प्रश्नपत्र निर्माण के सोपान | प्रश्नों के प्रकार | प्रश्नों की विशेषताएं एवं सीमाएं

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प्रश्नपत्र निर्माण के सोपान | प्रश्नों के प्रकार | प्रश्नों की विशेषताएं एवं सीमाएं

प्रश्नपत्र निर्माण के सोपान | प्रश्नों के प्रकार | प्रश्नों की विशेषताएं एवं सीमाएं
प्रश्नपत्र निर्माण के सोपान | प्रश्नों के प्रकार | प्रश्नों की विशेषताएं एवं सीमाएं


प्रश्नों के प्रकार | प्रश्नों की विशेषताएं एवं सीमाएं | प्रश्नपत्र निर्माण के सोपान

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प्रश्नपत्र निर्माण के सोपान

किसी भी परीक्षण की रचना करते समय हमारा मुख्य ध्येय विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त उद्देश्यों की जाँच करना है। जीवविज्ञान विषय में प्रश्नपत्र का निर्माण मूल्यांकन प्रक्रिया का महत्वपूर्ण अंग है।

मूल्यांकन करने में एक अच्छा प्रश्न पत्र छात्रों के बारे में अधिक से अधिक परिवर्तनों का पता लगा सकता है। प्रश्न पत्र का निर्माण करना आसान कार्य नहीं है । किसी भी विषय के संपूर्ण ज्ञान एवं प्रश्न पत्र तैयार करने में अनुभव के बिना कोई अध्यापक अच्छा प्रश्न पत्र तैयार नहीं कर सकता। प्रश्नपत्र तैयार करते समय एक निर्धारित प्रक्रिया का अनुसरण करना होता है जिसके निम्नलिखित सोपान होते हैं –

(1) योजना निर्माण
(2) ब्लूप्रिंट निर्माण
(3) ब्लूप्रिंट पर आधारित प्रश्नों का निर्माण
(4) प्रश्न पत्र का संपादन
(5) अंक प्रदान योजना तथा कुंजी निर्माण
(6) कार्य विश्लेषण चार्ट

(1) योजना निर्माण

एक प्रश्न पत्र का निर्माण करने के लिए योजना निर्माण में निम्नलिखित चरणों से गुजरना पड़ता है।

जैसे –  उद्देश्य का निर्धारण , उद्देश्यों का निर्धारण का व्यवहारीकरण, पाठ्य वस्तु विश्लेषण ,अभिकल्प निर्माण आदि।

(2) ब्लू प्रिंट का निर्माण

नील पत्र बनाते समय सबसे महत्वपूर्ण या ध्यान रखने योग्य तथ्य है बालकों का स्तर एवं आयु के अनुरूप ही प्रश्न पत्र बनाया जाना। बालकों के स्तर तथा आयु का अनुमान लगाने का सर्वोत्तम साधन बालकों की कक्षाएं जिसका का प्रश्न पत्र बनाना है उसको आधार मानकर ही विद्यार्थियों के प्रश्न पत्र का निर्माण करना चाहिए। ब्लू प्रिंट विषय से संबंधित करके बनाना चाहिए । इधर-उधर के तथ्यों को शामिल नहीं करना चाहिए क्योंकि विद्यार्थियों को उनके पाठ्यक्रम के अनुसार ही अध्यापकों द्वारा पढ़ाए जाते हैं ।

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अत्यधिक बाहर की वस्तुओं को जोड़ने से विद्यार्थियों पर अत्यधिक बोझ आ जाता है तथा उन्हें सदैव परीक्षा के संबंध में भय बना रहता है । इस कारण परीक्षार्थी दो प्रश्नों को सही तरीके से नहीं कर पाता । प्रश्नों के महत्व तथा बौद्धिक स्तर के अनुरूप ही प्रश्नों के अंकों का निर्धारण किया जाना चाहिए । जैसे निबंधात्मक प्रश्नों के अधिक तथा लघु उत्तरीय प्रश्नों के कम अंक निर्धारित करने चाहिए।  ब्लू प्रिंट बनाते समय सबसे महत्वपूर्ण बात है परीक्षा का समय । परीक्षा में समय निश्चित होता है। अतः ब्लू प्रिंट का निर्माण समय के अनुकूल ही होना चाहिए।

(3) ब्लू प्रिंट पर आधारित प्रश्नों का निर्माण

ब्लूप्रिंट बनाते समय सबसे महत्वपूर्ण ध्यान रखने योग्य तथ्य है – पाठ्यक्रम का संपूर्ण समावेश प्रश्न पत्र में होना ताकि विद्यार्थी कुछ विशेष जब परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी अध्यायों तक ही अपने को सीमित ना कर ले।
प्रश्नपत्रों में सभी प्रकार के प्रश्न जैसा निबंधात्मक, लघुउत्तरीय,अति लघुउत्तरीय और  वस्तुनिष्ठ प्रश्न शामिल किए जाएं ताकि विद्यार्थियों की बुद्धि और ज्ञान का उचित आकलन किया जा सके।

(4) प्रश्नपत्र का संपादन

ब्लू प्रिंट तैयार करते समय प्रश्नपत्र से अनुचित पदों को निकाल कर अथवा परिशुद्ध कर प्रारंभिक स्वरूप को तैयार कर लिया जाता है।  अध्यापक स्वयं उन प्रश्नों की भाषा शैली को ध्यान में रखकर उनका संपादन करता है। सभी प्रश्नों को योजना अनुसार खंडों में अथवा सरलता से कठिन ता के क्रम में व्यवस्थित कर लिया जाता है । एक प्रकार के प्रश्नों को एक साथ रखा जाता है तथा सभी प्रश्नों को क्रमबद्ध कागज पर लिख लिया जाता है।  परीक्षा में निर्देशों को भी स्पष्ट रूप से लिख लिया जाता है यह निर्देश यथासंभव और स्पष्ट तथा संक्षिप्त होने चाहिए।  निर्देश में विद्यार्थियों को क्या करना है।  कितना अनुमानित समय लगेगा तथा अंक आदि का विवरण हो सकता है।

(5) अंक प्रदान योजना तथा कुंजी निर्माण

प्रश्न पत्र निर्मित हो जाने के बाद उसकी उत्तर कुंजी जा उत्तर तालिका एवं अंक प्रदान करने की योजना बनानी पड़ती है।  उत्तर सूची में प्रत्येक प्रश्न के क्रमांक के सम्मुख उनके उत्तर संक्षेप में देने होते हैं । वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर एक ही शब्द में देने होते हैं किंतु निबंधात्मक प्रश्नों के उत्तर के मुख्य बिंदु भी दिए जाने चाहिए म प्रत्येक उत्तर में अंक के ऊपर विभागों को भी लिख देना चाहिए । यदि किसी निबंधात्मक प्रश्न के तीन या चार भाग है तो प्रत्येक के लिए प्रथक अंकों को स्पष्ट लिख देना चाहिए।

(6) कार्य विश्लेषण चार्ट

और अंत मे आता है कार्य विश्लेषण चार्ट । इसमें ब्लूप्रिंट तैयार करने के बाद अंक प्रदान करने के बाद परीक्षण को किस प्रकार कार्यान्वित करना है और उसका विश्लेषण किस प्रकार किया जाना है इसका समावेश होता है।

प्रश्नों के प्रकार / types of questions

(1) वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(2) लघुउत्तरीय प्रश्न
(3) निबंधात्मक प्रश्न

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(1) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

इन प्रश्नों का निर्माण मूलरूप से निबंधात्मक प्रश्नों के दोषों को दूर करने के लिए किया गया था । इन प्रश्नों का उपयोग बालक की उपलब्धि ,ज्ञान,निर्णय तथा बुद्धि का मापन हेतु किया जाता हैं

वस्तुनिष्ठ प्रश्नों की विशेषताएं

(1) यह संपूर्ण पाठ्यक्रम का प्रतिनिधित्व करते हैं क्योंकि इनकी प्रश्न संख्या अधिक होती है, पर्याप्त नमूनाकरण का गुण इन में पाया जाता है।
(2) इनमें व्यक्तिनिष्ठता का अभाव होता है। परीक्षक के व्यवहार, व्यक्तिगत निर्णय, भाषा शैली का प्रभाव इनके परिणामों पर नहीं पड़ता।
(3) इन परीक्षणों में विश्वसनीयता होती क्योंकि एक ही प्रश्न का एक ही उत्तर होता है। बार-बार जांचे जाने पर भी परिणाम एक ही आता है।
(4) यह प्रश्न वैद्य होते हैं। जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं उसकी पूर्ति होती है।
(5) यह प्रश्न मितव्ययी होते हैं छात्रों को इनका उत्तर देने में कम समय लगता है तथा जांचने में भी कम समय लगता है।
(6) इन प्रश्नों के द्वारा रटने की प्रवृत्ति समाप्त होती है, संपूर्ण पाठ्यक्रम का अध्ययन करना पड़ता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के दोष

(1) वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का निर्माण काफी समय तथा श्रम चाहता है।
(2) पर्याप्त बड़ी संख्या में उद्देश्यों तथा विषय वस्तु की समग्रता का ध्यान रखते हुए प्रश्नों का निर्माण करने के लिए अनुभवी एवं अच्छी योग्यता वाले व्यक्ति की आवश्यकता होती है।
(3) इसमें छात्र कई विकल्पों में अनुमान से उत्तर देता है जो संयोगवश उत्तर सही हो जाता है। 50 % उत्तरों के सही होने की संभावना होती है। इस प्रकार कभी-कभी इनके द्वारा छात्र की वास्तविक योग्यता का ज्ञान नहीं हो पाता है।
(4) इन प्रश्नों के द्वारा केवल तथ्यात्मक ज्ञान की जांच होती है। मानसिक शक्ति, भाषा शैली, भाव प्रकाशन, विषय वस्तु प्रस्तुतीकरण एवं संगठन आदि योग्यताओं तथा क्षमताओं का मापन नहीं हो पाता है।

(2) लघुउत्तरीय प्रश्न

इन प्रश्नों के उत्तर लघु रूप में होते हैं । यह मुक्त उपचारात्मक होते हैं परंतु इनके उत्तर छोटे होते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर निबंधात्मक प्रश्नों के अपेक्षा अधिक स्पष्टता से निश्चित होते हैं। इसमें समय की बचत होती है छात्र अधिक से अधिक क्षेत्रों में उत्तर दे सकते हैं।

लघुउत्तरीय प्रश्नों की विशेषताएं

(1) इसमें अधिक प्रश्न पूछे जा सकते हैं क्योंकि यह पाठ्यक्रम के अधिकांश भाग का प्रतिनिधित्व करते है।
(2) इनकी विश्वसनीयता अधिक होती है। क्योंकि उत्तर लगभग निश्चित होते हैं।
(3) इनकी रचना सरल एवं स्वाभाविक होती है।
(4) इनका उत्तर लिखना बोझिल नहीं होता क्योंकि अधिक लिखना नहीं पड़ता।
(5) अंकन में वस्तुनिष्ठता कुछ अधिक होती है।
(6) छात्रों की उपलब्धि की अधिक व्यापकता से जांच करने में यह प्रश्न अधिक सक्षम है।

लघुउत्तरीय प्रश्नों के दोष

(1) इनके द्वारा मानसिक तर्क एवं विचार शक्ति का मूल्यांकन नहीं हो पाता है। (2) भाषा शैली परिमार्जित नहीं हो पाती और ना ही इनका मूल्यांकन हो पाता है ।
(3) यह परीक्षण भी पूर्णरूपेण वैद्य एवं विश्वसनीय नहीं है।
(4) यह परीक्षण समस्यात्मक विषयों की जांच हेतु उपयोगी नहीं है।
(5) यह भी छात्रों को रटने के लिए बाध्य करता है।

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(3) निबंधात्मक प्रश्न

ये वे प्रश्न होते है जिनके उत्तर विद्यार्थियों द्वारा स्वयं अपनी भाषा का प्रयोग करते हुए विस्तार से देने होते हैं। छात्रों को पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखित रूप में एक निबंध के रूप में देने होते इसलिए इन्हें निबंधात्मक प्रश्न कहा जाता है । उत्तर की सीमा क्या हो ? यह प्रश्न के स्वरूप, छात्रों की योग्यता तथा उपलब्ध कराए गए ज्ञान एवं समय पर निर्भर करता है।

निबंधात्मक प्रश्नों की विशेषताएं

(1) इन परीक्षणों से छात्रों में तार्किक शक्ति, विवेचन, आलोचना, विवरण एवं स्पष्टीकरण आदि का मूल्यांकन किया जाता है ।
(2) बालकों के अभिव्यंजन शक्ति, सुलेख लिखने की शैली, भाषा आदि का प्रभाव परीक्षण पर पड़ता है।
(3) इसमें आत्मगत तत्व की प्रधानता रहती है जिसमें बालक विचारों को व्यवस्थित रूप में व्यक्त करना सीखते हैं।
(4) इसमें उत्तर देने एवं भाव प्रकाशन की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है।
(5) छात्रों की सृजनात्मक योग्यता एवं सामान्य ज्ञान का पता चलता है।
(6) इससे छात्रों की लेखन क्षमता बढ़ती है तथा भाषा शैली का परिमार्जन होता है।

निबंधात्मक प्रश्नों के दोष

(1) यह प्रश्न रटने पर विशेष बल देते हैं।
(2) वस्तुनिष्ठता का अभाव पाया जाता है।
(3) वैधता का अभाव पाया जाता है।
(4) ये प्रश्न पूरे पाठ्यक्रम का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। इन प्रश्नों का प्रयोग निदानात्मक कार्य के लिए नहीं किया जा सकता है।
(5) छात्रों की वास्तविक योग्यता की जांच भी इन परीक्षणों द्वारा नही होती।
(6) अंकन में आत्मनिष्ठता पाई जाती है।

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