वुड के घोषणा पत्र के उद्देश्य,मूल्यांकन,सुझाव,दोष,संस्तुतियां / Wood’s Despatch (1854) in hindi

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय प्रारंभिक शिक्षा के नवीन प्रयास में सम्मिलित चैप्टर वुड के घोषणा पत्र के उद्देश्य,मूल्यांकन,सुझाव,दोष,संस्तुतियां / Wood’s Despatch (1854) in hindi आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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आधुनिक शिक्षा का आरम्भ / Beginning of Modern Education (1853-1902)

1853 के वर्ष को आधुनिक भारतीय शिक्षा के विकास की किशोरावस्था की संज्ञा प्रदान की जा सकती है, क्योंकि इस वर्ष में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के आज्ञा-पत्र के नवीनीकरण (Renewal) के समय ब्रिटिश पार्लियामेन्ट ने भारत में कम्पनी द्वारा किये गये शिक्षा प्रयासों को और अधिक व्यापक बनाने पर बल दिया।

यद्यपि इसमें भी उनके साम्राज्यवादी स्वार्थों की पूर्ति ही अधिक थी, किन्तु इसने शिक्षा के चहुँमुखी आयाम में सुधार हेतु पर्याप्त प्रयासों पर बल भी दिया गया। ब्रिटिश पार्लियामेन्ट के इन सुझावों की पूर्ति हेतु
कम्पनी ने अपने एक सुयोग्य अधिकारी चार्ल्स वुड (Charles Wood) को भारतीयों की शिक्षा हेतु एक नीति-निर्देश तैयार करने को कहा। चार्ल्स वुड के प्रयासों का ही यह परिणाम था कि 1854 में ‘वुड का घोषणा-पत्र’ (Woolds Despatch) बनकर तैयार हो गया।

वुड का घोषणा-पत्र (1854) | Wood’s Despatch (1854)

चार्ल्स वुड (Charles Wood) जो कि कम्पनी के ‘बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल’ (Board of Control) का अधिष्ठाता भी था, ने ‘वुड के घोषणा-पत्र’ (Wood Despatch) को तैयार किया था। उसने सन् 1853 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के पुनर्नवीनीकरण आज्ञा-पत्र के तहत भारतीय शिक्षा की रूपरेखा की पुनर्समीक्षा करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया।

यह सर्वप्रथम प्रयास था जबकि कम्पनी को प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालयी शिक्षा तक की रूपरेखा निर्धारित करने का कार्य सौंपा गया था। इस घोषणा पत्र में शिक्षा के सभी पक्षों की विशद् समीक्षा प्रस्तुत की गयी थी। इस घोषणा-पत्र के प्रकाशित होने के बाद भारत में आधुनिक अंग्रेजी शिक्षा के स्वरूप को एक राजनैतिक मान्यता प्रदान कर दी गयी। इस अभिप्राय से वुड के घोषणा-पत्र को भारत में अंग्रेजी शिक्षा का मैग्ना कार्टा (MagnaCarta) भी कहा जाता है।

वुड घोषणा-पत्र के उद्देश्य (Objectives of Wood’s Despatch)

(1) वुड ने अपने घोषणा-पत्र में कम्पनी के शिक्षा सम्बन्धी उद्देश्यों पर टिप्पणी करते हुए लिखा है-“अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों में से, अन्य कोई भी विषय इतना आकर्षण उत्पन्न नहीं करता, जितना कि ‘शिक्षा’। यह हमारा पुनीत कर्त्तव्य है कि हम समस्त उपलब्ध साधनों से भारतीय प्रजा को अपने सम्पर्क (इंग्लैण्ड के) से वह सब ज्ञान प्रदान करें जिससे कि वे शिक्षा द्वारा भौतिक एवं नैतिक गुणों से सम्पन्न हो सकें।”

(2) भारतीयों को अंग्रेजी ज्ञान के वरदान एवं रोशनी से उन्नत बनाना भारतीयों में शिक्षा द्वारा उच्च बौद्धिक क्षमताएँ ही नहीं, बल्कि उनके नैतिक मूल्यों को भी उच्च बनाना, ताकि वे अधिक विश्वासी सिद्ध हो सकें।

(3) भारतीयों में कम्पनी के कार्यालयों, कारखानों में कार्य करने की निपुणताएँ विकसित करना, जिससे वे रोजगार, श्रम तथा पूँजी आदि शब्दों से परिचित हो सकें तथा श्रमिकों की उचित आपूर्ति जारी रखी जा सके।

(4) भारतीय साहित्य को पाश्चात्य दर्शन एवं विज्ञान से सुसज्जित करना।

(5) भारत में परिमार्जित कलाओं विज्ञान, दर्शन तथा यूरोपियन साहित्य का संचार करना।

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वुड घोषणा-पत्र में लिखित संस्तुतियाँ / Written Recommendations given in Wood’s Despatch in hindi

वुड ने तात्कालिक भारतीय शिक्षा के उद्देश्यों के निर्धारण के बाद भावी शिक्षा नीति सम्बन्धी व्यापक विचार प्रस्तुत किये थे। इन विचारों को यहाँ पर बिन्दुबद्ध किया जा रहा है-

1. शिक्षा का माध्यमः अंग्रेजी एवं क्षेत्रीय भाषाएँ

घोषणा-पत्र में अंग्रेजी एवं क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं को शिक्षा प्रदान करने हेतु माध्यम के रूप में स्वीकारा गया है। घोषणा-पत्र में व्यक्त किया गया है कि यूरोपीय ज्ञान के प्रसार के लिए अंग्रेजी भाषा तथा अन्य परिस्थितियों में भारतीय भाषाओं को शिक्षा के रूप में साथ-साथ देखने की आशा व्यक्त की जाती है।

2. सहायता अनुदान प्रणाली: सरकारी संस्थाओं का, स्थानीय निकायों का क्रमिक रूप से स्थानान्तरण

सहायता अनुदान प्रणाली की रूपरेखा के सम्बन्ध में वुड के घोषणा-पत्र में निम्नलिखित विचार व्यक्त किये गये हैं-

“हम भारत में उसी सहायता अनुदान प्रणाली को लागू रखना चाहते हैं, जो कि इस देश में सफलतापूर्वक सम्पादित की गयी है। इस प्रकार इसमें हम स्थानीय संसाधनों की सहायता की भी कामना कर सकते हैं। इससे शिक्षा के प्रसार में तीव्र गति लायी जा सकती है जो कि
मात्र सरकारी धन के व्यय से सम्भव प्रतीत नहीं होती है।”

वुड ने अपने घोषणा-पत्र में सरकारी सहायता प्रदान करने हेतु कुछ नीति-निर्देशक नियमों की भी संस्तुति की थी, ये निम्नलिखित हैं-

(1) सरकारी अनुदान प्रदान करने का आधार होगा विद्यालयों में धर्म-निरपेक्ष-लौकिक शिक्षा की सुव्यवस्था का होना।

(2) उक्त विद्यालय का स्थानीय सुयोग्य व्यक्तियों द्वारा प्रबन्धन।

(3) उक्त विद्यालयों में छात्रों से अल्प शुल्क की व्यवस्था होना।

(4) प्रदत्त सरकारी अनुदान सम्बन्धी नीतियों का अनुपालन तथा सरकारी कर्मचारियों द्वारा उपलब्धियों का स्वतन्त्र रूप से मूल्यांकन करने की सुविधा!

(5) इसके साथ ही विद्यालयों में पुस्तकालय, विज्ञान प्रयोगशाला, खेलकूद, व्यायाम सामग्री, छात्रवृत्तियों, शिक्षकों के वेतन, भवन निर्माण आदि के लिए अतिरिक्त अनुदान प्रदान करें। इस अनुदान प्रणाली के फलस्वरूप हम व्यक्तिगत प्रबन्धन (Private Management) को बल प्रदान करना चाहते हैं।

3. सरकारी संस्थाओं में स्वैच्छिक धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था

समस्त सरकारी संस्थाओं में धर्म-निरपेक्ष शिक्षा के स्वरूप की व्यवस्था की जानी आवश्यक है। अन्य पुस्तकों के साथ धर्मग्रन्थ बाइबिल को भी पुस्तकालय में रखवा दिया जाय जिससे छात्र स्वतन्त्रतापूर्वक उसका अध्ययन कर सकें। स्कूल के अवकाश के उपरान्त कोई भी छात्र उस धर्मग्रथ के सम्बन्ध में अपनी जिज्ञासाएँ अपने शिक्षकों से पूछ कर शान्त कर सकते हैं।

4. शिक्षक-प्रशिक्षण (Teacher’s Training)

वुड के घोषणा-पत्र में यह संस्तुति की गयी थी कि इंग्लैण्ड के शिक्षक-प्रशिक्षण कॉलेजों के ही अनुरूप भारत के प्रत्येक प्रान्त में शिक्षक-प्रशिक्षण कॉलेजों की स्थापना की जाय। इस कार्य में अच्छे व्यक्तियों को आकृष्ट करने के लिए छात्रवृत्ति, उत्तम वेतन एवं सुविधाओं की व्यवस्था भी की जानी चाहिए, जिससे कि शिक्षा के व्यवसाय को अन्य सरकारी व्यवसायों के समान सम्मान प्राप्त हो सके।

5. स्त्रियों की शिक्षा (Education of women)

वुड ने उन भारतीयों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है जो कि स्त्री शिक्षा के प्रति सतर्क थे तथा अपनी पुत्रियों को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। उन दानदाताओं की भी सराहना की है, जिन्होंने स्त्री शिक्षा के विकास हेतु उदार दान दिये थे। साथ ही स्त्री विद्यालयों को विशेष सरकारी अनुदानों की अनुशंसा भी की गयी थी। कम्पनी के मालिकों ने भी गवर्नर जनरल को इस स्त्री शिक्षा के विषय की स्वीकृति के लिए बधाई दी थी।

6. विश्वविद्यालयों की स्थापना (Establishment of Universities)

भारतीयों द्वारा जो तीव्र उत्कण्ठा अंग्रेजी शिक्षा के प्रति जाग्रत हुई है, उसे देखते हुए भारत के बड़े नगरों में विश्वविद्यालयों की स्थापना होनी चाहिए। इन विश्वविद्यालयों का निर्माण ‘लन्दन विश्वविद्यालय को आदर्श रूप में रखकर ही किया जाय। इस विश्वविद्यालय के अनुरूप कुलपति, उप-कुलपति एवं कार्यकारिणी के सदस्य गण (Members of Executive Council) की तरह होंगे। ये सथी सम्मिलित रूप से सीनेट (Senate) का निर्माण करेंगे जो कि विश्वविद्यालय के लिए नियम बनायेगी तथा प्रबन्ध करेगी।

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7. जन शिक्षा का प्रसार (Expansion of Mass Education)

वुड के घोषणा-पत्र ने स्वीकार किया है कि शिक्षा में निस्यन्दन सिद्धान्त ने जन शिक्षा के प्रसार को बहुत आघात पहुँचाया है। अत: वुड ने संस्तुति की कि सरकार को प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में अधिक धन
लगाकर प्रत्येक जिले में इसकी उचित व्यवस्था करनी चाहिए। देशी विद्यालयों में सुधार करें, निर्धन छात्रों हेतु छात्रवृत्ति की व्यवस्था करें, जिससे ये उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हो सकें।

वुड ने लिखा है-“अब हमारा ध्यान इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न की ओर केन्द्रित होना चाहिए जिसकी अभी तक अवहेलना की गयी है अर्थात् जीवन के सभी अंगों के लिए लाभदायक एवं व्यावहारिक शिक्षा, उस विशाल जनसमूह को शिक्षा किस प्रकार दी जाय ? जो किसी सहायता के बिना स्वयं लाभदायक शिक्षा प्राप्त करने में पूर्णतः असमर्थ हैं।” इस शिक्षा के नियोजित प्रसार हेतु वुड ने नियोजित शिक्षा विभाग की रूपरेखा तैयार की।

उसके अनुसार प्रत्येक जिला स्तर पर जन शिक्षा विभाग की स्थापना की जाय, जिसका सर्वोच्च अधिकारी ‘जन शिक्षा डायरेक्टर’ (Director of Public Instruction) हो। उसे सहायता प्रदान करने के लिए उप-शिक्षा डायेरक्टर, निरीक्षक (Inspector) तथा सहायक निरीक्षक की नियुक्ति की जानी चाहिए। इन प्रमुख संस्तुतियों के अतिरिक्त वुड ने क्रमबद्ध शिक्षा पद्धति (Graded School System), व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education) तथा रोजगार आदि के सन्दर्भ में भी व्यापक विचार प्रस्तुत किये हैं।

वुड के घोषणा-पत्र का मूल्यांकन / Evaluation Wood’s Despatch

वुड का घोषणा-पत्र आधुनिक भारतीय शिक्षा के विकास यात्रा का अनूठा पड़ाव है। यहाँ से वास्तविक शिक्षा के स्वरूप की अभिव्यक्ति होती है। यद्यपि वुड की संस्तुतियों ने

शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तनों की आधारशिला रखी थी किन्तु उसमें कुछ कमियाँ भी निहित थीं। यहाँ इस घोषणा-पत्र के इन्हीं गुण-दोषों का तुलनात्मक चित्र प्रस्तुत किया जा रहा है-

वुड के घोषणा-पत्र के गुण (Merits of Wood’s Despatch)

वुड के घोषणा-पत्र के गुणों का उल्लेख निम्नलिखित प्रकार कर सकते हैं-

(1) इस घोषणा-पत्र ने भारतीय शिक्षा की प्रारम्भिक आधारशिला को पर्याप्त मजबूती प्रदान की थी। इसलिए इसे भारत में अंग्रेजी शिक्षा के महाधिकार-पत्र (MegnaCar ta of English Education in India) के नाम से पुकारा जाता है।

(2) घोषणा-पत्र ने भारतीय शिक्षा के उद्देश्यों को सुनिश्चित करके उसकी दिशा निर्धारित की।

(3) घोषणा-पत्र ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को जन शिक्षा प्रसार हेतु उत्तरदायी (Accountable) ठहरा दिया।

(4) घोषणा-पत्र में शिक्षा के सभी व्यापक आयामों का सुव्यवस्थित स्वरूप प्रकट होकर सामने
आया।

(5) घोषणा-पत्र ने पूर्व कार्यक्रमों, सिद्धान्तों जैसे निस्यन्दन सिद्धान्त, व्यापक शिक्षा की अवमानना आदि को अनैतिक सिद्ध कर दिया।

(6) घोषणा-पत्र में सर्वप्रथम क्रमबद्ध स्कूलों (Graded Schools) व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education), स्त्री शिक्षा (Women’s Education) तथा जन प्रसार शिक्षा, विश्वविद्यालयी शिक्षा की संगठनात्मक रूपरेखा प्रस्तुत की गयी तथा इंग्लैण्ड के कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया।

(7) प्राच्य विद्या, साहित्य के मुद्रण, प्रकाशन एवं पठन-पाठन हेतु छात्रवृत्तियों तथा अन्य प्रोत्साहन धनराशियों की व्यवस्था की गयी।

(8) घोषणा-पत्र में योग्य, प्रशिक्षित तथा उत्तम वेतन तथा सुविधाओं से सुसज्जित शिक्षकों हेतु नॉर्मल स्कूलों की स्थापना पर बल दिया गया।

(9) मोषणा-पत्र में सरकारी नीतियों का पालन करने वाले सभी विद्यालयों हेतु सहायता अनुदान राशि की भी व्यवस्था की गयी।

लार्ड डलहौजी (Lord Delhousie) के अनुसार-“ घोषणा-पत्र में पूरे हिन्दुस्तान के लिए एक योजना थी। इस प्रकार की व्यापक रूपरेखा प्रान्तीय अथवा केन्द्रीय सरकार द्वारा कभी भी प्रस्तुत नहीं की जा सकती थी।”

वुड घोषणा-पत्र के दोष (Demerits of Wood-Despatch)

वुड के घोषणा-पत्र को इसकी विशेषताओं के कारण शिक्षा का महाधिकार-पत्र कहा जाता है, लेकिन इसमें कुछ दोष भी हैं, जो निम्नलिखित प्रकार हैं-

(1) घोषणा-पत्र का सर्वोच्च दोष यह था कि शिक्षा का क्षेत्र सरकार एवं नौकरशाही के आधिपत्य में चला गया। अत: प्राचीन भारत की स्वतन्त्र शिक्षा पद्धति को अन्तिम एवं सबसे गम्भीर आघात पहुंचा।

(2) घोषणा-पत्र ने उच्च एवं माध्यमिक शिक्षा में अंग्रेजी को माध्यम बनाकर उसे जन प्रचलित स्वरूप प्रदान करने से रोक दिया गया।

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(3) घोषणा-पत्र ने यद्यपि प्राच्य साहित्य, संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने की संस्तुति की, परन्तु अंग्रेजी शिक्षा की व्यापक प्रगति के नीचे वह स्वयं ही दम तोड़ रही थी।

(4) घोषणा-पत्र ने निरपेक्ष संस्कृति का प्रारम्भ कर शिक्षा में भारतीय धार्मिक एवं आध्यात्मिक मान्यताओं को तीव्र आघात पहुँचाया।

(5) घोषणा-पत्र ने शिक्षा के वृहद् स्वरूप को अंग्रेजी साम्राज्य में नौकरी प्राप्त करने की संकीर्ण मानसिकता से जोड़ कर रोजगार परक शिक्षा संस्कृति को जन्म दिया।

(6) घोषणा-पत्र की जीविकोपार्जन हेतु शिक्षा की नीति ने प्राच्य विद्यालयों को स्वतः ही मृत प्रायः बना दिया।

(7) घोषणा-पत्र ने भारतीयता का विनाश करके पूर्ण विदेशीकरण का बिगुल बजाया।

(8) घोषणा-पत्र ने शिक्षा के क्रियान्वियन हेतु प्रत्येक पद पद इंग्लैण्ड के स्कूलों, कॉलेजों को अपना आदर्श बना लिया।

(9) व्यावसायिक विद्यालय केवल राजभक्त भारतीयों को ही सन्तुष्ट कर पाये थे।

(10) घोषणा-पत्र ने यद्यपि निष्पक्षता का भाव प्रकट किया है, किन्तु मिशनरी विद्यालयों के सन्दर्भ में उसका नियम शिथिल हो गया।

(11) सहायता अनुदान की शर्ते प्रायः अंग्रेजी विद्यालयों के ही अनुकूल बनायी गयी थीं तथा वे ही इसकी अर्हताओं की पूर्ति कर पाने में सक्षम थे।

(12) शिक्षा को लिखित परीक्षा से जोड़कर, उसमें अनेक प्रकार की बुराइयों का प्रवेश हो गया।

वुड का घोषणा-पत्र तथा आलोचकों के दृष्टिकोण

वुड घोषणा पत्र के आलोचकों में दोनों प्रकार के व्यक्ति विद्यमान हैं-कुछ इसकी अतिरंजित प्रशंसा करते हैं तो कुछ इसकी कठोर निन्दा। ऐसे ही चुने गये दृष्टिकोणों को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है-

1. परंपाजे के अनुसार – “यद्यपि घोषणा-पत्र में अनेक अच्छे गुण विद्यमान हैं, किन्तु फिर भी इस शैक्षिक घोषणा-पत्र को शिक्षा का आज्ञा-पत्र नहीं कहा जा सकता जो कि एक सरकारी-पत्र की तरह कुछ अधिकार एवं सुविधाएँ प्रदान करता हो।

2. डॉ. एस. एन. मुखर्जी के अनुसार-“-“घोषणा-पत्र ने देश की प्राचीन परम्पराओं का पता नहीं लगाया और इस बात पर भी बिल्कुल विचार नहीं किया कि भारत में शिक्षा एक धार्मिक संस्कार थी।”

3. डॉ. भगवान दयाल के अनुसार-“वुड के घोषणा-पत्र का प्रमुख दोष-शिक्षा के उद्देश्य का गलत निर्धारण था। यह उद्देश्य पूर्व और पश्चिम की सर्वोत्तम बातों का समन्वय न होकर, केवल यूरोपीय ज्ञान की प्राप्ति का था।”

4. डॉ. ए. एन. बसु के अनुसार-“इस घोषणा-पत्र को भारतीय शिक्षा की आधारशिला कहा जाता है। यह माना जाता है। कि आधुनिक भारतीय शिक्षा का शिलान्यास इसी ने किया।”

5. नुरुल्लाह एवं नायक के अनुसार-“वुड के घोषणा-पत्र को ‘भारतीय शिक्षा का महाधिकार-पत्र’ (मैग्नाकार्टा) कहना तर्कसंगत नहीं है।”

6. सर फिलिप हारटॉग के अनुसार-“वुड के घोषणा-पत्र द्वारा भारतीयों के कल्याण के लिए एक बुद्धिमता का विकास करने वाली नवीन नीति का निर्धारण सम्भव हो सका था।”


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