समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com आपको निबंध की श्रृंखला में बढ़ती महंगाई की समस्या पर निबंध | increasing inflation problem essay in hindi | मूल्य वृद्धि की समस्या पर निबंध प्रस्तुत करता है।
Contents
बढ़ती महंगाई की समस्या पर निबंध | increasing inflation problem essay in hindi | मूल्य वृद्धि की समस्या पर निबंध
इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम
(1) मूल्य वृद्धि की समस्या पर निबंध
(2) बेलगाम मंहगाई पर निबंध
(3) मंहगाई की समस्या पर निबंध
(4) मंहगाई और आटा दाल पर निबंध
(5) बढ़ती मंहगाई के कारण और उपाय पर निबंध
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बढ़ती महंगाई की समस्या पर निबंध | increasing inflation problem essay in hindi | मूल्य वृद्धि की समस्या पर निबंध
पहले जान लेते है बढ़ती महंगाई की समस्या पर निबंध | increasing inflation problem essay in hindi | मूल्य वृद्धि की समस्या पर निबंध की रूपरेखा ।
निबंध की रूपरेखा
(1) प्रस्तावना
(2) महँगाई के कारण
(क) घाटे की अर्थव्यवस्था (ख) जनसंख्या की वृद्धि
(ग) जमाखोरी तथा मुनाफाखोरी (घ) भ्रष्टाचार (ङ) बाढ़ और सूखा (च) वितरण के समुचित प्रबन्ध का न होना (छ) वित्तीय प्रभाव (ज) ऊर्जा संकट (झ) हड़ताल और बन्द
(3) समाधान के उपाय
(4) उपसंहार
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प्रस्तावना
मानव जीवन समस्याओं का खेल है। समस्याएँ उसे चारों ओर से घेरे रखती है। पुरानी समस्याओं का समाधान हो नहीं पाता कि कुछ नयी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
मनुष्य इन समस्याओं के ताने-बाने में उलशा रहता है। समस्याएँ उसकी प्रगति के पग पर पहाड़ बन कर खड़ी हो जाती हैं। आज भी हमारा समाज समस्याओं में उलझा हुआ है।
अनेक ज्वलन्त समस्याएंँ, जटिल और कठिन समस्याएँ सामने में
बाये खडी हैं। इन सबमें भी महंगाई की समस्या ने इतना भयंकर रूप धारण कर लिया है कि हमारा सामाजिक तथा आर्थिक ढाँचा ही चरमरा उठा है।
महँगाई तथा वस्तुओं के बढ़ते हुए मूल्य की समस्या आज हमारी सरकार को चुनौती दे रही है। प्रत्येक नागरिक इसका शिकार है, विशेष कर मध्यम वर्ग के नाक में दा है। रात-दिन बस एक ही चिन्ता है-नमक, तेल, लकड़ी।
नमक तेल लकड़ी की चिन्ता खाए जाती नर की।
प्रत्यक्ष-परोक्षकरों की बृद्धि रोज सताती नर को ॥
आम- आदमी दवा जा रहा महँगाई के नीचे।
शुतुरमुर्ग सम देख न पाते नेता आँखें मीचे ॥
महँगाई के कारण
महँगाई का सीधा अर्थ है-वस्तुओं का क्रय मूल्य बढ़ना और मुद्रा की क्रय-शक्ति का ह्रास हो जाना। हमारे देश में महँगाई के मुख्य रूप से निम्नलिखित कारण हैं-
(1) घाटे की अर्थव्यवस्था
हमारा देश विकासशील देश है। देश के विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं बनायी गयी है। योजनाओं का ध्येय पुरा करने के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है।
इन योजनाओं के व्यय की पुर्ति के लिए सरकार घाटे की अर्थव्यवस्था अपनाती है। घाटे की पूर्ति के लिए सरकार मूद्रास्फीति का सहारा लेती है।
इससे मुद्रा का प्रसार बढ़ा है। राज्यों ने ओवर ड्राफ्ट लिया है; अंत: रुपये के मुल्य में निरन्तर कमी होती जा रही है।
(ख) जनसंख्या की वृद्धि
स्वतन्त्रता के पश्चात देश में अन्न तथा उपभोग की अन्य वस्तुओं का उत्पादन कई गुना बढ़ा है किन्तु जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ रही है उस अनुपात में उत्पादन नहीं बढ़ रहा है।
राष्ट्रीय उत्पादन और आय बढ़ने पर भी प्रति व्यक्ति उत्पादन और आय घटी है। परिणाम स्पष्ट है कि वस्तुओं की आवश्यकता और माँग प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसी दशा में महँगाई का बढ़ना सामान्य बात है।
(ग) जमाखोरी तथा मुनाफाखोरी
पक्षपातपूर्ण वितरण के कारण भी महँगाई बढ़ती है। बड़े-बड़े व्यापारी और पूँजीपति जमाखोरी करके बाजार में वस्तुओं की कमी पैदा कर देते हैं और फिर मनमानी कीमतों पर वस्तुओं को बेचते हैं।
इस प्रकार जमाखोरी, मुनाफाखोरी तथा कालाबाजारी के कारण महँगाई तेजी से बढ़ती है।
(घ) भ्रष्टाचार
हमारे समाज में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है। अफसर लोग घूस लेकर व्यापारियों को कालाबाजारी करने का अवसर देते है।
पुल, बाँध तथा सड़कों आदि का बहुत-सा धन इंजीनियर और ठेकेदार मिलकर खा जाते हैं। परिणाम यह होता है कि कुछ समय पश्चात् ये पुल, बाँध, सड़कें आदि फिर से टूट-फूट जाते हैं। इनके पूनः बनाने में बहुत-से सामान और धन का अपव्यय होता है।
इससे महँगाई बढ़ती है। भ्रष्टाचार के कारण बड़ी-बड़ी योजनाओं पर लगने वाला धन कूछ थोड़े-से लोगों की तिजोरियों में पहुँच जाता है।
अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, गरीब और गरीब होता जाता है। इसका परिणाम यह होता है। कि धनी लोग अधिक कीमत देकर भी वस्तुएँ खरीदने लगते हैं और वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाता है।
(ङ) बाढ़ और सूखा
देश के कुछ भागों में बाढ़, आ जाती है, कुछ में सूखा पड़ जाता है । इससे उत्पादन में कमी आ जाती है और महँगाई अपने पैर पसारती जाती है।
(च) वितरण के समुचित प्रबन्ध का न होना
देश की वितरण प्रणाली दोषपूर्ण है। बहुत -सी वस्तुएँ गोदामों में पड़ी सड़ जाती हैं। वे समय पर उपभोक्ताओं तक नहीं पहुँच पाती हैं। इस प्रकार वस्तुओं की कमी होती है और महँगाई बढ़ती है।
(छ) वित्तीय प्रभाव
डालर तथा पौड के विमुक्त होने से भारत तथा दूसरे विकासशील देशों पर कुप्रभाव पड़ा है। डालर क्षेत्रों से किये गये आयात पर हमें अधिक धन देना पड़ रहा है ।
इससे देश को करोड़ों रुपये की हानि हो रही. है। इससे वस्तुओं के मूल्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
(ज) ऊर्जा-संकट
बिजली के उत्पादन में कमी हुई तथा कोयले के उत्पादन में गिरावट आयी। उधर अरब राष्ट्रों ने खनिज तेलों के मूल्यों में वृद्धि कर दी। इससे ऊर्जा का संकट उत्पन्न हो गया ।
ऊर्जा के अभाव में कल-कारखानों को पूरे समय चला पाना असम्भव हो गया। कपड़ा, सीमेण्ट जैसी जीवन के लिए उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन में कमी आ गयी।
किसानों को पर्याप्त मात्रा में खनिज तेल नहीं मिल सका । वे ट्रैक्टर, नलकूप आदि साधनों का पूरा उपयोग नहीं कर सके और अन्न के उत्पादन में कमी आ गयी । वस्तुओं की कमी हो जाने से महँगाई सुरसा के मुँह की तरह फैलती गयी।
(झ) हड़ताल और बन्द
मिल मालिकों की शोषण नीति, सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीति तथा कर्मकरों की कम करो, ज्यादा पाओ नीति के कारण देश में एक जटिल समस्या उत्पन्न हो गयी है।
मिलों और कारखानों के मालिक कम से कम वेतन में अधिक काम कराना चाहते हैं। मजदूर कम से कम काम करके अधिक से अधिक मजदूरी पाना चाहता है।
इसी कारण मिलों और कारखानों में प्रतिदिन हड़ताल और बन्द होते है। वस्तुओं के उत्पादन में कमी होती है। मजदूरों की मजदूरी बाद में बढ़ती है, महँगाई उससे पहले ही बढ़ जाती है।
समाधान के उपाय
इस भयंकर समस्या से मुक्ति पाने के लिए हमें अविलम्व उपाय करने चाहिए। सरकार को परिवार नियोजन कार्यक्रम को तेजी से चलाना चाहिए जिंससे जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगे ।
मुद्रास्फीति पर भी अंकुश लगाना होगा। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। वितरण की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
सहकारी उपभोक्ता भण्डारों की स्थापना तथा सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के द्वारा मुनाफाखोरी, जमाखोरी और कालाबाजारी की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है।
ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ाने का प्रयास होना चाहिए ताकि हम आत्मनिर्भर हो सकें।
सरकार को मिल तथा कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की हिस्सेदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। परन्तु यह सब क्राम सरकार अकेली नहीं कर सकती, जनता का पूरा सहयोग यदि हो तो इस समस्या का अन्त हो सकता है।
सरकार के प्रयास करने पर भी महँगाई नहीं रुक रही है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महँगाई बढ़ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि महँगाई के ब्रेक ही फेल हो गये हैं।
उपसंहार
सारांश यह है कि महँगाई अथाति मूल्यवृद्धि वर्तमान युग की जटिल एवं ज्वलन्त समस्या है । इसने समाज में असंगति, कुण्ठा और विकृतियाँ उत्पन्न कर दी है।
सरकार और समाज दोनों को ऐसे ठोस कदम उठाने चाहिए जिससे इस भयानक समस्या का अन्त हो सके।
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