मूल्यांकन के प्रकार | types of evaluation in hindi

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मूल्यांकन के प्रकार | types of evaluation in hindi

मूल्यांकन के प्रकार | types of evaluation in hindi
मूल्यांकन के प्रकार | types of evaluation in hindi


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मूल्यांकन के प्रकार | types of evaluation in hindi

(1) मौखिक परीक्षा
(2) लिखित परीक्षा
(3) साक्षात्कार विधि
(4) अवलोकन या निरीक्षण
(5) प्रेक्षण विधि
(6) प्रश्नावली विधि

(1) मौखिक परीक्षा

इस प्रकार की परीक्षा में मौखिक प्रश्न, वाद-विवाद या विचार-विमर्श के द्वारा हम छात्रों के सूचनात्मक ज्ञान एवं अध्ययन की योग्यता की जाँच करते हैं। इन परीक्षाओं का प्रयोग लिखित परीक्षाओं के पूरक के रूप में किया जाता है। छात्रों के वैयक्तिक गुणों की जानकारी के लिये मौखिक परीक्षा विशेष उपयोगी होती है। विद्यार्थियों की पढ़ने की योग्यता, उच्चारण, सूचनाओं की जाँच तथा लिखित परीक्षाओं की पूर्ति के लिये इसका प्रयोग किया जाता है। इससे बालक के व्यक्तिगत गुणों की जानकारी होती है। परीक्षक उसके आत्मविश्वास, अभिव्यंजना शक्ति की जाँच करता है।

मौखिक परीक्षा के लिये साक्षात्कार, पूछताछ एवं विचार विमर्श आदि का प्रयोग किया जाता है। प्राचीनकाल में अध्यापक प्राय: मौखिक मूल्यांकन ही किया करते थे। अध्यापक या गुरु छात्रों से मौखिक प्रश्न करता था, जिनके उत्तर छात्रों को भी मौखिक रूप में देने पड़ते थे और इस प्रकार छात्रों का ज्ञानवर्द्धन मौखिक परीक्षण द्वारा ही होता था। मौखिक मूल्यांकन में छात्र शाब्दिक अभिव्यक्ति, उसके मत और दृष्टिकोणों की योग्यता, भाषा प्रवाह, तार्किक शक्ति, नेतृत्व क्षमता, संवेगात्मक स्थायित्व तथा छात्र की शुद्धता और शीघ्रता को जाँच तथा मूल्यांकन होता है।

मौखिक परीक्षा के उद्देश्य

1. बालक को इस योग्य बनाना कि उसने जो देखा हो, सुना हो, पढ़ा हो अथवा अनुभव किया हो, उनका वर्णन शुद्ध भाषा में दूसरों के सामने कर सके।
2. बालकों को शुद्ध उच्चारण, उचित स्वर, उचित गति एवं उचित हाव-भाव के साथ बोलना सिखाना।
3. छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे पूछे गए प्रश्नों का उत्तर स्पष्ट रूप से उचित ढंग से दे सकें।
4. छात्रों को नि:संकोच होकर अपने विचार व्यक्त करने योग्य बनाना।
5. छात्रों में स्वाभाविक ढंग से वार्तालाप करने की क्षमता विकसित करना।
6. छात्रों को मधुरतापूर्वक शिष्टाचार के नियमों का पालन करते हुए बोलना सिखाना।
7. छात्रों को इस योग्य बनाना कि अपनी कही हुई बात की सार्थकता सिद्ध कर सके।
8. छात्रों को धाराप्रवाह एवं प्रभावशाली तरीके से बोलना सिखाना।
9. छात्रों को परिस्थिति एवं आवश्यकतानुसार शब्दों का प्रयोग करना सिखाना।

(2) लिखित परीक्षा

हमारे विद्यालयों में साधारणतया लिखित परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है । यह परीक्षा निबंधात्मक एवं वस्तुनिष्ठ दोनों ही प्रकार की होती हैं । इन परीक्षाओं के अंतर्गत कार्य सौपना,अपना प्रतिवेदन अंकित करना, कागज पेंसिल की परीक्षाएं आती हैं । यह परीक्षाएं ज्ञान उपलब्धि के मूल्यांकन के लिए विशेष उपयोगी होती हैं। इनसे बालकों में प्रत्यास्मरण,विषय सामग्री के संगठन, विश्लेषण एवं संश्लेषण की योग्यता का पता चलता है। यह परीक्षाएं प्रमाणित भी हो सकती हैं तथा अध्यापक द्वारा निर्मित भी हो सकती हैं । जो परीक्षण अध्यापक द्वारा बनाए जाते हैं उनका सबसे बड़ा लाभ यह है कि शिक्षक कक्षा गत परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए वांछित व्यवहारों का मापन कर सकता है। मूल्यांकन के लिए परीक्षाओं के दो रूप अधिक प्रचलित है – निबंधात्मक और वस्तुनिष्ठ ।

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(3) साक्षात्कार विधि

इस प्रकार की परीक्षा में मौखिक प्रश्न, विचार-विमर्श एवं सामान्य ज्ञान तथा विषय विशेष से सम्बन्धित प्रश्न प्रतियोगी या साक्षात्कारकर्ता से पूछे जाते हैं। इन पूछे गये प्रश्नों के माध्यम से ही साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति साक्षात्कारकर्ता के व्यक्तित्व का मूल्यांकन कर लेता है। साक्षात्कार एक आत्मनिष्ठ प्रविधि है। इस विधि द्वारा व्यक्ति की समस्याओं तथा गुणों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। साक्षात्कार का तात्पर्य Inter = आन्तरिक, view = विचारअर्थात् आन्तरिक विचार हुआ अर्थात् अर्थ है आमने-सामने बैठकर विचारों को जानना। साक्षात्कार एक व्यवस्थित विधि है जिसमें अपरिचित व्यक्ति से मौखिक पूछताछ की जाती है।

साक्षात्कार विधि का महत्व एवं उपयोग (Importance and Use of Interview)

इसके उपयोग एवं महत्व निम्नलिखित हैं-
(1) लोग लिखने की अपेक्षा बात करना अधिक पसन्द करते हैं।
(2) साक्षात्कारकर्ता बातचीत के द्वारा विषयी के साथ एक अच्छा एवं मित्रवत्स म्बन्ध स्थापित कर लेता है जिससे वह विषयी की गोपनीय सूचनाएँ प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार की गोपनीय सूचनाओं को प्रायः विषयी लिखकर व्यक्त नहीं करना चाहता।
(3) साक्षात्कार के द्वारा शोधकर्ता अपने शोध अध्ययन के विषय में प्रयोज्य को बता सकता है। वह इस बात को भी स्पष्ट कर देता है कि उसे किस प्रकार की सूचनाएँ चाहिए?
(4) यदि विषयी ने किसी प्रश्न का गलत अर्थ लगा लिया हो तो साक्षात्कारकर्ता पूरक प्रश्नों द्वारा प्रश्न को पुनः स्पष्ट कर सकता है।
(5) साक्षात्कार की विभिन्न अवस्थाओं में एक ही सूचना को अनेक प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है।
(6) अन्तःप्रश्नों (Cross-Questioning) के द्वारा साक्षात्कृत (Interviewee) की अन्तर्दृष्टि एवं भावों को अच्छी तरह से जाँचा जा सकता है।

(7) बच्चों, अशिक्षितों, भाषा की कम जानकारी रखने वाले व्यक्तियों तथा कम बुद्धि अथवा असामान्य मस्तिष्क वाले व्यक्तियों का अध्ययन करने के लिए यह उपकरण उपयुक्त होता है।
(8) साक्षात्कार तकनीकी लचीली होती है। साक्षात्कारकर्ता आवश्यकतानुसार अपने प्रश्नों में परिवर्तन कर लेता है। इससे प्रयोज्य की वास्तविक सूचनाओं को प्राप्त किया जा सकता है।
(9) साक्षात्कार तकनीकी आँकड़े एकत्रित करने वाली अन्य प्रविधियों; जैसे- प्रेक्षण, प्रश्नावली, श्रेणी मापनी, अनुसूची से विश्वसनीय एवं व्यावहारिक है।
(10) इसका प्रयोग विद्यार्थियों को शैक्षिक एवं व्यावसायिक परामर्श देने हेतु, रोजगार या नौकरी के लिए अभ्यर्थियों का चयन करने हेतु, मनोचिकित्सा कार्य हेतु किया जाता है। इसे केस-स्टडी (क्लिनीकल) शोध अध्ययनों में एक उपकरण के रूप में प्रायः प्रयुक्त किया जाता है।

साक्षात्कार के प्रकार

संरचना के आधार पर साक्षात्कार का वर्गीकरण दो रूपों में किया जा सकता है-(i) संरचित (Structured) या मानकीकृत (Standardised) साक्षात्कार, (ii) असंरचित (Unstructured) या अमानकीकृत (Unstandardised) साक्षात्कार।

(4) अवलोकन या निरीक्षण पद्धति

अवलोकन पद्धति से आशय है किसी क्षेत्र विशेष का अध्ययन वहाँ के
सर्वेक्षण की सहायता से करना। इस उद्देश्य से स्थानीय वातावरण के विविध पक्षों का सुगमता से अध्ययन किया जा सकता है। सामाजिक विज्ञान/सामाजिक अध्ययन विषय के लिए यह पद्धति विशेष उपयोगी रहती है। इस पद्धति के उपयोग के लिए शिक्षक क्षेत्र विशेष का निर्धारण करता है। यह नगर का एक मोहल्ला, गाँव या कोई और क्षेत्र हो सकता है। इसके पश्चात् यह निर्णय करना होता है कि वहाँ किन-किन पर्यावरणीय पक्षों के विषय में जानकारी एकत्र की जानी है।

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अध्ययन के पक्षों के अनुसार विद्यार्थियों को उतने समूहों में विभाजित करके प्रत्येक को सम्बन्धित पक्ष की आवश्यक सूचना एकत्र करने का दायित्व दिया जाता है। शिक्षक यह सुनिश्चित करने का भी प्रयास करता है कि वांछित सूचनाएँ कैसे एकत्र की जायेंगी। समूहों द्वारा सूचनाएँ एकत्र हो जाने के पश्चात् उन्हें पूरे कक्षा के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है और एक सर्वेक्षण प्रतिवेदन तैयार किया जाता है। इसमें आवश्यकतानुसार; तालिकाएँ, चित्र, मानचित्र, फो ग्राफ, नमूने आदि को सम्मिलित किया जाता है। शिक्षक यह कार्य-योजना बनाने से लेकर उसके क्रियान्वयन तथा प्रतिवेदन निर्माण तक, विद्यार्थियों के सहयोग से करता है।

अवलोकन या निरीक्षण पद्धति के गुण | Merits of Observation Method

1. यह विधि मनोवैज्ञानिक है चूँकि यह व्यक्तिगत भिन्नताओं पर आधारित है।
इसमें प्रत्येक छात्र अपनी क्षमता व योग्यता के अनुसार निरीक्षण करता है। उसे किसी बात के लिए बाध्य नहीं किया जाता है।
2. इस पद्धति में अध्यापक व छात्रों के मध्य परस्पर मधुर सम्बन्ध बने रहते हैं।
3. व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व को समझता है। अत: इसमें अनुशासनहीनता की समस्या उत्पन्न नहीं होती।
4. यह छात्रों के स्वतन्त्र विकास पर बल देती है अतः छात्रों में स्वतः ही
स्वाध्याय की क्षमता को उत्पन्न करती है।

(5) प्रेक्षण विधि

प्रेक्षण आँकड़ो का संग्रह करने की एक विधि है। प्रेक्षण तकिनीकि मापन के एक उपकरण के रूप में प्रयुक्त होता है। प्रेक्षण द्वारा किसी व्यक्ति के व्यवहार का नियंत्रित एवं अनियंत्रित स्थिति में मूल्यांकन होता हैं वैज्ञानिक अध्ययन इसी विधि पर आधारित होता है। प्रेक्षण तकिनीकि में यह भी विशेषता होती है कि इसमें किसी व्यक्ति के बाह्य व्यवहार का लेखन व्यवहार के घटित होने के समय भी किया जाता है प्रेक्षण का प्रयोग मुख्य रूप से वर्णनात्मक शोध प्रविधि में एक उदाहरण के रूप में किया जाता है। प्रेक्षण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है – सहभागी प्रेक्षण और असहभागी प्रेक्षण।

प्रेक्षण विधि की विशेषताएं

(1) परीक्षण एक सुनियोजित विधि नहीं है यह आंकड़ों पर एकत्रित करने की एक विधि है जो किसी विशिष्ट उद्देश्य की ओर केंद्रित होती है।
(2) प्रेक्षण एक क्रमबद्ध सुनियोजित लेखन की विधि है।
(3) प्रेक्षण द्वारा महत्वपूर्ण एवं सार्थक सूचनाओं एवं तथ्यों का संग्रह किया जाता है।
(4) प्रेक्षण विधि वैज्ञानिक वस्तुनिष्ठ होती है इस विधि द्वारा तथ्यों को एकत्रित किया जाता है।
(5) परीक्षण विधि द्वारा प्रत्यक्ष व्यवहार का आकलन किया जाता है इसमें किसी परीक्षक द्वारा सूचित सूचना एवं तथ्यों पर विश्वास नहीं किया जाता है (6) प्रेक्षण प्रत्यक्ष निरीक्षण की प्रविधि है जिसमें प्रेक्षक सीधे विषयी के व्यवहार का निरीक्षण करके उसका लेखन करता है।

प्रेक्षण विधि के लाभ एवं उपयोग

(1) वर्णनात्मक अनुसंधान में आंकड़ों का संग्रह करने के लिए प्रेक्षण तकनीकी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है ।
(2) व्यक्तित्व के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं का अध्ययन प्रश्नावली साक्षात्कार या श्रेणी मापनी विधियों द्वारा शुद्ध रूप से संभव नहीं हो पाता है प्रेक्षण तकनीकी से व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का अध्ययन प्रत्यक्ष एवं वस्तुनिष्ठ रूप में किया जा सकता है।
(3) बच्चों के कक्षा कक्ष एवं खेल के मैदान में प्रदर्शित व्यवहारों का प्रत्यक्ष निरीक्षण प्रेक्षण तकनीकी से संभव है।
(4) पाठ्यक्रम सहभागी क्रियाओं जैसे वाद विवाद प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि में छात्र-छात्राओं का सही मूल्यांकन प्रेक्षण विधि द्वारा संभव हो पाता है।
(5) छात्रों के कक्षा में व्यवहार समूह में व्यवहार तथा विभिन्न विद्यालय परिस्थितियों में उनके व्यवहार का स्वभाविक निरीक्षण, प्रेक्षण तकनीकी के द्वारा किया जा सकता है।

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(6) प्रश्नावली विधि

शिक्षा मनोविज्ञान तथा अन्य सामाजिक विज्ञानों के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की सूचना प्राप्त करने के लिए प्रश्नावली की एक अहम भूमिका होती है। शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों, अध्यापकों तथा उनसे संबंधित शैक्षिक समस्याओं के निदान के लिये प्रश्नावली विधि का प्रयोग प्रायः किया जाता है। इसके अतिरिक्त बालक,शिक्षक आदि के व्यक्तित्व के गुणों का मापन करने के लिए सामान्य रूप से विशिष्ट प्रकार की प्रश्नावलियों का निर्माण किया जाता है। प्रश्नावली मुख्यतः दो प्रकार की होती है –

(1) बंद या प्रतिबंधित प्रश्नावली ( बहुविकल्पीय) (2) खुली या अप्रतिबंधित प्रश्नावली ( निबंधात्मक )

(1) बंद या प्रतिबंधित प्रश्नावली ( बहुविकल्पीय)

इस प्रश्नावली में प्रश्नों के साथ कुछ उत्तर दिए रहते हैं जैसे – हां या नहीं ,सत्य या असत्य, या 3 से 4 विकल्प । उत्तर दाता को सभी विकल्पों में से एक उत्तर का चयन करना पड़ता है। इसमें प्रश्नों का उत्तर देने के लिए विषयी को स्वतंत्रता नहीं होती है। इस प्रश्नावली के कुछ लाभ भी है – (1) इनका उत्तर देना सरल होता है। (2) इसमें कम समय लगता है। (3) इसमें उत्तरदाता विषय से दूर नहीं हो पाता है। (4) इसमें वस्तुनिष्ठ प्रश्न होते हैं । (5) इनसे प्राप्त प्राप्त अंकों को सारणीबद्ध करना तथा उसकी व्याख्या करना बहुत सरल होता है।

(2) खुली या अप्रतिबंधित प्रश्नावली ( निबंधात्मक )

इस प्रकार की प्रश्नावली में प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया होता है। इसमें उत्तर दाता अपने शब्दों में उत्तर देता है। वह अपने उत्तर को जैसा चाहे बड़ा करके या संक्षिप्त करके दे सकता है । इसमें उत्तर दाता किसी निश्चित उत्तर को देने के लिए बाधित नहीं होता अपितु वह अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र होता है । जैसे – आप बीटीसी या बीएड प्रशिक्षण क्यों ले रहे हैं ?

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