महावर्ग चतुष्पादा या टेट्रापोडा : सामान्य लक्षण एवं इसके प्रमुख जंतु / वर्ग : उभयचर , सरीसृप , पक्षी और स्तनधारी

दोस्तों विज्ञान की श्रृंखला में आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक महावर्ग चतुष्पादा या टेट्रापोडा : सामान्य लक्षण एवं इसके प्रमुख जंतु / वर्ग : उभयचर , सरीसृप , पक्षी और स्तनधारी है। हम आशा करते हैं कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपकी इस टॉपिक से जुड़ी सभी समस्याएं खत्म हो जाएगी ।

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महावर्ग चतुष्पादा या टेट्रापोडा : सामान्य लक्षण एवं इसके प्रमुख जंतु / वर्ग : उभयचर , सरीसृप , पक्षी और स्तनधारी

महावर्ग चतुष्पादा या टेट्रापोडा : सामान्य लक्षण एवं इसके प्रमुख जंतु / वर्ग : उभयचर , सरीसृप , पक्षी और स्तनधारी
महावर्ग चतुष्पादा या टेट्रापोडा : सामान्य लक्षण एवं इसके प्रमुख जंतु / वर्ग : उभयचर , सरीसृप , पक्षी और स्तनधारी

महावर्ग-चतुष्पादा या टेट्रापोडा Super-class-Tetrapoda

चतुष्पादा या टेट्रापोडा के सामान्य लक्षण

(i) इनमें गमन हेतु दो जोड़ी पाँचांगुलि पाद (Pentadactyl limbs) उपस्थित होते हैं, इसलिए इन्हें चतुष्पादा कहते हैं।
(ii) ये सामान्यतया स्थलचर होते हैं।
(iii) इनमें श्वसन मुख्यतया फेफड़ों द्वारा होता है तथा हृदय त्रि अथवा
चतुवेश्मी होता है।
(iv) त्वचा पर परों, शल्कों का बाह्य कंकाल पाया जाता है।

1. वर्ग-उभयचर Class-Amphibia
(Gr. Amphi-दोनों (जल और थल); bios-जीवन)

उभयचर वर्ग के जन्तु जल एवं थल दोनों पर निवास करते हैं। लारवा अवस्था में ये पानी में रहते हैं तथा मत्स्य जैसा व्यवहार करते हैं। ये तैरने के लिए पूँछ एवं श्वसन के लिए क्लोमों का उपयोग करते हैं। वयस्क अवस्था में ये धरती पर रहते हैं तथा धरातलीय जन्तुओं की भाँति व्यवहार करते हैं, परन्तु इस अवस्था में भी ये अपनी सभी महत्त्वपूर्ण क्रियाओं के लिए जल पर निर्भर होते हैं।

उभयचर वर्ग के सामान्य लक्षण

(i) इनका शरीर सिर, गर्दन, धड़ एवं पूँछ अथवा सिर व धड़ में विभाजित होता है।
(ii) इनकी त्वचा में शल्क नहीं पाये जाते हैं, अपितु श्लेष्मा ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं।
(iii) इनमें अस्थियों का बना अन्तःकंकाल पाया जाता है। कशेरुकदण्ड में एटलस (Atlas) नामक प्रथम कशेरुक पाई जाती है, जो सिर की चलनशीलता के लिए उत्तरदाई होती है।
(iv) इनमें दाँत युक्त मुख तथा श्लेष्म युक्त जीभ पाई जाती है, जो पाचन में सहायता करती है। उभयचर वे प्रथम जन्तु हैं, जिनमें सत्य जीभ पाई जाती है।

(v) इनमें श्वसन क्लोम द्वारा, फेफड़ों तथा अथवा त्वचा द्वारा होता है।
(vi) इनमें हृदय त्रिवेश्मी (Three-chambered) होता है।
(vii) ये अमोनिया का उत्सर्जन करते हैं। अमोनिया का निर्माण डीएमिनेशन द्वारा यकृत होता है।
(viii) ये जनन हेतु अण्डों को जन्म देते हैं, जो बाह्य वातावरण में विकसित होते हैं। ये अनियततापी (Cold-blooded) होते हैं, उदाहरण-सेलामेण्डर (Salamander), टोड, मेंढक (Rana tigrina), हाइला (Hyla tree frog) तथा इकोथोफिस (Ecothophis), आदि।

उभयचर वर्ग के मुख्य सदस्य / उभयचर वर्ग के मुख्य जीव

मेंढक Rana tigrina

यह एक कीटभक्षी उभयचर जन्तु है। इसका शरीर नौकाकार तथा लगभग 12-20 सेमी लम्बा होता है। शरीर में ग्रीवा का अभाव होता है। पश्चपाद की अँगुलियों के मध्य पादजाल (Web) पाया जाता है। यह एकलिंगी होता है तथा इसमें लैंगिक द्विरूपता उपस्थित होती है। इसमें श्वसन त्वचा, मुखगुहा एवं फेफड़ों द्वारा होता है। नर में एक जोड़ी स्वर कोष्ठक (Vocal cords) पाए जाते है।

हाइला अरबोरिया Hyla arborea

यह वृक्षों पर पाया जाता है, इसलिए इसे वृक्षाश्रयी टोड भी कहते हैं। इसका शरीर 2-6 सेमी लम्बा, दुबला-पतला, हरे रंग का पुच्छविहीन होता है। इसकी अँगुलियों के सिरों पर विशिष्ट प्रकार की चिपचिपी गद्दियाँ (Adhesive pads) पाई जाती हैं, जो इसे वृक्ष पर चढ़ने में सहायता प्रदान करती हैं।

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2. वर्ग-सरीसृप Class Reptilia Reptum = रेंगना

इस वर्ग में रेंगने वाले धरातलीय जन्तु आते हैं। ये प्रथम सत्य स्थलचर (True terrestrial) जन्तु भी कहे जाते हैं। पूर्णरूपेण स्थल पर पहुँचने के कारण इनमें पूर्णतया वायवीय श्वसन अर्थात् फेफड़ों द्वारा श्वसन होता है।

सरीसृप वर्ग के सामान्य लक्षण

(i) इनका शरीर सिर, गर्दन, धड़ एवं पूँछ में विभाजित होता है।
(ii) इनकी त्वचा सूखी एवं श्लेष्मरहित होती है।
(iii) इन पर काँटेदार शल्क का आवरण पाया जाता है, जो इनका बाह्य कंकाल बनाता है।
(iv) इनमें अस्थियों का अन्तःकंकाल पाया जाता है।
(v) इनमें श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है।
(vi) ये असमतापी होते हैं तथा इनका हृदय त्रिवेश्मी (Three-chambered) होता है, परन्तु उच्च सरीसृप जैसे मगरमच्छ का हृदय चार वेश्मों का बना होता है।
(vii) ये कैल्शियम कार्बोनेट के आवरणयुक्त अण्डों को देते हैं, जिनसे शिशुओं का जन्म होता है। इन अण्डों को क्लेडॉइक (Cleidoic) अण्डे कहते हैं; उदाहरण-सर्प, छिपकली, कछुआ, मगरमच्छ, घड़ियाल, गिरगिट, आदि।

सरीसृप वर्ग के मुख्य सदस्य / सरीसृप वर्ग के मुख्य जीव

छिपकली Hemidactylus flaviviridis

यह सामान्यतया 8-12 सेमी लम्बी, दीवारों पर रेंगने वाली रात्रिचर और कीटभक्षी जन्तु है। शरीर सिर, धड़, गर्दन और पूँछ में विभक्त होता है। दबाव पड़ने पर इसकी पूँछ टूटकर शरीर से अलग हो जाती है। उसके स्थान पर कुछ दिनों बाद नई पूँछ आ जाती है। अँगुलियों के अधर तल पर चिपचिपी अनुप्रस्थ पटलिकाएँ पाई जाती हैं, जो दीवार पर रेंगने में सहायता करती हैं।

कछुआ Trionyx gangeticus

इसका शरीर 20.76 सेमी लम्बा तथा जैतुनी हरे रंग का होता है, जो अस्थिल कवच में बन्द रहता है। कवच का अधर भाग प्लैस्ट्रॉन (Plastron) और पृष्ठ भाग कैरापेस (Carapace) कहलाता है। कवच में सिर, पादों और पूँछ को बाहर निकालने के लिए और वापस समेटने के लिए छिद्र पाए जाते हैं। कछुए में जबड़ों पर दाँतों के स्थान पर कठोर हॉर्नी गदियाँ पाई जाती हैं, जो भोजन को पीसने का कार्य करती हैं। इनमें लार ग्रन्थियाँ नहीं पाई जाती हैं। इनके पाद छोटे होते हैं एवं पादकी अँगुलियों के मध्य जाल पाया जाता है। ये इसे जल में तैरने में सहायता करते हैं।

नोट • सर्पों में पाद व कान नहीं पाए जाते हैं, परन्तु इनकी सूँघने की क्षमता बहुत अधिक होती है।
• मगरमच्छ व घड़ियाल अधिकांश रूप से पानी में ही रहते हैं तथा मछलियों को खाते हैं।

3. वर्ग-पक्षी Class Aves

इस वर्ग के जन्तुओं में अग्रपाद पँखों में रूपान्तरित हो जाते हैं, उड़ने में सहायता करते हैं। इनका विकास सरीसृपों से हुआ है। अतः इन्हें विशेषीकृत सरीसृप (Glorified reptiles) भी कहते हैं।

पक्षी वर्ग के सामान्य लक्षण

(i) इनका शरीर सिर, गर्दन, धड़ एवं पूँछ में विभाजित होता है।
(ii) इनमें पश्चपाद चलने, कूदने तथा अग्रपाद उड़ने हेतु रूपान्तरित होते हैं।
(iii) इनकी त्वचा पतली एवं रूखी होती है तथा इनका शरीर परों (Feathers) में ढ़का रहता है।
(iv) इनके मुख पर एक कठोर हॉर्नी चोंच पाई जाती है, जोकि दाँतों का रूपान्तरण मानी जाती है।
(v) इनमें प्रत्येक नेत्र के चारों तरफ स्क्लोरोटिक प्लेटों (Sclerotic plates) का बना अस्थि छल्ला पाया जाता है।
(vi) इनमें बाह्य कर्ण (External ears) का अभाव होता है।
(vii) इनमें अस्थियों का बना हल्का अन्तःकंकाल पाया जाता है।
(viii) इनका हृदय चार वेश्मों का बना होता है।
(ix) ये नियतमापी जीव होते हैं।
(x) ये शिशु जन्म हेतु अण्डे देते हैं; उदाहरण-कबूतर, गौरेया, कौआ, कीवी (Apteryx), शुतुर्मुर्ग (Ostrich), नर टफ्ट बत्तख (Aythya fuligula), सफेद स्टार्क (Ciconia ciconia), आदि।

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पक्षी वर्ग के मुख्य सदस्य / पक्षी वर्ग के मुख्य जीव

कबूतर Columba livia

यह लगभग 20-25 सेमी लम्बा, सलेटी रंग के परों में ढ़का, सर्वाहारी पक्षी है। इसका शरीर सिर, गर्दन, धड़ और छोटी-सी पूँछ में विभाजित होता है। इसकी चाँच छोटी, दाँत रहित और मुड़ी हुई होती है। इनमें अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित हो जाते हैं। पश्चपादों में 4-4 पंजेदार अंगुलियाँ उपस्थित होती हैं। ये एकलिंगी और अण्डयुज होते हैं।

नोट (1) आर्कियोप्टेरिक्स, सरीसृप और पक्षी वर्ग की संयोजक कड़ी है।
(2) पक्षियों में स्थानान्तरण (Migration) का गुण होता है।
(3) ऑस्ट्रिच सबसे अधिक जीने वाला पक्षी है। यह सबसे तेज दौड़ने वाला पक्षी एवं सबसे बड़ा अण्डा देने वाला पक्षी भी है।
(4) हमिंग बर्ड (Humming bird) सबसे छोटी जीवित चिड़िया है। सबसे तेज उड़ने वाला पक्षी अवावील (Swift) है।
(5) सबसे छोटी भारतीय चिड़िया सन बर्ड (Sun bird) है।
दृष्टि एवं सुनने की संवेदनाएँ पक्षियों में सबसे अधिक होती हैं।

4. वर्ग-स्तनधारी Class-Mammalia
(Gr. Mammal; स्तनिय)

इस वर्ग के जन्तुओं में मादा में स्तन ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं तथा इस वर्ग में उच्चतम श्रेणी के जन्तु भी आते हैं।

स्तनधारी वर्ग के सामान्य लक्षण

(i) इनकी त्वचा में स्वेद, दुग्ध, तेल एवं श्लेष्म ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। इनमें से दुग्ध या स्तन ग्रन्थियाँ इन जन्तुओं का विशिष्ट लक्षण हैं।
(ii) ये नियततापी होते हैं। इनके शरीर पर बाल पाए जाते हैं, जो शारीरिक तापमान को नियत रखने में सहायता करते हैं।
(iii) इनका शरीर सिर, गर्दन, धड़ एवं पूँछ में विभाजित तथा शारीरिक आकार अनेक प्रकार के हो सकते हैं।
(iv) इनका मुख छोटा तथा इनमें सीढ़ीदार होठ, दाँत तथा जबड़े पाए जाते है।
(v) इनमें बाह्य कर्णो में कर्ण पल्लव (Ear pinnae) पाए जाते हैं।
(vi) गर्दन में 7 ग्रीवा (Cervical) कशेरुकाएँ उपस्थित होती हैं।
(vii) इनमें अग्रपाद व पश्चपाद पाए जाते हैं, जो चलने, उछलने, पकड़ने का कार्य करते हैं।
(viii) इनमें अस्थियों का बना अन्तःकंकाल पाया जाता है।

(ix) इनमें पाचन तन्त्र पूर्ण विकसित होता है तथा लिए जाने वाले आहार के अनुसार अनुकूलित होता है; जैसे-शाकाहारियों की आहारनाल लम्बी एवं माँसाहारियों की आहारनाल छोटी होती है। ऐसा शाकाहारियों में सेलुलोस के विशिष्ठ पाचन के कारण होता है।
(x) इनमें पूर्ण विकसित श्वसन तन्त्र पाया जाता है। श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है,जोकि स्पंजी, श्लास्तिक व अस्थि पंजर से सुरक्षित होते हैं। फेफड़ों को उदर गुहा से अलग करने के लिए पेशीय डायाफ्राम (Muscular diaphragm) उपस्थित होता है।
(xi) इनमें परिवहन तन्त्र बन्द प्रकार का होता है तथा हृदय चार वेश्मों में बँटा होता है।
(xii) ये एकलिंगी होते हैं तथा इनमें आन्तरिक निषेचन पाया जाता है। ये शिशु को जन्म देते हैं; उदाहरण-मनुष्य, कुत्ता, बिल्ली, चमगादड़, चूहा, प्लेटीपस, आदि।

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स्तनधारी वर्ग का वर्गीकरण

स्तनधारी वर्ग को पुनः दो उपवर्गों में विभाजित किया गया है।

(1) प्रोटोथीरिया (Prototheria) – इनमें स्तन पाए जाते हैं, परन्तु उनके ऊपर चूषक अनुपस्थित होते हैं। ये एकमात्र अण्डे देने वाले स्तनधारी होते हैं। इनमें बाह्य कर्ण नहीं पाए जाते हैं; उदाहरण-ऑर्निथोरिन्कस, एकिडना, प्लेटीपस, आदि।

(ii) थीरिया (Theria) – इस उपवर्ग के स्तनधारी शिशु को जन्म देते हैं। इसे पुनः दो खण्डों में विभाजित किया गया है।

(a) मेटाथीरिया (Metatheria) – इस वर्ग की मादाओं में एक थैली पाई जाती है, जिसे मासुपियल थैली कहते हैं। इस थैली में अपूर्ण विकसित शिशुओं का विकास होता है। इस थैली में स्तन ग्रन्थियों के चूषक खुलते हैं, जिससे शिशुओं को पोषण मिलता है। इनमें बाह्य कर्ण पाए जाते हैं। ये तापमान के असन्तुलन को सहन कर सकते हैं। अतः इन्हें स्टीनोथर्मल (Stenothermal) कहते हैं; उदाहरण- कंगारु रैट (Macropus) आदि।

(b) यूथीरिया (Eutheria)- इस वर्ग के स्तनधारियों में शिशु का पूर्ण विकास मादा के गर्भाशय में होता है। मादा के गर्भाशय में शिशु को जरायु के द्वारा पोषण मिलता है। इनमें पूर्ण विकसित स्तन, जरायु व आन्तरिक निषेचन होता है उदाहरण मानव, बिल्ली, चूहा, चमगादड़, बाघ, शेर, आदि।

स्तनधारी वर्ग के मुख्य सदस्य

चमगादड़ Pteropus giganteus

यह एक रात्रिचर जन्तु है, जो दिन में वृक्षों की डालियों, खण्डहरों, आदि से उलटा लटका हुआ पाया जाता है। इसका शरीर लगभग 30 सेमी लम्बा एवं सिर, धड़, वक्ष, पूँछ में विभाजित होता है, शरीर छोटे-छोटे काले अथवा भूरे बालों से ढ़का रहता, जो लोमचर्म कहलाता है। इनमें नेत्र कम विकसित होते हैं किन्तु कर्ण विकसित होते हैं। उड़ते समय चमगादड़ उच्च आवृत्ति, पराध्वनि उत्पन्न करता है, इसमें पतली त्वचा के बने चर्म प्रसार होते हैं, जो पंखों का कार्य करते हैं। अग्रपाद उड़ने हेतु पंखों में रूपान्तरित हो जाते हैं।

नोट – (1)  थ्रुज (Shrew) सबसे छोटा (4.5 सेमी से छोटा, 2 ग्राम वजन) स्तनधारी है।
(2) मनुष्य के अतिरिक्त डॉल्फिन को सबसे बुद्धिमान स्तनधारी माना
जाता है।
(3) अमेरिका में पाया जाने वाला वैम्पायर चमगादड़ सोते हुए जन्तुओं के शरीर से खून चूसता है।



                             ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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