निदानात्मक परीक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएं | निदानात्मक परीक्षण की विशेषताएं,उद्देश्य,आवश्यकता एवं महत्व

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निदानात्मक परीक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएं | meaning and definition of Diagnostic test in hindi

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निदानात्मक परीक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएं

निदानात्मक परीक्षण एक ऐसा शैक्षिक उपादान है जिसके आधार पर पठित विषय-वस्तु की सूक्ष्म इकाई में बालक की विशिष्टता एवं कमियाँ परिलक्षित होती हैं। नैदानिक शिक्षण द्वारा यह पता लगाने का प्रयत्न किया जाता है कि पाठ्य-वस्तु का कौन-सा भाग किस मात्रा में सीखा गया है तथा कितना भाग छात्र सीखने में असमर्थ रहा है और क्यों छात्र की विषयगत इन्हीं कमजोरियों का पता नैदानिक परीक्षण द्वारा लगाया जाता है।

निदान परीक्षण व्यक्ति की जाँच करने के पश्चात् किसी एक या अधिक क्षेत्रों में छात्र की विशेषताओं एवं कमियों को व्यक्त करता है। निदानात्मक परीक्षण को विश्लेषणात्मक परीक्षण के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इनके द्वारा यह जानने का प्रयत्न किया जाता है कि छात्र प्रश्नों का उत्तर देने में असफल है तो उसका क्या कारण है? निदानात्मक परीक्षण परिमाणात्मक (Quantitative) न होकर गुणात्मक (Qualitative) होते हैं, क्योंकि निदानात्मक परीक्षण का उद्देश्य यह नहीं है कि किसी छात्र ने किसी विषय विशेष में कितने अंक प्राप्त किए वरन् इन परीक्षणों के द्वारा यह जानने का प्रयास किया जाता है कि छात्र किसी विषय विशेष में क्यों असफल रहा है ? अतः छात्र क्यों नहीं जानता ? (Why the child does not know?) का उत्तर नैदानिक परीक्षणों द्वारा प्राप्त करते हैं।

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क्रो एवं क्रो के अनुसार ,“निदानात्मक परिक्षणों का निर्माण छात्रों की अधिगम संबंधी विशिष्ट कठिनाइयों का ज्ञान प्राप्त करने या निदान करने के लिए किया जाता है।”

निदानात्मक परीक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Diagnostic Tests)

(1) यह परीक्षण पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग है।
(2) यह परीक्षण विशिष्ट उद्देश्यों के अनुरूप होते हैं।
(3) यह परीक्षण मानकीकृत एवं अमानकीकृत दोनों प्रकार के होते हैं।
(4) ये परीक्षण बालक की योग्यता का मापन नहीं करते बल्कि विषय सम्बन्धी कमजोरी का निदान करके उसके उपचार की व्यवस्था करते हैं।
(5) इन परीक्षाओं के उपयोग के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं होती है।
(6) यह परीक्षाएँ विश्लेषणात्मक होती हैं तथा किसी भी प्रक्रिया के अंशों का पूर्ण विश्लेषण करती हैं।
(7) यह परीक्षाएँ सीखने वाले की मानसिक प्रक्रिया के स्वरूप को बिल्कुल स्पष्ट कर देती हैं।
(8) इन परीक्षणों से प्राप्त प्राप्तांकों का कोई महत्त्व नहीं होता है। इनमें यह देखा जाता है कि छात्र किसी समस्या का हल किस स्तर तक कर सकता है।
(9) इन परीक्षणों में मानक नहीं होते हैं।
(10) इन परीक्षणों द्वारा छात्रों की प्रगति का वस्तुनिष्ठ रूप से परीक्षण किया जाता है।

निदानात्मक परीक्षण का महत्व एवं आवश्यकता

आज के वर्तमान युग मे शिक्षा का मनोवैज्ञानिक करण किया जा रहा है। आज की शिक्षण प्रक्रिया में बालक की रुचि,मानसिक योग्यता व्यक्तित्व आदि को विशेष महत्व दिया जा रहा है। हम व्यक्तिगत शिक्षण को सामूहिक शिक्षण की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली एवं उपयोगी मानते हैं। वास्तव में व्यक्तिगत शिक्षण का संपादन तभी सम्भव है जब अध्यापक शिक्षण करते समय बालक की व्यक्तिगत सीखने की कठिनाइयों का निदान करता रहे। निदानात्मक परीक्षण के द्वारा बालक की सीखने संबंधी कठिनाइयों का पता लगाया जा सकता हैं। अतैव निदानात्मक परीक्षण व्यक्तिगत शिक्षण के लिए आवश्यक एवं उपयोगी है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में निदानात्मक परीक्षण का विशेष महत्व है। इस परीक्षण के महत्व को निम्नलिखित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है –

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(1) बालकेन्द्रित शिक्षा के लिए उपयोगी ।

(2) शैक्षिक परिस्थितियों के लिए उपयोगी।

(3) समय एवं श्रम की बचत ।

(4) छात्रों की कठिनाइयों एवं त्रुटियों की उपलब्ध जानकारी ।

निदानात्मक परीक्षण के उद्देश्य

इस परीक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

(1) विद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले विषयों की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सुधार लाना ।

(2) किसी विषय में पिछड़े हुए बालकों को पहचानना उनकी विशिष्ट कमियों का पता लगाना तथा उन कमजोरी को दूर करने के उपचारात्मक सुझाव देना ।

(3) निदानात्मक परीक्षण उपलब्धि परीक्षण हेतु परीक्षण हेतु परिक्षण पदों के प्रकार निर्धारित करने में सहायता प्रदान करता है।

(4) निदानात्मक परीक्षण से प्राप्त परिणामों के आधार पर पाठ्य सामग्री में सुधार किया जाता है।

(5) निदानात्मक परीक्षण द्वारा छात्रों की अधिगम सम्बंधी कठिनाइयों का ज्ञान हो जाता है। इससे अध्यापक को एक दिशा मिलती है,वह छात्र की कठिनाइयों को ध्यान में रखकर अपनी शिक्षण विधि में सुधार लाता है।

निदानात्मक परीक्षण के क्षेत्र

आमतौर पर निदानात्मक परीक्षण का क्षेत्र निम्न विषयों तक ही सीमित
है–
(1) वाचन (Reading) वाचन से सम्बन्धित निम्न त्रुटियाँ होती हैं-
(a) शब्दों का गलत उच्चारण
(b) शब्दों की त्रुटि (Spelling errors),
(c) पुनरावृत्ति की त्रुटि (Repetition errors),
(d) शब्दों के समुच्य में त्रुटि आदि को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
(2) उच्चारण (Spelling)--शब्दों के सही उच्चारण पर ध्यान दिया जाता है।
(3) व्याकरण (Grammar)-व्याकरण की शुद्धता पर ध्यान दिया जाता है।
(4) अंक गणित (Arithmetic) – जोड़, घटाने, भाग देने, गुणा करने आदि की गलतियों में सुधार का प्रयास किया जाता है।

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निदानात्मक समस्याओं से सम्बन्धित कारण


(1) शारीरिक कारण (Physical Causes)
(2) बौद्धिक एवं मनोवैज्ञानिक कारण (Intellectual and Phychological causes)
(3) वैयक्तिक तथा सामाजिक कारण (Individual and Social Causes)
(4) वातावरणीय तथा अनुदेशनात्मक कारण (Environmental and Instructional Causes)

निदानात्मक प्रक्रिया के सोपान

निदान प्रक्रिया के पाँच महत्त्वपूर्ण पद या सोपान हैं-

(1) कौन (Who)-कौन से छात्र हैं जिन्हें निदान की आवश्यकता है?
(2) कहाँ (Where)-छात्रों को कहाँ समस्याएँ हैं ?
(3) क्यों (Why) समस्या का कारण क्या है ?
(4) क्या (What) क्या उपचार और सुझाव दिए जायें ?
(5) कैसे (How) समस्या की रोकथाम कैसे की जाए ?

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