प्रकृति की सुबह पर निबंध | प्रकृति पर निबंध | essay on nature in hindi

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  प्रकृति की सुबह पर निबंध | प्रकृति पर निबंध | essay on nature in hindi पर निबंध प्रस्तुत करता है।

Contents

प्रकृति की सुबह पर निबंध | प्रकृति पर निबंध | essay on nature in hindi

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) प्रातः काल पर निबंध
(2) किसी सुंदर दृश्य का वर्णन पर निबंध
(3) प्रभात शोभा पर निबंध
(4) प्रभात वर्णन पर निबंध
(5) सुबह का दृश्य पर निबंध

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प्रकृति की सुबह पर निबंध | प्रकृति पर निबंध | essay on nature in hindi

पहले जान लेते है प्रकृति की सुबह पर निबंध | प्रकृति पर निबंध | essay on morning of nature in hindi पर निबंध की रूपरेखा

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना
(2) निशावसान
(3) प्रातः कालीन वायु
(4) सरोवर की शोभा
(5) पक्षियों का कूजन
(6) नगर शोभा
(7) ग्राम शोभा
(8) उपसंहार

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प्रकृति की सुबह पर निबंध | प्रकृति पर निबंध | essay on nature in hindi

प्रस्तावना

अहो ! कितना मनोरम है यह प्रभात का दृश्य! रजनीवधू के साथ अभिरमण-क्रीडा से खिन्न रजनीकान्त ने नीलावरण आकाश शैया से प्रस्थान किया।

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बिखरे हुए केशपाश को समेट कर रजनी उठी। अभिरमण काल में उसका जो मोतियों का हार टूट गया था उसके सारे मोतियों को बटोरकर विरहकातरा रजनी मानो एकान्त सेवन के लिए चली गयी।

अब आरम्भ हुआ-उषा सुन्दरी का विलास!

सुपष्पिता लता ‘प्रिया पुकारती है चातकी।
अमन्द मोदमग्न है, सुगन्ध मन्द बात की ॥
उषा अतीव शोभानुराग रक्त गात की।
अहो ! मनोरमा छटा बिराजती प्रभात की॥






निशावसान

उसी समय दिवाकर ने अपने शत्रु अन्धकार पर चढ़ाई की। उसके सहस्र करों से अन्धकार की सेना धराध्वस्त हुई। उसी के रक्त से प्राची का ऑँचल रक्तमय हो गया। अन्धकार स्वयं घने जंगलों और
पर्वतों की कन्दराओं में जाकर छिप गया।



प्रातःकालीन वायु

शीतल-मन्द-सुगन्ध पवन मस्ती में झूमता हुआ आया। उसके स्परश से लतावधू रोमाचित हो उठी। रंग-बिरंगे फूलों से श्रृंगार कर सज-धजकर उसने प्रियतम का स्वागत किया।

उसके अनुपम सौन्दर्य को देखकर चला आया मधुकर-निकर । लूटने लगे मधु की प्यालियाँ और आरम्भ हो गयी मधुपों की मधुर तान। अलबेली नवेली लताओं के झुरमुट मधुर गुंजन से गुंजायमान हो गये।




सरोवर की शोभा

उधर सरोवर की अनुपम छटा है। जैसे ही भगवान् भास्कर अपने शत्रु अन्धकार का नाश कर उदयाचल पर आरूढ़ हुए, पर पूरुष कर के स्पर्श की शंका से भीत कुमुदनी लज्जा से संकृचित- सी प्रतीत होने लगी।

कमलिनी अपने प्रियतम का विजयोत्सव मना रही है। उसका विलास देखने योग्य है। क्यों न हो? बह देखो कमलिनी-वल्लभ अपने कान्त करो से कमलिनी के कोमल कपोल को थपथपा रहा है। कैसी मनोरम शोभा ! कैसी मनोहर छटा बन-प्रदेशो में चारों ओर बिखरी है।





पक्षियों का कूजन

साथ ही आरम्भ हुआ खग-कुल का मधुर कुल-कुल रव ! सभी दिशाएँ शब्दायमान हैं। आकाश में पक्षियों के समूह इधर-उघर जा रहे हैं ।

सुपुष्पित लताओं पर, हरे भरे बृक्षों पर, कल-कल ध्वनि करती हुई सरिता के आकर्षक तटों पर वनों में, उपबनों में सर्वत्र पक्षियों का मधुर कूजन, मनोरम नृत्य मानो वातावरण में रस घोल रहा है। राचमुच अपूर्व दृश्य है!





नगर-शोभा

लोक ने उष्म-रश्मि से चैतन्य प्राप्त किया। बस्तियों में अजीब चहल-पहल है। नगरो का सन्नाटा समाप्त हुआ। कल-कारखानों में काम करने वाले लोग चेतनता का अनुभव कर रहे हैं।

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शौच स्नानादिक दैनिक कार्यों से निवृत्त नागर-तागरी दिन के भावी कार्यक्रम की तैयारी में व्यस्त है। सड़कों पर मोटरों की पों-पो, ताँगों की खट-खट, रिक्शा-साइकलो की टन-टन शुरू हो गयी है।






ग्राम-शोभा

गाँव की विचित्र शोभा है। भोली कृषक वधुओं ने मुँह अंधेरे ही बिस्तर छोड़ दिया और जुट गयीं अपनी गाय-भैंस, वैलों की सेवा में । उनके घास-पानी का प्रबन्ध किया।

कृषक बालिकाएँ घर की सफाई के काम में व्यस्त हैं। साथ ही किसान भी अँगड़ाई लेकर उठा। सहसा उसके मुख से निकला- राम । बस यही उसकी सन्ध्या है, यही पूजा हैं।

निःसन्देह उसके निश्छल, निष्पाप हृदय से निकला हुआ यह एक ही शब्द वेद, गीता और उपनिपद् के पाठ से कम नहीं । जो निश्छल भक्ति और ईश्वरीय प्रेम वर्षों के तप से दुर्लभ है, वह भरा है इस एक शब्द ‘राम’ में। इसके बाद हुक्के की चिलम दागी और कमर कस कर खडा हो गया।

अब दिनभर विश्राम न करने का मानो उसने संकल्प कर लिया। पहले उसने अपनी गाय-भैसो का दूध दुहा। सफेद-सफेद दूध से उसकी वाल्टी भर गयी। उधर उसकी गहिणी ने रात की जमाई दही को बिलोकर सफेद चांद जैसा मक्खन का ढेला निकालकर  मट्ठा तैयार किया।

किसान ने मौन भाव से उसके पास जाकर दूध की बाल्टी रस दी । दोनों ने एक-दूसरे को कुछ नहीं कहा, पर ऑखों की मौन भाषा में ही दिनभर का कार्यक्रम तय हो गया।

प्रेम और दाम्पत्य जीवन का जो आनन्द इस मौन संकल्प में भोले दम्पति प्राप्त करते हैं, बहु नगरों के टीम-टाम और आडम्बरपूर्ण कृत्रिम जीवन में कभी प्राप्त नहीं हो सकता। दनों ने एक-दूसरे को देखा। आँखों में न जाते क्या कहा, फिर अपने-अपने काम में व्यस्त हो गये। किसान अपने बैल और हल लेकर खेत को चल दिया।




उपसंहार

हरित कुन्तला धरती ने धोमी संस ली। ओस बिन्दुओं के रूप में जो मुक्ता समुह उसकी मांग में कान्तिमान थे, वे धीरे-धीरे लुप्त होने लगे।

सूर्य के कर के स्पर्श से उसकी आर्द्रता विलीन होने लगी । यह सर्वत्र उल्लास है, सर्वत्र होस है।

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प्रभात का यह मधुर वातावरण जड़-चंतन में नवीन चेतना एवं नवीम स्फूर्ति प्रदान कर देता है।



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