला की अखण्डता बनाए रखती हैं।

ये निम्नलिखित चार प्रकार की होती हैं

A. सरल उपकला Simple Epithelium

(ऐसे ऊतकों में आधारकला पर कोशिकाओं का केवल एक ही स्तर होता है ये सामान्यतया ऐसी सतहों पर होती हैं, जहाँ सुरक्षा के साथ-साथ स्रावण,अवशोषण, विसरण अथवा परासरण द्वारा पदार्थों का आदान-प्रदान भी होता है। आकृति और रचना के आधार पर यह निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है।

(i) सरल शल्की उपकला Simple Squamous Epithelium

इस उपकला की कोशिकाएँ शल्क की भाँति चपटी, बहुभुजी (Polygonal) और चौड़ी प्लेट के आकार की होती हैं। इसे खड़जी उपकला (Pavement epithelium) भी कहते हैं।)
• इनका प्रमुख कार्य पदार्थों को विसरण द्वारा एक ओर से दूसरी ओर पहुँचाना होता है।।
• ये देहगुहा के विभिन्न भागों, हृदय, रुधिर वाहिनियों, लसीका वाहिनियों, फेफड़ों की वायु कूपिकाओं के चारों ओर पाई जाती हैं।

(ii) सरल घनाकार उपकला Simple Cuboidal Epithelium
(इस सरल उपकला की कोशिकाएँ घनाकार होती हैं।यह उपकला उन अंगों में मिलती है, जहाँ अवशोषण, उत्सर्जन और स्रावण की क्रियाएँ होती हैं अर्थात् यह ऊतक वृक्क नलिकाओं, जनदों, ब्रोकियोल्स और स्वेद ग्रन्थियों में पाया जाता है।

(iii) सरल स्तम्भी उपकला Simple Columnar Epithelium
इस उपकला की कोशिकाएँ स्तम्भ (Pillars) के समान लम्बी, आयताकार व एक-दूसरे से सटी होती हैं। कुछ स्थानों पर इन कोशिकाओं के बीच में कई स्थानों पर श्लेष्म का स्त्रावण करने वाली चषक कोशिकाएँ (Goblet cells) भी पाई जाती हैं। छोटी आँत एवं कुछ अन्य स्थानों पर इसकी कोशिकाओं के स्वतन्त्र सिरों पर अनेक अँगुली समान प्रवर्ध पाए जाते हैं, ये सूक्ष्मांकुर (Microvilli) कहलाते हैं। सूक्ष्मांकुर युक्त सतहों को ब्रश सदृश सतह भी कहते हैं। ये अवशोषण में मदद करते हैं। यह ऊतक आमाशय, आँत, पित्ताशय, पित्तवाहिनियों की आन्तरिक सतह पर पाया जाता है।

B. आभासीस्तृत स्तम्भी उपकला
Pseudostratified Columnar Epithelium

इस प्रकार की उपकला में उपस्थित स्तम्भी कोशिकाओं की लम्बाई बराबर न होने के कारण छोटी-छोटी कोशिकाओं के एक अतिरिक्त स्तर की उपस्थिति का आभास होता है, जिसके कारण यह उपकला द्विस्तरीय दिखाई देती हैं।
• इस उपकला में सामान्यतया रोमाभि, श्लेष्मा अथवा चषक कोशिकाओं की उपस्थिति ज्यादा होती हैं।
ये श्वासनाल, नासिका गुहाओं, ग्रसनी, मूत्रमार्ग, ग्रन्थि की बड़ी वाहिनियों और अन्य लम्बी नलिकाओं के आन्तरिक स्तर को बनाती हैं।

C. स्तृत उपकला Stratified Epithelium

इस प्रकार की उपकला में कोशिकाएँ एक से अधिक स्तरों में व्यवस्थित होती हैं तथा कोशिकाओं का केवल सबसे भीतरी (निचला) स्तर ही आधार कला पर स्थित होता है। सरल उपकला की ही तरह यह भी तीन प्रकार अर्थात् शल्की, घनाकर एवं स्तम्भी होती है।
• इस ऊतक के बाह्य स्तर की कोशिकाएँ नमी, चिकनाहट और घर्षण के कारण नष्ट होती रहती हैं, जबकि भीतरी स्तर की कोशिकाएँ विभाजित होकर इसकी क्षतिपूर्ति करती रहती हैं।
. ये ऊतक वायु से सीधे सम्पर्क रखने वाले भागों; जैसे-देहभित्ति, नेत्रों की कॉर्निया, मलाशय गुहा, मुखगुहा, आदि पर पाए जाते हैं।

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D. विशेषीकृत उपकला Specialised Epithelium

विशेषीकृत उपकला निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं।

(i) अन्तर्वर्ती उपकला (Transitional Epithelium) यह सामान्य स्तर उपकला के समान होती है। इसमें कोशिकाएँ एक महीन आधार कला तथा मोटे एवं लचीले संयोजी ऊतक पर सधी होती हैं। ये सभी कोशिकाएँ जीवित, लचीली एवं पतली होती हैं। इस उपकला पर दबाव पड़ने पर इसकी कोशिकाओं की लम्बाई परिवर्तित हो जाती है। यह उपकला मूत्राशय और मूत्रवाहिनियों की दीवार का भीतरी स्तर बनाती है।

(ii) तन्त्रिका संवेदी उपकला (Neuro Sensory Epithelium) इस उपकला में सामान्य कोशिकाओं के बीच-बीच में संवेदी कोशिकाएँ उपस्थित होती हैं। यह घ्राण अंगों की श्लेष्मिक कला अर्थात् श्नीडेरियन झिल्ली (Schneiderian membrane), अन्त:कर्णो की उपकला, स्वाद कलिकाओं तथा आँखों की रेटिना में पाई जाती है।

नोट –  हमारी त्वचा में सामान्य स्तृत उपकला पाई जाती है, न कि तन्त्रिका संवेदी उपकला। त्वचा की कोशिकाओं के बीच नग्न तन्त्रिकाएँ उपस्थित होती हैं, जिसकी वजह से त्वचा संवेदाग की तरह कार्य करती है।

(iii) रंगा उपकला (Pigment Epithelium) आँखों की दृष्टि पटल में आधार स्तर पर एक ऐसी उपकला होती है, जिसकी कोशिकाओं में रंगा-कण होते हैं, ये रंगा उपकला कहलाती हैं।

2. ग्रन्थिल उपकला ऊतक
Glandular Epithelium Tissue

यह उपकला वास्तव में सरल स्तम्भी उपकला का एक रूपान्तरण है। इनकी कोशिकाओं में एक स्पष्ट केन्द्रक (Nucleus) होता है। ये कोशिकाएँ हॉर्मोन्स, एन्जाइम्स, श्लेष्म, पाचक रस, आदि तरल पदार्थों का स्त्रावण करती हैं। ग्रन्थिल उपकला ऊतक में स्रावण के लिए निम्नलिखित दो प्रकार की ग्रन्थियाँ मिलती हैं)

(i) एककोशिकीय ग्रन्थि (Unicellular Gland) इसके अन्तर्गत चषक (Goblet) कोशिकाएँ आती हैं, जो श्लेष्म (Mucous) का स्रावण करती हैं।
(ii) बहुकोशिकीय ग्रन्थि (Multicellular Gland) इसके अन्तर्गत
बहुकोशिकीय बाह्यस्रावी (Exocrine) और अन्तःस्त्रावी (Endocrine) ग्रन्थियाँ आती हैं।

उपकला ऊतक के कार्य Functions of Epithelium Tissue

इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं
(i) उपकला ऊतक का मुख्य कार्य शरीर और आन्तरांगों के लिए सुरक्षात्मक आवरण बनाना है। ये शरीर के आन्तरिक ऊतकों को जीवाणुओं, हानिकारक पदार्थों एवं सूखने से बचाते हैं।
(ii) यह चयनात्मक अवरोध (Selective barrier) की तरह कार्य करता है।
(iii) यह आहारनाल में अवशोषण में सहायता करता है।
(iv) यह शरीर में विभिन्न स्थानों पर त्रावण में सहायक है।
(v) यह वृक्क नलिकाओं में पुनरावशोषण तथा उत्सर्जन में सहायक है।
(vi) यह श्वासनांगों में गैसीय विनिमय का कार्य करता है।
(vii) उपकला ऊतक की कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता के कारण ये शरीर के पुनरुद्भवन (Regeneration) में भाग लेती है। अतः ये घाव भरने में भी सहायक होते हैं।

संयोजी ऊतक Connective Tissue

संयोजी ऊतक भ्रूणीय मध्य जननस्तर (Mesoderm) से बनता है। यह शरीर का लगभग 30% भाग बनाता है। ये ऊतक शरीर के सभी अंगों तथा अंगतन्त्रों के मध्य फैले होते हैं। इनका कार्य अंगों को सहारा देना, अंगों को आवरित करके उनकी सुरक्षा करना एवं उन्हें परस्पर बाँधे रखना होता है। यह ऊतक मूल रूप से तीन घटकों अर्थात् आधार द्रव्य (Matrix), कोशिकाओं और तन्तुओं का बना होता है।

Types of Connective Tissue / संयोजी ऊतक के प्रकार

आधार द्रव्य और तन्तुओं की रचना के आधार पर संयोजी ऊतक को
निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बाँटा गया है
1. वास्तविक संयोजी ऊतक
2. कंकालीय संयोजी ऊतक
3. संवहनीय संयोजी ऊतक

1. वास्तविक संयोजी ऊतक Proper Connective Tissues

इस प्रकार के संयोजी ऊतकों का मुख्य कार्य अंगों को परस्पर बाँधे रखना एवं उनके बीच का स्थान भरना है। इनका आधार द्रव्य तरल या अर्द्धतरल होता है। ये निम्न प्रकार के होते हैं

A. अन्तराली संयोजी ऊतक Areolar Connective Tissue

इसे सरल ढ़ीला संयोजी ऊतक (Simple loose connective tissue) भी कहते हैं। इस ऊतक में रुधिर, लसीका कोशिकाओं और तन्त्रिकाओं के अतिरिक्त निम्नलिखित तीन प्रकार के संयोजी ऊतक तन्तु पाए जाते हैं।
(i) श्वेत कोलैजन तन्तु (White collagenous fibres) ये सफेद व होते हैं। लोचरहित तन्तु होते हैं, जोकि कोलैजन (Collagen) नामक प्रोटीन के बने होते हैं।
(ii) पीले इलास्टीन तन्तु (Yellow elastin fibres) ये पीले व लोचयुक्त (Elastic) तन्तु होते हैं, जोकि इलास्टिन (Elastin) नामक प्रोटीन के बने होते हैं।
(iii) श्वेत रेटिकुलर तन्तु (White reticular fibres) ये तन्तु जाली के समान परस्पर एक-दूसरे से उलझे रहते हैं। ये लोचरहित होते हैं एवं रेटिकुलिन (Reticulin) नामक प्रोटीन के बने होते हैं।
• इनके अतिरिक्त इस ऊतक में सभी प्रकार की संयोजी ऊतक कोशिकाएँ; जैसे—फाइब्रोब्लास्ट्स (Fibroblasts), मैक्रोफेजेज (Macrophages), मास्ट कोशिकाएँ (Mast cells), लिम्फोसाइट (Lymphocyte), प्लाज्मा (Plasma) और वसा कोशिकाएँ (Fat or adipose cells) पाई जाती हैं।
यह ऊतक त्वचा के नीचे, खोखले अंगों व धमनी तथा शिराओं की भित्तियों पर पाया जाता है। यह ऊतक विभिन्न ऊतकों के बीच का स्थान भरने तथा उन्हें जोड़ने व अंगों को उनके स्थान पर बनाए रखने में सहायता करता है।

B. वसामय संयोजी ऊतक Adipose Connective Tissue

इसके आधार द्रव्य में मुख्य कोशिकाओं के रूप में वसा कोशिका या एडिपोसाइट (Adipocyte) होती हैं, जिनमें वसा संग्रहित रहती है। व्हेल का ब्लबर, ऊँट की कूबड़ तथा मैरीनो भेड़ की मोटी पूँछ मुख्यतया वसामय संयोजी ऊतक की बनी  होती है। मनुष्य में यह ऊतक उदर के निचले भाग, नितम्बों, जाँघों, कंधों, नेत्र गोलकों के चारों ओर ज्यादा पाया जाता है।

C. श्वेत तन्तुमय ऊतक White Fibrous Tissue

इसके आधार द्रव्य में केवल कोलैजन तन्तु एवं मुख्यतया फाइब्रोब्लास्ट कोशिकाएँ पाई जाती हैं। यह कण्डराओं (Tendons) का निर्माण करता है, जो पेशी को अस्थि से जोड़ता है।

D. पीले लचीले संयोजी ऊतक Yellow Elastic Connective Tissue

इसके आधार द्रव्य में पीले लचीले इलास्टिक तन्तु परस्पर समान्तर समूहों में लगे रहते हैं। इनके समूह स्नायु (Ligament) का निर्माण करते हैं, जो एक अस्थि को दूसरी अस्थि से जोड़ते हैं।

E. जालिकामय संयोजी ऊतक Reticular Connective Tissue

इस ऊतक के आधार द्रव्य में मुख्य कोशिका मैक्रोफेज होती है। यह ऊतक प्लीहा में लाल पल्प तथा सफेद पल्प के रूप में, थाइमस, अस्थि मज्जा तथा आँत के पेयर के चकतों (Peyer’s patches) में पाया जाता है। यह शरीर की प्रतिरक्षा (Immunity) में सहायक है।

F. श्लेष्मी संयोजी ऊतक Mucous Connective Tissue

यह मुर्गे की कलगी (Comb), भ्रूण की ऑवल तथा नेत्र गोलक के विट्रियस काय (Vitreous body) में पाया जाता है।

2. कंकालीय संयोजी ऊतक Skeletal Connective Tissue

यह ऊतक शरीर का अन्तःकंकाल बनाता है और भ्रूण के मध्य जननस्तर से विकसित होता है। यह शरीर के विभिन्न अंगों को आधार प्रदान करता है। कंकालीय संयोजी ऊतक निम्नलिखित दो प्रकार का होता है-

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A. उपास्थि Cartilage

यह ऊतक उच्च कशेरुकियों की भ्रूणीय अवस्था तथा निम्न कशेरुकियों का मुख्य कंकालीय ऊतक है। यह एक सुदृढ़, परन्तु लचीला ऊतक है, जिसमें दबाव और तनाव को सहने की अत्यधिक क्षमता होती है। उपास्थि का निर्माण कॉड्रोब्लास्ट्स (Chondroblast) नामक कोशिका द्वारा होता है।
• उपास्थि की रचना तीन घटकों द्वारा होती है
(b) पेरीकॉन्ड्रियम
(a) आधार द्रव्य
(c) कॉन्ड्रोसाइट्स
• उपास्थि का आधार द्रव्य कॉन्ड्रिन (Chondria) नामक प्रोटीन से बना होता है, जिसमें श्वेत कोलैजन तन्तु और पीले लचीले इलास्टिन तन्तु उपस्थित होते हैं। उपास्थि सुदृढ़ आवरण से घिरी रहती है, जिसे पेरीकॉन्ड्रियम (Perichondrium) कहा जाता है। आधार द्रव्य के अन्दर ही छोटी-छोटी गोल अथवा अण्डाकार-सी गर्तिकाएँ (Lacunae) पाई जाती हैं। प्रत्येक गर्तिका में एक या एक से अधिक कॉन्ड्रोसाइट कोशिकाएँ (Chondrocyte cells) होती हैं, जो कॉन्ड्रिन का स्त्रावण करती हैं। इन कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता होती है।

उपास्थियों के प्रकार Types of Cartilage

उपास्थियाँ निम्नलिखित चार प्रकार की होती हैं
(i) प्रभासी उपास्थि (Hyaline Cartilage) यह उपास्थि सबसे अधिक लचीली होती है। यह श्वासनली की दीवार, पसलियों के सिरों, टाँगों की अस्थियों, कण्ठ, आदि में पाई जाती है।
(ii) श्वेत तन्तुमय उपास्थि (White Fibro Cartilage) ये उपास्थियाँ कशेरुकाओं (Vertebrae) के मध्य स्थित अन्तराकशेरुक गद्दियों (Intervertebral discs) और स्तनियों की श्रोणि मेखला के प्यूबिक सिमफाइसिस, आदि में पाई जाती हैं।
(iii) लचीली तन्तुमय उपास्थि (Elastic Fibro Cartilage) ये नाक के सिरे पर एपिग्लॉटिस (Epiglottis) और कान के पिन्ना (Pinna), आदि में पाई जाती हैं।
(iv) कैल्सीफाइड उपास्थि (Calcified Cartilage) मेंढक की अंस मेखला (Pectoral girdle) की सुप्रास्केपुला (Supra scapula) और श्रोणि मेखला (Pelvic girdle) की प्यूबिस हड्डियाँ इसी उपास्थि द्वारा निर्मित होती हैं। यह प्रभासी उपास्थि पर कैल्शियम के जमने से बनती हैं।

B. अस्थि Bone

अस्थि एक दृढ़ संयोजी ऊतक है और उच्च कशेरुकियों में यह ऊतक शरीर का मुख्य अन्तः कंकाल बनाता है। यह शरीर को एक निश्चित आकार प्रदान करता है एवं माँसपेशियों को लगने के लिए स्थान देता है। भ्रूण के मध्य जननस्तर की अस्थि कोशिकाएँ अर्थात् ऑस्टिओसाइट्स (Osteocytes) अस्थि का निर्माण करती हैं। इन कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता नहीं होती है। अस्थि के आधार द्रव्य को ओसीन (Ossein) कहते हैं। आधार द्रव्य का लगभग 62% भाग अकार्बनिक और 38% भाग कार्बनिक पदार्थों का बना होता है। इसमें कैल्शियम और मैग्नीशियम के लवण एकत्र होने से यह कठोर हो जाती है। शरीर में फॉस्फोरस की मात्रा सबसे अधिक अस्थियों में ही होती है।
• एक लम्बी अस्थि के फूले हुए किनारों को एपिफाइसिस (Epiphysis) एवं मध्य भाग को दण्ड (Shaft) कहते हैं। दण्ड में एक गुहा उपस्थित होती है अर्थात् अस्थि का दण्ड वाला भाग खोखला व किनारे ठोस होते हैं। अस्थि के दण्ड की गुहा को मज्जा गुहा (Marrow cavity) कहते हैं, जिसमें वसामय ऊतक भरा रहता है, जिसे अस्थि मज्जा (Bone marrow) कहते हैं। अस्थि मज्जा में लाल श्वेत कणिकाओं का निर्माण होता है।
• अस्थि उपास्थि की भाँति, एक सुदृढ़ झिल्लीनुमा आवरण, पेरिऑस्टियम से ढकी रहती है। स्नायु तथा कण्डरा अस्थि से इसी झिल्ली द्वारा जुड़े रहते हैं।
स्तनधारियों की लम्बी अस्थियों के आधार द्रव्य में एक हैवर्सियन नलिका के चारों ओर संकेन्द्रित पटलिका के बीच, पंक्तियों में गर्तिकाएँ होती हैं। प्रत्येक ग्रर्तिका में एक अस्थि कोशिका अर्थात् ऑस्टियोसाइट होती अस्थि की 4-20 तक संकेन्द्रीय पटलिका प्रत्येक हैवर्सियन नलिका को गोलाई में घेरती है। ऐसी एक पूरी संरचना को हैवर्सियन तन्त्र (Haversian system) या ऑस्टिऑन कहते हैं। हैवर्सियन नलिकाएँ मुख्य अक्ष के समानान्तर होती हैं तथा क्षैतिज वोल्कमान नलिकाओं (Volkmann’s canals) द्वारा जुड़ी रहती हैं। हैवर्सियन तन्त्र का मुख्य कार्य रुधिर द्वारा अस्थि के भीतर पोषक पदार्थों तथा ऑक्सीजन का परिवहन करना है।

3. संवहनीय या तरल संयोजी ऊतक
Vascular or Fluid Connective Tissue

रुधिर एवं लसीका तरल अथवा संवहनीय संयोजी ऊतक होते हैं। इनका अन्तराकोशिकीय पदार्थ तरल होता है, जिसमें कोशिकाएँ बिखरी रहती हैं। अतः ये तरल ऊतक कहलाते हैं। यह ऊतक शरीर का लगभग 8% भाग होता है।

संयोजी ऊतक के कार्य Functions of Connective Tissue

(i) संयोजी ऊतक अवलम्बन ऊतकों (Supporting tissues) का कार्य करते हैं।
(ii) ये रासायनिक पदार्थों का संग्रह और संवहन भी करते हैं।
(iii) ये आन्तरांगों एवं ऊतकों को लोच और दृढ़ता प्रदान करते हैं।
(iv) ये विषैले पदार्थों, रोगाणुओं, कीटाणुओं, आदि को नष्ट करके शरीर की सुरक्षा करते हैं।
(v) ये शरीर में विभिन्न प्रकार के पदार्थों का स्थानान्तरण करते हैं।
(vi) ये शरीर का अन्तःकंकाल बनाते हैं।
(vii) ये गमन में सहायक हैं।
(viii) ये रुधिर कणिकाओं का निर्माण करते हैं।

पेशीय ऊतक Muscular Tissue

यह एक संकुचनशील (Contractile) ऊतक है, जिसकी कोशिकाएँ लम्बे तन्तुओं के रूप में होती हैं। पेशीय ऊतक की उत्पत्ति भ्रूण के मध्य जननस्तर (Mesoderms) से होती है। इन कोशिकाओं के भीतर पाया जाने वाला तरल पेशीद्रव्य या सार्कोप्लाज्म (Sarcoplasm) कहलाता है। इनकी अन्तःप्रद्रव्यी
जालिका को सार्कोप्लाज्मिक रेटिकुलम (Sarcoplasmic reticulum) तथा इनकी जीवद्रव्य कला को सार्कोलेम्मा (Sarcolemma) कहते हैं। जन्तुओं के शारीरिक अंगों में गति पेशीय ऊतक के कारण होती है। भौतिकी और कार्यिकी के आधार पर पेशीय ऊतक निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं–

1. रेखित या ऐच्छिक पेशियाँ
Striped or Voluntary Muscles

इन पेशियों का आकुंचन जन्तु की इच्छा पर निर्भर करता है। अतः ये पेशियाँ ऐच्छिक पेशियाँ कहलाती हैं। कंकाल से जुड़े होने के कारण ये कंकालीय पेशियाँ (Skeletal muscles) भी कहलाती हैं। हाथ-पैरों तथा शरीर को गमन एवं गति प्रदान करने के कारण, इन्हें दैहिक पेशियाँ (Somatic muscles) भी कहते हैं। ये शरीर की सतह, हाथ-पैर, जीभ, ग्रासनली की शुरूआत में पाई जाती हैं। बाइसेप्स तथा ट्राइसेप्स पेशियाँ इन्हीं से बनती हैं।

रेखित पेशियों की संरचना Structure of Striped Muscles

प्रत्येक रेखित पेशी में 2-4 सेमी लम्बे और बेलनाकार अनेक पेशी तन्तु होते हैं। ये तन्तु समानान्तर गुच्छों या पूलों (Bundles) में व्यवस्थित रहते हैं। पेशी कोशिका एपीमाइसियम (Epimycium) नामक आवरण से घिरी होती हैं।
पेशी तन्तुओं के गुच्छे संयोजी ऊतक के आवरण एण्डोमाइसियम (Endomycium) एवं स्वयं पेशी तन्तु पेरीमाइसियम (Perimycium) से घिरे होते हैं। प्रत्येक पेशी तन्तु पर साकोंलेमा का आवरण होता है, जिसमें अनेक तन्तुरूपी पेशी तन्तुक (Myofibrils) पड़े रहते हैं। प्रत्येक तन्तु पर गहरे रंग की A- पट्टियों (A = Anisotropic) और हल्के रंग की I-पट्टियाँ (I = Isotropic) एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होती हैं। A-पट्टियाँ मायोसिन (Myosin) तथा I-पट्टियाँ एक्टिन (Actin) प्रोटीन के तन्तुओं द्वारा निर्मित होती हैं। एक्टिन के तन्तुओं के एक-दूसरे के ऊपर होने (Overlapping) के कारण आकुंचन होता है। शिथिलन के समय एक्टिन तन्तु अपनी पूर्वावस्था में आ जाती हैं। ये पेशियाँ जीवनभर लयबद्ध होकर प्रसार एवं संकुचन करती रहती हैं। इन पेशियों में संकुचन की सूक्ष्मतम इकाई को सार्कोमीयर (Sarcomere) कहते हैं।

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अरेखित या अनैच्छिक पेशियाँ
Unstriped or Involuntary Muscles

इन पेशियों के आकुंचन पर जन्तु की इच्छा का कोई नियन्त्रण नहीं होता, इसलिए इन्हें अनैच्छिक पेशियाँ भी कहते हैं। इनके तन्तुओं पर पट्टियाँ (Bands) नहीं होती हैं। अत: इन्हें अरेखित पेशी तन्तु भी कहते हैं। ये प्रायः खोखले आन्तरांगों की भित्तियों से सम्बन्धित होती हैं। इसी कारण ये आन्तरांगीय पेशियाँ (Visceral muscles) भी कहलाती हैं। ये शरीर के आन्तरांगों; जैसे- आहारनाल, मूत्राशय, रुधिर वाहिनियों, जनन वाहिनियों, आदि में पाई जाती हैं।

अरेखित पेशियों की संरचना Structure of Unstriped Muscles

पेशी तन्तुक (3) इनके तन्तु 100-2001pp लम्बे और 10 p व्यास के तर्कुरुपी और संकरे होते हैं। इन कोशिकाओं के बीच-बीच में तन्तुमय संयोजी ऊतक उपस्थित होता है। पेशी कोशिका सार्कोलेमा (Sarcolemma) नामक झिल्ली से घिरी होती है। कोशिका के सार्कोप्लाज्म में प्रोटीन के समानान्तर पेशी तन्तुक (Myofibrils) और केन्द्रक (Nucleus) पाया जाता है।

हृद पेशियाँ Cardiac Muscles

कशेरुकियों के हृदय की मांसल भित्तियों में हृद पेशियाँ पाई जाती हैं। ये पेशियाँ छोटी, मोटी, बेलनाकार तथा शाखामय पेशी तन्तुओं की बनी होती हैं। पेशी तन्तुओं में गहरे और हल्के रंग की पट्टियाँ पाई जाती हैं। ये शाखायुक्त पेशी होती हैं तथा इसकी शाखाएँ परस्पर अन्तराल सन्धियों द्वारा जुड़ी होती हैं, ये संधियाँ अन्तर्विष्ट पट्टियाँ (Intercalated discs) कहलाती हैं।
केन्द्रक हृद पेशियाँ अनेच्छिक एवं कभी न थकने वाली होती हैं। अतः हम कह सकते हैं, कि ये पेशियाँ संरचना में रेखित परन्तु कार्य में अरेखित पेशियों के समान होती हैं।

पेशियों के कार्य Functions of Muscles

(i) ताप उत्पादन पेशियाँ अतिक्रियाशील होती हैं। पेशियों के संकुचन से शरीर का तापमान सन्तुलित बना रहता है। यह विशेषतया रेखित पेशी का कार्य है जैसे ठण्ड लगने पर कपकपी आना।
(ii) गति कंकाल पेशियाँ अपने सिकुड़ने के गुण के कारण शरीर को गति प्रदान करती हैं अथवा चलने में सहायता करती हैं।
(iii) संस्थिति कुछ पेशियों के आंशिक संकुचन से बैठना, खड़े रहना; जैसी शरीर की अवस्थाएँ (Posture) बनी रहती हैं।
पेशियों की कार्यकुशलता उनकी संकुचन क्षमता और लचीलेपन पर आधारित एवं निर्धारित होती हैं।

पेशियों के सामान्य कार्यों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

ऐच्छिक पेशियों के द्वारा खेलना, दौड़ना, खाना, आदि का कार्यों को हम स्वयं की इच्छानुसार कर सकते हैं।
अनैच्छिक पेशियों के द्वारा आहारनाल का चलना, साँस लेना, आदि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य संचालित होते हैं।
नेत्र गोलकों से जुडी हुई पेशियाँ, नेत्र संयोजन का महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं। त्वचा के नीचे स्थित माँसपेशियाँ शरीर को आकार प्रदान करती हैं।
हृद पेशियों के सिकुड़ने और फैलने के कारण ही हृदय शरीर में रुधिर को पम्प करता रहता है।

तन्त्रिका ऊतक Nervous Tissue

जन्तुओं में संवदेनशीलता (Senstivity) अर्थात् वातावरणीय दशाओं में परिवर्तन के प्रति सजगता एवं उत्तेजनशीलता (Irritability) अर्थात् उक्त परिवर्तनों (Stimuli) के प्रति प्रतिक्रियाशीलता (Responsiveness) इसी ऊतक के कारण सम्भव है। इस ऊतक का निर्माण भ्रूण के बाह्य जनन स्तर विशेष कोशिकाओं अर्थात् तन्त्रिका कोशिकाओं अथवा न्यूरॉन्स (Nerve cells or neurons) द्वारा होता है। मनुष्य के शरीर में लगभग 100 अरब (101) न्यूरॉन्स होते हैं। इसकी अधिकांश संख्या मस्तिष्क में होती है। तन्त्रिका कोशिकाएँ सम्पूर्ण शरीर की सबसे लम्बी कोशिकाएँ होती हैं। ये कोशिकाएँ तन्त्रिका ऊतक की संरचनात्मक और क्रियात्मक इकाइयाँ होती हैं। इनमें विभाजन की क्षमता नहीं पाई जाती हैं।

तन्त्रिका कोशिका की संरचना / Structure of Nerve Cell

तन्त्रिका कोशिकाएँ रचना एवं कार्यिकी में शरीर की सबसे जटिल (Complex) कोशिकाएँ हैं। तन्त्रिका कोशिका के निम्नलिखित भाग होते हैं
(i) कोशिका काय (Cell Body or Cyton) यह तन्त्रिका कोशिका का मुख्य भाग होता है। इसके कोशिकाद्रव्य में एक बड़ा और गोल केन्द्रक, माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्जीकाय, अन्तःप्रद्रव्यी जालिका, वसा बिन्दुक, राइबोसोम्स और अनेक प्रोटीनयुक्त निसिल के कण (Nissl’s granules) होते हैं।
(ii) तन्त्रिका कोशिका प्रवर्ध (Neurites) तन्त्रिका कोशिका में निम्नलिखित दो प्रकार के प्रवर्ध होते हैं।
(a) वृक्षिकाएँ अथवा डेन्ड्रान (Dendron) ये अपेक्षाकृत छोटे प्रवर्ध होते हैं, जो सिरों की ओर क्रमशः सँकरे होते जाते हैं। इनकी शाखाएँ वृक्षिकान्त या दुमिका (Dendrite) कहलाती हैं। इनका कार्य उद्दीपन को ग्रहण करके उन्हें कोशिका काय की ओर ले जाना है।
(b) तन्त्रिकाक्ष अथवा अक्षतन्तु (Axis Cylinder or Axon ) कोशिकाकाय से तन्त्रिकाच्छद् (Neurilemma) में बन्द लम्बा, मोटा और बेलनाकार प्रवर्ध निकलता है, जो तन्त्रिकाक्ष कहलाता है। तन्त्रिकाच्छद् का निर्माण श्वान कोशिकाओं (Schwann cells) से होता है। माइलिन (Myelin) नामक श्वेत वसीय पदार्थ की उपस्थिति और अनुपस्थिति के आधार पर यह तन्त्रिकाच्छद् माइलिनिकृत (Myelinated) या अमाइलिनिकृत (Non-myelinated) कहलाता है। यही पदार्थ तन्त्रिका तन्त्र के श्वेत व घूसर द्रव्य (White and grey matter) का कारण भी होता है। श्वेत द्रव्य में यह उपस्थिति व घूसर द्रव्य में अनुपस्थित होता है। यह तन्त्रिकाच्छद् स्थान-स्थान पर अक्षतन्तु (Axon) से चिपकी होती हैं। इन स्थानों को रैनवियर के नोड (Nodes of Ranvier) कहते हैं। अक्षतन्तु का कार्य उद्दीपनों को कोशिका काय से दूर ले जाना है। तन्त्रिका कोशिकाओं से निकलने वाले प्रवर्धो के आधार पर इन्हें एकध्रुवीय (Unipolar), द्विध्रुवीय (Bipolar) और बहुध्रुवीय (Multipolar) कहते हैं।

तन्त्रिका ऊतक के कार्य
Functions of Nerve Tissue

(i) तन्त्रिका कोशिकाएँ वातावरण में होने वाली क्रियाओं से संवेदनाओं को ग्रहण करती हैं।
(ii) यह ऊतक जन्तुओं के शरीर में होने वाली विभिन्न जैविक क्रियाओं पर नियन्त्रण रखता है।



                             ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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