बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय समावेशी शिक्षा में सम्मिलित चैप्टर समावेशी बालकों के अधिगम जानने हेतु आवश्यक उपकरण एवं तकनीकि आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।
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समावेशी बालकों के अधिगम जानने हेतु आवश्यक उपकरण एवं तकनीकि
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समावेशी बालकों का अधिगम जानने हेतु आवश्यक उपकरण एव तकनीकि
मूल्यांकन सभी प्रकार के बालकों के लिये होता है परन्तु उसका प्रयोग समावेशी बालकों के अधिगम को जानने के लिये निम्नलिखित उपकरणों एवं तकनीकों के अनुसार किया जा सकता है-
1.अवलोकन (Observation)-अवलोकन के द्वारा छात्रों के व्यवहार, क्रिया,बौद्धिक एवं संवेगात्मक परिपक्वता के सम्बन्ध में साक्ष्य एकत्रित किये जाते हैं जिससे बालकों के सामाजिक विकास, संवेगात्मक स्तर तथा बौद्धिक परिपक्वता के बारे में ज्ञान प्राप्त हो सके। इसके द्वारा बालक में विकसित रुचियों, क्षमताओं, अभिवृत्तियों तथा कौशल का सही मूल्यांकन किया जा सकता है। ऐसे बालकों का अवलोकन बारीकी से होना चाहिये।
2. साक्षात्कार (Interview)-किसी व्यक्ति से आमने-सामने वार्तालाप करके सूचना एकत्रित करना साक्षात्कार कहलाता है। साक्षात्कार में पूछी जाने वाली बातें साक्षात्कार प्रपत्र में पूर्व में ही तैयार कर ली जाती हैं। इसमें पूछे जाने वाले प्रश्न उद्देश्यनिष्ठ होते हैं। इस प्रपत्र से प्राप्त उत्तरों के अतिरिक्त बालक की रुचि में वृद्धि, व्यक्तित्व एवं मनोवृत्ति में परिवर्तन द्वारा बालक की रुचियों के विकास, दृष्टिकोण में हुए व्यवहारगत् परिवर्तन तथा विभिन्न वैयक्तिक विशेषताओं का परीक्षण किया जाता है। इसके द्वारा बालक के प्रस्तुतीकरण के आधार पर इसकी सम्प्राप्तियों का मूल्याकन किया जाता है। साक्षात्कार प्रतिभावान बालक, विकलांग का बालक आदि से सूचना प्राप्त करने में बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। फलतः अन्य मूल्यांकन तकनीकियों के साथ-साथ साक्षात्कार के द्वारा भी इन विशिष्ट बालकों के मूल्यांकन पक्षों मापन करना चाहिये।
3. प्रश्नावली (Questionnaire)-विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ जानने के लिये प्रश्नावली का प्रयोग किया जाता है। इसमें से कुछ प्रश्न उद्देश्यों एवं लक्ष्यों से सम्बन्धित होते हैं तथा प्रश्नों को पढ़कर ही छात्र उत्तर देता है। विद्यार्थियों की उत्तर देने की प्रतिक्रियाओं से बालक के ज्ञान, अभिवृत्ति एवं रुचि का पता लगता है। इन्हीं के आधार पर सम्बन्धित आँकड़े उन विद्यार्थियों के एकत्रित कर लिये जाते हैं।
4. चैक लिस्ट अथवा पड़ताल सूची (Check list)-चैक लिस्ट अथवा पड़ताल सूची विद्यार्थियों द्वारा प्रदर्शित अपेक्षित व्यवहार अथवा छात्रों द्वारा की जाने वाली अपेक्षित क्रियाओं की क्रमबद्ध सूची है जिसमें सूची बिन्दु के आधार पर विद्यार्थी की क्रियाओं एवं व्यवहार का मूल्यांकन किया जाता है। प्रश्नावली की भाँति मूल्यांकन का यह उपकरण विद्यार्थियों की व्यक्तिगत सूचना एवं व्यवहार जानने का साधन है। इसके प्रयोग द्वारा मूल्यांकनकर्ता विद्यार्थियों की क्रियाओं और व्यवहार के खाने में हाँ अथवा नहीं लिखकर इनकी उपयुक्तता को जाँचता है।
उदाहरणार्थ– (1) विद्यार्थी समय पर शाला पहुँचता है। (2) विद्यार्थी प्रार्थना सभा में अपनी कक्षा की पंक्ति में आता है और खड़ा होता है?हाँ/नहीं। (3) विद्यार्थी अपने से बड़ों का अभिवादन करता है? (4) विद्यार्थी शाला में निश्चित गातेण में आता है? हाँ/नहीं। (5) विद्यार्थी शाला में सह-शैक्षिक गतिविधियों में भाग लेता है? सदैव/कभी-कभी/कभी नहीं। (6) वह समाज सेवा कार्यक्रमों में भाग लेना है? सदैव/कभी-कभी/कभी नहीं। बिन्दु (5) में यह स्वरूप भी चैकलिस्ट का हो सकता है जिससे विद्यार्थी के सामाजिक व्यवहार का उच्चिष्ठ मूल्यांकन हो सकता है। स्तरानुकूल विशिष्ट बालकों के लिये पृथक-पृथक् चैक लिस्ट बनायी जा सकती है और उनके द्वारा सुविधापूर्वक जाँच कार्य किया जा सकता है।
5. कम निर्धारण मान (Rating value or rating scale)-यह सदैव व्यक्तिगत होता है। इसके द्वारा उन विभिन्न विशेषताओं एवं परिस्थितियों का मूल्यांकन किया जाता है जो बालक की किसी विशेष क्षेत्र कुशलताओं की जाँच उसके व्यवहार की प्रगति आदि विभिन्न मात्राओं में प्रस्तुत की जाती है। यह मापनी 0,2,3,4,5 अथवा 0 से 7 आदि तक होती है। यह बालक की कुशलता (दक्षता) विशेषकर प्रतिभावान बालकों के मूल्यांकन के लिये अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
6. समाजमिति (Sociometry)-क्योंकि मानव एक सामाजिक प्राणी है, जैसा व्यवहार वह समाज में करता है उसका मूल्यांकन भी उसके द्वारा व्यक्त परिस्थिति के विशिष्ट व्यवहार से किया जा सकता है। सजीव परिस्थितियाँ बालक की मनोवृत्तियों को यथासम्भव प्रकट कर देती हैं तथा क्रिया-प्रतिक्रिया के स्वरूप का भी निर्धारण करती हैं जिन्हें देखकर उनका मूल्यांकन एवं वर्गीकरण सम्भव है। इन विशिष्ट बालकों की सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या समायोजन होती है क्योंकि ये अपनी विशेषता के कारण समाज में भली-भाँति समायोजित नहीं हो पाते। इस प्रविधि के द्वारा इनके समायोजन की जाँच भली-भाँति हो सकती है।
7.संचित अभिलेख (Cumulative record)-शाला में पढ़ रहे बालकों की आत्मनिष्ठ एवं व्यक्तिगत जानकारी लेने के लिये संचित अभिलेख’ मूल्यांकन का एक सशक्त साधन है। शाला में प्राप्त इन अभिलेखों के आधार पर बालकों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण आँकड़े एवं सूचनाएँ।सुलभता से प्राप्त हो जाती हैं। बालकों की व्यक्तिगत डायरियाँ, अध्यापक द्वारा तैयार किये हुए घटनावृत्त तथा संचित अभिलेख भी मूल्यांकन में सहायक होते हैं। इनके आधार पर बालकों की मनोवृत्ति, रुचि, व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्याओं का पता चलता है। वे समस्त जानकारी।सम्बन्धित अभिलेख विशिष्ट बालकों के लिये लाभदायक होते हैं क्योंकि उनकी समस्या से जुड़ी बातों का मूल्यांकन इनमें होना समाविष्ट होता है। बालक से सम्बन्धित पिछली एवं वर्तमान प्रगति का तुलनात्मक स्वरूप इन संचित अभिलेखों के माध्यम से प्राप्त होता है जिससे उसमें व्याप्त किसी समस्या अथवा परिस्थिति को समझा जा सकता है और उसका समाधान खोजा जा सकता है।
8. व्यक्तिगत अध्ययन (केस स्टडी) (Case study)-किसी बालक की विशिष्टता (विलक्षणता) अथवा पिछड़ेपन को समझने हेतु परिवार, भाई-बहन, सम्बन्धियों तथा संगी-साथियों आदि से सूचनाएँ सावधानीपूर्वक संग्रहित की जाती है तथा सम्बन्धित छात्र को विश्वास में लेकर तथ्यों की जाँच की जाती है। व्यक्तिगत अध्ययन द्वारा बालक के व्यवहार, अभिवृत्ति तथा अभिरुचि, मनोवृत्ति आदि की जानकारी प्राप्त की जाती है।
9.बालक (शिक्षार्थी) द्वारा उत्पादित वस्तुएँ (Productive things by students)-बालकों द्वारा निर्मित वस्तुएँ, तस्वीरें, कहानियाँ, कविता तथा प्रतिरूपआदि बालक (शिक्षार्थी) के उत्पादित साधन कहलाते हैं। इनके आधार पर बालकों की रुचियों एवं रुझानों का पता लगाया जा सकता है। विमन्दित एवं पिछड़े शिक्षार्थियों के लिये यह तकनीक अत्यन्त उपयोगी है। इनके द्वारा वर्तमान समय में जीवनोपयोगी व्यावसायिक शिक्षा देना सम्भव हो सकता है।
10. सामयिक जाँच या परख पत्र (Periodical tests)-बालकों की समय-समय पर होने वाली उपलब्धि ज्ञात करने के लिये सामयिक जाँच पत्रों के माध्यम से सामयिक जाँच का आयोजन किया जाता है। जाँच कार्य हेतु परीक्षा आयोजित की जाती है। सामयिक जाँच सम्पूर्ण एवं अन्तिम नहीं होती है। सामान्यतया यहाँ परीक्षा का उपयोग ज्ञान अथवा कार्य की जाँच के लिये किया जाता है। यह परीक्षा किसी बाह्य शक्ति द्वारा ली जाये अथवा स्वयं अध्यापकों के द्वारा परन्तु यह परीक्षा सामान्य एवं विशिष्ट बालकों की ली जाती है। सामान्यत: इस परीक्षा पद्धति के दो स्वरूप प्रयोग में आते हैं- (अ) मौखिक परीक्षा। (2) लिखित परीक्षा।
(अ) मौखिक परीक्षा (Oral examination)-मौखिक ली जाने वाली परीक्षा से छात्र को व्यक्तिगत जानकारी मिलती है। इसमें छात्र परीक्षक के सम्मुख प्रस्तुत होकर किसी विषयवस्तु अथवा उसके अंश से सम्बन्धित प्रश्नों का उत्तर देता है जिससे बालक की आत्माभिव्यक्ति-दक्षता एवं आत्मविश्वास का पता चलता है। इस प्रकार की परीक्षा में समय अधिक लगता है तथा पक्षपात की सम्भावना अधिक बनी रहती है। अध्यापक द्वारा इस परीक्षा का उपयोग प्रत्यास्मरण, चिन्तन, विश्लेषण तथा उच्चारण आदि योग्यताओं के मापन में किया जाता है। मौखिक परीक्षा के दोष को लिखित परीक्षा द्वारा दूर किया जाता है।
(ब) लिखित परीक्षा (Written examination)-सामान्यतः विद्यालयों में इस प्रकार की परीक्षा का आयोजन एवं उपयोग होता है। ये परीक्षा परीक्षण-पत्र के माध्यम से जाँच करती हैं। ये परीक्षण दो प्रकार के होते हैं-(i) वस्तुनिष्ठ, (ii) निबन्धात्मक। लिखिक कार्य में लिखित कक्षा एवं गृहकार्य अभिलेख तैयार करना आदि द्वारा विद्यार्थियों के प्रत्यास्मरण,अवबोधन, अभिव्यक्ति, स्वतन्त्र विचार तथा तार्किक शक्ति आदि का विभिन्न परिस्थितियों में उपयोग की जाने वाली योग्यताओं (दक्षताओं) का पता लगता है। ये परीक्षण पत्र प्रमापीकृत
एवं अप्रमापीकृत (शिक्षक निर्मित) हो सकते हैं। इनके द्वारा विद्यार्थियों की लिखित अभिव्यक्तियों की जाँच की जाती है।
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