विद्यालय और समुदाय का सम्बंध | relation between school and community in hindi

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय वर्तमान भारतीय समाज एवं प्रारंभिक शिक्षा में सम्मिलित चैप्टर विद्यालय और समुदाय का सम्बंध | relation between school and community in hindi आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

Contents

विद्यालय और समुदाय का सम्बंध | relation between school and community in hindi

विद्यालय और समुदाय का सम्बंध | relation between school and community in hindi
विद्यालय और समुदाय का सम्बंध | relation between school and community in hindi


relation between school and community in hindi | विद्यालय और समुदाय का सम्बंध

Tags  – विद्यालय और समुदाय का संबंध,विद्यालय और समुदाय के बीच संबंध,विद्यालय और समुदाय के अंतर्संबंध,relation between school and community in hindi,विद्यालय और समुदाय में संबंध,विद्यालय एवं समुदाय का संबंध,विद्यालय और समुदाय का सम्बंध | relation between school and community in hindi

विद्यालय एवं समुदाय का सम्बन्ध
Relationship between School and Community in hindi

हम विद्यालय एवं समुदाय के सम्बन्धों पर दृष्टि डालें तो निम्नलिखित तथ्य हमारे समक्ष उभर कर आते हैं-

(1) शहरों में स्थित सरकारी विद्यालयों एवं समुदाय में औपचारिक संबंध होता है। (2) प्राइवेट स्कूल एवं समुदाय के मध्य अपेक्षाकृत अधिक सम्बन्ध रहता है।  (3) गाँव के स्कूल एवं समुदाय में भौतिक समीपता होने के कारण घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।

समुदाय का समाज एवं विद्यालय के हित में निम्नलिखित महत्त्व होता है-

(1) समुदाय बालक में एकता की भावना को विकसित करता है। (2) समुदाय बालक को समाज में अनुकूलन करने में सहायता प्रदान करता है। (3) समुदाय बालक के शारीरिक विकास पर पर्याप्त एवं समुचित ध्यान देता है। (4) बालक का जीवन निर्वाह समुदाय में रहकर होता है, जहाँ पर वह अपने कर्तव्यों का पालन करना सीखता है। (5) समुदाय बालक को स्वास्थ्य तथा चरित्र निर्माण सम्बन्धी अनुभव प्रदान करता है। (6) समुदाय में बालक को आत्म प्रकाशन तथा आत्मानुभूति का अवसर मिलता है। (7) समुदाय में बालक देखकर,सुनकर तथा स्वयं प्रयोग करके अनेक अनुभव प्राप्त करता है।

इस प्रकार समुदाय बालक के विकास तथा समाज के समायोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। विद्यालय तथा परिवार के समान समुदाय भी बालक की शिक्षा को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है। वह उसमें सहयोग, भाईचारा, कर्त्तव्य परायणता तथा अनेक मानवीय गुणों का विकास करता है।

इस प्रकार से उपरोक्त विवरण के आधार पर समुदाय की विशेषताओं पर विचारणीय बिन्दुओं के आधार पर अध्ययन किया जा सकता है-

(1) समुदाय में जीवन के सामान्य नियमों के साथ-साथ उसमें अनेक संघ एवं संस्थाएँ भी सम्मिलित होती हैं। (2) समस्त समुदाय के सदस्य एक ही निवास, मुहल्ले, नगर तथा ग्राम में अपने सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिये निवास करते हैं।

विद्यालय भी समुदाय के अन्तर्गत आता है। समुदाय के समस्त अति विस्तृत और व्यापक शब्द की अनुभूति प्रदान करता है। इसमें विभिन्न प्रकार के सामाजिक सदस्यों को विद्यालय में उचित संस्कार देने का उत्तरदायित्व निभाया जाता है। वस्तुतः समुदाय समूहों का समावेश होता है। उदाहरण के लिये-परिवार, धार्मिक संघ,जाति, पड़ोस, गाँव, नगर, राज्य एवं राष्ट्र जो समुदाय के विभिन्न रूप है। आज समुदाय की भावना भी व्यापक अर्थ हो गयी है।

अत: आज विश्व समुदाय की धारणा को व्यावहारिक रूप प्रदान करने की चेष्टा की जा रही है। इस प्रकार से समुदाय’ साधारण भाषा में व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है, जो मिलकर सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति तथा सामान्य जीवन व्यतीत करने के लिये एक निश्चित भाग में रहते हैं। अतः स्पष्ट है कि किसी समुदाय के अन्तर्गत व्यक्तियों की परस्पर सम्बद्धता, पारस्परिक समझ, समान भाषा, विश्वास, आस्थाएँ तथा समुदाय के प्रति समान भावना होना आवश्यक है। अत: यह हमारा समुदाय ही है, जो भावना के द्वारा सामुदायिक सम्बन्धों की व्यक्ति  में अनुभूति करता है।

ये भी पढ़ें-  सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा | सूक्ष्म शिक्षण के लाभ एवं गुण | process of micro teaching in hindi


विद्यालय सामुदायिक केन्द्र के रूप में / विद्यालय और समुदाय का सम्बंध

विद्यालय समाज का केन्द्र है। यह वह संस्था है जिसके द्वारा सम्पूर्ण समाज की विभिन्न आवश्यकताएँ पूर्ण की जाती हैं। वस्तुत: शिक्षा एक सामाजिक समस्या है एवं समाज विद्यालय को यह कार्य सौंपता है कि युवकों का प्रशिक्षण इस विधि से करे कि समाज के जिस समुदाय में वे रहते हैं वहाँ वे प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें। विद्यालय में जिन विषयों का अध्यापन कराया जाय, वे बाह्य समाज के जीवन से सम्बन्धित होने चाहिये। बालकों को पुस्तकों, कार्यों तथा सामाजिक सम्पर्कों द्वारा सामाजिक विरासत को सीखना पड़ता है।

अत: बालकों को सामाजिक विरासत एवं सामाजिक विधि से जोड़ने एवं मानव के संचित अनुभवों का ज्ञान प्रदान करने का कार्य विद्यालय को सौंपा गया है। इससे स्पष्ट है कि विद्यालय व्यक्ति तथा समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने वाला साधन है। विद्यालय में कोई भी समाज अपनी शिक्षा के अभाव में अपने अस्तित्व को सुरक्षित नहीं रख सकता। जीवन की प्रगति एवं सुधार के लिये विद्यालय को एक छोटा समुदाय बनाना होगा। विद्यालय को एक छोटा समुदाय बनाने के लिये स्वयं को सामुदायिक जीवन के केन्द्र के रूप में कार्य करना पड़ेगा विद्यालय को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाने के उपाय हैं-

(अ) समुदाय को विद्यालय के निकट लाया जाये। (ब) विद्यालय को समुदाय के निकट लाया जाये।

(अ) समुदाय को विद्यालय के निकट लाना

समुदाय को विद्यालय के निकट लाने के उपाय निम्नलिखित हैं-

1. अभिभावक-शिक्षक संघ की स्थापना-अध्यापक एवं अभिभावकों के सम्पर्क हेतु अध्यापक-अभिभावक परिषदों का निर्माण किया जाना चाहिये। समुदाय को विद्यालय तक लाने के लिये अभिभावक-शिक्षक संघ महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं। विद्यालय कोई भी सूचना अभिभावकों से प्रश्नावली (Questionnaire) के माध्यम से प्राप्त कर सकता है।

2. समुदाय के सदस्यों को आमन्त्रित करना-विद्यालय को समाज का केन्द्र बनाया जाये, जिससे समाज के सदस्य उसे अपना समझें। विद्यालय में सामुदायिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों को आमन्त्रित करना चाहिये। ये व्यक्ति अपने व्यवसायों एवं अन्य सामाजिक तथ्यों का प्राथमिक ज्ञान प्रदान कर सकते हैं। विभिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित व्यक्ति अपने-अपने व्यवसायों के बारे में छात्रों को वास्तविक एवं प्रत्यक्ष ज्ञान से अवगत करा सकते हैं। अत: विद्यालय के कार्यक्रम में समाज के व्यक्तियों को भी भाग लेने का अवसर मिले। विद्यालय में कुछ ऐसे भी कार्यक्रम रखे जायें जो स्थानीय प्रौढ़ों की रुचि के अनुकूल हों। अत: विद्यालय में समुदाय के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को समय-समय पर बुलाया जाये और उनके भाषण दिलवाये जायें।

3. विद्यालय में सामुदायिक क्रियाओं का आयोजन-विद्यालय में प्रत्येक छात्र सामुदायिक क्रियाओं के आयोजन से विद्यालय तथा समुदाय, दोनों एक-दूसरे के निकट आ सकेंगे एवं छात्र सामुदायिक जीवन के विभिन्न पक्षों के विषय में ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे। इन क्रियाओं के आयोजन हेतु समुदाय के लोगों का सहयोग प्राप्त किया जाये। शिक्षक तथा छात्रों को इन क्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिये।

ये भी पढ़ें-  बालक में पठन का विकास / बालक में पठन प्रक्रिया के विकास के उपाय

4.फिल्म-शो एवंप्रदर्शनी व्यवस्था-फिल्म-शो एवं प्रदर्शनियों के माध्यम से समुदाय एवं विद्यालय में निकटतम् सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते हैं। फिल्मों के माध्यम से समुदाय के सम्बन्ध में उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। व्यक्ति प्रदर्शनियों के माध्यम से विद्यालय समुदाय को अपनी ओर आकृष्ट कर सकता है एवं समुदाय का सहयोग प्राप्त कर सकता है।

5- स्थानीय उत्सवों एवं त्योहारों को मनाना-विद्यालय में विभिन्न स्थानीय उत्सर्वो, मेलों एवं त्योहारों का आयोजन करके समुदाय एवं विद्यालय को निकट लाया जा सकता है। इसमें भाग लेने तथा देखने के लिये स्थानीय समुदाय को आमन्त्रित किया जाना चाहिये। इससे विद्यालय तथा समुदाय एक-दूसरे के निकट आ सकेंगे।

6. समाज द्वारा समस्त साधनों से विद्यालय की सहायता-समुदाय एवं विद्यालय के पारस्परिक सम्बन्ध अच्छे एवं सुदृढ़ बने रहने के लिये समाज का मुख्य कर्त्तव्य है कि वह शिक्षालय की उसके कर्त्तव्य की पूर्ति में अपने समस्त साधनों-भौतिक, आध्यात्मिक आदि से सहायता करे।

7.प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र की स्थापना-समुदाय के प्रौढ़ों को साक्षर बनाने के लिये विद्यालय  को प्रौढ़ शिक्षा का केन्द्र बनाया जा सकता है। इससे उस समुदाय के प्रौढ़ शिक्षित हो जायेंगे एव विद्यालय के छात्र प्रौढ़ो के अनुभवों से लाभान्वित भी हो सकेंगे। इस प्रकार विद्यालय एव समुदाय एक-दूसरे के निकट आ सकेंगे।

(ब) विद्यालय को समुदाय के निकट लाना

विद्यालय को समुदाय के निकट लाने के उपाय निम्नलिखित हैं-

(1) पाठ्यक्रम समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल-विद्यालय और समाज के  सम्पर्क मधुर बनाने के लिये विद्यालय के पाठ्यक्रम को सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के आधार पर बनाया जाना चाहिये। विद्यालय में समाज की क्रियाओं को लघु रूप से स्थापित किया जाये,जिनका छात्र व्यावहारिक रूपसे ज्ञान प्राप्त कर सकें। अत: विद्यालय के पाठ्यक्रम का आधार समाज का आवश्यकताएँ हो। इस प्रकार पाठ्यक्रम में ऐसे विषय रखे जायें जो छात्रों में जीविकोपार्जन की क्षमता उत्पन्न कर सकें। समाज में जो परिवर्तन हों उन परिवर्तनों को पाठ्यक्रम में स्थान देने के लिये पाठ्यक्रम का लचीला होना नितान्त आवश्यक है। बालक अपने मूल्यों का निर्माण स्वयं करता है। पाठ्यक्रम में इन मूल्यों को स्थान देने हेतु भी इसको लचीला होना चाहिये।

2. साक्षात्कार द्वारा सूचना एकत्रीकरण-छात्र समुदाय के लोगों से साक्षात्कार करके विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ एकत्रित कर सकते हैं। इस प्रकार प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्ति के लिये साक्षात्कार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

3. सामाजिक शिक्षा की व्यवस्था-समुदाय की संस्कृति से अवगत होने के लिये छात्रों को नगरों या गाँवों में जाकर शिक्षाप्रद सांस्कृतिक कार्यक्रमों, भजन, कीर्तन, नाटकों आदि की व्यवस्था करनी चाहिये। अत: शिक्षा एवं छात्रों को इन कार्यक्रमों में विशेष रुचि लेनी. चाहिये।

4. सामुदायिक कार्यों में सक्रिय सहभागिता-शिक्षक को सामाजिक क्रियाकलापों के क्रियान्वयन हेतु उनका नेतृत्व ग्रहण करना चाहिये। छात्रों को भी समाजोपयोगी कार्यों में रुचि लेनी चाहिये।

ये भी पढ़ें-  सम्प्रेषण का अर्थ एवं परिभाषाएं | सम्प्रेषण प्रक्रिया के तत्व या घटक | meaning and definition of communication in hindi

5. समाज-सेवा सप्ताहों का आयोजन-विद्यालय को समुदाय के निकट जाने के लिये श्रमदान सप्ताह, स्वच्छता सप्ताह, साक्षरता सप्ताह आदि का आयोजन करना चाहिये। इन अवसरों पर छात्र तथा शिक्षक शहर तथा गाँवों में जाकर श्रमदान,सफाई तथा निरक्षरों को साक्षर बनाने के लिये कार्य कर सकते हैं। इन कार्यक्रमों द्वारा छात्रों को सामाजिक जीवन का ज्ञान कराया जा सकता है।

6. क्षेत्र-पर्यटन का आयोजन-क्षेत्र-पर्यटन का उद्देश्य विषय का स्पष्टीकरण या समस्या का समाधान खोजना होना चाहिये। इनके माध्यम से छात्र स्थानीय परिस्थितियों का प्रत्यक्ष रूप से निरीक्षण कर सकते हैं।

7.समाज-सेवा संघों का निर्माण-समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिये छात्रों एवं अध्यापकों को अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहिये। विद्यालयों में समाज-सेवा संघों का निर्माण करना चाहिये। ये संघ महामारी फैल जाने पर, बाढ़ के समय, किसी उत्सव अथवा जुलूस के अवसर पर, समाज के लोगों की सहायता से समाज के ही लोगों की सहायता करेंगे। अत: ये संघ निर्धन और जरूरतमन्द छात्रों की सहायतार्थ भी कार्य कर सकते हैं।

8. उपर्युक्त शिक्षण-विधियों का प्रयोग-विद्यालय में उन शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाये सुरुचिपूर्ण शिक्षण-विधियाँ भी विद्यालय एवं समाज को निकट लाने में सहायक हो सकती है।

9. समुदाय के समस्त शैक्षिक साधनों से सम्पर्क-बालक विद्यालय के अतिरिक्त शिक्षा प्राप्ति के अनौपचारिक साधनों द्वारा भी अनुभव प्राप्त करता है। विद्यालय को इन समस्त साधनों (परिवार, धर्म, रेडियो, टी. वी. (दूरदर्शन), राज्य आदि) से सम्पर्क स्थापित करना चाहिये। इस प्रकार के सम्पर्क छात्रों का सर्वांगीण विकास करने तथा समाज की समस्याओं के समाधान हेतु सहायता प्रदान करेंगे और समाज तथा विद्यालय एक दूसरे के निकट आ सकेंगे।

10. ग्रामीण समाज एवं बालिकाओं की शिक्षा-देश में शिक्षा का प्रसार करने के लिये गाँवों की ओर विशेष ध्यान देना होगा। विद्यालयों को ग्रामीण समाज के निकट लाने के लिये ग्रामीण विद्यालयों में कृषि-शिक्षा, पशु-चिकित्सा आदि विषयों को पाठ्यक्रम में विशेष स्थान प्रदान करना होगा। समय-समय पर ग्रामीण विद्यालय के छात्रों तथा शिक्षकों द्वारा ग्रामीणों के पास जाकर उनको स्वास्थ्य के सामान्य सिद्धान्तों का ज्ञान कराना चाहिये। यदि छात्र एवं शिक्षक, ग्रामीणों में फैले अज्ञान को दूर करने के तथा अन्धविश्वासों को मिटाने का प्रयल करते रहेंगे तो विद्यालय तथा समुदाय के मध्य की खाई शीघ्र ही पट जायेगी। अत: हमारे गाँवों के विद्यालय, ग्राम्य समाज के लघु रूप होने चाहिये। बालिकाओं की शिक्षा के प्रसार के लिये विद्यालय को पूरा प्रयत्न करना चाहिये।


आपके लिए महत्वपूर्ण लिंक

टेट / सुपरटेट सम्पूर्ण हिंदी कोर्स

टेट / सुपरटेट सम्पूर्ण बाल मनोविज्ञान कोर्स

50 मुख्य टॉपिक पर  निबंध पढ़िए

Final word

आपको यह टॉपिक कैसा लगा हमे कॉमेंट करके जरूर बताइए । और इस टॉपिक विद्यालय और समुदाय का सम्बंध | relation between school and community in hindi को अपने मित्रों के साथ शेयर भी कीजिये ।

Tags – विद्यालय और समुदाय का संबंध,विद्यालय और समुदाय के बीच संबंध,विद्यालय और समुदाय के अंतर्संबंध,relation between school and community in hindi,विद्यालय और समुदाय में संबंध,विद्यालय एवं समुदाय का संबंध,विद्यालय और समुदाय का सम्बंध | relation between school and community in hindi

Leave a Comment