essay on Indian culture in hindi | भारतीय संस्कृति पर निबंध | bhartiy sanskriti par nibandh

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Contents

भारतीय संस्कृति पर निबंध | essay on Indian culture in hindi | bhartiy sanskriti par nibandh

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) भारतवर्ष का सांस्कृतिक वैभव पर निबंध
(2) भारतीय संस्कृति की विशेषताएं पर निबंध
(3) भारत राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता पर निबंध
(4) सांस्कृतिक संस्कृति एवं एकता  पर निबन्ध
(5) कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी पर निबंध

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भारतीय संस्कृति पर निबंध | essay on Indian culture in hindi | bhartiy sanskriti par nibandh

पहले जान लेते है भारतीय संस्कृति पर निबंध,essay on Indian culture in hindi,bhartiy sanskriti par nibandh  की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना
(2) भारतीय संस्कृति का मूल
(3) भारतीय संस्कृति की विशेषताएं
(4) धर्म की प्रधानता
(5) समानता की भावना
(6) समन्वय की भावना
(7) उपसंहार



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प्रस्तावना

संस्कृति क्या है? इस विषय में न कोई सीमा निश्चित है, न इसकी कोई व्यवस्थित परिभाषा है। वास्तव संस्कृति उन सब गुणों का समूह है जिन्हे मनुष्य शिक्षा तथा प्रयत्नों द्वारा प्राप्त करता है जिनके आधार पर मनुष्य का व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन विकसित होता है।

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संस्कृति का सम्बन्ध मनुष्य की बुद्धि तथा हृदय, दोनों से है। संस्कृति का विकास जातीय चेतना में होता है। इसी चेतना में जीवन में वे सब चीजें आती है जिनका सम्बन्ध काव्य, धर्म और दर्शन से होता है।

संस्कृति का विकास मुख्य रूप से कला एवं चिन्तन की प्रतीकमूलक कृतियों में होता है। किन्तु आंशिक रूप में विवाह, शासन, शिक्षा आदि सामाजिक संस्थाएँ भी उसके विकास में सहायक होती हैं।




भारतीय-संस्कृति का मूल

जब हम भारतीय संस्कृति की चर्चा करते हैं तो हमारा तात्पर्य उस संस्कृति से होता है जिसका जन्म भारत में हुआ तथा जो युगों से भारत के विभिन्न भागों में पनपती तथा विकसित होती चली आ रही है।

दूसरे शब्दों में

इसे हम हिन्दू संस्कृति भी कह सकते हैं। इस देश में धर्म और संस्कृति का गहरा सम्बन्ध रहा है इसलिए धर्म के शिक्षकों एवं आचार्यों ने भारतीय-संस्कृति और उसके विभिन्न रूपों को विशेष रूप से प्रभावित किया है।

बौद्ध, जैन आदि अनेक सम्प्रदाय यहाँ चले परन्तु इन सब सम्प्रदायों ने हिन्दू संस्कृति की विशाल धारा में कोई कटाव न करके उसे और अधिक पुष्ट तथा प्रवहणशील ही बनाया है।

शक, हूण, यवन, मुसलमान तथा ईसाई आदि अनेक विदेशी जातियाँ यहाँ आयीं। इनमें से कुछ ने तो यहाँ काफी समय तक शासन भी किया। बहुत-सी जातियाँ इस देश में बस गयीं और यहीं की होकर रहने लगी किन्तु हिन्दू संस्कृति की यह धारा निरन्तर अबाध गति से आगे बढ़ती रही है।

वास्तव में ये लोत इतने गहरे हैं, जिन्हें कोई दूसरी संस्कृति बाधित नहीं कर सकी। बाहर से आयी संस्कृति या तो इसमें मिल कर इसी के रंग में मिल गयीं या वे इस संस्कृति से कुछ लेन-देन करके अपनी पृथक सत्ता के रूप में इस देश की धरती पर बहने लगीं।

इस्लामी संस्कृति को इसके उदाहरण के रूप में रखा जा सकता है। वास्तव में हिन्दू संस्कृति ही इस देश की व्यापक एवं प्रधान संस्कृति है जिसका मूल भारतीय मनीषियों तथा धर्म प्रवर्तकों की कृतियों तथा चिन्तनधारा में निहित है।




भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ

भारतीय संस्कृति में मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का व्यापक
रूप मिलता है। संसार के किसी अन्य धर्म या जाति में जीवन की ऐसी विविधता या व्यापकता दिखाई नहीं पड़ती है।

बौद्ध और जैन आदि अनेक सम्प्रदाय यहाँ पैदा हुए किन्तु उनके मूल्यवान विचारों और शिक्षाओं को आत्मसात् कर इस संस्कृति ने उदारता का परिचय दिया। विविधता और समन्वय की भावना की प्रधानता इस संस्कृति में प्रारम्भ से रही है।

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हिन्दू संस्कृति का जैसा सरांगीण विकास हुआ बैसा अन्य संस्कृतियों का नहीं में हो सका। यह संस्कृति उत्तर-भारत में विकसित होकर धीरे-धीरे सारे देश में फैली। भिन्न-भिन्न स्वभाव के लोगों में इसका विस्तार हुआ।

भारतीय संस्कृति का रूप अत्यन्त विचित्रतापूर्ण, विविधात्मक तथा जटिल है। यहाँ के आदर्श स्त्री-पुरुषों की कल्पनाओं में, जीवन की अनेक रूपताओं में, अनेक पन्थो और सम्प्रदायों की उत्पति तथा प्रचार में इस संस्कृति की विविधता तथा व्यापकता के प्रमाण मौजूद हैं।



धर्म की प्रधानता

भारतीय संस्कृति का मूल आधार धर्म है। धर्म भारतीय जीवन दर्शन का प्राण है। इसलिए इस संस्कृति में आध्यात्मिक भावों की अधिकता है।

हमारे यहाँ मन और शरीर, दोनों की शुद्धि पर विशेष बल दिया गया है। मनुष्य का बाहर और भीतर जब तक दोनों शुद्ध नहीं होते, तब तक वह गलत को सही मानता है।

भारतीय संस्कृति की एक और विशेषता अपने पूर्वजों की परम्परा को आगे बढ़ाना है। इस संस्कृति के अनुसार मनुष्य को देव-ऋण, ॠषि-ऋण तथा पितृ-ऋण को चुकाये बिना साधना का अधिकारी नहीं समझा जाता है।


समानता की भावना

भारतीय संस्कृति की एक महती विशेषता है-समानता की भावना।

‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ अर्थात संसार के प्राणीमात्र में अपनेपन का अनुभव करना इस संस्कृति का मुख्य सिद्धान्त है।

उदारचरितानाम् तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धान्त के आधार पर यह संस्कृति सारे विश्व को एकता के सूत्र में बाँधती है और ईशावास्यमिदं सर्वम् के सिद्धान्त के आधार पर सम्पूर्ण प्राणी जगत के प्रति सम्मान और उदारता की भावना जगाने का प्रयत्न करती है।


समन्वय की भावना

भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता उसकी समन्वय भावना है। इस संस्कृति की इस विशेषता ने ही इसे अजर-अमर बना दिया है।

शक, हुण आदि अनेक संस्कृतियाँ इस देश में आयीं,परन्तु वे सब इसमें समा गयीं सबको मिलाकर अनेकता में एकता उत्पन्न कर परस्पर के द्वन्द्वों को दूर करने की यह भावना किसी दूसरी संस्कृति में नही मिलती है।

भारतीय संस्कृति की इस विशेषता के कारण ही हजारों वर्ष तक विदेशी संस्कृतियों के शासन में रहकर भी इस संस्कृति की धारा कभी मन्द या उथली नहीं हो पायी है।

संसार में अनेक संस्कृतियाँ विकसित हुईं और मिट गयीं, उनका नाम-निशान भी आज बाकी नहीं। यूनान, मिल्र और रोम की संस्कृति जो कभी बहुत उन्नत थी, आज दिखाई नहीं पड़ती किन्तु भारतीय- संस्कृति आज भी अपनी पीयूष-धारा से अनेक नरनारियों को सिक्त करती हुई उसी प्रकार प्रवाहशील हैं-

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“यूनान मिश्र रोमाँ सब मिट गये जहाँ से ।
अब तक मगर है बाकी नामों निशाँ हमारा ॥
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहाँ हमारा ॥ “



उपसंहार

इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम तथा सर्वोन्नत संस्कृति है। इस संस्कृति ने सदैव संसार को कर्तव्य, संयम, त्याग और प्रेम का मार्ग दिखाया है।

भारतीय संस्कृति व्यक्ति में उदारता की भावना जगाकर उसके व्यक्तित्व को निखारती है, महान् कार्यों की ओर अग्रसर करती है और साथ ही समष्टिगत भावनाओं को जन्म देती है। ‘जिओ और जीने दो’ इस संस्कृति का मुख्य सन्देश है।

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Final words

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