जंतु जगत का वर्गीकरण / classification of animal kingdom

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जंतु जगत का वर्गीकरण / classification of animal kingdom

जंतु जगत का वर्गीकरण / classification of animal kingdom
जंतु जगत का वर्गीकरण / classification of animal kingdom

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जन्तुओं में विविधता (Diversity) केवल उनके आकार एवं परिमाण में ही नहीं होती अपितु उनके आवास में भी विस्तृत रूप से देखने को मिलती है। ऐसा उनकी गमनशीलता के कारण होता है। पादपों की अपेक्षा जन्तुओं में गमनशीलता एवं अनुकूलन के कारण नई-नई जातियों का विकास करने की क्षमता ज्यादा होती है। इसीलिए जन्तु जगत में विविधता भी पादपों की अपेक्षाकृत ज्यादा देखने को मिलती है। जन्तु जगत का वर्गीकरण एवं विविधताएँ समझने से पहले यह अनिवार्य हो जाता है, कि हम जन्तुओं के विशिष्ट लक्षणों का अध्ययन करें, जो निम्न प्रकार हैं-

(i) जन्तु (प्राणि) जगत में सभी परपोषित (Heterotrophic) जीवों को रखा गया है।
(ii) जन्तु कोशिकाओं में कोशिका भित्ति, केन्द्रीय रसधानी व लवक (Plastida) अनुपस्थित होते हैं, परन्तु उनमें तारककाय (Centrosome) उपस्थित होता है।
(iii) इनकी प्रमुख पोषण विधि प्राणि समभोजी (Holozoic) है अर्थात् ये भोजन का अन्तर्ग्रहण (Ingestion) करते हैं। ये शाकाहारी (Herbivorous); जैसे- बकरी, गाय, भैंस, आदि, माँसाहारी (Carnivorous); उदाहरण- शेर, चीता, आदि अथवा सर्वाहारी (Omnivorous); जैसे- मछली, मनुष्य, कुत्ता, आदि हो सकते हैं।
(iv) जन्तु एक स्थान से दूसरे स्थान तक चल सकते हैं।
(v) कुछ जन्तु जैसे कृमि (Worms) मनुष्यों तथा अन्य जन्तुओं में एवं पादपों में परजीवी (Parasite) के रूप में पाए जाते हैं और अपने परपोषी की कोशिकाओं में तैयार पोषण ग्रहण करते हैं। कुछ परजीवी परपोषी के शरीर के अन्दर रहते हैं, इन्हें अन्तः परजीवी (Endoparasite) कहते हैं; जैसे-फीताकृमि,गोलकृमि, जबकि कुछ बाह्यपरजीवी (Ectoparasite) परपोषी के शरीर की बाह्य सतह पर पाए जाते हैं; जैसे-जोंक, जूं, किलनी, आदि।
(vi) इनमें प्राय: लैंगिक जनन पाया जाता है। अगुणित युग्मकों का निर्माण जनन ग्रन्थियों (Gonads) में होता है।
(vii) जन्तुओं में विसरित वृद्धि (Diffused growth) पाई जाती है। पादपों से विपरीत जन्तुओं में सुनिश्चित वृद्धि क्षेत्र नहीं होते हैं।

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जन्तु जगत का प्रारम्भिक वर्गीकरण Early Classification of Animal Kingdom

जन्तु जगत को वर्गीकृत करने का प्रयास अरस्तू (Aristotle) के समय से प्रारम्भ हुआ, जिन्होंने अपनी पुस्तक हिस्टोरिया एनिमेलियम (Historia Animalium) में सर्वप्रथम जन्तुओं को निम्न दो वर्गों में वर्गीकृत किया है –
(i) अनैइमा (Anaima) – अर्थात् वे जन्तु, जिनमें लाल रुधिर अनुपस्थित होता है।
(ii) इनैइमा (Enaima) – अर्थात् वे जन्तु, जिनमें लाल रुधिर उपस्थित होता है। यह वर्ग पुनः अण्डयुज (Oviparous-अण्डे देने वाले जन्तु) एवं जरायुज (Viviparous – बच्चे देने वाले जन्तु) में विभाजित हैं। इसके उपरान्त कुछ समय तक जन्तु जगत को वर्गीकृत करने के लिए, जो भी प्रयास हुए वे सिर्फ जन्तु जगत तक सीमित न होकर जन्तु एवं पादप जगत दोनों के लिए थे।

जन्तु जगत का आधुनिक वर्गीकरण Modern Classification of Animal Kingdom

सन् 1975 में स्टोरर एवं यूसिंजर (Storer and Usinger) ने जन्तु जगत का वृहद, सम्पूर्ण एवं सर्वमान्य वर्गीकरण दिया, जो निम्न प्रकार था ।  इस वर्गीकरण को व्हीटेकर (Whittaker) के पाँच जगत का वर्गीकरण आने के पश्चात् निम्न प्रकार से संशोधित किया गया ।
(i) उपजगत-प्रोटोजोआ के स्वपोषी जीवों को पूर्णरूपेण जगत-प्रोटिस्टा में शामिल कर दिया गया।
(ii) जन्तु जगत के संघ-प्रोटोजोआ में सिर्फ एककोशिकीय विषमभोजी (स्वतन्त्र जीवी या परजीवियों) को ही जगह दी गई।
(iii) जन्तु जगत के शेष वर्गीकरण को पूर्णरूपेण एक जगत के रूप में मान्यता दे दी गई, जिसमें पूर्णतया विभिन्न विषमभोजी जीवों को रखा गया। अतः वर्तमान (स्टोरर एवं यूसिंजर; 1975 के अनुसार) में जन्तु जगत में निम्न दस प्रमुख संघों को मान्यता है ।

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(i) पोरीफेरा (Porifera) – शरीर पर छिद्र, नाल व जल परिवहन तन्त्र, कंटिकाएँ; उदाहरण-स्पंज (Sponge), जैसे- ल्यूकोसोलीनिया (Leucosolenia), आदि।
(ii) सीलेन्ट्रेटा (Coelenterata) – शरीर में अन्तर गुहिका व दंश कोशिकाएँ उपस्थित; उदाहरण- हाइड्रा (Hydra), ओबेलिया (Obelia), आदि।
(iii) प्लैटीहेल्मिन्थीज (Platyhelminthes) – कोमल तथा चपटे कृमि, पाचन तन्त्र अनुपस्थित या शाखान्वित, देहगुहा का अभाव; उदाहरण- यकृत कृमि (Liver fluke), फीताकृमि (Tapeworm), आदि।
(iv) एस्केल्मिन्थीज (Aschelminthes) या निमैटोडा (Nematoda) – लम्बा, बेलनाकार, खण्डरहित शरीर, शीर्ष का अभाव, चिकनी, दृढ़, रक्षात्मक,वलयाकार उपचर्म, एकलिंगी; उदाहरण-गोलकृमि (Roundworm); जैसे-ऐस्कैरिस (Ascaris), आदि।
(v) ऐनेलिडा (Annelida) – लम्बा, बेलनाकार, खण्डयुक्त शरीर, प्रचलन के लिए सीटी, चूषक या पैरापोड़िया; नेफ्रीडिया द्वारा उत्सर्जन; उदाहरण- केंचुआ (Earthworm), जोंक (Leech), आदि।
(vi) आर्थोपोडा (Arthropoda) – शरीर खण्डयुक्त, जोड़ीदार उपांग, काइटिन का बाह्य कंकाल, देहगुहा- हीमोसील; उदाहरण – कनखजूरा (Centipede), टिड्डा (Grasshopper), तिलचट्टा (Cockroach), बिच्छू (Scorpion), आदि।
(vii) मोलस्का (Mollusca) – शरीर मुलायम, प्राय: चूने के कठोर आवरण से ढका; उदाहरण-सीपी (Unio), घोघा (Snail), आदि।
(viii) इकाइनोडर्मेटा (Echinodermata) – सिर तथा खण्ड़ों का अभाव, शल्कीय कंकाल, प्रचलन नाल पादों (Tube feet) के द्वारा; उदाहरण- सितारा मछली (Star fish), आदि।
(ix) हेमीकॉर्डेटा (Hemichordata) – कृमिरूपी, कोमल, भृंगुर शरीर शुंड, कॉलर एवं धड़ में विभेदित। इनमें वास्तविक पृष्ठरज्जु नहीं होती; उदाहरण- बैलेनोग्लॉसस (Balanoglossus), प्रोटोग्लॉस (Protoglossus), आदि।
(x) कॉर्डेटा (Chordata) – पृष्ठरज्जु की उपस्थिति, जीवन की किसी अवस्था में गिल रन्ध्र, पृष्ठ, नालाकार तन्त्रिका तन्त्र, देहगुहा सुविकसित; उदाहरण- मछली (Fish), मेंढक (Frog), छिपकली (Lizard), कबूतर (Pigeon), चमगादड़ (Bat), खरगोश (Rabbit), आदि ।



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