अपसारी और अभिसारी चिंतन में अंतर || difference between divergent and convergent thinking

दोस्तों आज आपको मनोविज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पाठ अपसारी और अभिसारी चिंतन में अंतर की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

साथ ही साथ hindiamrit आपको चिंतन का अर्थ और परिभाषा,चिंतन के प्रकार,अपसारी चिंतन किसे कहते है,अभिसारी चिंतन क्या है, आदि की विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा।

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अपसारी और अभिसारी चिंतन में अंतर || difference between divergent and convergent thinking

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अपसारी चिंतन (divergent thinking)

इसके अंतर्गत व्यक्ति एक ही व्यवस्था का भिन्न भिन्न रुपों में चिंतन करता है।

दूसरे शब्दों में

इस चिंतन के माध्यम से व्यक्ति एक ही समस्या का समाधान भिन्न भिन्न विधियों से करने पर विचार करता है।

इसमें एक प्रकार की मस्तिष्क उद्वेलन की प्रक्रिया संपन्न होती है।

जिसके आधार में एक विषय पर अनेक विचार उत्पन्न किए जा सकते हैं।

अपसारी चिंतन को उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं।

जैसे

ईश्वर की प्राप्ति के विषय में यदि चिंतन किया जाए तो अनेक विचार हमारे सामने उपस्थित हो सकेंगे।

ईश्वर को दान से प्राप्त किया जा सकता। ईश्वर को भक्ति के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। ईश्वर को कर्म के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

इसी प्रकार के अनेक विषयों पर विविधता युक्त चिंतन या चुनौतियों का विभिन्न प्रकार से समाधान अपसारी चिंतन प्रक्रिया के अंतर्गत आता है।

अभिसारी चिंतन (convergent thinking)

इस प्रकार के चिंतन की प्रक्रिया में किसी भी विषय पर एकांगी चिंतन किया जाता है। जो कि उसके लिए आवश्यक होता है।

इस प्रकार के चिंतन में व्यक्ति किसी समस्या का समाधान श्रेष्ठ विचार या तरीके से करता है।

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अभिसारी चिंतन को हम निम्न उदाहरण के माध्यम से समझ सकते हैं।

जैसे

ईश्वर प्राप्ति के विषय में विचार करने के लिए व्यक्ति के सामने अनेक विकल्प होते हैं।

परंतु वह मानता है कि भक्ति सर्वश्रेष्ठ विकल्प है। जिसे ईश्वर की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार व अन्य विकल्पों को इसलिए छोड़ देता है। कि सभी विचार ईश्वर की प्राप्ति में सहायक है।

इसीलिए वह सर्वश्रेष्ठ उपाय भक्ति को अपने चिंतन का आधार बनाता है।

इस प्रकार अभिसारी चिंतन में किसी समस्या का समाधान किसी एक विचार, एक विधि, एक उपाय द्वारा संपन्न किया जाता है।

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