रासायनिक संयोग के नियम / rules of chemical combination in hindi

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रासायनिक संयोग के नियम / rules of chemical combination in hindi

रासायनिक संयोग के नियम / rules of chemical combination in hindi
रासायनिक संयोग के नियम / rules of chemical combination in hindi

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पदार्थों का निर्माण विभिन्न परमाणुओं या अणुओं के मध्य रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप होता है। ये अभिक्रियाएँ कुछ नियमों पर आधारित होती हैं, जो रासायनिक संयोग के नियम कहलाते हैं। अत: वे नियम जिनके आधार पर विभिन्न तत्व अथवा यौगिक परस्पर संयोग करके नए यौगिकों का निर्माण करते हैं, रासायनिक संयोग के नियम कहलाते हैं। ये नियम है- द्रव्यमान संरक्षण या द्रव्य की अविनाशिता का नियम, स्थिर या निश्चित अनुपात का नियम, गुणित अनुपात का नियम, तुल्य या व्युत्क्रम अनुपात का नियम तथा गै-लुसैक का नियम। इनमें से प्रथम चार नियम भार पर आधारित हैं तथा पदार्थों या यौगिकों के संयोजन पर लागू होते हैं। अन्तिम नियम आयतन पर आधारित है तथा केवल गैसीय पदार्थों पर लागू होता है।

(1) द्रव्यमान संरक्षण या द्रव्य की अविनाशिता का नियम

इस नियम का प्रतिपादन रूसी वैज्ञानिक एम. वी. लोमोनोसोव (M.V. Lomonosov) ने सन् 1756 में किया था तथा इसकी पुष्टि लेवाशिए तथा लान्डोल्ट ने की थी। इस नियम के अनुसार, “द्रव्य अविनाशी है अर्थात् रासायनिक अभिक्रिया में कोई द्रव्य न तो उत्पन्न होता है और न ही नष्ट”। इस नियम के कुछ प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं
(i) रासायनिक अभिक्रियाओं में पदार्थों का कुल द्रव्यमान अपरिवर्तित रहता है अर्थात् अभिक्रिया में प्रयुक्त पदार्थों (अर्थात् अभिकारकों) का कुल द्रव्यमान = अभिक्रिया के पश्चात् निर्मित पदार्थों (अर्थात् उत्पादो) का कुल द्रव्यमान।
(ii) यह रासायनिक संयोग का मूलभूत नियम है तथा इसके आधार पर पदार्थों के मात्रात्मक सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है।

द्रव्यमान संरक्षण के नियम का प्रयोगात्मक सत्यापन

इस नियम की पुष्टि निम्नलिखित प्रयोगों के आधार पर की जा सकती है.
(i) लान्डोल्ट का प्रयोग (Landolt’s Experiment) – द्रव्यमान संरक्षण या द्रव्य की अविनाशिता के नियम को सिद्ध करने के लिए लान्डोल्ट ने एक विशेष आकार के उपकरण का प्रयोग किया। इस उपकरण में H-आकार की काँच की दो नलियाँ होती हैं, जिनमें से एक नली में सिल्वर नाइट्रेट (AgNO,) तथा दूसरी में पोटैशियम आयोडाइड (KI) भरकर नली के मुख को बन्द कर देते हैं।
इसके पश्चात् उपकरण सावधानीपूर्वक तौला जाता है, अब नली को हिलाकर विलयनों को मिलाया जाता है, जिससे निम्न अभिक्रिया होती है।
AgNOg + KI  → Agl + KNO3

अभिक्रिया के पश्चात् उपकरण को पुन: तौला जाता है तथा प्राप्त आँकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि अभिक्रिया में निर्मित उत्पादों का द्रव्यमान अभिकारकों के द्रव्यमान के बराबर है। इस प्रकार द्रव्यमान संरक्षण के नियम की पुष्टि होती हैं।

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अभिक्रिया से पहले कुल द्रव्यमान = अभिक्रिया के पश्चात् कुल द्रव्यमान

(ii) फॉस्फोरस का बन्द पात्र में दहन (Combustion of Phosphorus in a Closed Flask) – एक बन्द पात्र में थोड़ी बालू के ऊपर फॉस्फोरस को रखकर उसे तोल लेते हैं तथा अब पात्र को गर्म करके तथा ठण्डा करके पुन: तोलते हैं। गर्म करने पर फॉस्फोरस जलकर फॉस्फोरस पेन्टाऑक्साइड (PO.) में परिवर्तित हो जाता है परन्तु पात्र के भार में कोई परिवर्तन नहीं आता, जिससे द्रव्यमान स्मारक्षण के नियम की पुष्टि होती है।

द्रव्यमान संरक्षण के नियम के अपवाद

यह नियम नाभिकीय अभिक्रियाओं पर (रेडियोऐक्टिवता के प्रक्रम पर) लागू नहीं होता क्योंकि इन अभिक्रियाओं में आइन्सटीन के द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण E=mc^2 के अनुसार द्रव्यमान को ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।
नोट – रासायनिक परिवर्तनों में यह परिवर्तन नगण्य होता है, अत: इनके लिए यह नियम सदैव सत्य होता है।

(2) स्थिर अनुपात का नियम
Law of Constant Proportion

सन् 1799 में फ्रांसिसी वैज्ञानिक जे.एल. प्राउस्ट (JL Proust) ने स्थिर अनुपात के नियम का प्रतिपादन किया। इस नियम के अनुसार, “प्रत्येक शुद्ध रासायनिक यौगिक में स्थित तत्व एक निश्चित भारानुपात में पाए जाते हैं, चाहे उसे किसी भी विधि से बनाया या प्राप्त किया जाए।”
उदाहरण- (i) जल (H2O), हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन का यौगिक है। इसे नदी, कुएँ,समुद्र, वर्षा, आदि प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु जल  के प्राप्त प्रत्येक प्रतिदर्श (नमूने) में हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का अनुपात सदैव 1:8 होता है।
(ii) इसी प्रकार, कार्बन डाइऑक्साइड को चाहे किसी भी स्त्रोत द्वारा प्राप्त किया गया हो, इसमें कार्बन (C) तथा ऑक्सीजन (O) का अनुपात सदैव 3: 8 या 12:32 होता है।

नोट – स्थिर अनुपात के नियम को निश्चित अनुपात का नियम (Law of definite proportion) भी कहते हैं।

स्थिर: अनुपात के नियम का प्रयोगात्मक सत्यापन

एक क्रूसीबल में कॉपर नाइट्रेट तथा एक में कॉपर कार्बोनेट को लेकर दोनों को गर्म करते हैं, जिससे ये कॉपर ऑक्साइड (CuO) में परिवर्तित हो जाते हैं। अब कॉपर ऑक्साइड के एक नमूने की कुछ मात्रा को दो छेद वाली कॉर्क लगी परखनली में लेकर तोल लेते हैं तथा इसे चित्रानुसार व्यवस्थित करके गर्म करते हुए इसमें हाइड्रोजन प्रवाहित करते हैं, जिससे कॉपर ऑक्साइड, शुष्क कॉपर
(ताँबे) में अपचयित हो जाता है। अब हाइड्रोजन के प्रवाह को रोककर परखनली को ठण्डा करके तोल लेते हैं। इस भार में से परखनली के प्रारम्भ में लिए गए भार को घटाने पर कॉपर का भार प्राप्त हो जाता है।  समान प्रयोग को कॉपर ऑक्साइड के दूसरे नमूने के साथ दोहराकर भी कॉपर का भार प्राप्त कर लेते हैं। यह भार, प्रथम नमूने के साथ किए प्रयोग द्वारा प्राप्त भार के समान होता है, जिससे स्थिर अनुपात के नियम की पुष्टि होती है।

स्थिर अनुपात के नियम के अपवाद

यह नियम समस्थानिकों (तत्वों के ऐसे परमाणु जिनका परमाणु क्रमांक समान तथा परमाणु भार भिन्न हो) की स्थिति में लागू नहीं होता, परन्तु किसी निश्चित समस्थानिक द्वारा निर्मित यौगिकों में इनके द्रव्यमानों का संघटन निश्चित होता है।

(3) गुणित अनुपात का नियम
Law of Multiple Proportion

इस नियम का प्रतिपादन डॉल्टन ने सन् 1803 में किया था। इस नियम के अनुसार, “जब दो तत्व परस्पर मिलकर दो अथवा दो से अधिक रासायनिक यौगिक बनाते हैं, तब एक तत्व की निश्चित मात्रा से संयोग करने वाली दूसरे तत्व की भिन्न-भिन्न मात्राओं में एक सरल गुणित अनुपात होता है।”
उदाहरण- कार्बन तथा ऑक्सीजन परस्पर रासायनिक संयोग करके एक से अधिक यौगिकों का निर्माण करते हैं, इनके एक ग्राम अणु में कार्बन और ऑक्सीजन के द्रव्यमान निम्नलिखित हैं–

यौगिक का नाम अणु सूत्र कार्बन का द्रव्यमान ऑक्सीजन का द्रव्यमान
कार्बन मोनॉक्साइड CO 12 ग्राम 16 ग्राम
कार्बन डाइऑक्साइड CO2 12 ग्राम 32 ग्राम

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अतः 12 ग्राम कार्बन से संयोग करने वाली ऑक्सीजन की मात्राओं का अनुपात 16 : 32 या 1 : 2 है, जोकि एक सरल गुणित अनुपात

गुणित अनुपात के नियम का प्रयोगात्मक सत्यापन

दो शुष्क क्रूसीबल लेकर उनमें से एक में 1 ग्राम क्यूप्रिक ऑक्साइड तथा दूसरी में 1 ग्राम क्यूप्रस ऑक्साइड लेते हैं। अब इन्हें दोनों ओर से खुली एक कठोर काँच की नली में रख देते हैं तथा एक सिरे से नली में कोल गैस प्रवाहित करते हैं। इसके दूसरे सिरे पर कोल गैस को जला देते हैं। जिससे गैस का प्रवाह निरन्तर बना रहता है। कोल गैस गर्म कॉपर ऑक्साइड को कॉपर में अपचयित
कर देती है। जैसे ही अपचयन पूर्ण होता है, क्रूसीबल की अन्दर वाली सतह चमकने लगती है।
CuO + H2 → Cu+ H2O
Cu2O + H2 → 2Cu + H20

दोनों क्रूसीबलों से प्राप्त कॉपर के भारों को ज्ञात कर लेते हैं। ऑक्साइड के भारो में से कॉपर की मात्रा को घटाकर संयुक्त हुई ऑक्सीजन की मात्रा को ज्ञात करने पर यह 1:2 के सरल अनुपात में पाई जाती है। जिससे गुणित अनुपात के की पुष्टि होती है।

गुणित अनुपात के नियम के अपवाद

बहुत-से कार्बनिक यौगिकों के लिए यह नियम सत्य नहीं है। उदाहरण— मेथेन (CH4), एथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) तथा ब्यूटेन (C4H10) में कार्बन के निश्चित द्रव्यमान (12 ग्राम) से संयुक्त होने वाले हाइड्रोजन के द्रव्यमान सरल गुणित अनुपात में नहीं होते हैं।

(4) व्युत्क्रम अनुपात का नियम
Law of Reciprocal Proportion

इस नियम का प्रतिपादन रिक्टर (Richter) ने सन् 1792 में किया था। इस नियम के अनुसार, “जब दो भिन्न-भिन्न तत्व किसी तीसरे तत्व के निश्चित द्रव्यमान से संयोग करके दो भिन्न-भिन्न यौगिक बनाते हैं और यदि ये दोनों तत्व परस्पर संयोग करके भी यौगिक बनाते हैं, तो वे उसी अनुपात में अथवा इसके एक सरल गुणित अनुपात में संयोग करेंगे, जिसमें वे तीसरे तत्व के एक निश्चित
द्रव्यमान से संयोग करते हैं।”

उदाहरण-कार्बन (C) व हाइड्रोजन (H) रासायनिक संयोग करके मेथेन (CH,) बनाते हैं। मेथेन के 16 ग्राम में 12 ग्राम कार्बन व 4 ग्राम हाइड्रोजन होती है। कार्बन (C) व ऑक्सीजन (O) रासायनिक संयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) बनाते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड के 44 ग्राम में 12 ग्राम कार्बन एवं 32 ग्राम ऑक्सीजन होती है। अत: कार्बन की समान मात्रा (12 ग्राम) से अलग-अलग संयुक्त होने वाले हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के द्रव्यमानों का अनुपात 4 : 32 अर्थात् 1: 8 है। व्युत्क्रम अनुपात के नियम के अनुसार, जब हाइड्रोजन व ऑक्सीजन परस्पर संयोग करेंगे, तो उनके द्रव्यमानों का अनुपात भी यही होगा। इसके अन्य उदाहरण NaCl, NaH तथा HCl; NH3, H2O तथा N2O3, आदि हैं। चूँकि व्युत्क्रम अनुपात का नियम तत्वों के तुल्यांकी भार निकालने हेतु उपयोगी है। अत: इसे तुल्यांकी या तुल्य अनुपात का नियम भी कहते हैं। इसके अनुसार तत्व सदैव उनके तुल्यांकी भारों के अनुसार संयोग करते हैं।

व्युत्क्रम अनुपात के नियम के अपवाद

यह नियम ऐसे यौगिकों के लिए सत्य नहीं है, जिनमें तत्वों के परमाणुओं की संख्या अधिक होती है।

(5) गै-लुसैक का गैसीय आयतन का नियम

यह नियम गै-लुसैक द्वारा दिया गया। इस नियम के अनुसार, “जब गैसें परस्पर अभिक्रिया करती हैं, तो समान ताप और दाब पर उनके आयतनों में एक सरल अनुपात होता है तथा यदि उत्पाद भी गैसीय अवस्था में हो, तो सभी गैसीय पदार्थों के आयतनों में पूर्ण संख्या का सरल अनुपात होता है।
नोट–  गैसें अपने आदर्श व्यवहार से विचलित होती हैं। अतः यह नियम यथार्थ नहीं है। इसके अतिरिक्त यह नियम केवल गैसीय अभिक्रियाओं पर लागू होता है। उदाहरण-
(i) H2    +    Cl2        →         2HCl         ( 1:1:2)
1आयतन    1 आयतन                   2 आयतन

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(ii) 2Hg +      0₂      →       2H2O             (2:1:2)
2 आयतन      1 आयतन           2 आयतन

(iii) N2 +   3H2        →       2NH3             (1:3:2)
1 आयतन     3 आयतन            2 आयतन

डॉल्टन का परमाणुवाद Dalton’s Atomic Theory

रासायनिक संयोग के नियमों को ध्यान में रखते हुए तथा इन नियमों की मान्यता को सैद्धान्तिक रूप से सिद्ध करते हुए सर्वप्रथम डॉल्टन ने 1803 में परमाणु सिद्धान्त प्रस्तुत किया। जिसके अनुसार, सभी तत्व अनेक सूक्ष्मतम कणों अर्थात् परमाणुओं से मिलकर बने होते हैं, जो अविभाज्य होते हैं। दो या अधिक तत्वों के परमाणु सरल गुणित अनुपात में संयुक्त होकर यौगिक परमाणु (जो अब अणु कहलाते हैं) बनाते हैं। परमाणु रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग लेते हैं, परन्तु विघटित या नष्ट नहीं होते हैं। डॉल्टन के परमाणु सिद्धान्त से द्रव्य की अविनाशिता के नियम व रासायनिक संयोग के अन्य नियमों की व्याख्या की जा सकती है।
नोट – सर्वप्रथम परमाणु शब्द का प्रयोग डॉल्टन ने तथा अणु शब्द का प्रयोग आवोगाद्रो ने किया था।

डॉल्टन के परमाणुवाद के आधार पर रासायनिक संयोग के नियमों का स्पष्टीकरण

डॉल्टन के परमाणु सिद्धान्त के आधार पर रासायनिक संयोग के नियमों का स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है।

(i) द्रव्यमान संरक्षण का नियम (Law of Conservation of Mass) – परमाणुवाद के अनुसार, सभी पदार्थ परमाणुओं द्वारा निर्मित होते हैं तथा परमाणु अविभाज्य होते हैं अर्थात् ये रासायनिक क्रिया से न तो उत्पन्न होते हैं और न ही इसमें नष्ट होते हैं। अतः परमाणुओं द्वारा निर्मित द्रव्य भी रासायनिक अभिक्रिया में न तो नष्ट होगा और न ही उत्पन्न होगा। यही द्रव्यमान संरक्षण या द्रव्य की अविनाशिता का नियम है।

(ii) स्थिर अनुपात का नियम (Law of Constant Proportion) – डॉल्टन के अनुसार, परमाणु परस्पर संयोग करके यौगिक परमाणु
पदार्थ के यौगिक परमाणु गुण तथा द्रव्यमान (भार) में समान होते हैं, क्योंकि इनमें विभिन्न तत्वों के परमाणुओं की संख्या स्थिर होती है। इसलिए किसी भी यौगिक में विभिन्न तत्वों के भारों में एक स्थिर अनुपात होता है।

उदाहरण- जिंक (Zn) तथा सल्फर (S) परस्पर संयोग करके जिंक सल्फाइड (ZnS) बनाते हैं। Zn तथा S का संयोग परमाणुओं की पूर्ण संख्या में होता है। माना, Zn के परमाणु S के परमाणुओं से संयोग करते हैं। Zn के परमाणुओं का द्रव्यमान तथा S के परमाणुओं का द्रव्यमान स्थिर है। इसलिए ZnS में Zn तथा S के द्रव्यमान में एक स्थिर अनुपात है।

(iii) गुणित अनुपात का नियम (Law of Multiple Proportion)

(iv) व्युत्क्रम अनुपात का नियम (Law of Reciprocal Proportion)

                             ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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