थैलोफाइटा एवं एम्ब्रियोफाइटा उपजगत / Sub kingdom – Thallophyta and Embryophyta

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थैलोफाइटा एवं एम्ब्रियोफाइटा उपजगत / Sub kingdom – Thallophyta and Embryophyta

थैलोफाइटा एवं एम्ब्रियोफाइटा उपजगत / Sub kingdom - Thallophyta and Embryophyta
थैलोफाइटा एवं एम्ब्रियोफाइटा उपजगत / Sub kingdom – Thallophyta and Embryophyta

Sub kingdom – Thallophyta and Embryophyta / थैलोफाइटा एवं एम्ब्रियोफाइटा उपजगत

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पादप जगत का आधुनिक वर्गीकरण / Modern Classification of Plant Kingdom

इलीनॉइस विश्वविद्यालय, अमेरिका (Illinois University, USA) के प्रोफेसर ऑसवाल्ड टिप्पो (Oswald Tippo; 1942) ने वनस्पति जगत का आधुनिक वर्गीकरण प्रस्तुत किया। उनके द्वारा किया गया वनस्पति जगत का वर्गीकरण निम्नलिखित है।

उपजगत – थैलोफाइटा Subkingdom-Thallophyta

इन पादपों के लक्षण निम्नलिखित हैं।
(i) इन पादपों का शरीर जड़, तना एवं पत्ती में विभेदित नहीं होता है अर्थात् सूकायकी (Thalloid) होता है।
(ii) इनमें संवहन ऊतक (दारु और पोषवाह) अनुपस्थित होते हैं।
(iii) इनमें अलैंगिक जनन ज्यादा उपयोग में लिया जाता है तथा प्रायः एककोशिकीय चलबीजाणुओं (Zoospores) द्वारा होता है।
(iv) इन पादपों में भ्रूण नहीं बनता है। युग्मकों के संयोजन से बना युग्मनज (Zygote) अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा सीधे ही सन्तति पौधे को जन्म देता है।
उपजगत- थैलोफाइटा को दस संघों में बाँटा गया है। इन दस संघों में से पहले सात संघ शैवाल (Algae) कहलाते हैं। आठवें संघ के अन्तर्गत जीवाणु आते हैं। तथा अन्तिम दो संघ (9 और 10) कवक कहलाते हैं।

शैवाल Algae

ये पादप पर्णहरिमयुक्त थैलोफाइटा (Chlorophyllous thallophyta) हैं। इनके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं।

(i) ये पादप स्वपोषी (Autotrophic) होते हैं अर्थात् प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) करते हैं।
(ii) इनकी कोशिका भित्ति सेलुलोज (Cellulose) की बनी होती है।
(iii) संचित भोज्य पदार्थ मण्ड (Starch) होता है।
(iv) इनमें जननांग प्राय: एककोशिकीय (Unicellular) होते हैं यद्यपि कुछ शैवालों (भूरे शैवालों) में ये बहुकोशिकीय (Multicellular) भी होते है।
(v) इनमें नर एवं मादा युग्मकों के संलयन से युग्मनज (Zygote) तो बनता है किन्तु भ्रूण (Embryo) का निर्माण नहीं होता है।

शैवालों का वर्गीकरण :–

समस्त शैवालों को निम्नलिखित सात संघों में विभाजित किया गया है–
1. संघ-सायनोफाइटा (Cyanophyta) – इनके अन्तर्गत नीले-हरे शैवालों (Blue-green algae) को रखा गया है। इनके शरीर में फाइकोसायनिन (Phycocyanine) एवं फाइकोइरिथ्रिन (Phycoerythrin) नामक वर्णक पाए जाते हैं; उदाहरण- नॉस्टॉक (Nostoc), एनाबीना (Anabaena), ऑसिलेटोरिया (Oscillatoria), आदि।
2. संघ – यूग्लीनोफाइटा (Euglenophyta) – इनमें पीले-हरे रंग के एककोशिकीय, सूक्ष्मदर्शीय शैवाल आते हैं। इनके सदस्यों में पर्णहरिम हरितलवक (Chloroplast) में उपस्थित होता है; उदाहरण- यूग्लीना (Euglena) l
3. संघ – क्लोरोफाइटा (Chlorophyta) – ये हरे रंग के शैवाल हैं, जो समुद्र और मीठे जलाशयों में पाए जाते हैं। इनमें भी हरितलवक उपस्थित होता है; उदाहरण- स्पाइरोगायरा (Spirogyra), वॉलवॉक्स (Volvox),यूलोथ्रिक्स (Ulothrix), क्लोरेला (Chlorella), आदि।
4. संघ – क्राइसोफाइटा (Chrysophyta) – ये शैवाल पीले-हरे अथवा सुनहरे भूरे रंग के होते हैं। इनमें पर्णहरिम, कैरोटिन, जैन्थोफिल, आदि वर्णक पाए जाते हैं तथा लवक अनुपस्थित होते हैं; उदाहरण-डायटम्स (Diatoms), बॉटूिडियम (Botrydium), आदि।
5. संघ – पाइरोफाइटा (Pyrrophyta) – इस समूह के शैवाल प्राय: पीले-हरे अथवा सुनहरे भूरे रंग के होते हैं। इनमें वर्णक डाइनोजैन्थिन (Dinoxanthin), डाइएडिनोजैन्थिन (Diadinoxanthin) और पेरिडिनिन (Peridinin) पाए जाते हैं, उदाहरण- जिम्नोडीनियम (Gymnodinium), नामक डायनोफ्लैजिलेट्स (Dianoflagellates), आदि।
6. संघ – फियोफाइटा (Phaeophyta) – ये विशालकाय, समुद्रा
(Marine) तथा भूरे रंग के शैवाल हैं। इनमें पर्णहरिम और फ्यूकोजैन्थिन (Fucoxanthin) नामक वर्णक उपस्थित होता है; उदाहरण- फ्यूकस (Fucus), सारगासम (Sargassum), एक्टोकॉर्पस (Ectocarpus), लैमिनेरिया (Laminaria), आदि।
7. संघ – रोडोफाइटा (Rhodophyta) – ये विशालकाय, लाल शैवाल हैं। इनमें पर्णहरिम, फाइकोसायनिन (Phycocyanin) और फाइकोइरिथ्रिन (Phycoerythrin) नामक वर्णक उपस्थित होते हैं; उदाहरण- बैट्राकोस्पर्मम (Batrachospermum), पॉलीसाइफोनिया (Polysiphonia), आदि।

मुख्य सदस्य – स्पाइरोगायरा Spirogyrahon

यह सामान्य रूप से पाया जाने वाला शैवाल है। यह चमकीले हरे रंग का धागेनुमा तन्तु हैं, जो तालाब, बहने वाली नदी, जल प्रपात, झीलों, नालों, आदि में बरसात में पाया जाता है। इसकी कोशिकाएँ कम चौड़ी और अधिक लम्बी होती हैं तथा एक-दूसरे के ऊपर पंक्तिबद्ध होती हैं। इसकी कोशिका में एक केन्द्रक तथा एक अथवा अधिक सर्पिलाकार हरितलवक पाए जाते हैं। इसमें अलैंगिक जनन विखण्डन, अनिषेकबीजाणु और एकाइनीट के द्वारा होता है तथा लैंगिक जनन कार्यिकी असंयुग्मन (Physiological conjugation) द्वारा एवं आन्तरिक होता है।

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यूलोथ्रिक्स Ulothrix

यह एक तन्तुमय हरा शैवाल है, जो प्राय: ठण्डे जल में पाया जाता है तथा किसी आधार से चिपका रहता है। इसकी कोशिकाएँ कम लम्बी और अधिक चौड़ी तथा एक-दूसरे पर पंक्तिबद्ध होती हैं। इसमें अलैंगिक एक केन्द्रक तथा एकभित्तिय (Parietal) हरितलवक पाया जाता है। इसमें अलैंगिक जनन खण्डन, एक एकाइनीट, हिप्नोस्पोर, पामेला अवस्था द्वारा होता है। लैंगिक जनन समयुग्मन (Isogamous) प्रकार का होता है तथा बाह्य निषेचन होता है।

जीवाणु Bacteria

इनके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं
(i) ये सूक्ष्मदर्शीय एककोशिकीय एवं पूर्वकेन्द्रकीय जीव हैं।
(ii) कोशिका भित्ति की उपस्थिति के कारण इन्हें पादप जगत में रखा गया है। इनकी कोशिका भित्ति म्यूकोपेप्टाइड (Mucopeptide) की बनी होती है।
(iii) इनमें माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्जीकाय, केन्द्रक, केन्द्रिका केन्द्रक
कला, आदि का अभाव होता है।(A)
(iv) इनमें राइबोसोम्स 70 S प्रकार के होते हैं।
(v) ये परजीवी (Parasites) अथवा मृतोपजीवी (Saprophytes) होते हैं।
(vi) इनमें अलैंगिक जनन प्रायः द्विविभाजन (Binary fission) और बीजाणुओं (Spores) द्वारा होता है।
(vii) लैंगिक जनन का अभाव होता है किन्तु आनुवंशिक पुनर्योजन (Genetic recombination) पाया जाता है।

8. संघ-शाइजोमाइकोफाइटा (Schizomycophyta) – इस संघ के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं आते हैं।

कवक Fungi

इनके मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं
ये मुख्यतया परपोषी (Parasites) या मृतोपजीवी (Saprophytes) पादप हैं।
(i) कवक का शरीर लम्बी धागेनुमा संरचनाओं का बना होता है, जिन्हें हाइफी (Hyphae) कहते हैं। संयुक्त रूप से हाइफी के साथ कवक के शरीर को माइसीलियम (Mycelium) कहते हैं।
(ii) कवक की कोशिका भित्ति काइटिन या कवक सेलुलोज की बनी होती है।
(iii) कवक में भोज्य पदार्थ ग्लाइकोजन अथवा तेल के रूप में संचित रहता है।
(iv) इनमें तीन प्रकार से प्रजनन होता है
(a) लैंगिक (Sexual) इसमें दो युग्मकों अथवा दो केन्द्रकों का संयुग्मन होता है।
(b) अलैंगिक (Asexual) बीजाणु (Spores) द्वारा इसमें अलैंगिक जनन होता है; उदाहरण- म्यूकर, राइजोपस, आदि।
(c) कायिक (Vegetative) विखण्डन अथवा कलिकाओं के द्वारा इनमें कायिक जनन होता है।
(v) ये बीजाणु भी बनाते हैं, जैसे- यीस्ट, मशरूम, एस्पर्जिलस, पेनिसीलियस,राइजोपस एवं एगेरिकस।

9. संघ-मिक्सोमाइकोफाइटा (Myxomycophyta) – ये प्राय: स्लाइम मोल्ड्स (Slime moulds) कहलाते हैं। इनका शरीर श्लेष्मिक, नग्न और संकोशिकीय (Coenocytic) होता है; उदाहरण- रेटिकुलेरिया (Reticularia), फ्यूलिगो (Fuligo), आदि।
10. संघ-यूमाइकोफाइटा (Eumycophyta) इसके अन्तर्गत वास्तविक कवक आते हैं। इनका पादप शरीर कवकसूत्रों (Hyphae) से बना होता है, जो कवकजाल (Mycelium) कहलाता है; उदाहरण- राइजोपस (Rhizopus), म्यूकर (Mucor), एल्ब्यूगो (Albugo), आदि।

मुख्य सदस्य – राइजोपस Rhizopusee

यह मृतजीवी कवक है, जो सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों पर मिलता है। डबलरोटी का फफूँद (Bread mould) भी कहा जाता है। इस कवक के कवकतन्तु, आधार पर सफेद धागों के समान कवकजाल बनाते हैं, जो पटहीन (Aseptate) तथा संकोशिकी (Coenocytic) होता है। इसकी कोशिकाओं में हरितलवक अनुपस्थित होते हैं। इसमें कायिक जनन खण्डन द्वारा होता है।
अलैंगिक जनन, स्पोरेन्जियोस्पोर्स, क्लैमाइडोस्पोर्स और एन्थ्रोस्पोर्स द्वारा होता है तथा लैंगिक जनन संयुग्मन (Conjugation) द्वारा होता है। इस कवक में समजालिक तथा विषमजालिक दोनों ही प्रकार की जातियाँ मिलती हैं।

उपजगत-एम्ब्रियोफाइटा Embryophyta

यह थैलोफाइटा से विकसित पादपों का समूह है। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) इन पादपों में लैंगिक अंग बहुकोशिकीय होते हैं तथा एक बन्ध्य आवरण (Sterile jacket layer) द्वारा घिरे रहते हैं।
(ii) लैंगिक जनन के फलस्वरूप बना युग्मनज बार-बार समसूत्री विभाजनों (Mitosis) द्वारा विभाजित होकर भ्रूण (Embryo) का निर्माण करता है।
उपजगत- एम्ब्रियोफाइटा को निम्नलिखित दो संघों में विभाजित किया गया है।

1. संघ-ब्रायोफाइटा Bryophyta

इसके लक्षण निम्नलिखित हैं
(i) पादप शरीर सूकाय (Thallus) के समान होता है।
(ii) ये पादप स्वपोषी होते हैं और प्राय: नम, ठण्डे, छायादार स्थानों में उगते हैं।
(iii) संवहन ऊतक अनुपस्थित होते हैं एवं वास्तविक जड़ के स्थान पर मूलाभास (Rhizoids) पाए जाते हैं।
(iv) पादप युग्मकोद्भिद् (Gametophyte) प्रकार का होता है, परन्तु बीजाणुजनक (Sporophyte) पीढ़ी भी सुविकसित होती है।
(v) पीढ़ी एकान्तरण पाया जाता है।
संघ- ब्रायोफाइटा को निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा गया है।
हिपेटिसी (Hepaticeae) इसके अन्तर्गत सभी लिवरवर्ट्स (Liverworts) आते हैं; उदाहरण- मार्केन्शिया (Marchantia), रिक्सिया (Riccia), आदि।
एन्थोसिरोटी (Anthocerotae) इसके अन्तर्गत सभी हॉर्नवर्ट्स (Hornworts) आते हैं; उदाहरण- एन्थोसिरोस (Anthoceros), आदि।
मसाई (Musci) इसके अन्तर्गत सभी मॉसेस (Mosses) आते हैं;
उदाहरण- फ्यूनेरिया (Funaria), आदि।

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मुख्य सदस्य – मार्केन्शिया Marchantia
इनकी इसका मुख्य पादप थैलासाभ (Thallus-like) तथा द्विशाखित होता है। इसमें आन्तरिक मूलाभास एककोशिकीय सरल भित्ति वाले एवं गुलीकीय (Tuberculate) होते हैं।
संरचना में पादप शरीर प्रकाश-संश्लेषण क्षेत्र (Photosynthetic zone) और संग्रह क्षेत्र (Storage zone) में विभेदित होता है। इसमें कायिक जनन थैलस के मृत्यु तथा क्षय से अथवा गैमी (Gammae) द्वारा होता है तथा लैंगिक जनन विषमयुग्मकी (Anisogamous) प्रकार का होता है। मार्केन्शिया की अधिकांश जातियाँ एकलिंगाश्रयी होती हैं।

फ्यूनेरिया (मॉस) Funaria (Moss )
फ्यूनेरिया एक विश्वव्यापी मॉस है, इसे कॉर्ड मॉस (Cord moss) भी कहते हैं। इसका युग्मकोद्भिद् दो अवस्थाओं अर्थात् प्रोटोनिमा (Protonema) अवस्था (श्यान, शाखित, बहुकोशिकीय एवं तन्तुमय) और युग्मकधर (Gametophore) अवस्था (चिरकालिक, वयस्क, पत्तीयुक्त एवं सीधा पौधा), में पाया जाता है। युग्मधर मूलाभासों, सीधे व शाखित स्तम्भ तथा सर्पिल क्रम में लगी छोटी-छोटी पत्तियों से बना होता है। इसकी पत्तियों में क्यूटिकल तथा रन्ध्रों का अभाव होता है। इसमें कायिक जनन प्राथमिक प्रोटोनिमा, द्वितीयक प्रोटोनिमा, पुत्र प्रकलिकाओं (Bulbils) तथा अपबीजाणुता (Apospory) होता है। यह उभयलिंगाश्रयी (Monoecious) होता है।

2. संघ-ट्रैकियोफाइटा Tracheophyta

इस संघ की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) इन पादपों में संवहन ऊतक (Vascular tissue) अर्थात् दारु (Xylem) एवं पोषवाह (Phloem) सुविकसित होते हैं।
(ii) पादप शरीर जड़, तना एवं पत्ती जैसी संरचनाओं में विभेदित होता है, परन्तु ये संरचनाएँ वास्तविक जड़, तने एवं पत्ती से भिन्न होती हैं।
(iii) ये पादप मुख्यतया स्थलीय और बीजाणुद्भिद् होते हैं।
(iv) युग्मकोद्भिद् का आकार अधिक विकसित पादपों में अत्यन्त छोटा होता चला जाता है।

संघ-ट्रैकियोफाइटा को निम्नलिखित चार उपसंघों में बाँटा गया है।

उपसंघ-साइलोप्सिडा (Psilopsida) इन पादपों में जड़ एवं पत्तियों का अभाव होता है। संवहन ऊतक केवल तने में पाया जाता है। इनकी अधिकतर जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं; उदाहरण- साइलोटम (Psilotum), मेसिप्टेरिस (Tmesipteris), आदि।
उपसंघ-लाइकोप्सिडा (Lycopsida) इन पादपों में जड़, तना एवं पत्तियाँ उपस्थित होती हैं। इनकी पत्तियाँ बहुत छोटी एवं सरल होती हैं; उदाहरण- लाइकोपोडियम (Lycopodium), सिलैजिनेला (Selaginella), लैपिडोडेण्ड्रॉन (Lepidodendron), आदि।
उपसंघ-स्फीनोप्सिडा (Sphenopsida) इन पादपों में संधित तना (Joined stem) एवं शल्क पत्र (Scale leaves) पाए जाते हैं; उदाहरण- कैलामाइटीज (Calamites), इक्वीसिटम (Equisetum), आदि।
उपसंघ-टैरोप्सिडा (Pteropsida) इनमें सुविकसित जड़, तना एवं पत्तियाँ पाई जाती हैं। इसके अन्तर्गत आने वाले पादपों में जटिल संवहन ऊतक तन्त्र पाया जाता है।

उपसंघ-टैरोप्सिडा को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किया गया है।

वर्ग-फिलीसिनी (Filicineae) ये पुराने वर्गीकरण के अनुसार टेरिडोफाइटा के अन्तर्गत आते हैं। ये पादप नम, छायादार स्थानों पर पाए जाते हैं। इनमें संवहन ऊतक उपस्थित होता है किन्तु बीज नहीं बनते हैं। इन पादपों की जड़ें अपस्थानिक (Adventitious), तना प्राय: भूमिगत प्रकन्द (Rhizome) एवं पत्तियाँ संयुक्त (Compound) होती हैं; उदाहरण-अनेक प्रकार के फर्न; जैसे- टेरिस (Pteris), मार्सीलिया (Marsilea), ड्रायोप्टेरिस (Dryopteris), टेरिडियम (Pteridium), आदि हैं।

मुख्य सदस्य – ड्रायोप्टेरिस Dryopteris

इसका मुख्य पौधा बीजाणुद्भिद् (Sporophyte) होता है, जो जड़, प्रकन्द (तना) एवं पत्तियों में विभेदित होता है। इसकी जड़ें अपस्थानिक होती हैं, जो प्रकन्द की निचली सतह से निकलती हैं। इसका तना प्रकन्द रूप में होता है, जो अनेक महीन भूरे रंग के रोमों से ढ़का रहता है, जिन्हें तनुशल्क कहते हैं। ड्रायोप्टेरिस की पत्तियाँ द्विपिच्छकी संयुक्त (Bipinnately compound) होती हैं। इनमें जनन बीजाणुओं द्वारा होता है।

वर्ग-अनावृतबीजी पादप (Gymnospermae) ये पादप बहुवर्षीय एवं काष्ठीय (Woody) होते हैं। इन पादपों में बीजाण्ड (Ovules) नग्न अवस्था में होते हैं। अतः ये पादप नग्नबीजी कहलाते हैं। इनमें पुष्पक्रम के स्थान पर शंकु (Cone) लगे होते हैं, जिनमें विशेष पत्तियाँ, जिन्हें बीजाणुपर्ण (Sporophyllus) कहते हैं, समूह में होती हैं। नर एवं मादा शंकु अलग-अलग होते हैं। इनमें संवहन ऊतक लगभग पूर्ण विकसित होते हैं अर्थात् इनके संवहन ऊतकों के दारु में वाहिकाओं एवं पोषवाह में है तथा परागण, वायु द्वारा होता है। सहकोशिकाओं का अभाव होता है। इनमें वास्तविक फल का निर्माण नहीं होता गया है।

वर्ग-अनावृतबीजी पादपों को निम्नलिखित दो उपवर्गों में विभाजित किया है –
उपवर्ग-साइकैडोफाइटी (Cycadophyteae) ये पादप शाखाहीन,
ताड़ की तरह काष्ठीय एवं बहुवर्षीय होते हैं। इनके शीर्ष पर संयुक्त पत्तियाँ (Compound leaves) पाई जाती हैं। नर और मादा पुष्प शंकुओं (Cones) में व्यवस्थित होते हैं; उदाहरण- साइकस (Cycas), आदि।

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मुख्य सदस्य – साइकस Cycas

यह एक जीवित जीवाश्म (Living fossil) है। इसका मुख्य पादप बीजाणुद्भिद् होता है, जो जड़, तना एवं पत्तियों में विभेदित होता है। साइकस में दो प्रकार की जड़ें (सामान्य तथा प्रवाल) पाई जाती है। प्रवाल या अतिरिक्त जड़ें अगुरुत्वानुवर्ती द्विभाजीशाखित तथा गुच्छों में पाई जाती हैं। इसका तना मोटा, सीधा, ठोस और अशाखित होता तथा स्थाई कण्ठिल पर्णधारों के कवच द्वारा पूर्णरूप से ढका रहता है। इसमें पत्तियाँ दो प्रकार (शल्क तथा सामान्य) की होती हैं। इसमें कायिक जनन पत्र प्रकलिकाओं द्वारा होता है। यह एकलिंगाश्रयी (Autoecious) पौधा है। इसमें लैंगिक जनन विषमयुग्मकी (Oogamous) प्रकार का होता है। नर नर पौधे के मुख्य शिखर पर विकसित एवं लघुबीजाणुपर्ण से मिलकर बना होता है। इसमें संगठित मादा शंकु का अभाव होता है और गुरुबीजाणुपर्ण (Macrosporophyllus) पत्तियों के स्थान पर अग्राभिसारी क्रम में लगी रहती है।

उपवर्ग-कोनीफेरोफाइटी (Coniferophyteae) ये पादप मजबूत, लम्बे एवं सीधे होते हैं। तना शाखित होता है, जिस पर सूई के आकार (Needle-shaped) की साधारण पत्तियाँ उपस्थित होती हैं। इनके नर एवं मादा पुष्प, शंकु के आकार में व्यवस्थित होते हैं। भ्रूण में दो या दो से अधिक बीजपत्र (Cotyledons) होते हैं, जिनमें बीज तो बनते हैं किन्तु फल नहीं बनते हैं; उदाहरण- पाइनस (Pinus), सरु (Cupressus), देवदार (Cedrus), मोरपंखी (Cypress), आदि।

मुख्य सदस्य – पाइनस Pinus

इसका बीजाणुद्भिद् पादप बहुवर्षीय सदाबहार है, जो जड़, तना एवं पत्तियों में विभेदित होता है। इसकी जड़ें मूसला, शाखित तथा एकलपोषित कवकमूल (Ectotrophic mycorrhiza) युक्त होती है। इसकी पत्तियाँ सूक्ष्माकार तथा दो प्रकार अर्थात् शल्क पत्र तथा हरी पत्तियाँ होती हैं।
पाइनस एकलिंगाश्रयी (Autoecious) और द्विलिंगाश्रयी (Monoecious) होता है। इसमें प्रजनन केवल बीजाणु (Spore) के द्वारा होता है। साइकस के विपरीत माइक्रो (लघु) तथा गुरुबीजाणुपणं क्रमश: नर और मादा शंकु का निर्माण करते हैं।
वर्ग-आवृतबीजी पादप (Angiospermae) ये पादप एकवर्षीय
(Annual), द्विवर्षीय (Biennial), बहुवर्षीय (Perennial), शाकीय या काष्ठीय सभी प्रकार के होते हैं। इनमें पुष्प स्पष्ट होते हैं
इनमें बीज सदैव फल के अन्दर होते हैं। परागण विभिन्न माध्यमों जल,वायु, कीटों, पक्षियों एवं जानवरों द्वारा होता है। ये पादप सर्वाधिक विकसित वर्ग में आते हैं।

वर्ग-आवृतबीजी पादपों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया है।
उपवर्ग- एकबीजपत्री पादप (Monocotyledonae) इन पादपों के बीजों में केवल एक बीजपत्र (Cotyledon) होता है। पत्तियों में समानान्तर शिराविन्यास (Parallel venation) पाया जाता है। जड़ें प्राय: अपस्थानिक (Adventitious) प्रकार की होती हैं। पुष्प त्रितयी (Trimerous) होते हैं; उदाहरण-गेहूँ, मक्का, गन्ना, धान, घास, आदि।

मुख्य सदस्य – मक्का Corn

यह एकवर्षीय पौधा है। इसके तने में संवहन बण्डल (Vascular bundles ) भरण ऊतक (Ground tissues) में बिखरे और अवर्धी होते हैं। इसकी पत्तियों में समानान्तर शिराविन्यास पाया जाता है। इसके बीजों का उपयोग खाद्य-पदार्थों के रूप में किया जाता है। यह एकबीजपत्री पादप है, क्योंकि इसके बीज में एक बीजपत्र उपस्थित होता है।

उपवर्ग – द्विबीजपत्री पादप (Dicotyledonae) – इन पादपों के बीजों में दो बीजपत्र होते हैं। पत्तियों में जालिकावत् शिराविन्यास (Reticular venation) पाया जाता है। जड़ें प्राय: मूसला (Taproots)/प्रकार की होती हैं। पुष्प पंचतयी (Pentamerous) होते हैं; उदाहरण- सरसों, सेब, आम, सूरजमुखी, मटर, चना, अरहर, अंगूर, पीपल, अमरूद, आदि।

मुख्य सदस्य – सूरजमुखी Sunflower

यह एकवर्षीय शाक है। इसका तना वायवीय, ऊर्ध्व, बेलनाकार, शाखित,ठोस और शाकीय होता है। इसकी पत्तियाँ स्तम्भिक व शाखित होती हैं,जिनमें एकशिरीय शिराविन्यास पाया जाता है। यह द्विबीजपत्री पादप है,क्योंकि इसके बीज में दो बीजपत्र उपस्थित होते हैं।

                             ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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