दोस्तों विज्ञान की श्रृंखला में आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक संघ ऐनेलिडा : सामान्य लक्षण एवं इसके प्रमुख जंतु / information of annelida phylum in hindi है। हम आशा करते हैं कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपकी इस टॉपिक से जुड़ी सभी समस्याएं खत्म हो जाएगी ।
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संघ ऐनेलिडा : सामान्य लक्षण एवं इसके प्रमुख जंतु
information of annelida phylum in hindi
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संघ-ऐनेलिडा Phylum Annelida
\(Annelus-वलय या छल्ले; eidas-रूप) /
ऐनेलिडा का शाब्दिक अर्थ ‘सूक्ष्म वलयकृमि’ (Small ringworms) है अर्थात् (इस संघ के जीवों के शरीर पर सूक्ष्म वलय (Small rings) पाई जाती हैं। लैमार्क (Lamarck) ने सर्वप्रथम ‘ऐनेलिडा’ शब्द का प्रयोग किया।
ऐनेलिडा संघ के सामान्य लक्षण General Characteristics of annelida in hindi
(i) ये प्रायः बिलकारी, बेलनाकार, द्विपार्श्व सममित, त्रिस्तरीय (Triploblastic) व रेंगने वाले जन्तु हैं।
(ii) इनमें वास्तविक देहगुहा (Coelom) व वास्तविक विखण्डीभवन
(Metameric segmentation) पाया जाता है।
(iii) इनमें विखण्डन के कारण पूरे शरीर पर वलयाकार खण्ड (Segments) बन जाते हैं।
(iv) इनमें अंगतन्त्र स्तर (Organ level) का शारीरिक संगठन तथा अनुलम्ब व वर्तुल पेशियाँ पाई जाती हैं।
(v) इनका शरीर अधिचर्म से ढ़का व देहगुहा संकुचनशील होती है।
(vi) इनमें मुँह से लेकर गुहा तक सीधी आहारनाल पाई जाती है।
(vii) इनका गमन पैरापोडिया (Parapodia), सीटा (Seta), चूषक (Suckers) व पेशियों द्वारा होता है।
(viii) इनका श्वसन त्वचा या क्लोमों द्वारा होता है।
(ix) रुधिर परिसंचरण बन्द प्रकार का होता है अर्थात् रुधिर वाहिनियाँ व हृदय जैसा अंग पाया जाता है तथा रुधिर में हीमोग्लोबिन नामक श्वसन रंगा पाई जाती है।
(x) इनमें उत्सर्जन वृक्क (Nephridia) द्वारा होता है।
(xi) इनमें तन्त्रिका तन्त्र विकसित होता है, जिसमें तन्त्रिका वलय व प्रतिपृष्ठ तल पर दो तन्त्रिका रज्जु (Nerve cord) उपस्थित होती हैं।
(xii) ये एकलिंगी या द्विलिंगी हो सकते हैं तथा परिवर्धन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है।
(xiii) इनमें अप्रत्यक्ष अवस्था में ट्रोकोफोर (Trochophore) लार्वा अवस्था पाई जाती है; उदाहरण+केंचुआ, जोंक, नेरीस (रेतकृति), आदि।
ऐनेलिडा संघ के मुख्य सदस्य / ऐनेलिडा संघ के मुख्य जीव
केंचुआ Pheretima posthuma
यह 15-20 सेमी लम्बा, भूरा-सा खण्डयुक्त,बेलनाकार बिल बनाकर रहने वाला प्राणी है। केंचुए में खण्डों की संख्या लगभग 100-120 तक होती है। इसके शरीर के 14वें, 16वें, 16वें खण्डों पर ग्रन्थिल कोशिकाओं की बनी क्लाइटेलम (Clitellum) नामक मोटी परत होती है। गमन हेतु सीटी (Setae) पाई जाती है। चूँकि यह भूमि में सुरंग बनाकर उसे खोखला करके पौधों को उचित वायु प्रदान कराता है, जिससे मिट्टी उपजाऊ बन जाती है। इसलिए केंचुए को किसानों का मित्र भी कहते हैं।
जोंक Hirudinaria medicinalis
यह रुधिर चूषक बाह्य परजीवी (Ectoparasite) है। यह नमीयुक्त स्थानों पर पाई जाती है। इसका शरीर बेलनाकार, पुच्छ भाग से चौड़ा व 12-30 सेमी तक हो सकता है। अग्रसिरे पर छोटा प्यालेनुमा व पश्चसिरे पर बड़ा तश्तरीनुमा चूषक पाया जाता है। इसके शरीर में
33 खण्ड विद्यमान होते हैं। यह द्विलिंगी होता है। यह प्राकृतिक चिकित्सा में भी प्रयुक्त होता है।
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