अलंकारों में अंतर | यमक और श्लेष अलंकार में अंतर

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Contents

अलंकारों में अंतर | यमक और श्लेष अलंकार में अंतर | उपमा और रूपक अलंकार में अंतर | उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार में अंतर | उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार में अंतर | अनुप्रास और यमक अलंकार में अंतर

हमनें इस आर्टिकल में निम्न टॉपिको को सम्मिलित किया है :–

(1) शब्दालंकार और अर्थालंकार में अंतर
(2) अनुप्रास और यमक अलंकार में अंतर
(3) यमक और श्लेष अलंकार में अंतर
(4) उपमा और रूपक अलंकार में अंतर
(5) भ्रांतिमान और संदेह अलंकार में अंतर
(6) उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार में अंतर
(7) उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार में अंतर

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शब्दालंकार और अर्थालंकार में अंतर

दोस्तों अलंकारों में अंतर,alankaro me antar की शृंखला में अनुप्रास और यमक अलंकार में अंतर,यमक और श्लेष अलंकार में अंतर,उपमा और रूपक अलंकार में अंतर,भ्रांतिमान और संदेह अलंकार में अंतर,उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार में अंतर,उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार में अंतर की जानकारी आवश्यक है। सर्वप्रथम हम ये जान लेते हैं की शब्दालंकार और अर्थालंकार में अंतर ।

शब्दालंकार शब्दों में चमत्कार उत्पन्न कर काव्य की शोभा बढ़ाते हैं; जैसे – अनुप्रास , यमक, श्लेष आदि।

अर्थालंकार अर्थ में चमत्कार उत्पन्न कर काव्य की शोभा बढ़ाते है;
जैसे –  उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि।

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अनुप्रास अलंकार और यमक अलंकार में अंतर

क्र०सं०अनुप्रासयमक
1.अनुप्रास में व्यंजन वर्णों की समानता होती है, स्वरों में चाहे भेद भी हो।यमक में स्वर और व्यंजन दोनों की समानता होती है।
2.अनुप्रास में जिन वर्ण समूहों की आवृत्ति हो, उनमें वर्णक्रम (वर्तनी) की समानता होना आवश्यक नहीं है।यमक में आवृत्ति होने वाले वर्ण समुदाय में वर्णक्रम
वर्णक्रम (वर्तनी) की समानता होनी आवश्यक है।
3.अनुप्रास में अर्थ संबंधी कोई नियम नही है।यमक में यह आवश्यक है कि जिस वर्ण समूह की
आवृत्ति हो, उनका अर्थ अलग-अलग हो या उनमें
से एक या दोनों निरर्थक हों।







यमक अलंकार और श्लेष अलंकार में अंतर

यमक अलंकार में समान शब्द का प्रयोग जितनी बार होता है, उतने ही अर्थों की प्रतीति होती है किन्तु श्लेष में शब्द का प्रयोग तो एक ही बार होता है लेकिन उससे अनेक अर्थों की प्रतीति होती है।

जैसे –  कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय

इस पंक्ति में  कनक शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है और उससे दो ही अर्थों की प्रतीति होती हैं-

कनक – (1) सोना   (2) धतूरा

यह यमक का उदाहरण है।

विमलाम्बरा रुजनी-वधू अभिसारिका सी जा रही।

इस पंक्ति में ‘विमलाम्बरा’ शब्द का प्रयोग एक ही बार हुआ है लेकिन उससे दो अर्थों की प्रतीति होती है।

विमलाम्बरा-(1) स्वच्छ ‘आकाश वाली, (2) स्वच्छ वस्त्रों वाली।

यह ‘श्लेष’ का उदाहरण है।




उपमा अलंकार और रूपक अलंकार में अंतर

उपमा अलंकार मे उपमेय और उपमान दो पृथक वस्तु होती हैं, दोनों में किसी साधारण धर्म के आधार पर समानता दिखाई पड़ती है।

जैसे – विदग्ध होके कण धूलि राशि का,तपे हुए लौह कणों समान था।

इस उक्ति में उपमेय ‘धूल का कंण और उपमान ‘लौहकण’ दो पृथक वस्तु प्रतीत होती है जिनमें विदग्धता’ धर्म की समानता है।

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रूपक में उपमेय में उपमान का आरोप कर दोनों में अभेद कर दिया जाता है; अत: उपमेय और उपमान दोंनो एक ही वस्तु प्रतीत होते हैं।

जैसे –  हैं शत्रु भी यो मग्न उनके शौर्य पारावार, में

इस उक्ति में शौर्य और पारावार दोनो एक-दूसरे से भिन्न नहीं बल्कि एक ही वस्तु प्रतीत होते हैं।

भ्रांतिमान अलंकार और संदेह अलंकार में अंतर


भ्रान्तिमान अलंकार में उपमेय (प्रस्तुत) में उपमान का भ्रम (निश्चयात्मक मिथ्या ज्ञान) हो जाता है।

परन्तु सन्देह में अनिश्चय बना रहता है; यह निश्चय नहीं हो पाता कि यह उपमेय (प्रस्तुत) है या उपमान (अप्रस्तुत) ।

उदाहरण के लिए

बिल विचार कर नागशुण्ड में घुसने लगा विषैला साँप ।

हाथी की सूड़ में बिल का और हाथी को साँप में काली ईख का भ्रम (निश्चयात्मक मिथ्या ज्ञान) हो गया है। अतः यह भ्रान्तिमान है।

और सन्देह के उदाहरण

मद भरे ये नलिन नयन मलीन है।

पंक्ति में ये नयन है या मीन है,इस प्रकार का अनिश्चय बना रहता है, अतः यह सन्देह है।




रूपक अलंकार और उत्प्रेक्षा अलंकार में अंतर

उत्प्रेक्षा अलंकार में उपपेय में उपमान की सम्भावना प्रकट की जाती है,

जैसे-
सोहत ओढ़े पीत पटु, स्याम सलौने गात।
मनौ नीलमनि सैल पर, आतप पर्यौ प्रभात ॥

जबकि रूपक अलंकार में उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप किया जाता है,

जैसे-
“चरण कमल बन्दौ हरिराई”,

उत्प्रेक्षा के उदाहरण में उपमेय में उपमान की सम्भावना प्रकट की गयी है तथा रूपक के उदाहरण में उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप किया गया है। यही दोनों अलंकारों में मूलभूत अन्तर है।



उपमा अलंकार और उत्प्रेक्षा अलंकार में अंतर

उपमा अलंकार में उपमेय का उपमान के साथ सादृश्य दिखाया जाता है जबकि उत्प्रेक्षा में उपमेय में उपमान की सम्भावना की जाती है। उत्प्रेक्षा में उपमेय में ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह उपमान ही हो।

ये भी पढ़ें-  विभावना अलंकार - परिभाषा,उदाहरण | vibhavana alankar in hindi | विभावना अलंकार के उदाहरण

जैसे-

“नीरवता सी शिलाचरण में टकराता फिरता पवमान”

इस पंक्ति में शिलाचरण को नीरवता के सदृश दिखाया गया है, यह उपमा अलंकार है। उस काल मारे में सागर की सम्भावना की गयी है, यह उत्प्रेक्षा अलंकार है ।



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आशा है दोस्तों आपको यह टॉपिक अलंकारों में अंतर,alankaro me antar,शब्दालंकार और अर्थालंकार में अंतर,अनुप्रास और यमक अलंकार में अंतर,यमक और श्लेष अलंकार में अंतर,उपमा और रूपक अलंकार में अंतर,भ्रांतिमान और संदेह अलंकार में अंतर,उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार में अंतर,उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार में अंतर पढ़कर पसन्द आया होगा। इस टॉपिक से जुड़ी सारी समस्याएं आपकी खत्म हो गयी होगी।

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