शिक्षा के प्रकार | औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा | types of education in hindi

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शिक्षा के प्रकार | औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा | types of education in hindi

शिक्षा के प्रकार | औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा | types of education in hindi
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शिक्षा के प्रकार / Types of Education in hindi

शिक्षा जीवनपर्यन्त चलने वाली अनवरत् क्रिया है। बालक अपने वातावरण में प्रत्येक समय कुछ न कुछ सीखता रहता है। प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से सीखता रहता है। यह सीखना सिखाना ही शिक्षा है किन्तु कैसे सीखा जाय? सीखना क्या है, कहाँ सीखा जाये, कैसे सीखा जाय इत्यादि सभी बातों का उत्तर पाने के लिये हमें शिक्षा के प्रकारों को समझना होगा। शिक्षा का कार्य मात्र औपचारिक केन्द्र विद्यालय में ही पूरा नहीं होता वरन् वह अनेक प्रकार से प्राप्त होती है। समय, प्रत्यक्षता संख्या तथा विशिष्टता के दृष्टिकोण से शिक्षा को निम्नलिखित भागों में बाँट सकते हैं-

(1) औपचारिक शिक्षा

(2) अनौपचारिक शिक्षा

(3) दूरस्थ शिक्षा

औपचारिक शिक्षा का अर्थ | औपचारिक शिक्षा की परिभाषा (Formal Education)

नियमित शिक्षा को औपचारिक शिक्षा कहा जाता है। जो किसी निर्धारित समय तथा समझ से आरम्भ की जाती है। इस शिक्षा योजना के बारे में छात्र को पहले से ही यह ज्ञात होता है कि क्या शिक्षा दी जा रही है ? इस शिक्षा के लिये पहले योजना बना ली जाती है तथा शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित कर लिये जाते हैं। उद्देश्यों के अनुकूल शिक्षा के लिये पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।

इस प्रकार के पाठ्यक्रम की शिक्षा के लिये शिक्षण की विधियों का निर्धारण किया जाता है। औपचारिक शिक्षा केवल विद्यालय की सीमा में ही दी जाती है। इसके अतिरिक्त चर्च, मदरसा, पुस्तकालय, पुस्तकों तथा चित्रों आदि के द्वारा भी शिक्षा दी जा सकती है। इस प्रकार की सभी संस्थाओं का निर्माण समाज करता है। यह संस्थाएँ शिक्षा की संस्थाएँ कहलाती हैं। यह छात्र को क्रिया करने का अवसर प्रदान करती हैं। छात्र को अनुभव प्रदान करती हैं। उसके व्यवहार को परिमार्जित करती हैं।

औपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ

औपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ अनलिखित प्रकार है-

(1) औपचारिक शिक्षा नियमित होती है। (2) औपचारिक शिक्षा में पहले योजना बना ली जाती है। (3) इसमें शिक्षा के उद्देश्य पहले से ही निर्धारित होते हैं। (4) औपचारिक शिक्षा में उद्देश्यों की प्राप्ति के अनुसार ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। (5) औपचारिक शिक्षा शिक्षण संस्थाओं की सीमा में दी जाती है। (6) इस शिक्षा के निर्धारित पाठ्यक्रम के शिक्षण हेतु शिक्षण विधियाँ निर्धारित होती हैं। (7) औपचारिक शिक्षा चर्च तथा मदरसा आदि में भी दी जा सकती है। (8) वे संस्थाएँ जिनका निर्माण समाज करता है। औपचारिक शिक्षा प्रदान करती हैं (9) औपचारिक शिक्षा के उद्देश्य सामान्य तथा आदर्शात्मक होते हैं। (10) यह शिक्षा सामाजिक जीवन की आकांक्षाओं, मान्यताओं, आदर्शों तथा आवश्यकताओं की प्रतीक है। (11) इस शिक्षा का पाठ्यक्रम व्यापक, बहुद्देशीय एवं जीवन से सम्बद्ध होता है। (12) यह शिक्षा वर्तमान, अतीत एवं भावी जीवन की तैयारी है।

अनौपचारिक शिक्षा का अर्थ | अनौपचारिक शिक्षा किसे कहते हैं
( Informal Education )

अनौपचारिक शिक्षा अनियमित शिक्षा कहलाती है। अनियमित शिक्षा, बह शिक्षा है जिसमें किसी निश्चित समय, पाठ्यक्रम, शिक्षण, विद्यालय, अनुशासन तथा वातावरण की आवश्यकता नहीं है। भारतीय विचारधारा के अनुसार तो शिक्षा माँ के गर्भ से ही प्रारम्भ हो जाती है और मृत्यु तक चलती रहती है; जैसे-चक्रव्यूह का तोड़ना अभिमन्यु ने अपनी माँ के गर्भ में ही सीख लिया था। व्यावहारिक रूप में हम देखते हैं कि छात्र आरम्भ में अपनी माँ से, उसके उपरान्त पिता, भाई, बहन, परिवार, पड़ोस, समाज, देश, शिक्षक तथा वातावरण आदि से अनेक तथ्यों को सीखता है। प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण के लक्ष्य की प्राप्ति निर्धारित अवधि में न होने के कारण वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में प्रदेश में ‘अनौपचारिक शिक्षा योजना’ का आरम्भ किया गया है।

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जो संस्थाएँ अनौपचारिक शिक्षा का प्रबन्ध करती हैं, उन्हें अनौपचारिक संस्थाएँ कहा जाता है। अनौपचारिक शिक्षा के शाब्दिक अर्थ से स्पष्ट होता है कि जो शिक्षा औपचारिक नहीं है, अनौपचारिक कहलाती है। अनौपचारिक शिक्षा व्यावहारिक होती है और उसका सम्बन्ध मनुष्य की विशिष्ट आवश्यकताओं से होता है। अनौपचारिक शिक्षा में अनौपचारिकताओं का स्थान गौण होता है तथा अप्रधानता लिये रहता है, जबकि औपचारिक शिक्षा नियमबद्ध होती है तथा उसका विधान होता है। अनौपचारिक शिक्षा के नियम ढीले तथा लचीले रहते हैं। इसमें शिक्षा का पाठ्यक्रम, संगठन तथा व्यवस्था का अभाव रहता है। राज्य शिक्षा संस्थान के अनुसार, “अनौपचारिक शिक्षा औपचारिकता से मुक्त एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था है, जो औपचारिक शिक्षा की सीमाओं और कमियों की पूर्ति करती है।

अनौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ

अनौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार हैं-

(1) अनौपचारिक शिक्षा का उद्देश्य वास्तविक तथा समयानुसार होता है। यह व्यक्ति की आवश्यकताओं एवं समस्याओं की जानकारी तथा उनकी पूर्ति एवं समाधान से सम्बन्धित होता है।

(2) यह शिक्षा व्यावहारिक होती है। इसका सम्बन्ध मनुष्य की प्रत्यक्ष आवश्यकताओं से होता है।

(3) इस शिक्षा का क्षेत्र सीमित होता है। अनौपचारिक शिक्षा के नियमों तथा क्रमों में लचीलापन होता है।

(4) यह शिक्षा वर्तमान पर अधिक बल देती है।

(5) इस शिक्षा के पाठ्यक्रम का उद्देश्य सीमित तथा सम-सामयिक वातावरण हेतु होता है।

(6) इस शिक्षा की शिक्षण विधियाँ, उद्देश्य एवं आवश्यकताओं के अनुरूप होती हैं।

(7) इस शिक्षा का संगठन एवं प्रशासन व्यक्ति की मूल आवश्यकताओं, समस्याओं, भौतिक साधनों की उपलब्धि एवं मानवीय साधनों की प्राप्ति हेतु होता है।

(8) अनौपचारिक शिक्षा व्यावहारिक होती है। इसका सम्बन्ध मनुष्य की प्रत्यक्ष आवश्यकताओं से होता है। अनौपचारिक शिक्षा का आधार यथार्थ होता है।

(9) इसका लक्ष्य भी विशिष्ट होता है।

(10) अनौपचारिक शिक्षा पाठ्यक्रम के चयन का मुख्य आधार आसन्न समस्याएँ होती हैं। इसी कारण इसके उद्देश्य सीमित होते हैं।

अनौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य

अनौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य इस प्रकार हैं-

(1) भावी जीवन की उन्नति तथा समृद्धि हेतु। (2) संवैधानिक
लक्ष्यों की पूर्ति हेतु । (3) औपचारिक शिक्षा की कमियों तथा उनकी पूर्ति हेतु। (4) शैक्षिक स्तर के उन्नयन हेतु। (5) शिक्षा स्तर में गिरावट तथा छात्रों में उसके प्रति उदासीनता के समाधान हेतु। (6) जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न कठिनाइयों के निवारण हेतु।

उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति औपचारिक शिक्षा के द्वारा नहीं हो सकती, परम्परागत शिक्षा व्यवस्था उपयोगी सिद्ध नहीं होगी। इसी कारण आजकल अनौपचारिक शिक्षा पर विशेष बल दिया जा रहा है। अनौपचारिक शिक्षा अब केवल कल्पना ही नहीं, वरन् अनिवार्य आवश्यकता भी बन गयी है। भारत जैसे निर्धन देश में सभी छात्रों को औपचारिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।

सभी छात्रों को शिक्षित करने के लिये न तो सरकार के पास धन है और न ही सभी अभिभावक अपने छात्रों को शिक्षा देने में समर्थ हैं। जो कुछ औपचारिक शिक्षा विद्यालयों में दी जाती है, वह भी अनुपयोगी सिद्ध होती है। इसी कारण औपचारिक शिक्षा प्रणाली का कोई विकल्प ढूँढ़ना ही होगा। अनौपचारिक शिक्षा ही इसका विकल्प है। यह शिक्षा औपचारिक शिक्षा के की भाँति कार्य करेगी।

अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम

उन व्यक्तियों को अनौपचारिक शिक्षा दी जानी चाहिये, जो अपना और समाज का भला करना चाहते हैं। इसके अन्तर्गत उन सभी स्त्री-पुरुषों को सम्मिलित किया जा सकता है, जो भविष्य के प्रति आशावान हैं और आज की समस्याओं को सुलझाना चाहते हैं। अनौपचारिक शिक्षा किसी एक प्रकार के व्यक्ति को नहीं दी जाती। इसमें अनेक प्रकार के व्यक्ति सम्मिलित किये जा सकते हैं। साधारणतया निम्नलिखित प्रकार के व्यक्तियों को अनौपचारिक शिक्षा दी जा सकती है-(1) निरक्षर छात्र, जो 6 से 14 आयु वर्ग के हैं। (श निरक्षर प्रौढ़, जो 15 से 25 आयु वर्ग के हैं। (3) अर्द्धशिक्षित प्रौढ़ों के लिये। (4) व्यवसायपरक प्रशिक्षण हेतु। (5) सभी के लिये निरन्तर प्रदान की जाने वाली शिक्षा व्यवस्था। (6) कृषकों तथा मजदूरों के लिये अनौपचारिक शिक्षा। (7) विश्वविद्यालयी अनौपचारिक शिक्षा।

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उत्तर प्रदेश में अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम

उत्तर प्रदेश में अनौपचारिक शिक्षा की तीन पूर्ण योजनाएँ और एक अग्रगामी योजना चल रही है। प्रथम तीन योजनाएँ उत्तर प्रदेश सरकार चला रही है और चौथी योजना राष्ट्रीय शैक्षिक शोध एवं प्रशिक्षण परिषद् (N.C.E.R.T.) द्वारा चलायी जा रही है। इन योजनाओं का विवरण अग्रलिखित प्रकार है-(1) अंशकालिक शिक्षा केन्द्र :11 से 14 वर्षीय छात्रों हेतु। (2) प्रौढ़ साक्षरता योजना। (3) किसान साक्षरता योजना। (4) भूमियाधार अग्रगामी परियोजना।

अनौपचारिक एवं औपचारिक शिक्षा में सम्बन्ध

अनौपचारिक तथा औपचारिक शिक्षा के सम्बन्ध को देखा जाय तो दोनों एक-दूसरे की विरोधी नहीं बल्कि सहयोगी हैं। अनौपचारिक शिक्षा ही औपचारिक शिक्षा को सफल बना सकती है, जो बिना किसी महत्त्वपूर्ण नियोजन के निरन्तर चलती रहती है। इसके प्रमुख साधन परिवार, समाज, राज्य, देश, खेलकूद, संगीत, समाचार-पत्र, किताबें, नाटक, चलचित्र एवं मानव समूह आदि हैं, जो किसी भी समय, किसी भी प्रकार से छात्र पर प्रभाव डालते हैं और छात्र की रुचि को एक निश्चित दिशा प्रदान करते हैं।

दूरस्थ शिक्षा का अर्थ | दूरस्थ शिक्षा किसे कहते हैं / Distance Education

दूरवर्ती शिक्षा या दूरस्थ शिक्षा एक बहुउपयोगी आयाम है। अत: इसे अनेक नामों से पहचाना जाता है, जैसे-मुक्त अधिगम अथवा शिक्षा (Open-learning or education), पत्राचार शिक्षा (Correspondence education), बाहरी अध्ययन (External study), गृह अध्ययन (Home study) एवं परिसर से बाहर अध्ययन (Off-campus study) इत्यादि । भारत में इसे दूरस्थ शिक्षा तथा मुक्त शिक्षा के नाम से ही अधिक जाना जाता है, जबकि उत्तरी अमेरिका में इसे स्वतन्त्र अध्ययन के नाम से जाना जाता है।

सैद्धान्तिक रूप से दूरस्थ शिक्षा से तात्पर्य शिक्षा के ऐसे अप्रचलित एवं अपरम्परागत उपागम से है, जो परम्परागत (औपचारिक शिक्षा) शिक्षा के मानकों पर प्रश्न चिह्न लगाता हुआ इससे पृथक् विभिन्न मापदण्डों को प्राथमिकता प्रदान करता है। समय के साथ-साथ दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र, दायित्व तथा आयाम इत्यादि विस्तारित होते जा रहे हैं। अत: वर्तमान में दूरस्थ शिक्षा की सटीक परिभाषा देना अत्यन्त दुष्कर कार्य है, फिर भी इस विषय पर विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं-

दूरस्थ शिक्षा की परिभाषाएँ

(1) सूरे (More) के अनुसार, “दूरस्थ शिक्षा को अनुदेशन विधियों के समूह (परिवार) के स्वरूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें शिक्षण व्यवहार (क्रिया), अधिगम व्यवहार (प्रक्रिया) से पृथक् अर्थात् कहीं दूर सम्पन्न किये जाते हैं। इसके अन्तर्गत छात्र की उपस्थिति से सम्पन्न होने वाली क्रियाएँ भी सम्मिलित होती हैं। अत: शिक्षक एवं शिक्षार्थी के मध्य सम्प्रेषण को मुद्रित सामग्री, इलेक्ट्रॉनिक, यान्त्रिक तथा अन्य साधनों से सुगम बनाया जा
सकता है।”

(2) ओ. पीटर्स (O. Peters) के शब्दों में, “दूरस्थ शिक्षा ज्ञान, कौशल एवं अभिवृत्ति प्रदान करने की एक विधि है,जिसे तकनीकी संचार माध्यमों के व्यापक प्रयोग के साथ-साथ श्रम-विभाजन एवं संगठनात्मक सिद्धान्तों के प्रयोग द्वारा तर्कसंगत बनाया जाता है। इसमें विशेष रूप से उच्चस्तरीय शिक्षण सामग्री के पुनर्निर्माण का उद्देश्य निहित होता है, जिसमें विद्यार्थियों की अधिक संख्या को एक ही समय में, जहाँ पर भी वह रह रहे हों, अनुदेशन प्रदान करना सम्भव होता है। यह शिक्षण तथा अधिगम का एक औद्योगिक स्वरूप है।”

(3) होमबर्ग (Homcberg) के मतानुसार, “दूरवर्ती शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर अध्ययन के विभिन्न प्रकार, उन विद्यार्थियों के लिये जो शिक्षकों के निरन्तर तथा शीघ्र निरीक्षण में कक्षाओं में नहीं होते हैं, प्रयुक्त किये जाते हैं किन्तु जो किसी भी प्रकार से शैक्षणिक संस्थाओं के नियोजन, निर्देशन तथा शिक्षण से कम लाभ प्रदान नहीं करते।”

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दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता (Need of distance education)

आधुनिक युग में दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-

(1) शिक्षा मुख्यतः उन व्यक्तियों के लिये है, जो अपने जीवन के प्रारम्भिक समय में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाये हैं। दूरस्थ शिक्षा घर बैठे ही उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अवसर प्रदान करती है।

(2) परम्परागत शिक्षा अपने परम्परागत प्रारूप में सर्वसुलभ तथा सर्वउपयोगी नहीं हो पा रही है। अत: दूरस्थ शिक्षा का प्रसार अत्यन्त ही आवश्यक है।

(3) दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से उन व्यक्तियों को शिक्षा का अवसर प्रदान कराया जाता है, जो कि रूढ़िवादी प्रणाली में शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते किन्तु वह शिक्षा अवश्य ही ग्रहण करना चाहते हैं।

(4) दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता पाठ्यक्रमों के व्यापक प्रसार में भी होती है क्योंकि कोई भी विद्यालय,महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय सीमित संख्या में पाठ्यक्रमों का संचालन कर सकते हैं।

(5) दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से पाठ्यक्रम के सीमित विकल्प को परिवर्तित किया जा सकता है। शिक्षा के आधुनिक स्वरूप में कक्षीय शिक्षा पर अपेक्षाकृत अधिक व्यय होता है। अत: शिक्षा में अन्य व्यय हेतु दूरस्थ शिक्षा की अत्यन्त आवश्यकता है।

उपरोक्त बिन्दुओं से स्पष्ट है कि दूरस्थ शिक्षा की वर्तमान समय तथा परिस्थितियों में अत्यधिक आवश्यकता है। इसकी सहायता से शिक्षा को सर्वसुलभ, सर्वउपयोगी तथा रोजगार परक बनाया जा सकता है।

दूरस्थ शिक्षा के लाभ या विशेषताएँ

दूरस्थ शिक्षा के लाभ या विशेषताओं का वर्णन अनलिखित है-

(1) दूरस्थ शिक्षा अधिगम प्रक्रिया के समय शिक्षक तथा छात्र का अर्द्धस्थायी अलगाव होता है। यह शिक्षा की परम्परागत गुरु-शिष्य परम्परा से पृथक् है।

(2) दूरस्थ शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षा के परम्परागत मौखिक सम्वाद की आवश्यकता नहीं होती। इससे शिक्षा का तीव्र गति से विकास होता है।

(3) दूरस्थ शिक्षा अधिगम सामग्री की योजना तथा तैयारी एवं छात्र सहायक सेवाओं में शिक्षा संगठन का प्रभाव होता है। यह निजी तथा स्वाध्याय कार्यक्रम से पृथक् है।

(4) यह अधिगम परम्परागत शिक्षा की अपे। अल्प व्ययी है क्योंकि यहाँ विद्यार्थी पर विद्यालय भवन शुल्क, शिक्षण शुल्क इत्यादि अधिक मात्रा में नहीं लगाये जाते। इस कारण यह एक अपेक्षाकृत अल्पव्ययी शिक्षा है।

(5) यहाँ शिक्षा परम्परागत मौखिक माध्यम के स्थान पर आवश्यकता होने पर मौखिक माध्यम से भी प्रदान की जाती है, आधुनिक संचार माध्यमों से प्रदान की जाती है। आधुनिक संचार माध्यम से विद्यार्थी जटिल पाठ्यक्रम भी सुगमता के साथ समझ सकता है।

दूरस्थ शिक्षा की सीमाएँ (Limitations of distance education)

दूरस्थ शिक्षा की सीमाएँ निम्नलिखित हैं- (1) दूरस्थ शिक्षा में अध्यापक एवं विद्यार्थी के मध्य सीधा सम्पर्क नहीं होता। अत: उसकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता। (2) दूरस्थ शिक्षा में शिक्षा के सीमित संसाधन होते हैं, जो तकनीकी विषयों के लिये उपयुक्त नहीं हैं। (3) इस शिक्षा से बालक का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता। (4) छात्र में नेतृत्व क्षमता का विकास नहीं हो पाता। यदि दूरस्थ शिक्षा जिस साधनों पर निर्भर रहती है, वे स्तरीय नहीं हैं तो यह शिक्षा उपयोगी नहीं होती।

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