दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए हिंदी विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक हिंदी शिक्षण में मातृभाषा की आवश्यकता,महत्व,उपयोगिता एवं कक्षा में स्थान | CTET HINDI PEDAGOGY है।
Contents
हिंदी शिक्षण में मातृभाषा की आवश्यकता,महत्व,उपयोगिता एवं कक्षा में स्थान | CTET HINDI PEDAGOGY
CTET HINDI PEDAGOGY
tags – ctet hindi pedagogy,ctet hindi pedagogy notes pdf,ctet hindi pedagogy,ctet pedagogy, pedagogy of hindi,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा का महत्व,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा की उपयोगिता,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा का कक्षा कक्ष में क्या स्थान है,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा की आवश्यकता,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा का क्या महत्व है,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा की आवश्यकता,महत्व,उपयोगिता एवं कक्षा में स्थान | CTET HINDI PEDAGOGY
मातृभाषा की आवश्यकता
जिस प्रकार साँस लेना मानव के लिए आवश्यक है, उसी प्रकार मानव के लिये बोलना भी। बालक क्रमिक विकास के माध्यम से ही लड़खड़ाकर चलना सीख जाता है और फिर उसी तरह तुतला तुतलाकर बोलना भी सीख जाता है। एडवर्ड सापिर के अनुसार, “चलना स्वयं में एक मूल प्रवृत्ति होकर एक कायिक क्रिया है, नैसर्गिक एवं स्वाभाविक कार्य भी है, जबकि बोलना नैसर्गिक प्रवृत्ति रहित, अर्जित एवं सांस्कृतिक व्यापार कहा जाता है।” भावों को बोलकर ही अभिव्यक्त किया जा सकता है। भाषा ही मानव को समाज में प्रतिष्ठित करती है और भाषा ही हमें इस योग्य बनाती है कि हम अपने जीवन के सुख-दुःख, हर्ष-विमर्ष, भय एवं क्रोध आदि भावों को दूसरे के समक्ष प्रस्तुत करने में सक्षम हो सकते हैं।
भाषा केवल हमारे विचारों की ही संवाहिका नहीं है, प्रत्युत् वह हमारी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति,कला-कौशल की परिचायिका भी है। अनेकानेक विषयों पर लिखित पुस्तकों का प्रकाशन भाषा के द्वारा ही सम्भव है। इस दृष्टिकोण को दृष्टिगत रखकर यह कहा जा सकता है कि भाषा के उच्चरित रूप की तुलना में उसका लिखित रूप अधिक महत्त्वपूर्ण है। वाणी की अपेक्षा लेखनी अधिक महत्त्व रखती है। लेखनबद्ध अक्षरों का अभाव रहने पर इस बात की सम्भावना की जा सकती है कि समूचा विश्व अज्ञानावरण में आवृत रहता है। समग्रतः यही कहा जा सकता है कि भाषा के पठन-पाठन में हमारा मूल प्रयोजन अपने मनोविचारों को व्यक्त करने में सक्षम होना, दूसरों द्वारा अभिव्यक्त की गयीं बातों को समझ सकने योग्य होता है।
इसके अतिरिक्त इस बात की भी अपेक्षा की जाती है कि भाषा के माध्यम से हम अपने मनोभावों को नाप-तौलकर ही अभिव्यक्त करें तथा निरर्थक वाग् जाल से दूर रहें। हमारी अभिव्यक्ति ओज, माधुर्य और प्रसादिकता से समन्वित होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा, तो इस बात की पूरी पूरी सम्भावना रहती है कि श्रोता पर उसका अभिलाषित प्रभाव नहीं पड़े। भाषा को कदापि निरर्थक शब्दों की भित्तियों का ढाँचा मात्र बनाना उसके साथ महान अन्याय है। अत: किसी भी विषय के शिक्षण में मातृभाषा की आवश्यकता होती है।
मातृभाषा का महत्त्व
हिन्दी भाषा की दृष्टि से मातृभाषा का महत्त्व शनैः शनैः बढ़ता जा रहा है। भारतीय जन-जीवन के सर्वांगीण विकास में रुचि रखने वाले व्यक्ति हृदय से मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा देने के पक्षपाती रहे हैं। आजादी से पूर्व तो अंग्रेजों का शासन था, फलस्वरूप इस देश में आंग्ल भाषा के माध्यम से औद्योगिक, चारित्रिक, व्यावसायिक तथा कृषि आदि से सम्बन्धित शिक्षा दी जाती रही है। इस प्रकार हमारे छात्रों का समय एक विदेशी भाषा के अध्ययन में व्यर्थ गया तथा राष्ट्रीयचरित्र का पतन हुआ। आज अंग्रेजी का बोरी बिस्तर गोल हो जाने पर भी इस देश में उनके मानस पुत्रों की कमी नहीं है, जो गंगा-यमुना की पवित्र धरती पर टेम्स नदी की गदली धारा बहाने पर आमादा हैं।
अंग्रेजी भाषा के कारण देश के ग्रामीण जीवन को अपेक्षित कर दिया गया है। अत: आज समस्या सामने खड़ी है। मातृभाषा को उसका पूर्ण दर्जा प्रदान करने की और समस्या है। मातृभाषा के माध्यम से ही देश के जन-जीवन को समुन्नत करने की। इसके लिए एकमेव विकल्प यही है कि मातृभाषा के माध्यम से ही सभी प्रकार की उच्च शिक्षा प्रदान की जाय, ताकि देश की चहुँमुखी प्रगति हो सके और विघटन तथा अलगाव के फन उठाते ही सर्पों को कुचला जा सके। मातृभाषा में ही देश के जन-जीवन का सच्चा स्वरूप और सुन्दर भविष्य अवलम्बित है। वस्तुतः मातृभाषा वह आधारशिला है, जिस पर विद्यालय और उसके वातावरण का निर्माण किया जाना चाहिए।
इस आधारशिला के अभाव में भवन खोखला-सा पड़ जायेगा। इस कारण मातृभाषा शिक्षक का महत्त्व स्वयंसिद्ध है। मातृभाषा शिक्षक के द्वारा ही बालकों का निर्माण सम्भव है। विद्यालयी स्तर में मातृभाषा, शिक्षा का माध्यम होता है। अतः सभी शिक्षकों का तथा विशेषत: मातृभाषा के शिक्षक का दायित्व बढ़ जाता है कि वह छात्रों के जीवन को ऐसी दिशा प्रदान करे कि निकट भविष्य में वे राष्ट्र के निर्माण के साथ-साथ राष्ट्र को उन्नति की उस मंजिल पर पहुँचायें, जिसकी आज अति आवश्यकता अनुभव की जा रही है। मातृभाषा एक स्वाभाविक प्रक्रिया कही जा सकती है।
हमारे मस्तिष्क में विचार भी मातृभाषा में ही उठते हैं। विचार और भाषा का अपरिहार्य सम्बन्ध होता है। अस्तु, जिस भाषा से हमारी विचारधारा उठती , भाव राशि उमड़ती है, इच्छाएँ हिलोरें लेती हैं, उसी में उन छात्रों की इच्छाओं एवं विचारों को प्रकट करना अधिक स्वाभाविक एवं सहज है। अन्य किसी भाषा का प्रयोग अप्राकृतिक ही है। सरिता के उमड़ते अनाहत वेग को रोककर या बाँधों का निर्माण कर दूसरी दिशा को मोड़ा जा सकता है, परन्तु उसमें स्वाभाविक सौन्दर्य नहीं लाया जा सकता, क्योंकि (पयश्च निम्नाभि मुखं प्रतीपयेत्) जल तो नीचे की दिशा में ही बहेगा, चाहे आप कुछ भी कर लीजिए। हृदय में सर्वप्रथम विचार मातृभाषा में ही उठेंगे, चाहे आप उसमें आंग्ल या विदेशी भाषा का मुलम्मा चढ़ा लीजिए।
हृदय के स्वाभाविक वेग को अकृत्रिमता से मातृभाषा के माध्यम से ही प्रवाहित किया जा सकता है। अभिव्यक्ति का प्रमुख साधन तो मातृभाषा ही है, ‘स्व’ और ‘आत्म’ की अभिव्यक्ति के लिए मानव ने अथक परिश्रम किया है। हृदय के उदूगार ज्वालामुखी के सदृश प्रबल वेग से मातृभाषा में ही फूट पड़ते हैं। हर्षातिरेक अथवा उद्वेग जनित अवस्था में वाणी स्वयं मातृभाषा के मुखद्वार से निःसृत होती है। भाषण एवं लेखन कला की विभिन्न शैलियाँ जिस स्वाभाविकता से मातृभाषा में दर्शनीय हैं एवं व्यक्त की जा सकती हैं,वैसी किसी अन्य भाषा द्वारा सम्भव नहीं है।
साधारण व्यवहार में बोलने-लिखने में, विचारों को अभिव्यक्त करने में, भावों को दूसरों तक पहुँचाने में एवं इच्छाओं के प्रकटीकरण में मातृभाषा ही मात्र एक सहज एवं सरल उपाय है। हमारे छात्र जिस सरलता से अपने विचारों को हिन्दी में प्रकट कर सकते हैं, उस प्रकार से अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में नहीं। यह माध्यम की कठिनता कभी-कभी बालकों के सम्मुख दीर्घकाय पर्वत के सदृश खड़ी हो जाती है और वे अपने विचारों को अभिव्यक्त करने में समर्थ एवं सक्षम नहीं हो पाते हैं।
कक्षा शिक्षण में मातृभाषा की उपयोगिता
जिस भाषा का प्रयोग बालक सबसे पहले अपनी माता से सीखता है और जिसके माध्यम से वह अपने विचारों की अभिव्यक्ति परिवार अथवा समुदाय में करता है, वही उसकी मातृभाषा है। उदाहरण के लिए राजस्थान का निवासी जिस बोली को अपनी माँ से सीखता है और परिवार तथा समुदाय में उसका प्रयोग करता है, सही अर्थ में वही उसकी मातृभाषा है। किन्तु यदि राजस्थानी शिष्ट समाज ने खड़ी बोली हिन्दी को अपने विचार विनिमय का माध्यम बना लिया है, तो राजस्थान के निवासी की मातृभाषा खड़ी बोली वाली हिन्दी ही मानी जायेगी। प्रत्येक भाषा गतिशील होती है, उसमें बोलियाँ और उपभाषाएँ सम्मिलित रहती हैं।
हिन्दी भाषा के विषय में भी यह तथ्य सत्य है। राजस्थान हिन्दी-भाषी राज्य है, उसकी मातृभाषा हिन्दी है यद्यपि जिस बोली अथवा उपभाष का प्रयोग अपने घर में एक सामान्य राजस्थानी बालक या व्यक्ति करता है। वह हिन्दी से थोड़ी सी भिन्न है, परन्तु उसी की एक शाखा है। अतः राजस्थान का निवासी किसी भी बोली को अपने घर में क्यों न बोलता हो, हिन्दी ही उसकी मातृभाषा मानी जायेगी। राजस्थान की मातृभाषा हिन्दी है, न कि अन्य कोई भाषा अथवा बोली विशेष। इसलिए छात्र को हिन्दी का ही ज्ञान कराना आवश्यक है। हम घर में अपनी प्रादेशिक बोली बोलते हैं, किन्तु बाहरी व्यवहार में नागरी अथवा हिन्दी का ही प्रयोग करते हैं।
इसी में हम अपने विचारों को लिखित अथवा मौखिक रूप से व्यक्त करते हैं। हिन्दी में ही चिन्तन करते हैं, हिन्दी में ही भावों की अभिव्यक्ति करते हैं, इसी के माध्यम से उच्चकोटि के साहित्य का अध्ययन करते हैं। यही भाषा हमारे ज्ञान भण्डार में वृद्धि करती है। वही हमारे ज्ञान की आधारशिला है। मातृभाषा के अध्ययन से हमें अनेक लाभ मिलते है।
मातृभाषा का कक्षा शिक्षण में स्थान
मातृभाषा का पाठ्यक्रम में स्थान और इसके कारण निम्नलिखित हैं-
(1) मातृभाषा के द्वारा ज्ञान भण्डार में वृद्धि होती है।
(2) यह बालकों में विचारों को धाराप्रवाह और प्रभावशाली रीति से प्रकट करने की योग्यता पैदा करती है।
(3) मातृभाषा के अध्ययन से उचित निर्णय, तर्क, विवेक धारणा की गति तीव्र होती है।
(4) मातृभाषा के माध्यम से उच्चकोटि के साहित्य को समझने की योग्यता पैदा होती है।
(5) मातृभाषा के द्वारा हम अपने भावों, क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं को सुन्दर, स्पष्ट और सरल रूप से प्रकट करने की योग्यता प्राप्त करते हैं।
(6) बालक की मानसिक शक्तियों का विकास मातृभाषा शिक्षण द्वारा ही होता है। इसी से संवेगात्मक शक्तियाँ विकसित होती हैं।
मातृभाषा शिक्षण की इन सभी उपयोगिताओं को ध्यान में रखकर उसे पाठ्यक्रम में सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। अन्य विषयों का शिक्षण गौण होता है और मातृभाषा शिक्षण को प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि मातृभाषा ही सभी विषयों का मूल आधार होती है। अन्य विषयों के लिए तो मातृभाषा आधार स्तम्भ की तरह है। यदि छात्र स्पष्ट रूप से न अर्थ ग्रहण कर सकता है, न अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकता है, तो वह न तो इतिहास, न विज्ञान, न किसी अन्य विषय का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। अन्य विषयों में सफलता उसी बालक को मिलती है, जिसे मातृभाषा पर अधिकार होता है। इसलिए पाठ्यक्रम में मातृभाषा शिक्षण को प्रथम स्थान दिया जाता है।
विभिन्न स्तरों पर भाषा शिक्षण
मातृभाषा शिक्षण के महत्त्व और आवश्यकता को ध्यान में रखकर शिक्षा के निम्नलिखित चार स्तरों पर भाषा शिक्षण को अनिवार्य कर दिया गया है-
(1) प्राथमिक स्तर पर भाषा शिक्षण, (2) निम्न माध्यमिक स्तर भाषा शिक्षण, (3) हाईस्कूल स्तर भाषा शिक्षण, (4) उच्च माध्यमिक स्तर भाषा शिक्षण।
1. प्राथमिक स्तर पर भाषा शिक्षण-प्राथमिक स्तर पर केवल एक ही भाषा के शिक्षण की आवश्यकता पर बल दिया गया है। यह भाषा बालक की मातृभाषा अथवा प्रादेशिक भाषा होती है। प्रायः बालक को प्राथमिक स्तर पर प्रादेशिक भाषा पढ़ायी जाती है, लेकिन यदि वह अपनी मातृभाषा ही सीखना चाहता है तो प्राथमिक विद्यालयों में मातृभाषा शिक्षण की सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं। शर्त यह है कि एक कक्षा में कम से कम 10 तथा पूरे विद्यालय में कम से कम 40 छात्र ऐसे होने चाहिए जिनकी एक विशेष मातृभाषा हो।
उदाहरण के लिए यदि किसी स्थान विशेष में पंजाबी भाषा सीखने-सिखाने के लिए किसी विद्यालय में सुविधाएँ हैं और कम से कम 40 छात्र विद्यालय में ऐसे अवश्य मिल सकते हैं, जो पंजाबी सीखना चाहते हैं, क्योंकि वह उनकी मातृभाषा है, तो उनको उनकी मातृभाषा पंजाबी सिखाने की व्यवस्था विद्यालय कर सकता है, भले ही राजस्थान हिन्दी भाषा क्षेत्र क्यों न हो।
चूँकि मातृभाषा के साथ-साथ प्रादेशिक भाषा की जानकारी आवश्यक होती है, क्योंकि सारा काम उसी भाषा में होता है। इसलिए द्वितीय स्तर पर प्रादेशिक भाषा भी सीखी जा सकती है। प्राथमिक स्तर पर न तो प्रदेशिक भाषा, न अंग्रेजी और न मातृभाषा के अतिरिक्त अन्य किसी भाषा को ही अनिवार्य बनाया जा सकता है। प्रादेशिक अथवा मातृभाषा के अतिरिक्त दूसरी भाषा का शिक्षण मिडिल स्कूल स्तर पर आरम्भ किया जा सकता है। दूसरी भाषा संघ (Union) की सहकारी भाषा हो सकती है। प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा शिक्षण को ही मान्यता दी जाती है।
◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
आपको विज्ञान के शिक्षणशास्त्र का यह टॉपिक कैसा लगा। हमें कॉमेंट करके जरूर बताएं । आप इस टॉपिक हिंदी शिक्षण में हिंदी शिक्षण में मातृभाषा की आवश्यकता,महत्व,उपयोगिता एवं कक्षा में स्थान | CTET HINDI PEDAGOGY को अपने प्रतियोगी मित्रों के साथ शेयर भी करें।
Tags – ctet hindi pedagogy,ctet hindi pedagogy notes pdf,ctet hindi pedagogy,ctet pedagogy, pedagogy of hindi,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा का महत्व,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा की उपयोगिता,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा का कक्षा कक्ष में क्या स्थान है,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा की आवश्यकता,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा का क्या महत्व है,हिंदी शिक्षण में मातृभाषा की आवश्यकता,महत्व,उपयोगिता एवं कक्षा में स्थान | CTET HINDI PEDAGOGY