शिक्षण अधिगम सामग्री – महत्व,आवश्यकता, उद्देश्य, विशेषताएं,प्रयोग करने में सावधानियां | teaching learning materials ( TLM ) – दोस्तों सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में शिक्षण कौशल 10 अंक का पूछा जाता है। शिक्षण कौशल के अंतर्गत ही एक विषय शामिल है जिसका नाम शिक्षण अधिगम के सिद्धांत है। यह विषय बीटीसी बीएड में भी शामिल है। आज हम इसी विषय के समस्त टॉपिक को पढ़ेगे। बीटीसी, बीएड,यूपीटेट, सुपरटेट की परीक्षाओं में इस टॉपिक से जरूर प्रश्न आता है।
अतः इसकी महत्ता को देखते हुए hindiamrit.com आपके लिए शिक्षण अधिगम सामग्री – महत्व,आवश्यकता, उद्देश्य, विशेषताएं,प्रयोग करने में सावधानियां | teaching learning materials ( TLM ) लेकर आया है।
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शिक्षण अधिगम सामग्री – महत्व,आवश्यकता, उद्देश्य, विशेषताएं,प्रयोग करने में सावधानियां | teaching learning materials ( TLM )
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शिक्षण अधिगम सामग्री का अर्थ (Meaning of Teaching learning materials)
Teaching learning materials या शिक्षण सामग्री का तात्पर्य शिक्षण के उन साधनों से है जिनके प्रयोग से बालकों की ज्ञानेन्द्रियाँ सक्रिय हो जाती हैं और वे पाठ के सूक्ष्म तथा कठिन भावों को सरलतापूर्वक समझ जाते हैं । स्मरण रहे कि जिस समय शिक्षण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न विधियाँ तथा प्रविधियाँ असफल होती दिखाई देने लगती हैं तो ऐसी स्थिति में शिक्षण सामग्री का प्रयोग किया जाता है। इस दृष्टि से शिक्षण सामग्री न केवल शिक्षण को ही अपितु शिक्षण की प्रविधियों अथवा युक्तियों को भी प्रभावशाली बनाने में रामबाण का कार्य करती है । ई. सी. डेण्टा के अनुसार शिक्षण सामग्री का अर्थ उम्र समस्त सामग्री से है जो कक्षा में अथवा अन्य शिक्षण परिस्थिति में लिखित अथवा बोली हुई पाठ्य-सामग्री में सहायता देती है।”
परिभाषाएँ (Defintions)
जॉन गई के अनुसार, “समस्त श्रव्य-दृश्य साधनों को शैक्षिक कार्यक्रम के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सहायक सामग्री या विधियाँ या साधन के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए । श्रव्य-दृश्य उपकरण स्वयं साध्य नहीं हैं, वरन् सिखाने के साधन हैं।”
एडगर डेल (Edger Dale) के अनुसार “श्रव्य दृश्य ऐसे साधन हैं, जिनके शिक्षण-प्रशिक्षण परिस्थिति में अनुप्रयोग से विभिन्न व्यक्तियों तथा समूहों के मध्य विचारों का सम्प्रेषण किया जाता है। इन्हें बहुज्ञानेन्द्रिय सामग्री भी कहा जाता है।”
मैकनॉन तथा रॉबर्ट्स (Mac.Non and Robert) के शब्दों में, “श्रव्य-दृश्य सामग्री ऐसे सहायक साधन हैं, जिनके द्वारा शिक्षक एक से अधिक ज्ञानेन्द्रियों का दोहन कर संकल्पनाओं को स्पष्ट स्थापित तथा उनमें सह-सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करता है।”
“शिक्षक इन उपकरणों का उपयोग कर बालक की एक से अधिक इन्द्रियों को प्रयोग में लाकर पाठ्य-वस्तु को सरल, रुचिकर, सुस्पष्ट, प्रभावशाली व स्थायी बनाता है।’
जेम्स (James) के अनुसार “ श्रव्य-दृश्य ऐसे साधन हैं जिनका प्रयोग अधिगम को मूर्त, वास्तविक तथा अधिक गतिशील बनाने हेतु किया जाता है।”
शिक्षण अधिगम सामग्री का महत्त्व एवं आवश्यकता
शिक्षण सामग्री के अनेक कार्य हैं तथा सभी बालकों की शिक्षा के लिए उपयोगी है। छोटे बालकों की शिक्षा में इसके महत्त्व को प्रत्येक शिक्षाशास्त्री ने एकमत होकर स्वीकार किया है। निम्नलिखित बिन्दुओं में इसके महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है-
1. प्रेरणादायी-
श्रव्य-दृश्य साधन बालकों का ध्यान आकर्षित करके ज्ञान को स्थूल रूप में प्रस्तुत करते हैं । इससे बालकों को सीखने की क्रिया में प्रेरणा एवं उत्सुकता मिलती है।
2. क्रियागत अवसर की सुलभता—
शिक्षण सामग्री के प्रयोग से बालकों को नाना प्रकार की क्रियाएँ करने के अवसर मिलते हैं। वे उसमें बोलते-चालते हैं, प्रश्न पूछते हैं तथा वाद-विवाद करते । इसमें उनकी विभिन्न इन्द्रियाँ उत्तेजित हो जाती हैं जिनके परिणामस्वरूप उनकी पाठ में रुचि बनी रहती है और वे खेलते-खेलते कठिन-से-कठिन बातों को बिना किसी कठिनाई के स्वाभाविक रूप से सीख जाते हैं।
3. स्पष्टीकरण में सहायक –
शिक्षण सामग्री के प्रयोग से बालकों को कठिन- से-कठिन पाठ्य-सामग्री का स्पष्टीकरण हो जाता है। इसका एकमात्र कारण यह है कि बालक जो कुछ सुनते हैं उसी को आँख से देख भी लेते हैं।
4. अर्थयुक्त अनुभव की प्राप्ति—
शिक्षण सामग्री द्वारा बालकों को पाठ स्थूल रूप से पढ़ाया जाता है। प्रत्येक बालक वस्तु को देखकर, छूकर तथा पूछकर हर प्रकार से ठीक-ठाक समझने का प्रयास करता है । इससे पाठ सरल, रोचक तथा मनोरंजक बन जाता है और सभी बालक ज्ञान को प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण कर लेते हैं।
5. रटने को कम करना –
शिक्षण सामग्री के प्रयोग से बालक पाठ के विकास में रुचि लेते हैं तथा ज्ञान स्वयं क्रिया करके ग्रहण करते हैं । इससे सीखा हुआ ज्ञान निश्चित और स्थायी बन जाता है और उन्हें किसी चीज को रटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
6. शब्दावली में वृद्धि–
शिक्षण सामग्री के द्वारा बालकों की शब्दावली में वृद्धि होती है। इसका कारण यह है कि रेडियो, टेलीफोन तथा चलचित्र का प्रयोग करते समय वे नये-नये शब्द सुनते हैं तथा ग्रहण करते हैं।
7. शिक्षण में कुशलता–
शिक्षण सामग्री का प्रयोग करने से शिक्षण में कुशलता आती है । साथ ही शिक्षण और अधिक प्रभावशाली बन जाता है। दूसरे शब्दों में, जिन सूक्ष्म बातों तथा कठिन भावों को बालक चॉक और ‘टाक’ (Talk) की सहायता से नहीं समझ सकते, उन्हें वे सहायक सामग्री के प्रयोग से सरलतापूर्वक समझ सकते हैं।
8. प्रत्यक्ष अनुभव–
श्रव्य-दृश्य सामग्री द्वारा शिक्षार्थियों को प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान किया जाता है । जिस पाठ्य-वस्तु या प्रक्रिया को हम अनुभव नहीं कर सकते उनको चित्र या फिल्म की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं।
9. संग्रहण क्षमता श्रव्य–
दृश्य साधनों द्वारा पूर्व ज्ञान को सुरक्षित रख सकते हैं। किसी भी घटना की प्रक्रिया को फिल्म में संग्रहित कर, शैक्षिक कार्यक्रमों को वीडियो-टेप अथवा ऑडियो टेप पर सुरक्षित रख सकते हैं । इन कार्यक्रमों का शिक्षण में उपयोग किया जा सकता है।
10. रुचिकर साधन–
श्रव्य-दृश्य सामग्री एक रुचिकर साधन है। शिक्षण सामग्री का उपयोग करके शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर बनाया जा सकता है । इससे शिक्षार्थियों में सक्रियता आती है और अधिगम स्थायी होता है। इनका उपयोग शिक्षण की एकरसता को दूर करता है।
11. अमूर्त व मूर्त रूप से प्रस्तुतीकरण–
विभिन्न विषयों में कई संकल्पनाएँ सूक्ष्म स्तर में अमूर्त रूप में होती हैं । इन संकल्पनाओं को मूर्त रूप में प्रस्तुत करने से शिक्षार्थियों द्वारा प्राप्त ज्ञान स्पष्ट एवं स्थायी होगा जिसे शिक्षार्थी अधिक समय तक याद रख सकते हैं।
12. मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित–
श्रव्य-दृश्य साधन कुछ मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों; जैसे—प्रत्यक्षीकरण का सिद्धान्त, रुचि का सिद्धान्त, व्यक्तिगत भिन्नताओं का सिद्धान्त पर आधारित हैं । श्रव्य-दृश्य साधन शिक्षार्थियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूरा करते है । शिक्षार्थी एक-दूसरे से मानसिक क्षमता, अध्ययन गति, रुचि आदि की दृष्टि से भिन्न होते हैं। शिक्षकों के समझाने पर विषय-वस्तु स्पष्ट हो जाती है।
13. वैज्ञानिक अभिवृत्ति का विकास–
किसी घटना के घटित होने के कारण का तर्क देना वैज्ञानिक अभिवृत्ति कहलाता है । श्रव्य-दृश्य साधनों द्वारा अमूर्त चिन्तन व मूर्त चिन्तन का विकास होता है । शिक्षार्थियों की सक्रियता बढ़ती है । अतः अधिगम स्थायी होता है । अतः ये सभी शिक्षार्थियों में अभिवृत्ति के विकास में सहायक होती हैं ।
14. सक्रियता–
शिक्षार्थी जब स्वयं करके देखते हैं, तो पाठ्य-पुस्तक अधिक स्पष्ट हो जाती है । श्रव्य-दृश्य साधनों के कुछ सिद्धान्तों पर आधारित होने पर भी इसमें शिक्षार्थियों की सहभागिता भी हो सकती है । जैसे किसी वस्तु का मॉडल तैयार करने में शिक्षार्थियों की सहभागिता हो सकती है । इस प्रकार की गतिविधियों से छात्र उत्साहित होकर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में भाग लेते हैं।
शिक्षण अधिगम सामग्री के उद्देश्य
कोठारी आयोग के अनुसार-“शिक्षण के स्तर को ऊँचा करने के लिए स्कूल में सहायक सामग्री का होना अत्यन्त आवश्यक है। निःसन्देह इससे देश के शिक्षा-क्षेत्र में क्रान्ति पैदा हो सकती है।” शिक्षण को प्रभावशाली बनाने एवं शिक्षार्थी के कौशल में विकास के लिए शिक्षण
सामग्री प्रयुक्त की जाती है । इनके निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(1) अवकाश के समय का सदुपयोग करना ।
(2) शिक्षार्थियों को अधिक क्रियाशील बनाना ।
(3) छात्राध्यापकों को सहायक सामग्री के निर्माण हेतु प्रोत्साहित करना ।
(4) रचना एवं आत्म-प्रदर्शन की प्रवृत्तियों के प्रकाशन के अवसर प्रदान करना ।
(5) शैक्षिक श्रम के प्रति आस्था उत्पन्न कर श्रम के प्रति सम्मान की भावना विकसित करना ।
(6) सहायक सामग्री का रख-रखाव समुचित ढंग से करना ताकि आवश्यकता होने पर उसे उपयोग में लाया जा सके ।
(7) शिक्षार्थियों में पाठ के प्रति अधिक रुचि उत्पन्न करना तथा पाठ को विकसित कर उसे उपयोग में लाया जा सके।
(8) अभिरुचियों पर आशानुकूल प्रभाव डालना ।
(9) अमूर्त पदार्थ को मूर्त रूप देना।
(10) बालकों को मानसिक रूप से नये ज्ञान की प्राप्ति हेतु तैयार करना और प्रेरणा दूर करती देना।
(11) तीव एवं मन्द बुद्धि बालकों को योग्यतानुसार शिक्षा देना ।
विकास करना।
(12) बालकों का ध्यान पाठ की ओर केन्द्रित करना तथा उनकी निरीक्षण शक्ति का विकास करना ।
(13) पाठ्य-सामग्री को स्पष्ट सरल तथा बोधगम्य बनाना ।
शिक्षण अधिगम सामग्री की विशेषताएँ
शिक्षण में उपयोगी सहायक सामग्री की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(1) सहायक सामग्री स्थायी रूप से सीखने एवं समझने में सहायक है।
(2) यह अनुभवों के द्वारा ज्ञान प्रदान करती है।
(3) छात्र अधिक सक्रिय रहते हैं और पाठ को सरलता से याद कर सकते हैं।
(4) इससे वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास होता है।
(5) भाषा सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करती है।
(6) विभिन्न प्रकार की विधाओं का प्रयोग करती है।
(7) यह समय की बचत तथा रुचि में वृद्धि करती है।
(8) यह मौखिक बातों को कम करती है।
(9) शिक्षक को अच्छे शिक्षण में सहायता देती है।
(10) वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप से देखने का अवसर मिलता है।
(11) प्राकृतिक एवं कृत्रिम वस्तुओं का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए अच्छे अवसर मिलते हैं।
(12) छात्रों को उपकरण प्रयोग करने की विधि का ज्ञान होता है।
(13) विभिन्न विषयों के अन्वेषण के प्रति उत्सुकता जाग्रत होती है।
(14) छात्र स्वयं कार्य करने पर अपने को अधिक योग्य एवं साधन सम्पन्न तथा आत्मनिर्भर मानने लगते हैं।
(15) सहायक सामग्री सूक्ष्म बातों को सरलता से समझा देती है।
(16) यह छात्रों की कल्पना शक्ति का विकास करती है।
(17) यह हमारी ज्ञानेन्द्रियों को उद्दीपित करके शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सुगम बनाती है।
शिक्षण अधिगम सामग्री के उपयोग करते समय सावधानियाँ
(1) शिक्षण सामग्री छात्रों के अनुभव, आवश्यकता, समझ, आयु, प्रकरण तथा विषय-वस्तु की प्रकृति के अनुसार होनी चाहिए।
(2) कक्षा के अधिगम लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होनी चाहिए।
(3) प्रकरण का सही स्वरूप प्रस्तुत करने वाली होनी चाहिए।
(4) छात्रों के परिवेश के अनुसार होनी चाहिए ताकि उसके माध्यम से प्रकरण के सभी बिन्दुओं का ज्ञान प्राप्त हो सके।
(5) एक वस्तु को समझाने के लिए अनावश्यक सामग्री का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(6) ऐसी सामग्री का चयन करना चाहिए जो छात्रों में रुचि उत्पन्न करे और उन्हें जिज्ञासु बना सके तथा प्रेरणा दे सके।
(7) सामग्री जितनी देर आवश्यक है, उतनी ही देर तक प्रयोग की जानी चाहिए।
(8) सरल, सुगम तथा उपयुक्त सामग्री का ही चयन करना चाहिए।
(9) शिक्षण सामग्री सही हालत में होनी चाहिए तथा शिक्षणात्मक मूल्यों से युक्त होनी चाहिए।
(10) जिस पाठ में सहायक सामग्री का प्रयोग करना हो उसके विषय में पहले से ही योजना बना ली जाए।
(11) इनका उपयोग उपयुक्त स्थल पर ही किया जाए।
(12) शिक्षण सामग्री (उपकरण) पर्याप्त स्पष्ट और बड़े हो, जिससे छात्र उन्हें सरलता से देख और समझ सकें। किये जायें।
(13) छात्रों के आगे सहायक सामग्री का प्रदर्शन करने के पश्चात् उस पर प्रश्न भी किये जायें ।
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