निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण में अंतर / difference between inspection and supervision in hindi

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निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण में अंतर / difference between inspection and supervision in hindi

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निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण की तुलना
Comparision between Inspection and Supervision

परम्परागत निरीक्षण एवं वर्तमान पर्यवेक्षण की तुलना हम निम्नलिखित प्रकार कर सकते हैं-

(1) परम्परागत निरीक्षण का क्षेत्र अत्यन्त सीमित है। इसके अन्तर्गत केवल कक्षा- सम्बन्धी गतिविधियाँ ही आती हैं, परन्तु वर्तमान पर्यवेक्षण का क्षेत्र बहुत व्यापक है।

(2) परम्परागत निरीक्षण केवल निरीक्षण कार्य तक ही सीमित है, जबकि वर्तमान पर्यवेक्षण अध्ययन तथा विश्लेषण पर भी बल देता है।

(3) परम्परागत निरीक्षण विद्यालय में प्रचलित स्थितियों की जाँच तथा विद्यालय व्यवस्था की कमियों को बताने तक सीमित है, उनको दूर करने के लिये उत्तरदायी नहीं है। वर्तमान पर्यवेक्षण सम्पूर्ण विद्यालय-व्यवस्था, उसके संचालन तथा प्रतिदिन उत्पन्न होने वाली समस्याओं के समाधान आदि से सम्बन्धित है।

(4) परम्परागत निरीक्षण अल्पकालिक होता है, जबकि पर्यवेक्षण दिन-प्रतिदिन के कार्यों की देखभाल से सम्बद्ध व्यक्तियों की कुशलता के विकास से सम्बन्धित है।

(5) परम्परागत निरीक्षण में निरीक्षकों
की दृष्टि केवल अध्यापकों तक ही रहती है, वर्तमान पर्यवेक्षण में शिक्षा के उद्देश्यों, विधियों,अध्यापकों, बालकों तथा समाज के वातावरण आदि समस्त पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है।

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(6) परम्परागत निरीक्षण विधि अधिकारिक है, जबकि पर्यवेक्षण लोकतन्त्रीय, सहयोगी एवं प्रेम की भावना से पूर्ण होता है।

(7) परम्परागत निरीक्षण में निरीक्षक अपने अधीनस्थों को सहायता देने की अपेक्षा उनकी त्रुटियों की ओर संकेत करता है एवं अपने आदेशों का पालन करवाता है परन्तु पर्यवेक्षक सहर्ष एवं सहानुभूतिपूर्ण ढंग से अपने साथियों को सहायता देता है।

(8) परम्परागत निरीक्षण अव्यवस्थित एवं अनियोजित होता है परन्तु पर्यवेक्षण, सहयोग की के लिये प्रेरित नहीं करता, वरन् बाध्य करता है। पर्यवेक्षण सृजनात्मक नेतृत्व पर आधारित है। भावना पर आधारित होने के कारण सुव्यवस्थित तथा सुनियोजित होता है।

(9) प्रचलित निरीक्षण औपचारिक (Formal) एवं अस्वभाविक है। पर्यवेक्षण अनौपचारिक इसकी माँग उत्पन्न होती है।

(10) परम्परागत निरीक्षण में अध्यापन-क्षमताओं का विकास दो तथ्यों पर आधारित होता है- (i) कक्षा-निरीक्षण । (ii) अध्यापकों की बैठकें परन्तु वर्तमान पर्यवेक्षण में अध्यापन- क्षमताओं का विकास निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित होता है- (i) पाठ अवलोकन। (ii) विचारगोष्ठियाँ। (ii) सहायक शिक्षण सामग्री। (iv) शिक्षण में विविध प्रकार के नवीन प्रयोग। (v) सम्मेलन।




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