बाल श्रमिक बनने के कारण | बाल श्रमिक बनने से रोकने के उपाय | बाल श्रम रोकने के उपाय

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बाल श्रमिक बनने के मुख्य कारण / Main Reasons of Becoming the Child Labour

बाल श्रमिक बनने के भारत में जो कारण जान पड़ते हैं, वे अकथनीय व्यवहार से मिश्रित पाये जाते हैं। यदि हम इस समस्या पर गम्भीरता से विचार-विमर्श करते हैं तो इसके सन्दर्भ में हमें निम्नलिखित कारण दृष्टिगत होते हैं-

1. अत्यधिक गरीबी (Extremopoverty)

बाल श्रमिक बालकों को बनाने में मुख्य कारण जो परिलक्षित होता है, वह कारण है-घोर गरीबी (Extreme poverty)। भारत के विभिन्न प्रान्तों में अधिकांश जनता घोर गरीबी की शिकार है। भारत के समस्त आदिवासी क्षेत्रों में आज भी आर्थिक विपन्नता है। वहाँ पर बालकों को छोटी उम्र में ही धन कमाने के लिये विवश कर दिया जाता है। जनजातियाँ घोर गरीबी में अपना जीवनयापन करती हैं। ये लोग अपने बालकों को बाल श्रमिक के रूप में कार्य पर भेज देते हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या एवं भूमि पर बढ़ते दबाव के कारण इनका जीवन निर्वाह कठिन हो जाता है। अत: विवश होकर ये लोग बालकों को पढ़ने की उम्र में काम पर लगा देते हैं।

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2. सामाजिक कारण (Social reason)

सामाजिक कारण भी बालकों को बाल श्रमिक के रूप में कार्य करने को प्रेरित करते हैं। आर्थिक तंगी के कारण अभिभावक इन बालकों को भर पेट खाना देने में असमर्थ होते हैं और शिक्षा प्रदान करने की भी उनकी सामर्थ्य नहीं होती। इसलिये समाज में दुर्व्यवहार न हो, इसके लिये धन कमाने हेतु इन बालकों को बाल श्रमिक बनाकर छोटे-छोटे कारखानों एवं दुकानों पर कार्य करने के लिये भेज दिया जाता है।

3. प्राकृतिक कारण (Natural reason)

ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की खराब दशा और अनुपयोगी वातावरण धनाभाव का संकेत देती है। कभी-कभी भूमि की दुर्गम भौगोलिक दशांकृषकों की जीवन दशा को प्रभावित करती है। अत: वे धनाभाव के दबाव के कारण अपने बालकों को शहरों में ले जाकर बाल श्रमिक बना देते हैं।

4. जनसंख्या वृद्धि का दबाव (Pressure of population growth)

अधिकांशतः लोग अति पिछड़े क्षेत्रों से उन स्थानों के लिये पलायन करते हैं, जहाँ पर विकसित क्षेत्र होता है। लगभग शहरी क्षेत्रों के लिये लोग पलायन अधिक मात्रा में करते हैं। शहरी वातावरण में पहुँचकर रोजगार की दृष्टि से अभिभावक अपने बालकों को लघु उद्योगों और दुकानों तथा ढाबों पर बाल श्रमिक के रूप में कार्य करने के लिये विवश कर देते हैं। अतः परिवार के भरण-पोषण के लिये आय के स्रोत खोजने में बालकों को बाल श्रमिक बना दिया जाता है।

5. अशिक्षा (Illiteracy)

अधिकांशतः ग्रामीण अशिक्षित होते हैं। उन्हें शिक्षा के प्रति कोई लगाव नहीं होता। शैक्षिक वातावरण उन्हें प्रभावित नहीं करता है। अत: बालकों को शिक्षित करने के बजाय गरीबी और बेरोजगारी दूर करने के लिये उनके माता-पिता उन्हें शहरी क्षेत्रों में ले जाकर बाल श्रमिक बनने को विवश कर देते हैं। इस कारण बालक दुकानों, ढाबों, कल-कारखानों, जूता फैक्ट्री तथा बीड़ी बनाने के कारखानों में काम करते पाये जाते हैं।

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6. प्राकृतिक सम्पदा की कमी (Lackof natural wealth)

जनसंख्या वृद्धि के कारण दिनों-दिन प्राकृतिक सम्पदा कम होती जा रही है। उदाहरण के लिये, वन कटते जा रहे हैं। कोयला एवं अन्य खनिज पदार्थ सीमित मात्रा में होने के कारण उनकी कमी निरन्तर बनी रहती है। प्राकृतिक सम्पदा के ह्यस के कारण गाँवों में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। लोगों के समक्ष आय के स्रोत कम हो रहे हैं। अत: लोग रोजगार पाने की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। रोजगार के पाने के लिये उन्हें अपने बालकों को बाल श्रमिक के रूप में कार्य पर लगा देते हैं।

बाल श्रमिक बनने से रोकने के उपाय

बालकों को बाल श्रमिक बनने से रोकने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं –

1.रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना

गरीब तथा बेरोजगार लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिये सरकार की ओर से उचित योजनाएँ चलायी जा सकती हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-

(1) कृषि पर आधारित रोजगार योजनाएँ;जैसे-किसान समृद्धि योजना, चावल विकास योजना, राष्ट्रीय दलहन एवं तिलहन विकास योजना, भूमि संरक्षण कार्यक्रम, अन्नपूर्णा योजना और छोटे तालाब निर्माण योजना। (2) खाद्यान्न वितरण योजना। (3) अन्योदय अन्न योजना। (4) अन्नपूर्णा दाल-भात योजना।

2. शिक्षा को निःशुल्क रूप में प्रदान करना

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जहाँ पर गरीबी, भुखमरी एवं अशिक्षा का वातावरण है, उनमें शिक्षा को नि:शुल्क देने की सरकार की योजना क्रियान्विति होनी चाहिये। अत: सरकार को बालक और बालिकाओं को समान रूप से निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने का अवसर प्रदान करना चाहिये। साथ ही शिक्षा के लिये समान अवसर प्रदान करने चाहिये।

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3. प्रौढ शिक्षा कार्यक्रम

ऐसे प्रौढ़ जो किसी भाषा को समझ सकते हों, उन्हें पढ़ने, लिखने के अवसर प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम को बढ़ावा प्रदान करना चाहिये। सम्पूर्ण देश में साक्षरता मिशन त्वरित गति के आधार पर चलाया जाना चाहिये।

4.जनसंख्या शिक्षा

जनसंख्या शिक्षा द्वारा भावी पीढ़ी को जनसंख्या एवं उससे सम्बन्धित समस्याओं के प्रति सचेत करने एवं समस्याओं के समाधान में रुचि विकसित करने के लिये प्रेरित करना चाहिये, जिससे वे अपने जीवन मूल्यों को समझ सकें और आगे आने वाली पीढ़ी को शिक्षित कर उचित रोजगार पाने की दिशा में प्रयत्न कर सकें। यदि जनसंख्या का दबाव कम होगा तो आर्थिक तंगी परेशान नहीं करेगी। अत:जनसंख्या नियन्त्रण आवश्यक है।

इस प्रकार अशिक्षा को दूर करके तथा स्वरोजगार के अवसर प्रदान करके हम अभिभावकों के अन्दर जागृति उत्पन्न कर सकते हैं और उन्हें पलायन की स्थिति से बचा कर उनके बच्चों को बाल श्रमिक बनने से रोक सकते हैं और बालकों को उचित एवं समान अवसर प्रदान कर शैक्षिक वातावरण उपलब्ध करा सकते हैं।

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