बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय आरंभिक स्तर पर भाषा का पठन लेख एवं गणितीय क्षमता का विकास में सम्मिलित चैप्टर गहन और व्यापक पठन / गहन और व्यापक पठन का महत्व एवं उपयोगिता आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।
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गहन और व्यापक पठन / गहन और व्यापक पठन का महत्व एवं उपयोगिता
व्यापक और गहन पठन / गहन और व्यापक पठन का महत्व एवं उपयोगिता
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गहन पठन की अवधारणा
गहन पठन भी एक महत्त्वपूर्ण विधा है। यह पठन के प्रकारों से ही सम्बन्धित है। इसमें पाठक द्वारा विषयवस्तु का गहरायी से अध्ययन किया जाता है। इसमें पठन करने वाला भाव के साथ पूर्ण तादात्म्य कर लेता है। गहन पठन को उच्च स्तरीय श्रेणी के अन्तर्गत रखा जाता है परन्तु इसका अभ्यास छात्रों को प्राथमिक स्तर से ही कराया जा सकता है।
उदाहरणार्थ, एक छात्र किसी कहानी या घटना को पढ़ता है तथा पढ़ने के पश्चात् यह जानने का प्रयास करता है कि कहानी का क्या उद्देश्य है तथा इसमें कौन-कौन से सुधारात्मक पक्ष छिपे हुए हैं वह गहनतम् पठन की श्रेणी में आ जाता है। गहन पठन की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए प्रो. एस.के. दुबे लिखते हैं, “गहन पठन का आशय उस भावपूर्ण एवं निमग्नता के साथ पठन से है जिसमें छात्र पद्यांश या गद्यांश के उद्देश्य, सुधारात्मक पक्ष एवं कलात्मक पक्ष पर ध्यान देता है तथा उसके व्यावहारिक प्रयोग पर विचार करता है।” उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि गहन पठन एक उच्च स्तरीय गठन है जो कि छात्रों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।
गहन पठन की विशेषताएँ
गहन पठन की विशेषताओं को निम्नलिखित रूप में वर्णित किया जा सकता है-
1. तार्किक पठन-गहन पठन को तार्किक पठन के रूप में जाना जाता है। इसके अन्तर्गत छात्र जब किसी वाक्य को पढ़ता है तो उसकी उपयोगिता एवं सार्थकता पर तर्कपूर्ण ढंग से विचार करता हुआ उसके अर्थ को समझने का प्रयास करता है। इस पठन में किसी भी वाक्य को सामान्य रूप से नहीं पढ़ा जाता है।
2. चिन्तनशील पठन-गहन पठन को चिन्तनशील पठन के रूप में भी स्वीकार किया जाता है। इसमें विषयवस्तु का पठन करने के उपरान्त उस पर चिन्तन किया जाता है। इसके उपरान्त उसकी सार्थकता पर विचार करते हुए उसमें सुधार की सम्भावना पर विचार किया जाता है। अत: गहन पठन के अन्तर्गत प्रत्येक गद्यांश एवं पद्यांश पर छात्रों को चिन्तन करने की प्रेरणा प्रदान की जाती है।
3. विश्लेषणात्मक पठन-गहन पठन में वाक्यों के विभिन्न अर्थों को समझते हुए सार्थक एवं सन्दर्भित अर्थ तक पहुँचा जाता है। इसमें प्रत्येक संयुक्त शब्द एवं संयुक्त वाक्य का विश्लेषण करके इसका पठन किया जाता है जिससे कि अर्थ को समझने में उसे किसी प्रकार की कठिनाई न हो क्योंकि अनेक अवसरों पर एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। यदि हम उसका पठन गहरायी से नहीं करेंगे तो इसके वास्तविक अर्थ तक पहुँचने में असमर्थ हो जायेंगे।
4. स्वप्रेरित पठन-गहन पठन की प्रमुख विशेषता यह होती है कि यह स्वप्रेरित होता है अर्थात् इसमें किसी बाह्य प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होती। उदाहरणार्थ, जब छात्र किसी रोचक घटना, उपन्यास या कहानी का गहनता से पठन करता है तो वह उसको जब तक समाप्त नहीं कर लेता तथा सार तत्त्व तक नहीं पहुँच जाता तब तक वह पठन की प्रक्रिया को समाप्त नहीं करता है। इस प्रकार गहन पठन स्वप्रेरणा एवं रुचि पर आधारित होता है।
5.मानसिक क्रिया-गहन पठन एक मानसिक प्रक्रिया है। इसमें पठनकर्त्ता पूर्ण मनोयोग के साथ पठन की क्रिया को पूर्ण करता है। जब किसी पाठक को किसी गद्यांश या पद्यांश के पक्ष में पूर्णत: रुचि का अनुभव होता है तथा वह गद्यांश या पद्यांश के भाव को आत्मसात् करता हुआ पढ़ता है तो यह समझा जाता है कि पठन की क्रिया गहनता के साथ सम्पन्न हो रही है। इसमें पाठक मानसिक एवं शारीरिक रूप से पूर्ण संलग्न हो जाता है।
6. आनन्द की अनुभूति-गहन पठन के अन्तर्गत पाठक को आनन्द की अनुभूति होती है। वह जितनी एकाग्रता से पाठ्यवस्तु का पठन करता है उतना ही उसको आनन्द का अनुभव होने लगता है। इस आनन्द की अनुभूति के साथ ही पाठक पाठ्यवस्तु की गहरायी में उतरता चला जाता है।
7. उद्देश्यनिष्ठ पठन-गहन पठन उद्देश्यनिष्ठ पठन के रूप में जाना जाता है। इसको पाठक किसी उद्देश्य विशेष की पूर्ति हेतु पढ़ता है। जब नाठ्यवस्तु समाप्त होती है तो पाठक किसी निश्चित उद्देश्य पर पहुँच जाता है। इसके साथ-साथ वह पाठ्यवस्तु की सार्थकता एवं निरर्थकता सम्बन्धी पक्षों पर विचार करने लगता है।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि गहन पठन उच्च स्तरीय पठन की श्रेणी में आता है जिसमें कि छात्र एक परिपक्व पठनकर्ता की दृष्टि से पाठ्यवस्तु का पठन करता है तथा सार्थक निष्कर्ष तक पहुँचने का प्रयास करता है। इस कार्य में वह विभिन्न मानसिक क्रियाओं को सम्पन्न करता है; जैसे-चिन्तन, मनन, संश्लेषण एवं विश्लेषण आदि।
गहन पठन का महत्त्व एवं उपयोगिता
गहन पठन की आवश्यकता एवं महत्त्व के कारण ही एक शिक्षक को प्रशिक्षण काल में इसका ज्ञान कराया जाता है। गहन पठन की उपयोगिता एवं महत्त्व को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) गहन पठन के माध्यम से छात्रों में स्वाध्याय की प्रवृत्ति का विकास किया जाता है क्योंकि पात्यवस्तु छात्रों को रुचिकर लगती है। उसको छात्र स्वप्रेरणा से पढ़ने का प्रयास करता है।
(2) गहन पठन के माध्यम से छात्रों में तर्क एवं चिन्तन का विकास किया जाता है क्योंकि गहन पठन करते समय छात्र पाठ्यवस्तु के प्रत्येक तथ्य का गहरायी से चिन्तन एवं मनन करता है।
(3) गहन पठन के द्वारा छात्रों में मानसिक विकास की स्थिति उत्पन्न होती है क्योंकि गहन पठन एक मानसिक क्रिया है जिसमें मानसिक मन्थन व्यापक रूप से सम्भव होता है।
(4) गहन पठन पाठ्यवस्तु के प्रति जागरूकता प्रदान करता है क्योंकि पाठक इसमें किसी निश्चित तथ्य एवं निश्चित उद्देश्य की खोज करता है। इसलिये यह पठन जागरूकता के साथ पठन क्रिया को सम्भव बनाता है।
(5) गहन पठन के माध्यम से छात्रों में पाठ्यवस्तु में छिपी शिक्षा
एवं उद्देश्य को आत्मसात् करने की योग्यता विकसित की जाती है जिससे छात्र उस उद्देश्य एवं शिक्षा का उपयोग अपने जीवन में कर सकें।
व्यापक पठन की अवधारणा
व्यापक पठन से आशय पाठ्यवस्तु के भावात्मक एवं कलात्मक पक्ष दोनों के पठन से है। इसके अन्तर्गत छात्र एक ओर पाठ्यवस्तु के भाव को ग्रहण करता है वहीं दूसरी ओर पाठ्यवस्तु की भाषा शैली एवं व्याकरण की दृष्टि से परीक्षण भी करता है। व्यापक पठन भी उच्च स्तरीय व्यवस्था से सम्बन्धित होता है परन्तु इसका विकास धीरे-धीरे छात्रों में प्राथमिक स्तर से ही करना चाहिये। व्यापक पठन की अवधारणा को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट
किया जा सकता है-
1.भावात्मक एवं कलात्मक पक्ष-व्यापक पठन में भावात्मक एवं कलात्मक पक्ष का समन्वयनदेखा जा सकता है क्योंकि इसमें छात्र एक ओर वाक्य विन्यास एवं शब्द निर्माण की प्रक्रिया पर ध्यान देता है वहीं दूसरी ओर पाठ्यवस्तु के भाव को सार्थकता के साथ ग्रहण करता है। इस प्रकार व्यापक पठन समन्वयनवादी दृष्टिकोण पर आधारित होता है।
2.शब्दों के प्रयोग पर ध्यान-व्यापक पठन में छात्र द्वारा शब्दों के प्रयोग पर भी ध्यान दिया जाता है। इसमें पठनकर्ता यह देखता है कि पाठ्यवस्तु में जिन शब्दों का प्रयोग किया गया है वह आवश्यकता के अनुरूप हैं या नहीं; जैसे-अनेक अवसरों पर पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में कर दिया जाता है जबकि दोनों शब्दों का अर्थ पृथक् है तो उनका प्रयोग भी पाठ्यवस्तु की माँग एवं आवश्यकता के अनुरूप होना चाहिये।
3. भाषा शैली पर ध्यान-व्यापक पठन के अन्तर्गत पाठक पाठ्यवस्तु की भाषा शैली पर भी पूर्ण ध्यान देता है। अनेक अवसरों पर अनुचित भाषा शैली का प्रयोग पाठ्यवस्तु के भाव को ही परिवर्तित कर देता है। जब हम किसी यात्रा एवं वृत्तान्त का वर्णन कर रहे होते हैं तो उसमें वर्णनात्मक शैली का प्रयोग होना चाहिये। यदि वहाँ समीक्षात्मक शैली का प्रयोग होता है तो उसे अनुचित माना जायेगा।
4.वाक्यों के स्वरूप पर ध्यान-व्यापक पठन में वाक्यों के स्वरूप पर भी व्यापक रूप से ध्यान दिया जाता है क्योंकि वाक्यों का संश्लेषण एवं विश्लेषण ही पाठ्यवस्तु को उपयोगी बनाता है। यदि पाठ्यवस्तु में प्रभावी एवं सार्थक वाक्यों का प्रयोग नहीं हुआ है है पाठ्यवस्तु के पठन में छात्रों की रुचि विकसित नहीं होगी।
5. मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ-व्यापक पठन में मुहावरे एवं लोकोक्तियों के सार्थक प्रयोग पर ध्यान दिया जाता है। अनेक अवसरों पर लेखक जिस सन्दर्भ में मुहावरे एवं लोकोक्तिय का प्रयोग करता है उसमें उनकी आवश्यकता एवं सार्थकता नहीं होती। परिणामस्वरूप भाषा प्रभावहीन हो जाती है। इसलिये मुहावरे एवं लोकोक्तियों का प्रयोग मात्र इस उद्देश्य से नहीं करना चाहिये कि इनका प्रयोग करना है वरन् आवश्यकता के अनुसार सार्थक रूप में करना चाहिये। व्यापक पठन में इन सभी बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाता है।
6.विराम चिह्नों के प्रयोग पर ध्यान-व्यापक पठन में विराम चिह्नों के व्यापक प्रयोग पर ध्यान दिया जाता है क्योंकि विराम चिह्नों का प्रयोग सार्थक रूप में न किया जाय तो यह वाक्य के अर्थ को परिवर्तित कर देता है। इसलिये व्यापक पठन में एक ओर पाठक पात्यवस्तु का पठन विराम चिह्नों का ध्यान रखते हुए करता है वहीं दूसरी ओर पाठ्यवस्तु में प्रयुक्त विराम चिन्ह के सही प्रयोग एवं सार्थकता पर विचार करते हुए उन्हें सुधारता है।
7. मानक भाषा के प्रयोग पर ध्यान-व्यापक पठन मानक भाषा के प्रयोग एवं विकास की ओर भी छात्रों का ध्यान आकर्षित करता है। व्यापक पठन के अन्तर्गत छात्र यह देखता है कि प्रस्तुत पाठ्यवस्तु की भाषा मानक रूप में है या नहीं। यदि पाठ्यवस्तु को भाषा मानक रूप में नहीं है तो छात्र पर अपने सुधारात्मक एवं समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत करता है।
व्यापक पठन का महत्त्व एवं उपयोगिता
व्यापक पठन का छात्रों में विभिन्न प्रकार के भाषायी कौशलों एवं दक्षताओं के विकास हेतु उपयोग किया जाता है। इसलिये व्यापक पठन का छात्रों के भाषायी विकास में महत्वपूर्ण स्थान है। व्यापक पठन के उपयोग एवं मह व को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) व्यापक पठन का उपयोग छात्रों को सार्थक वाक्यों के निर्माण को प्रक्रिया एवं वाक्य निर्माण सम्बन्धी नियमों के बारे में ज्ञान प्रदान करने के उद्देश्य से किया जाता है।
(2) व्यापक पठन के माध्यम से छात्रों में समीक्षात्मक दृष्टिकोण विकसित किया जा सकता है जिससे छात्र किसी भी गद्यांश एवं पद्यांश के सन्दर्भ में अपने सार्थक विचार प्रस्तुत कर सकते हैं।
(3) व्यापक पठन के माध्यम से छात्रों में विश्लेषण एवं संश्लेषण की योग्यता का विकास सम्भव हो जाता है जिससे छात्र भाषायी क्षेत्र में पठन कौशल को योग्यता से सम्पन्न हो जाते हैं।
(4) व्यापक पठन के माध्यम से छात्र मानक भाषा के सन्दर्भ में ज्ञान प्राप्त करते हैं जिससे वे अपनी लिखित एवं मौखिक अभिव्यक्ति में मानक भाषा का उपयोग करने लगते हैं।
(5) व्यापक पठन के माध्यम से छात्रों को व्याकरण का पूर्ण ज्ञान होता है जिससे वे व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियों को पहचानने लगते हैं तथा अपने भाषायी प्रस्तुतीकरण में इन त्रुटियों से दूर रहते हैं।
(6) व्यापक पठन के माध्यम से छात्रों को भाषा विज्ञान सम्बन्धी तो का ज्ञान हो जाता है जिससे छात्र किसी पद्यांश या गद्यांश पर अपने सुधारात्मक विचार प्रस्तुत कर सकते हैं।
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