साहित्य और समाज पर निबंध | essay on literature and life in hindi | साहित्य और जीवन पर निबंध

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  साहित्य और जीवन पर निबंध | essay on literature and life in hindi | साहित्य और समाज पर निबंध प्रस्तुत करता है।

Contents

साहित्य और जीवन पर निबंध | essay on literature and life in hindi | साहित्य और समाज पर निबंध

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) साहित्य समाज का दर्पण है पर निबंध
(2) साहित्य समाज की अभिव्यक्ति पर निबंध
(3) साहित्य और समाज पर निबंध
(4) साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब पर निबंध

Tags –

साहित्य समाज दर्पण पर निबंध,sahitya samaj par nibandh,साहित्य और समाज निबंध इन हिंदी,साहित्य और समाज निबंध,साहित्य और समाज निबंध के लेखक,साहित्य और समाज निबंध के लेखक हैं,साहित्य और समाज निबंध के लेखक है,साहित्य और समाज का निबंध,साहित्य और समाज पर निबंध,essay on literature and life in hindi,साहित्य और जीवन पर निबंध,

साहित्य और जीवन पर निबंध | essay on literature and life in hindi | साहित्य और समाज पर निबंध

पहले जान लेते है साहित्य और जीवन पर निबंध | essay on literature and life in hindi | साहित्य और समाज पर निबंध की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना

(2) साहित्य और जीवन / समाज का सम्बंध

(3) साहित्यकार पर जीवन / समाज का प्रभाव

(4) सामाजिक परिवर्तन के साथ साहित्य में परिवर्तन

(5) हिंदी साहित्य और समाज

(6) उपसंहार

साहित्य समाज दर्पण पर निबंध,sahitya samaj par nibandh,साहित्य और समाज निबंध इन हिंदी,साहित्य और समाज निबंध,साहित्य और समाज निबंध के लेखक,साहित्य और समाज निबंध के लेखक हैं,साहित्य और समाज निबंध के लेखक है,साहित्य और समाज का निबंध,साहित्य और समाज पर निबंध,essay on literature and life in hindi,साहित्य और जीवन पर निबंध,

साहित्य और समाज पर निबंध,essay on literature and life in hindi,साहित्य और जीवन पर निबंध,Sahitya aur samaj par nibandh,Sahitya aur jivan par nibandh,




साहित्य और जीवन पर निबंध | essay on literature and life in hindi | साहित्य और समाज पर निबंध


प्रस्तावना

सामाजिक सभ्यता, संस्कृति रहन-सहन आचार-विचार।
होते हैं साहित्य मुकुर में प्रतिबिम्बित होकर साकार ।।
पाता है साहित्य नित्य प्रतिदिन समाज से ही आहार ।
दर्पण है साहित्य दिखाता जो समाज का निज आकार ॥

“साहित्य में समाज प्रतिबिम्बित होता है। तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों के अनुरूप ही किसी काल के साहित्य का निर्माण होता है।”श्री गुलाबराय






साहित्य और समाज का सम्बन्ध

किसी भाषा के संचित कोष को साहित्य कहते हैं जिसमें उस भाषा के बोलने वाले समाज के भाव व्यक्त होते हैं।

ये भी पढ़ें-  हमारी ग्रामीण समस्याएँ पर निबंध हिंदी में | essay on problems of our rural society in hindi

साहित्यकार यद्यपि समाज की एक इकाई होता है तथापि वह समाज का प्रतिनिधित्व करता है। कवि जिस युग में जन्म लेता है उसकी छाप उसके साहित्य पर साफ दिखाई पड़ती है।

समाज तथा युग भी उसके साहित्य से प्रभावित हुए बिना कदापि नहीं रह सकते। कवि अथवा साहित्यकार युगद्रष्टा होता है। वह युग के अन्तर में प्रवेश करके उसकी आत्मा के दर्शन करता है और उसे अपने साहित्य में व्यक्त करता है।

वह अपने अनुभव और सहृदयता के कारण युगे की भावनाओं को ऐसा रूप देता है जो नवीन न होते हुए भी साधारण लोगों की पहुँच से परे की वस्तु होती है।

उसके चित्र काल्पनिक होते हुए भी सत्य होते हैं। उसके साहित्य को पढ़कर ही तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक
परिस्थितियों को अनुभव किया जा सकता है।

तात्पर्य यह है कि साहित्य में तत्कालीन सामाजिक भावनाओं, परिस्थितियों एवं आचार-विचारों का ही चित्रण होता है। या यों कहें कि साहित्य में समाज प्रतिबिम्बित होता है।




साहित्यकार पर समाज का प्रभाव

साहित्यकार या कवि अपने युग के समाज के भावों और परिस्थितियों को सजीव एवं शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न करता है। युग उसके साहित्य में बोलता है।

साहित्य की भाषा ही तत्कालीन समाज के भावों को स्पष्ट कर देती है। कारण स्पष्ट है-साहित्यकार भी सामाजिक व्यक्ति हैं। समाज की परिस्थितियों के बीच में ही उसके जीवन का निर्माण होता है।

अतः समाज की परिस्थितियों के प्रभाव से साहित्यकार एवं कवि भी बच नहीं सकता, और न ही उसका साहित्य समाज से परे जा सकता है ।


सामाजिक परिवर्तन के साथ साहित्य में परिवर्तन

महाकाल के प्रभाव से समाज की राजनैतिक, सामाजिक तथा धार्मिक परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं। इस कारण समाज के साहित्य में भी सदा एकरसता नहीं होती।

देश और काल के अनुसार साहित्य में भी मोड़ आता रहता है। जो भाव और विचार कालिदास के साहित्य में मिलते हैं वे शेक्सपियर के साहित्य में नहीं मिल सकते ।

यदि भारतीय साहित्य में भारतीय सभ्यता और संस्कृति की झलक मिलती है तो पश्चिमी साहित्य में पाश्चात्य सभ्यता की झलक दिखाई पड़ती है।

काल एवं समाज के व्यापक प्रभाव के कारण ही भिन्न-भिन्न देशों और भिन्न-भिन्न कालों के साहित्य में भारी अन्तर दिखाई पड़ता है।
हिन्दी साहित्य और समाज-उदाहरण के लिए हम हिन्दी साहित्य को ही लेते हैं।

जिस युग में कबीर उत्पन्न हुए उसमें बिहारी उत्पन्न नहीं हो सकते थे। भक्त शिरोमणि तुलसी का अवतार जिस युग में हुआ,
वह साक्षात् वीर रसे के अवतार भूषण के लिए कदापि उपयुक्त न था।

ये भी पढ़ें-  विद्यार्थी और राजनीतिक जीवन पर निबंध | विद्यार्थी जीवन पर निबंध हिंदी में | essay on student life in hindi

हिन्दी के आदि काल में चन्द, नरपति नाल्ह एवं जगनिक आदि के साहित्य को पढ़कर उस काल की केन्द्रीय-सत्ता की विश्वृंखलता, राजाओं की पारस्परिक फूट, उनकी विलासिता, झूठे दम्भ के भावों का पूरा आभास मिल जाता है।

राजकुमारियों को प्राप्त करने के लिए युद्ध, स्वयंवर की प्रथा और बहु-पत्नीत्व की प्रथा का भी इस साहित्य से पूरा आभास हो जाता है।

इसी प्रकार बीरगाथा काल के साहित्य को पढ़कर यह स्पष्ट हो जाता है कि उस युग के भारतीय समाज में एक ओर तो विलास की देवी मृद्रल हास कर रही थी और दूसरी ओर रणचण्डी का ताण्डव-नृत्य हो रहा था |

उसके बाद भक्तिकालीन युग आता है। इस युग में कबीर, दादू, मलूकदास आदि सन्तों तथा जायसी,कुतुबन आदि सूफी फकीरों के साहित्य में निर्गुण और निराकार के उपदेशों में सगुण भगवान् मूर्तिपूजा से लोगों की उठती हुई श्रद्धा का आभास मिलता है।

कबीर आदि के द्वारा हिन्दू और मुसलमानों के बाह्य आडम्बरों का खण्डन किया गया; उनमें प्रेम और सहानुभूति जगाने के उपदेश दिये गये, जिससे हिन्दू- मुसलमानों के विरोध का पता चलता है।

हिन्दुओं में वर्णाश्रम के नाम पर होने वाले अत्याचार का भी इससे पता चलता है। इसके बाद सूर और तुलसी का युग आया।

सूर के साहित्य को देखकर यह आसानी से अनुमान किया जा सकता है कि नि्गुण ब्रह्म जनता को शान्ति प्रदान न कर पाया इसलिए कृष्णभक्त कवियों ने ऐसे को आराध्य बनाया जो अपने शील और सौन्दर्य से जनता के मन को मुग्ध कर सके।

तुलसी ने शील, की पूजा और भगवान् शक्ति और सौन्दर्य के आधार राम का आदर्श चरित्र उपस्थित कर उस समय की राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक दशा का सजीव चित्रण किया।

भूत-प्रेत आदि की पूजा का ढोंग, शैवों और वैष्णवों का विरोध, वर्णाश्रिम और धर्म की शिथिलता आदि समाज की सभी परिस्थितियाँ तुलसी के साहित्य में साफ दिखाई पड़ती हैं ।

रीतिकालीन साहित्य में उस समय की विलासिता तथा नैतिक-पतन के दर्शन होते हैं। भूषण आदि के काव्य में देशभक्ति की भावना तथा मुसलमानी शासन के प्रति असन्तोष स्पष्ट लक्षित होता है।

वर्तमान आधृनिक काल के साहित्य में भी समाज का स्पष्ट प्रतिबिम्बित दिखाई पड़ता है। समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियाँ, अनमेल-विवाह आदि अनेक ऐसी समस्याएँ हैं, जो साहित्य में प्रतिबिम्बित हुई हैं।

ये भी पढ़ें-  बेरोजगारी की समस्या पर निबंध | unemployment essay in hindi 

स्वतन्त्रता के बाद देश में जो परिस्थितियाँ पैदा हुई हैं उनसे भी आज का साहित्य प्रभावित हो रहा है। भ्रष्टाचार, चोरवाजारी तथा घूसखोरी के विरुद्ध साहित्य में एक विचारधारा उमड़ रही है।



उपसंहार

इस प्रकार हम किसी भी भाषा और किसी भी काल के साहित्य में तत्कालीन समाज का स्पष्ट प्रतिबिम्ब देख सकते हैं।

जिस युग में तलवारों की झंकार, आहतों के क्रन्दन और पीड़ितों की आहें सुनायीं पड़ती हो, उस युग के साहित्य में वंशी की सुरीली तान सुनायी नहीं पड़ सकती।

जैसा युग का प्रभाव होगा, जैसी समाज की दशा होगी और उसी के अनुकूल साहित्य का निर्माण होगा।

वास्तव में साहित्य समाज की सच्ची अभिव्यक्ति है। यह वह दर्पण है जिसमें समाज का स्पष्ट प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है।




अन्य निबन्ध पढ़िये











दोस्तों हमें आशा है की आपको यह निबंध अत्यधिक पसन्द आया होगा। हमें कमेंट करके जरूर बताइयेगा आपको साहित्य और जीवन पर निबंध,essay on literature and life in hindi ,साहित्य और समाज पर निबंध,देशप्रेम पर निबंध कैसा लगा ।

आप साहित्य और जीवन पर निबंध,essay on literature and life in hindi,साहित्य और समाज पर निबंध को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर कीजियेगा।

सम्पूर्ण हिंदी व्याकरण पढ़िये ।

» भाषा » बोली » लिपि » वर्ण » स्वर » व्यंजन » शब्द  » वाक्य » वाक्य शुद्धि » संज्ञा » लिंग » वचन » कारक » सर्वनाम » विशेषण » क्रिया » काल » वाच्य » क्रिया विशेषण » सम्बंधबोधक अव्यय » समुच्चयबोधक अव्यय » विस्मयादिबोधक अव्यय » निपात » विराम चिन्ह » उपसर्ग » प्रत्यय » संधि » समास » रस » अलंकार » छंद » विलोम शब्द » तत्सम तत्भव शब्द » पर्यायवाची शब्द » शुद्ध अशुद्ध शब्द » विदेशी शब्द » वाक्यांश के लिए एक शब्द » समानोच्चरित शब्द » मुहावरे » लोकोक्ति » पत्र » निबंध

सम्पूर्ण बाल मनोविज्ञान पढ़िये uptet / ctet /supertet

प्रेरक कहानी पढ़िये।

हमारे चैनल को सब्सक्राइब करके हमसे जुड़िये और पढ़िये नीचे दी गयी लिंक को टच करके विजिट कीजिये ।

https://www.youtube.com/channel/UCybBX_v6s9-o8-3CItfA7Vg

Tags – साहित्य और समाज में निबंध,साहित्य और समाज हिंदी निबंध,साहित्य समाज का दर्पण पर निबंध,साहित्य समाज का दर्पण है निबंध इन हिंदी,साहित्य समाज का दर्पण है निबंध,साहित्य समाज का दर्पण है हिंदी निबंध,साहित्य समाज का दर्पण होता है निबंध,साहित्य समाज दर्पण पर निबंध,साहित्य और समाज पर निबंध,essay on literature and life in hindi,साहित्य और जीवन पर निबंध,

Leave a Comment