मूर्त और अमूर्त चिंतन में अंतर || difference between concrete and abstruct thinking

दोस्तों आज आपको मनोविज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पाठ मूर्त और अमूर्त चिंतन में अंतर की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

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मूर्त और अमूर्त चिंतन में अंतर || difference between concrete and abstruct thinking

सामान्य रूप से चिंतन की यह दोनों प्रक्रियाएं एक दूसरे से पृथक पृथक हैं। परंतु अनेक अर्थों में इनका वर्णन एक साथ किया जाता है। क्योंकि जब हम किसी मूर्त वस्तु को देखते हैं तभी उसके बारे में अमूर्त चिंतन करते हैं। जैसे जब हम महिला को बुर्का पहले देखते हैं। तो यह मानते हैं कि एक महिला हमारे सामने बुर्के में मुंह ढक कर जा रही है। इसके बाद आगे की चिंतन की प्रक्रिया अमूर्त चिंतन से संबंधित हो जाती है। जब हम यह जानने का प्रयास करते हैं। कि यह महिला क्यों अपना मुंह क्यों ढके हुए है? इस परंपरा के मूल में कौन से कारण हैं? यह परंपरा कब से भारतीय समाज में प्रारंभ है? वर्तमान समय में से क्या प्रासंगिकता है आदि।

मूर्त चिंतन किसे कहते हैं

मूर्त चिंतन (Concrete Thinking) वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति ठोस, प्रत्यक्ष और वास्तविक वस्तुओं, घटनाओं या स्थितियों के बारे में सोचता है। इसमें अमूर्त (Abstract) या सैद्धांतिक विचारों की तुलना में व्यावहारिक और वास्तविक चीजों पर ध्यान दिया जाता है।

मूर्त चिंतन के उदाहरण:

  1. प्रत्यक्ष वस्तुओं पर ध्यान – जब कोई बच्चा “सेब” शब्द सुनता है और तुरंत एक असली सेब की कल्पना करता है।
  2. नियमों का शाब्दिक पालन – यदि किसी को कहा जाए कि “बारिश में बाहर मत जाना,” तो वह इसे सीधे-सीधे मानेगा और कारणों पर विचार नहीं करेगा।
  3. प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित निर्णय – यदि कोई आग को छूकर जल जाता है, तो वह यह सीखता है कि आग खतरनाक होती है, बिना इसके पीछे के भौतिकी के सिद्धांत को समझे।
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मूर्त चिंतन की विशेषताएँ:

  • वास्तविक और ठोस चीजों पर ध्यान देना
  • कल्पना की बजाय प्रत्यक्ष अनुभव से सीखना
  • अमूर्त और जटिल विचारों को समझने में कठिनाई होना

मूर्त चिंतन बच्चों और कुछ विशेष मानसिक स्थितियों वाले लोगों में अधिक पाया जाता है, जबकि वयस्कों में अमूर्त चिंतन (Abstract Thinking) विकसित हो जाता है।

अमूर्त चिंतन किसे कहते हैं

वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति विचारों, अवधारणाओं और सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करता है, बजाय प्रत्यक्ष और ठोस वस्तुओं के। इसमें तर्क, कल्पना, प्रतीकों और गहरी सोच का समावेश होता है, जिससे व्यक्ति जटिल समस्याओं को हल कर सकता है और भविष्य की संभावनाओं के बारे में विचार कर सकता है।

अमूर्त चिंतन के उदाहरण:

  1. समानताओं और पैटर्न को पहचानना – यह समझना कि “ईमानदारी” सिर्फ एक गुण नहीं है बल्कि यह विभिन्न स्थितियों में अलग-अलग तरीकों से लागू हो सकता है।
  2. प्रतीकों का उपयोग – जैसे गणित में संख्याएँ वास्तविक वस्तुएँ नहीं हैं, लेकिन उनका उपयोग जटिल गणनाओं और सिद्धांतों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
  3. दर्शन और नैतिकता पर विचार – यह सोचना कि “न्याय” का क्या अर्थ है और अलग-अलग समाज इसे कैसे परिभाषित करते हैं।
  4. भविष्य की योजनाएँ बनाना – कल्पना करना कि अगले 10 वर्षों में जीवन कैसा होगा और उसके अनुसार निर्णय लेना।

अमूर्त चिंतन की विशेषताएँ:

  • जटिल और सैद्धांतिक अवधारणाओं को समझना
  • प्रतीकों, भाषा और रूपकों का उपयोग करना
  • समस्या-समाधान और तर्कशीलता में सक्षम होना
  • नए विचारों और संभावनाओं की कल्पना करना

अमूर्त चिंतन अक्सर वयस्कों और उच्च संज्ञानात्मक कौशल वाले व्यक्तियों में अधिक विकसित होता है, जबकि छोटे बच्चों और मूर्त चिंतन करने वाले लोगों के लिए यह कठिन हो सकता है।

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मूर्त एवं अमूर्त चिंतन के मध्य विशेषताओं एवं अंतर को निम्नलिखित रुप से स्पष्ट किया जा सकता है–

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मूर्त चिंतन
(Concreate thinking)
अमूर्त चिंतन
(Abstruct thinking)
इसका संबंध किसी वस्तु के बाहरी आवरण तक भाग से होता है। तथा उसके स्वरूप एवं आकार के ज्ञान को प्रकट करता है।इसका संबंध वस्तु के भीतरी सीमित होता है। जो कि वस्तु के मूल कारण एवं मूल तत्वों से संबंधित होता है।
इसमें किसी वस्तु की ऊपरी सतह के बारे में विचार किया जाता है। इसमें किसी भी वस्तु की भीतरी सतह के बारे में पूर्ण रूप से विचार किया जाता है।
यह केवल वस्तुओं के तथ्यों तक सीमित रह जाता है।
जैसे महात्मामा गांधी के चित्र को समझकर विचार करना।
वस्तुओं के तथ्यों के अंदर तक या कार्यरत हैं।जैसे– महात्मा गांधी के चित्र को देखकर उनके गुणों तथा कार्य व्यवहार के बारे में विचार करना।
इसमें किसी वस्तु के आकार एवं प्रकार के बारे में विचार किया जाता है।यह आकार प्रकार के निर्माण की प्रक्रिया के बारे में विचार करता है।
इसकी प्रक्रिया मूर्त वस्तुओं एवं मूर्त विचारों से संबंधित होती हैं। इसका संबंध चित्र वर्णन से नहीं होता वरन वह चित्र के मूल उद्देश्य एवं उसके निर्माण के कारणों से होता है।
इसका संबंध भौतिक जगत से होता है। मानसिक जगत से होता है।
इसके द्वारा वस्तु के आकार एवं प्रकार से अलग विचार नहीं किया जा सकता है।यह चिंतन वस्तु के आकार प्रकार के अतिरिक्त विषयों पर विचार करता है।
इसका क्षेत्र सीमित होता है। इसका क्षेत्र असीमित होता है।
यह चिंतन दृश्य जगत एवं दृश्य वस्तुओं से संबंधित होता है।यह चिंतन विचारों से संबंधित होता है।

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