शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएं | शिक्षा का महत्व | meaning and definition of education in hindi

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय वर्तमान भारतीय समाज एवं प्रारंभिक शिक्षा में सम्मिलित चैप्टर शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएं | शिक्षा का महत्व | meaning and definition of education in hindi आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएं | शिक्षा का महत्व | meaning and definition of education in hindi

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शिक्षा का अर्थ / meaning of education

यह एक जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएं में हम शिक्षा का अर्थ अलग अलग दृष्टि से निम्न 6 तरीकों से समझा जा सकता है-

(1) शिक्षा का अर्वाचीन अर्थ
(2) शिक्षा का शाब्दिक अर्थ
(3) शिक्षा का संकुचित अर्थ
(4) शिक्षा का व्यापक अर्थ
(5) शिक्षा का विश्लेषणात्मक अर्थ
(6) शिक्षा का वास्तविक अर्थ

(1) शिक्षा का अर्वाचीन अर्थ / Modern Meaning of Education in hindi

आधुनिक समय में शिक्षा को गतिशील (Dynamic) माना गया है तथा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया (Long life process) बताया गया है, जो कि शिक्षा का व्यापक अर्थ है।

अर्वाचीन शिक्षा में शिक्षा शब्द का प्रयोग तीन रूपों में किया जाता है-
(1) ज्ञान के लिये,
(2) मानव के शारीरिक एवं मानसिक व्यवहार में परिवर्तन हेतु प्रक्रिया के लिये
(3) पाठ्यचर्या के एक विषय के लिये।

(2) शिक्षा का शाब्दिक अर्थ / Word meaning of education in hindi

शिक्षा को अंग्रेजी भाषा में एज्युकेशन (education) कहते हैं। शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार एजूकेशन’ शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के तीन शब्दों ‘एडूकेटम’ (Educatum), ‘एसियर’ (Educere) तथा ‘एडूकेयर’ (Educare) से हुई है।

एडूकेटम का अर्थ अन्दर से विकास करना है। लेटिन भाषा के अन्य दो शब्द एडूकेयर’ तथा एडूसियर’ हैं। इनमें से एडूकेयर (Educare) का अर्थ है-आगे बढ़ना, विकसित करना अथवा बाहर निकालना। दूसरा शब्द ‘एडूशियर’ (Educere) है, जिसका अर्थ है-बाहर निकालना।

हिन्दी का ‘शिक्षा’ शब्द संस्कृत भाषा के ‘शिक्ष्’ धातु से बना है। शिक्ष’ धातु में (आ) प्रत्यय लगाने से ‘शिक्षा’ की उत्पत्ति हुई है। ‘शिक्षा’ शब्द से तात्पर्य ‘सीखना और सिखाना’ (Learning and teaching) है। इस दृष्टि से भी शिक्षा एक प्रक्रिया है, इसमें सीखने और सिखाने की प्रक्रिया चलती रहती है।

(3) शिक्षा का संकुचित अर्थ / Narrower meaning of Education in hindi

संकुचित अर्थ में शिक्षा से अभिप्राय विद्यालयी शिक्षा से है, जिसमें नियन्त्रित वातावरण में बालक को बिठाकर पूर्व निर्धारित अनुभवों का ज्ञान करवाया जाता है। इस प्रकार की शिक्षा की एक निश्चित अवधि होती है तथा इसका एक निर्धारित पाठ्यक्रम बनाया जाता है। शिक्षा के संकुचित अर्थ में बालक का स्थान गौण तथा शिक्षक का स्थान मुख्य होता है।

(4) शिक्षा का व्यापक अर्थ / Extensive meaning of Education in hindi

व्यापक दृष्टि से शिक्षा का अर्थ उन सभी अनुभवों से है, जो बालक विभिन्न परिस्थितियों में अर्जित करता है। इस अर्थ के अनुसार शिक्षा’ आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। बालक को प्राकृतिक वातावरण के साथ अनुकूलन करना पड़ता है। थोड़ी आयु बढ़ने के साथ वह युवक के रूप में सामाजिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय अनेक अनुभव अर्जित करता है। इस प्रकार अर्जित अनुभव ही शिक्षा है।

(5) शिक्षा का विश्लेषणात्मक अर्थ / Analytical meaning of Eduration in hindi

शिक्षा शब्द इतना बहुअर्थी है कि इसकी व्याख्या विविध प्रकार से की जाती है। यहाँ शिक्षा के अर्थको और अधिक स्पष्ट करने के लिये शिक्षा शब्द का विश्लेषण करके उसके निश्चित अर्थ की ओर बढ़ने का प्रयास करेंगे-

(1) शिक्षा-जन्मजात शक्तियों के विकास के रूप में शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में होने वाली प्रगति के परिणामस्वरूप मनोवैज्ञानिकों की मान्यता है कि ज्ञान को छात्रों के मस्तिष्क में दूंस-ठूस कर भरना शिक्षा नहीं है। इसके विपरीत शिक्षा का अर्थ छात्र की जन्मजात शक्तियों का सर्वांगीण विकास करना है।

(2) शिक्षा-नवीन सूचनाओं के रूप में-कुछ व्यक्तियों के मतानुसार नवीन सूचनाओं का संग्रह तथा निष्पादन ही शिक्षा है, वे सूचनाओं को ही ज्ञान कहते हैं। यद्यपि शिक्षा प्रक्रिया में सूचनाएं सहायक होती हैं, किन्तु ये शिक्षा का स्थान ग्रहण नहीं कर सकी।

(3) शिक्षा-एक गतिशील प्रक्रिया के रूप में शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है जो व्यक्ति एवं समाज दोनों को ही विकास के पथ पर अग्रसर करती है।

(4) शिक्षा-विद्यालय की परिधि के सीमित ज्ञान के रूप में-कुछ विद्वान् शिक्षा को विद्यालय की परिधि तक ही सीमित मानते हैं किन्तु शिक्षा के सम्बन्ध में इस प्रकार की धारणा दोषपूर्ण है।

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(6) शिक्षा का वास्तविक अर्थ (Real meaning of Education)

( Education ) शिक्षा के शाब्दिक, संकुचित, व्यापक और विश्लेषणात्मक अर्थ से शिक्षा की वास्तविक धारणा स्पष्ट नहीं होती। प्रश्न यह उठता है कि हमको शिक्षा का कौन-सा रूप स्वीकार करना चाहिये? शिक्षा का शाब्दिक अर्थ स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह आवश्यक नहीं कि शाब्दिक अर्थ वास्तविक अर्थ भी हो। संकुचित अर्थ में शिक्षा को विद्यालय की सीमाओं में बाँध दिया जाता है और नियन्त्रित वातावरण में पूर्व निर्धारित अनुभवों का ज्ञान बालकों के मस्तिष्क में ठूसकर भरा जाता है। इससे मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों की अवहेलना होती है।

शिक्षा की परिभाषाएँ / Definitions of Education in hindi

Education या शिक्षा जीवन की सबसे बड़ी ताकत है। शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएं में हम शिक्षा के अर्थ जानने के बाद अब हम शिक्षा की परिभाषाओं को अलग अलग दृष्टि में निम्न तरीको से समझ सकते हैं –

1.आध्यात्मिकता के विकास की दृष्टि से शिक्षा की परिभाषाएं

(1) विष्णुपुराण के अनुसार-“विद्या वह है जो मुक्ति दिलाये।” (सा विद्या या विमुक्तये)

(2) विवेकानन्द के शब्दों में, “मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है।”

(3) टैगोर का मानना है कि “शिक्षा का अर्थ मस्तिष्क को इस योग्य बनाना है कि वह शाश्व् सत्य की खोज कर सके, उसे अपना बना सके और उसको अभिव्यक्त कर सके।”

(4) अरस्तू के मत में, “शिक्षा व्यक्ति की मानसिक शक्ति का विशेष रूप से विकास करती है, जिससे वह परम सत्य, शिव और सुन्दर के चिन्तन का आनन्द प्राप्त कर सके।”

(5) महात्मा गाँधी के अनुसार-“शिक्षा से मेरा तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जो बालक एवं मनुष्य के शरीर, आत्मा एवं मन का सर्वोत्कृष्ट विकास कर सके।”

2. जन्मजात शक्तियों को अभिव्यक्त करने की दृष्टि से शिक्षा की परिभाषाएं

(1) फ्रोबेल के शब्दों में, “शिक्षा एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बालक अपनी जन्मजात शक्तियों को अभिव्यक्त करता है।”

(2) सुकरात के अनुसार-“शिक्षा से तात्पर्य प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क में निहित संसार के सर्वमान्य विचारों को प्रकाश में लाना है।”

(3) काण्ट के अनुसार-“शिक्षा व्यक्ति की उन सब पूर्णताओं का विकास है, जिनकी उनमें क्षमता है।”

3. वैयक्तिक विकास की दृष्टि से

(1) टी.पी.नन के शब्दों में, “शिक्षा व्यक्ति की वैयक्तिकता का पूर्ण विकास है, जिससे यह अपनी क्षमता अनुसार मानव जीवन में योगदान कर सके।”

(2) हरबर्ट के अनुसार-“शिक्षा नैतिक चरित्र का उचित विकास है।”

(3) मिल्टन का कहना है-“मैं पूर्ण एवं उदार शिक्षा उसको कहता हूँ जो व्यक्ति को निजी एवं सार्वजनिक, शान्ति एवं युद्धकालीन कार्यों की दक्षता, सुन्दरता एवं न्यायोचित ढंग से करने के योग्य बना देती है।”

4. वातावरण के साथ अनुकूलन करने की दृष्टि से

(1) एच.एच. हार्न के शब्दों में,“शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मनुष्य प्रकृति, समाज एवं विश्व के चरम स्वरूप के साथ अनुकूलन स्थापित करता है।”

(2) टैगोर के अनुसार-“सर्वोच्च शिक्षा वह है, जो हमें केवल सूचनाएँ ही नहीं देती, बल्कि हमारे जीवन और सम्पूर्ण सृष्टि में एकरसता पैदा करता है।”

(3) जॉन डीवी के मत में, “शिक्षा व्यक्ति की उन समस्त आन्तरिक शक्तियों का विकास है, जिससे वह अपने वातावरण पर नियन्त्रण रख सके तथा अपनी सम्भावनाओं को पूर्ण कर सके।”

शिक्षा की विशेषताएं / properties of education in hindi

1.शिक्षा एकगतिशील प्रक्रिया (Education is dynamicprocess)-शिक्षा समय के समान गतिशील है, जिस प्रकार समय कभी नहीं रुकता, चलता ही रहता है, ठीक इसी प्रकार शिक्षा की प्रक्रिया भी लगातार चलती रहती है और प्राप्त ज्ञान में अधिक वृद्धि करती है, साथ ही मनुष्य के जीवन को उत्तम, प्रगतिशील तथा आनन्दमयी बनाता है।

2. शिक्षा द्विमुखी प्रक्रिया (Education is bipolar process)-यह प्रक्रिया शिक्षक तथा विद्यार्थी के बीच होती है, जिसमें विद्यार्थी का स्थान अधिक महत्त्वपूर्ण है। जब तक विद्यार्थी सक्रिय नहीं होगा तब शिक्षक कितनी ही अच्छी विधि से शिक्षा प्रदान करे, वह निरर्थक ही होगी और न ही शिक्षक के निष्क्रिय रहने पर उत्तम शिक्षा दी जा सकती है। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री एडम्स (Adams) तथा रॉस (Ross) के अनुसार शिक्षा द्विमुखी प्रक्रिया है।

3.शिक्षा त्रिमुखी प्रक्रिया (Education is tripolar process)-डीवी (Dewey) के अनुसार, शिक्षा त्रिमुखी प्रक्रिया है क्योंकि शिक्षक तथा विद्यार्थी के अतिरिक्त प्राकृतिक तथा सामाजिक वातावरण भी शिक्षा पर प्रभाव डालता है।

4. जन्मजात शक्तियों का विकास (Development innate powers)-यदि बालक की आन्तरिक शक्तियों को बिना जाने उसे शिक्षा दी जायेगी तो उसका विकास अवरुद्ध हो जायेगा। इसलिये बालक की क्षमताओं और रुचियों को ध्यान में रखना आवश्यक है। इससे उसमें निहित क्षमताओं तथा शक्तियों का समुचित विकास किया जा सकता है, जैसा कि सुकरात (Socrates), एडीसन (Addison) एवं फ्रॉबेल (Froebel) का मत है।

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5. केवल पुस्तकीय ज्ञान (Not only bookish knowledge)-पुस्तकीय ज्ञान से तात्पर्य है-संकुचित ज्ञान, जो केवल विद्यालयों में पाठ्यक्रम के अनुसार दिया जाता है शिक्षा का अर्थ केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं है वरन् यह सभी ज्ञान शिक्षा के अन्तर्गत आता है, जो बालक घर, पार्क, सड़क तथा अन्य स्थानों पर सीखता है।

6.सामाजिक विकास की प्रक्रिया (Process of social development)-शिक्षा केवल व्यक्ति विशेष की ही उन्नति नहीं करती अपितु यह व्यक्ति की सहायता से समाज, देश, संस्कृति तथा अन्य वातावरणों को भी समृद्धिशाली बनाती है क्योंकि पाठ्यक्रम में समाज, राष्ट्र एवं साहित्य सम्बन्धी सामग्री दी जाती है। जिससे बालक परिचित होता है और रुढ़ियों के विरुद्ध संघर्ष का प्रयास करके समाज और साहित्य को परिष्कृत करता है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है और मानव मात्र ही नहीं अपितु सम्पूर्ण सृष्टि ही इसकी विषय-वस्तु है। साथ ही साथ स्वच्छन्द चिन्तन को भी इसमें सम्मिलित किया जाता है।

शिक्षा का महत्त्व / Importance of Education in hindi

शिक्षा के अर्थ एवं परिभाषाओं पर विचार करने से यह स्पष्ट हो गया है कि मानव की आवश्यकताओं को पूरा करने वाली शिक्षा अवश्य ही अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। शिक्षा का महत्त्व ही उसके कार्य हैं। शिक्षा व्यक्ति के प्रत्येक पहलू को विकसित करके उसका चारित्रिक निर्माण करती है अर्थात् मानवता का पाठ पढ़ाती है।

महत्त्व की दृष्टि से शिक्षा के कार्य निम्नलिखित बिन्दुओं में विभक्त किये गये हैं-(1) व्यक्ति से सम्बन्धित कार्य। (2) समाज से सम्बन्धित कार्य। (3) राष्ट्र सम्बन्धी कार्य । (4) प्राकृतिक वातावरण सम्बन्धी कार्य।

1. व्यक्ति से सम्बन्धित कार्य (Functions relating to individualy)

शिक्षा के व्यक्ति से सम्बन्धित कार्य निम्नलिखित हैं-


(1) आन्तरिक शक्तियों का विकास (Development of innate powers)-शिक्षा मनुष्य की अन्तर्निहित शक्तियों का समुचित विकास करती है, जिससे वह कल्पना, तर्क अथवा जिज्ञासा द्वारा नवीन योगदान दे सके । शिक्षा द्वारा उसकी आन्तरिक शक्ति का पूर्ण लाभ उठाया जा सकता है।

(2) व्यक्तियों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का उचित विकास (Proper development of personality)-शिक्षा द्वारा व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है, जैसे-शारीरिक, मानसिक, धार्मिक, नैतिक, आध्यात्मिक, संवेगात्मक आदि।

(3) भावी जीवन हेतु तैयारी (Preparation for future life)-शिक्षा व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करके उसे प्रत्येक क्षेत्र में सक्षम बनाती है। इससे व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक जीवन सुखमय तथा आनन्दमय व्यतीत होता है।

(4) नैतिक उत्थान (Moral development)-शिक्षित व्यक्ति अच्छे-बुरे कार्यों में आसानी से भेद कर लेता है, फलस्वरूप वह बुरी प्रवृत्तियों से बचने का प्रयास करता है और दूसरों को भी ऊँचा उठाने का प्रयास करता है।

(5) मानवीय गुणों का विकास (Developrnent of human virtues)-शिक्षा के द्वारा घृणा,द्वेष,क्रोध एवं लालच आदि से छुटकारा मिल जाता है तथा सद्भावना, प्रेम, सहकारिता, दया आदि का विकास होता है।

2. समाज सम्बन्धी कार्य (Functions relating to society)

शिक्षा के समाज से सम्बन्धित कार्य निम्नलिखित हैं-

(1) सामाजिक नियमों का ज्ञान (Knowledge of social laws)-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना वह एक पल भी नहीं रह सकता। अत: मानव के लिये आवश्यक है कि वह समाज के नियमों की जानकारी रखे, जिससे समाज में उसका सम्मानित स्थान हो। यह शिक्षा द्वारा ही सम्भव है।

(2) प्राचीन साहित्य का ज्ञान (Knowledge of past literature)-शिक्षा के माध्यम से होने वाला प्राचीन साहित्य का ज्ञान हमें समाज की पिछली तस्वीर से अवगत कराता है और बताता है कि आज का समाज किस प्रकृति का है? भूत तथा वर्तमान के आधार पर हम भविष्य की कल्पना आसानी से कर सकते हैं।

(3) कुरीतियों के निवारण में सहायक (Helpful in removing the bad tradi-tions)-शिक्षा के माध्यम से आने वाली पीढ़ी को सामाजिक कुरीतियों के दुष्परिणामों से अवगत कराकर उसके प्रति शीत क्रान्ति लायी जा सकती है, जैसे-जाति प्रथा, प्रदेशवाद, बाल-विवाह आदि।

(4) सामाजिक भावना का विकास (Development of social feelings)-न व्यक्ति समाज से पृथकह सकता है और न ही किया जा सकता है। अत: उसमें प्रेम, परोपकार, दया, भाईचारे की भावना आनी चाहिये, जैसा कि एच, गार्डन ने कहा है, “शिक्षक को यह जानना आवश्यक है कि वह सामाजिक प्रक्रिया को उन व्यक्तियों को समझाने की दिशा में कार्य करे जो इसे समझने में असमर्थ हैं।”

(5) सामाजिक उन्नति में सहायक (Helpful in social development)-शिक्षा सामाजिक क्रियाओं एवं तथ्यों का लेखा-जोखा साहित्य के रूप में रखती है। अतः अगली पीढ़ी उसकी कमियों को समझकर उसे दूर करने का प्रयास करती है। इसका परिणाम आदिकाल से लेकर आधुनिक अवस्था तक की प्रगति है।

(6) सभी धर्मों के विषय में उदार दृष्टिकोण (A kind attitude toward all religions)-धार्मिक दृष्टि से देखा जाय तो अनेक वाद-विवाद धर्मों के कारण ही होते हैं। यदि निष्पक्ष भावना से देखा जाय तो कोई भी धर्म दूषित विचारों को स्थान नहीं देता। उन सभी धर्मों के आदर्शों पर चला जाये तो सभी उन्नति के पथ पर ले जाते हैं। अत: शिक्षा का तुलनात्मक अध्ययन इस समस्या को दूर कर सकता है।

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3. राष्ट्र सम्बन्धी कार्य (Functions relating to nation)

शिक्षा के राष्ट्र सम्बन्धी कार्य निम्नलिखित हैं-

(1) भावात्मक एकता (Emotional integration)-धर्म, जाति, राज्य, भाषा, रीति- रिवाज एवं पहनावे को देखते हुए भारत में अनेक भिन्नताएँ पायी जाती हैं। हम अपने धर्म को अच्छा समझते हैं तथा दूसरों के धर्मको बुरा, यही कारण है कि आये दिन झगड़े होते रहते हैं। इसके निवारण का उपाय शिक्षा है, जो समस्त धर्मों के मूलभूत सिद्धान्तों को समझा सकती है।

(2) कुशल नागरिक (Efficient citizens)-शिक्षा द्वारा अच्छे नागरिकों का निर्माण किया जा सकता है क्योंकि किसी भी राष्ट्र की आधारशिला नागरिक हैं। शिक्षा के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्तव्यों तथा अधिकारों का ज्ञान कराया जा सकता है।

(3) राष्ट्रीय विकास (National development)-प्रत्येक राष्ट्र का विकास उसके नागरिकों पर निर्भर है, यदि देश के सभी व्यक्ति शिक्षित होंगे तो निश्चित ही राष्ट्र के नागरिक आत्म-निर्भर बनेंगे, इससे प्रत्येक नागरिक की आय में वृद्धि होगी। इस प्रकार राष्ट्रीय आर्थिक विकास दृष्टिगोचर होगा।

(4) राष्ट्रीय एकता (National integration)-जातिवाद, राज्य तथा क्षेत्र भाषा को लेकर अनेक झगड़े खड़े हो जाते हैं। भारतवासी कहलाने वाले हम अपने को पंजाबी, बंगाली एवं गुजराती कहते हैं तथा अपनी-अपनी भाषा को प्रमुख मानते हैं, ऐसा क्यों? शिक्षा द्वारा यह भावनाएँ दूर करके भारतीयता की भावना लायी जा सकती है।

(5) सार्वजनिक हित सम्बन्धी (Related to public welfare)-आजकल मानव अत्यधिक स्वार्थी हो गया है, शिक्षा ही यह समझा सकती है कि सभी का हित होगा तो उसमें कुछ अपना भी हित हो सकता है। केवल स्वयं के भले में दूसरों का तो लेशमात्र भी भला नहीं हो सकता, इसलिए स्वार्ण की भावना छोड़कर सार्वजनिक हित को ध्यान में रखना चाहिये।

(6) राष्ट्रीय आय सम्बन्धी (Related to national income)-आजकल शिक्षा का कोई उद्देश्य नहीं है, यदि शिक्षा को पुस्तकीय रूप न देकर व्यावसायिक शिक्षा का रूप दें तो बेरोजगार व्यक्ति स्वयं कुछ व्यवसाय कर सकते हैं, जिससे देश का बोझ हल्का होने के साथ-साथ राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि हो सकती है।

(7) अधिकार तथा कर्तव्यों का ज्ञान (Knowledge of rights and duties)-शिक्षा द्वारा देश के प्रत्येक नागरिक को उसके अधिकार तथा कर्तव्यों का ज्ञान कराकर देश के प्रति क्रियाशील बनाया जा सकता है तथा उसमें राष्ट्रीय तथा भावनात्मक एकता का विकास देश के हित में किया जा सकता है।

4. वातावरण सम्बन्धी कार्य (Functions relating to environment)

शिक्षा के वातावरण से सम्बन्धित कार्य निम्नलिखित हैं-

(1) वातावरण समायोजन (Adaptation toenvironment)--मानव एक विवेकशील प्राणी है। अत: वह वातावरण की विषमताओं को सहन करते हुए उनसे बचने के उपाय ढूँढ़कर उनको अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करता है। शिक्षा उसकी समस्याओं को हल करने में और अधिक सहायता करती है, जो उससे पूर्व के व्यक्तियों द्वारा किये गये समायोजन के आधार पर होता है। ट्रामसन ने लिखा है-“वातावरण शिक्षक है और शिक्षा का कार्य है छात्र को उस वातावरण के अनुकूल बनाना, जिससे वह जीवित रह सके और अपनी मूल प्रवृत्तियों को सन्तुष्ट करने के लिये अधिक से अधिक सम्भव अवसर प्राप्त कर सके।”

(2) वातावरण परिवर्तन (Modification of environment)-जब व्यक्ति वातावरण से समायोजन करने में असफल रहता है तो वह वातावरण में ही सुधार का प्रयास करता है। जिसमें शिक्षा अत्यधिक महत्त्वपूर्ण कार्य करती है। यह सरल हल निकाल देती है और व्यक्ति वातावरण पर अधिकार प्राप्त करने के प्रयत्न करता है। जॉन डीवी के अनुसार-“वातावरण से पूर्ण अनुकूलन करने का अर्थ है-मृत्यु। आवश्यकता इस बात की है कि वातावरण पर नियन्त्रण रखा जाये।”

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