भारत में आतंकवाद पर निबंध | आतंकवाद एक समस्या पर निबंध | terrorism in india essay in hindi

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  भारत में आतंकवाद पर निबंध | आतंकवाद एक समस्या पर निबंध | terrorism in india essay in hindi प्रस्तुत करता है।

Contents

भारत में आतंकवाद पर निबंध | आतंकवाद एक समस्या पर निबंध | terrorism in india essay in hindi

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) आतंकवाद को समाप्त करने के उपाय पर निबंध
(2) भारत में आतंकवाद : कारण और उपचार पर निबंध
(3) आतंकवाद एक चुनौती पर निबंध
(4) विश्व शांति और आतंकवाद पर निबंध

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भारत में आतंकवाद पर निबंध | आतंकवाद एक समस्या पर निबंध | terrorism in india essay in hindi

पहले जान लेते है भारत में आतंकवाद पर निबंध | आतंकवाद एक समस्या पर निबंध | terrorism in india essay in hindi की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना
(2) आतंकवाद का अर्थ
(3) विश्व में फैली हिंसा की प्रवृत्ति एवं आतंकवाद
(4) भारत में आतंकवाद
(5) आतंकवाद के विविध रूप
(6) आतंकवाद को समाप्त करने के उपाय
(7) उपसंहार


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भारत में आतंकवाद पर निबंध | आतंकवाद एक समस्या पर निबंध | terrorism in india essay in hindi

प्रस्तावना

आतंकवाद समाज में जीने का नकारात्मक साधन है । इसमें मनुष्य दूसरों को आतंकित कर अपने निजी स्वार्थों को पूर्ण करता है।

यह जीवन जीने का हिंसात्मक साधन है जिसमें आतंकवादी निष्क्रिय रहकर सुख प्राप्त करना चाहता है। आतंक सामाजिक प्रदूषण है जिसे अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए आतंकवादी अपनाकर समाज का शोषण करता है।

वह समाज को भययूक्त बनाता है। हिंसात्मक साधन अपनाता है और सुखी बनने की कुचेष्टा करता है। आतंकवाद के सामने नीति-अनीति, न्याय-अन्याय, ऊँच-नीच, अच्छा-बुरा कुछ भी नहीं होता वहाँ तो केवल भय का राज होता है, डर का दबाव होता है एवं आत्तंक की ही प्रभुता होती है।


“आतंकवाद समस्या जग की, इस को हल करना होगा ।
बढ़ते इस भयप्रद राक्षस को हमें मिटाना ही होगा।
जन-जन प्रगति विरोधी इसके, बारे में मिलकर सोचे।
निज पौरुष प्रतिभा सम्बल से, जग को हम इससे मोचें॥




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आतंकवाद का अर्थ

आतंकवाद क्या है? क्यों पैदा हुआ? कहाँ पैदा हुआ? ये बिचारणीय प्रश्न हैं।

आज आतंकवाद एक विचारधारा के रूप में उभर पड़ा है। इसमें कुछ सिरफिरे लोकतन्त्र विरोधी नौति अपनाकर अपने राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति हेतु शक्ति का प्रयोग करने लगते हैं।

ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसी विचारधारा के लोगों में मन एवं मस्तिष्क काम नहीं करता। वे एक भावना अथवा कामना से ग्रस्त हो जाते हैं।

भले ही यह सब पैसे के अभाव में पेट के लिए ही क्यों न हो, यह भय एवं आतंक पहले सीमित क्षेत्र में कार्य करता है फिर इसका क्षेत्र बढ़ता जाता है और राज्य तथा केनद्रीय सरकार तक को अपने दबाव में लेने के निन्दय एवं घृणित प्रयत्न किये जाते हैं।

आतंकवाद अन्याय, भय एवं आतंक पर आधारित है। इसमें अमानवीय साधनों से पहले अनृचित माँगें पूर्ण कराई जाती हैं फिर मानव समाज को अपने प्रभाव में लेकर शासन एवं प्रशासन तन्त्र पर धावा बोला जाता है और धोरे-धीर आतंक का वातावरण बनाकर सरकारों तक को कठपुतली बनाने का कूत्सित प्रयास किया जाता है।

आतंकवाद का कानून हिंसा, मारकाट तथा आगजनी बन जाता है। जंगलराज आतंकवाद के कारण ही पनपता है। सौ गुण्डों के बीच एक भला आदमी पिसता है।

आगजनी, बलात्कार तथा तिरस्कारों के कुनालों से बचने के लिए बह या तो स्थान छोड़े अथवा वैसा ही कुकुत्यमय गरिखधन्धा करे।

जब एक से अनेक लोग आतंक का सहारा ले लेते हैं तो वह आतंकवादियों का जत्था समूह, दल, समूदाय एवं सम्प्रदाय बन जाता है जो अपने को सही मानते हैं और दूसरे सभी को गलत ।

परसम्पदा हरण, जाली नोट चलाना, नशीले पदार्थों की तस्करी, बैंक डकैती, अपहरण, बलात्कार, विनाशकारी कार्य करना ही तो आतंकवादियों के कर्म हैं।






विश्व में फैली हिंसा की प्रवृत्ति एवं आतंकवाद

पूरा विश्व आज आतंकवाद से ग्रसित है। राजनीति घृणित स्वार्थ पूर्ति हेतु अपहरण, सार्वजनिक विनाशमयी हिंसा एवं हत्याओं का मार्ग अपनाते हुए अपनी स्वार्थमयी भौतिक इच्छाएँ पूर्ण करते हैं ।

वैसे आतंकवाद लक्ष्मी के दौषों में से एक दोष है। यह प्रवृत्ति भूखे तथा सम्पन्न दोनों ही प्रकार के देशों में पनप रही है।

जॉन एफ० केनेडी, प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी की हत्याएँ तथा अमेरिका के हवाई जहाज बम विस्फोट, भारतीय हवाई जहाज का अपहरण आदि अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी घटनाएँ ही मानी जायेंगी।




हमारे देश में बढ़ता आतंकवाद

आतंकवाद की आग विगत 20-25 वर्ष से धीरे-धीरे सुलगती हुई
पंजाब, बिहार, असभ, बंगाल, जम्मू-कश्मीर तक पहुंच चुकी है। इसकी चिनगारियोँ कभी-कभी उत्तर प्रदेश एवं गुजरात तक पहुँच जाती हैं।

आतंकवाद से कोई नहीं बचा है चाहे बह न्यायाधीश हो अथवा पुलिस अधिकारी, नेता हो या अभिनेता, वकील हो या अध्यापके, पत्रकार हो अयवा सम्पादक। अब तो सुना है आतंकवादियों के प्रशिक्षण केन्द्र भी चलने लगे हैं निदोषों की हत्या भेड़-बकरियों की भाँति होने लगी है।

कही आतंकवादी वायुरयान का अपहरण कैरके निरीह पात्रियों को समाप्त करतें हैं तो कहीं मन्दिर- मस्जिद तथा गुरुद्वारो पर बम पटककर र्थ पराय जनता को मीत के घाट उतार देते है। कश्मीरी पण्डिती की हत्या के समाचार किसी से छिपे नहीं हैं।

पुलिसकर्मी जगह-जगह आतंकवादियों के हाथों भारे जा रहे हैं। चाहे रेल हो अथवा बस, बायुयान हो अथवा हेलीकॉप्टर कुटिया हो या राजभवन, सामान्य अदालत हो अथवा संसद भवन
सुरक्षा कही नहीं है। कहीं-कहीं सुरक्षाकर्मी ही आतंक के कलंक बनते देखे गये हैं।

कहीं- कहीं सुरक्षाकर्मियों पर ही आतंक की तलबार लटकी रहती है। खेत-खलिहान, ग्राम-नगर, उद्योग नगर हों अथवा महानगर, सुरक्षा कहीं नहीं है। आतंकवाद सब जगह पहुँच चुका है। देश का तो राम ही रखवाला है।




आतंकवाद के विविध रूप

आतंकवाद विनाश को प्रभु बन चुका है। यह विनाश हमारे देश में ही नहीं, विदेशो में भी हो रहा है। बम विस्फोट कहाँ हो जाये, कब हो जाये कहा नहीं जा सकता। आतंकवादियों ने हमारे देश को तो विनाश के कगार पर ही रख दिया है।

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चाहे फिल्म नगरी मुम्बई हो या शान्ति का गुलावी नगर जयपुर, कहीं भी कब क्या हो जाये पता नहीं। दिल्ली तो राजधानी है, यहाँ ऐतिहासिक इमारते एवं बसों में दौड़ती जनता कैसे जी रही है, नहीं कहा जा सकता।

ताज को लेकर भयभीत खड़ा आगरा भी सिसकता दिखाई देता है, ऐसा क्यों? आज अनेक आतंकवादी संस्थाएँ देश-विदेश में जन्म ले सुकी हैं। ये संस्थाएँ कुकर्म करके फिर अपने ऊपर इस कुकुत्य के सम्पादन का उत्तरदायित्व ग्रहण कर विश्व के मुख पर चाँटा मारती है।

वह भी मामूली-सा नहीं, अभूतपूर्व झापड़। कोई मुजाहिद कौमी मूवमेण्ट है तो कोई लिबरेशन फ्रण्ट कहीं नक्सलवाद है तो कहीं माओवाद। हरकत-उल-जिहादी इस्लामी (हजी) बांग्लादेश में पनप रही है, अफगानिस्तान आतंकवाद की नर्सरी बन चुका है। फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन, जे०के०एल०एफ०, आइरिश रिपब्निकन आर्मी तथा अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस आदि सशस्त्र उग्रवादी संगठन हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि आतंकवाद की घृणित प्रवृत्ति दिनोदिन बढ़ रही है। उसके अनेक रूप देश-विदेश में विकसित हो रहे हैं, फल-फूल रहे हैं। इस मानव समाज में फैली विषवेल का आमूलोच्छेदन करने के अतिरिक्त बचाव का अन्य कोई चारा नहीं है। यदि समय रहते इसका मूलोच्छेद नहीं हुआ तो यह मानव समाज एवं मानवता को चूसकर सुरखा देगी।





आतंकवाद को हल करने के उपाय

आतंकवाद को स्वरूप, उद्देश्य एवं भौगोलिक क्षेत्र न देखकर इसे
मिटाने के समृचित उपाय करने चाहिए। भारत सरकार ने वैसे तो संसद पर हुए आतंकवादी हमले के बाद इस समस्या को अति गम्भीरता से लिया है, फिर भी सरकार उतनी सक्रिय नहीं जितनी होनी चाहिए।

वैसे सरकार चिन्तित अधिक है, शासन चलाने की पद्धतियाँ शांसन चलाने वाले जाने, फिर भी शासन चलाने का प्रथम एवं आवश्यक सूत्र है उचित एवं कठोर न्याय । न्याय प्रक्रिया आज की नहीं, यह अंग्रेजों के समय की है। इसे नवीनतम रूप देना होगा।

अर्थदण्ड सामान्य न होकर विशेष हो, शारीरिक दण्ड भी आवश्यक है। मनोवैज्ञानिक रूप से भी आतंकवादियों की मानसिक विकृतियों को दूर करने का प्रयास किया जाये।

यद्यपि सरकार ने आतंकवाद विरोधी विधेयक पारित कर लिया है फिर भी आतंकवाद नहीं रुक रहा है, ऐसा क्यों? इस पर चिन्तन के साथ- साथ कठारतम दण्ड जैसे उपाय आवश्यक हैं। सरकार आतंकवाद की समस्या को हल करने में जनता का विश्वास
जीते। सिरफिरे एवं गुमराह युवको के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करने के लिए उन्हें सुस्थापित किया जाये।

किसी भी प्रकार के आरक्षण से ऊपर उठकर उन्हें पेट की भुख शान्त करने के लिए नौकरी दी जाये जिससे भूखे भड़ियाई न करें। जब ऐसे युवक कार्य करने में लग जायेंगे और सही जीवन यापन करते हुए आजीविका के सत्पथ पर चलेंगे तो आतंक की बात तक नहीं सोच पायेंगे।

ऐसे युवकों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है। आधुनिक जीवन जीने की कलाओं से परिचित कराते हुए उन्हें सभ्यता के आसन पर बैठाना है, जो पवक आतंकवादी हैं, उनका सही-सही गोपनीय तरीके से पता लगाकर दण्डित करें ।

दण्ड की अत्याध्रनिक शैलियाँ अपनाई जायें। न्याय प्रक्रिया तो द्रौपदी के जीरवत् है। इसकी मन्दगति में द्वतता लाएँ। ऐसे व्यक्तियों के लिए विशेष न्यायालय हों जो एक माह में न्यायिक प्रक्रिया पूर्ण कर यथोचित निर्णय करे। न्याय में विलम्ब अन्याय, अत्याचार एवं भ्रष्टाचार को बढ़ाता है।

आतंकवादियों के वित्त-पोषण को रोका जाये। आतंकवाद मिटाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जायें। केवल देशों द्वारा आतंकवाद की मात्र निन्दा से काम नहीं चलेगा! सभी देश एकमत होकर आतंकवाद मिटाने का संकल्प लें ।

जिन देशों में आतंकवाद पल रहा है, वे राष्ट्रहित में आतंकवाद के विषधर को मिटायें । इसे मिटाने हेतु विशव के सभी देश आपस में सच्चे हृदय से एक-दूसरे देश की सहायता करें। आतंकवादी गुटों को समाप्त करके सभी देश मानवता के कल्याण में भागीदार बनें। आतंकवादियों को शरण न दें।

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आतंकवादी किसी भी देश का हो, वह मानवता का शत्रु है, ऐसा माने और इस पर घोर आचरण करने के लिए प्रत्येक देश सच्चा सहभागी बने। आतंकवादियों को आर्थिक मदद देना बन्द करें।





उपसंहार

आतंकवाद मानवता का विनाशक है, फिर भी हम इसे पनपते हुए देखकर भी मूकदर्शक बने हुए हैं।

प्रत्येक देश की सरकार को स्वार्थ भाव से ऊपर उठकर मानवता की रक्षा करने के लिए आतंकवाद के बिनाश के विषय में कृत संकल्प होना चाहिए। हिंसा एवं आतंकवाद एकता विरोधी हैं तथा अलगाववाद के पोषक हैं अतः इनसे दूर रहना है तथा गौतम, गांधी, नेहरू के अमर सिद्धान्तों पर चलना है।

ईसा, मुहम्मद साहब, महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, राम, कृष्ण आदि कोई भी ईश्वर का रूप हिंसा एवं आतंकवाद की चर्चा नहीं करता फिर हिंसा एवं आतंकवाद का विस्तार क्यों? इसे तो निश्चयपूर्वक मिटाना ही हीगा।

मानव मात्र को भी यह संकल्प लेना होगा कि हम सूर, कबीर, नानक, मीराबाई के बताये सत्पथ पर चलें, मानवता को निर्भय एवं निडर बनायें, अपना कल्याण करें और साथ ही औरों का भी कल्याण करें। त्याग, सेवा, परोपकार का मार्ग ही सत्पथ है अतः सत्कर्म करते हुए इस पर चलें और औरों को भी चलायें ।

साथ ही प्रतिज्ञा करें-

“हिंसा द्रःख दरिंद्रता जननी इससे हम सब दूर रहें।
आतंकवाद आतंकी को भी कभी न अपना मीत कहें ॥
आतंकवाद का कंस मिटाने, हमीं कृष्ण का रूप धरें।
सज्जता जीवन शैली पर चलें ‘सन्त’ सत्कर्म करें। ॥”

इस प्रकार आतंकवाद का समूल नाश ही आज की विशेष आवश्यकता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति का सहारा प्राप्त है। इस दुरन्त समस्या से हमें स्वयं लड़कर मुक्ति प्राप्त करनी होगी तथा देश को शान्त, समृद्ध एवं सुरक्षित बनाना होगा।


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