समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com आपको निबंध की श्रृंखला में पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध | environment pollution essay in hindi पर निबंध प्रस्तुत करता है।
Contents
पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध | environment pollution essay in hindi
इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम
(1) पर्यावरण प्रदूषण : कारण और निवारण पर निबंध
(2) पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और उसका समाधान पर निबंध
(3) प्रदूषण और पर्यावरण पर निबंध
(4) असंतुलित पर्यावरण पर निबंध
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पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध | environment pollution essay in hindi
पहले जान लेते है पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध | environment pollution essay in hindi पर निबंध की रूपरेखा ।
निबंध की रूपरेखा
(1) प्रस्तावना
(2) पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते हैं
(3) पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार
(क) वायु प्रदूषण (ख) जल प्रदूषण (ग) रेडियोधर्मी प्रदूषण
(घ) मृदा प्रदूषण (ङ) ध्वनि प्रदूषण (च) रासायनिक प्रदूषण
(4) प्रदूषण पर नियंत्रण के किये गए उपाय
(5) प्रदूषण नियंत्रण में हमारी भूमिका
(6) उपसंहार
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पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध | environment pollution essay in hindi
प्रस्तावना
प्रदूषण वायु, जल एवं स्थल की भौतिक तथा रासायनिक विशेषताओं का वह अवांछनीय परिवर्तन है जो मनुष्य और उसके लिए लाभदायक दूसरे जन्तुओं, पौधों, औद्योगिक संस्थाओं तथा दूसरे कच्चे माल इत्यादि को किसी भी रूप में हानि पहुँचाता है।
तात्पर्य यह है कि जीवधारी अपने विकास, बुद्धि और व्यवस्थित जीवन-क्रम के लिए सन्तुलित वातावरण पर निर्भर करते हैं किन्तु कभी-कभी वातावरण में अथवा अनेक घटकों की मात्रा कम अथवा अधिक हो जाया करती है या वातावरण में कुछ हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है। परिणामतः वातावरण दूषित हो जाता है ।
पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते हैं
स्वच्छ वातावरण में ही जीवन का विकास सम्भव है । पर्यावरण का निर्माण प्रकृति के द्वारा किया गया है।
प्रकृति द्वारा प्रदत्त पर्यावरण जीवधारियों के अनुकूल होता है। जब इस पर्यावरण में किन्हीं तत्त्वों का अनुपात इस रूप में बदलने लगता है, जिसका जीवधारियों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना होती है तब इसे पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं।
यह प्रदूषित वातावरण जीवधारियों के लिए अनेक प्रकार से हानिकारक होता है।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार
प्रदूषण की समस्या का जन्म जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ हुआ है। विकासशील देशों में वायु और पृथ्वी भी प्रदूषण से ग्रस्त हो रही है । भारत जैसे देशों में तो घरेलू कचरे और गन्दे जल को बहाने का प्रश्न भी एक विकराल रूप धारण करता जा रहा है।
1. वायु-प्रदूषण
वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसे एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। श्रवांस द्वारा हम ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते रहते हैं ।
हरे पीधे प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन निष्कासित करते रहते हैं। इससे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का सन्तुलन बना रहता है।
मनुष्य अपनी आवश्यकता के लिए बनों को काटता है, परिणामतः वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है।
मिलों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ के कारण वातावरण में विभिन्न प्रकार की हानिकारक गैसें बढ़ती जा रही हैं।
औद्योगिक चिमनियों से निष्कासित सल्फर डाइऑक्साइड गैस का प्रदूषकों में प्रमुख स्थान है । इसके प्रभाव से पत्तियों के किनारे और नसों के मध्य का भाग सूख जाता है।
वायु प्रदूषण मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे श्वसन सम्बन्धी बहुत-से रोग हो जाते है । इनमें फेफड़ों का कैंसर, दमा और फेफड़ों से सम्बन्धित दूसरे रोग सम्मिलित है ।
2. जल-प्रदूषण
सभी जीवधारियों के लिए जल बहुत महत्त्वपूर्ण त्त्व है। जल में अनेक प्रकार के खनिज तत्त्व, कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसे घूली रहती हैं ।
यदि जल में ये पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाते हैं जो साधारणतया जल में उपस्थित नहीं होते हैं तो जल प्रदूषित होकर हानिकारक हो जाता है और प्रदूषित जल कहलाता है।
3. रेडियोधर्मी-प्रदूषण
परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों और परमाणविक परीक्षणों से जल, वायु तथा तथा पृथ्वी का प्रदूषण होता है जो आज की पीढ़ी के लिए ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक सिद्ध होगा।
विस्फोट के स्थान पर तापक्रम इतना अधिक हो जाता है कि धातु तक पिघल जाती है।
एक विस्फोट के समय रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल की बाह्य परतों में प्रवेश कर जाते हैं, जहाँ पर ये ठण्डे होकर संघनित अवस्था में बूँदों का रूप ले लेते हैं और बाद में ठोक्त अवस्था में बहुत छोटे-छोटे धूल के कणों के रूप में वायु में फैलते रहते हैं और वायु के झोंको के साथ समस्त संसार में फैल जाते हैं।
द्वितीय महायुद्ध में नागासाकी तथा हिरोशिमा में हुए परमाणु बम के विस्फोट से अनेक मनुष्य अपंग हो गये थे। इतना ही नहीं, जापान की भावी सन्तति भी अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो गयी।
4. ध्वनि-प्रदूषण
अनेक प्रकार के वाहन, मोटरकार, बस, जेट विमान, ट्रैक्टर आदि तथा लाउडस्पीकर, बाजे एवं कारखानों के सायरन, मशीनों की आवाज से ध्वनि प्रदूषण होता है।
ध्वनि की लहरें जीवधारियों की क्रियाओं पर प्रभाव डालती हैं।
अधिक तेज ध्वनि से मनुष्य की सुनने की शक्ति में कमी होती है, उसे नींद ठीक प्रकार से नहीं आती है और नाड़ी संस्थान सम्बन्धी एवं अनिद्रा का रोग उत्पन्न हो जाता है, यहाँ तक
कि कभी-कभी पागलपन का रोग भी उत्पन्न हो जाता है ।
कुछ ध्वनियाँ छोटे-छोटे कीटाणुओं को नष्ट कर देती है, परिणामतः अनेक पदार्थों का प्राकृतिक रूप से परिपोषण नहीं हो पाता है।
5. रासायनिक-प्रदूषण
प्रायः कृषक अधिक पैदावार के लिए कीटनाशक, घासनाशक और रोगनाशक दवाइयों तथा रसायनों का प्रयोग करते हैं। इनका स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
आधुनिक पेस्टीसाइडों का अन्धाधुन्ध प्रयोग भी लाभ के स्थान पर हानि पहुँचा रहा है।
जब ये वर्षा के जल के साथ बहकर नदियों द्वारा सागर में पहुँच जाते हैं तो वहाँ पर रहने वाले जीवों गर ये घातक प्रभाव डालते हैं। इतना ही नहीं, मानव देह भी इनसे प्रभावित होती है।
प्रदूषण पर नियन्त्रण
पर्यावरण को प्रदूषित होने से रोकने तथा उनके समुचित संरक्षण के प्रति गत वर्षों से समस्त विश्व में चेतना आयी है।
आधुनिक युग के आगमन व औद्योगीकरण से पूर्व यह समस्या
कुछ इतनी गम्भीर कभी नहीं हुई थी, और न इस परिस्थिति की ओर वैज्ञानिकों तथा अन्य लोगों का इतना ध्यान ही गया था।
औद्योगीकरण और जनसंख्या की वृद्धि ने संसार के सामने प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न कर दी है। प्रदूषण को रोकने के लिए व्यक्तिगत और सरकारी, द नों ही स्तरों पर पूरा प्रयास आवश्यक है।
जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण के लिए भारत सरकार ने सन् 1974 के ‘जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम लागू किया तथा इस कार्य हेतु बोर्ड बनाये। इन बोर्डो ने प्रदूषण के नियन्त्रण की अनेक योजनाएँ तैयार की हैं।
औद्योगिक कचरे के लिए भी मानक तैयार बिये गये हैं। उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए भारत जरकार ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय यह लिया है कि नये उद्योगों को लाइसेंस दिये जाने से पूर्व उन्हें औद्योगिक कचरे के निवारण की समुचित व्यवस्था करनी होगी और इसकी पर्यावरण विशेषज्ञों से स्वीकृति प्राप्त करनी होगी।
वनों की अनियन्त्रित कटाई को रोकने के लिए भी कठोर नियम बनाये गये हैं। इस बात के प्रयास किये जा रहे हैं कि नये वनक्षेत्र बनाये जाएँ और जन-सामान्य को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाये।
इस प्रकार स्पष्ट है कि सरकार प्रदूषण की रोकथाम के लिए पर्याप्त सजग है । पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर ही हम आने वाले समय में और अधिक अच्छा और स्वास्थ्यप्रद जीवन जी सकेंगे और आने वाली पीढ़ी को प्रदूषण के अभिशाप से मुक्ति दिला सकेंगे।
उपसंहार
पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण को रोकने व उसके समुचित संरक्षण के लिए समस्त विश्व में एक नयी चेतना उत्पन्न हुई है।
हम सभी का उत्तरदायित्व है कि चारों ओर बढ़ते इस प्रदूषित वातावरण के खतरों के प्रति सचेत हों तथा पूर्ण मनोयोग से सम्पूर्ण परिवेश को स्वच्छ व सुन्दर बनाने का यत्न करें।
वृक्षारोपण का कार्यक्रम सरकारी स्तर पर जोर-शोर से चलाया जा रहा है।
हमें भी अपने ढंग से पर्ययावरण प्रदूषण को खत्म करने वाले कार्यक्रमों में सक्रिय सहयोग दे और यह संकल्प ले कि जीवन में आने वाले प्रत्येक शुभ अवसर पर कम-से-कम एक वृक्ष अवश्य लगाएगी तो निश्चित ही हम प्रदूषण के दुष्परिणामों से बच सकेंगे और आने वाली पीढ़ी को भी इसकी काली छाया से बचाने में समर्थ हो सकेंगे।
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