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श्रवण बाधित बालकों की पहचान,विशेषताएं,प्रकार,कारण / श्रवण बाधित बालकों की शिक्षा एवं शिक्षण सामग्री
(Auditory Impairment or Hearing Defect) श्रवण बाधित बालकों की पहचान,विशेषताएं,प्रकार,कारण
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श्रवण बाधित या श्रवण-क्षीणता क्या है / श्रवण बाधित बालक किसे कहते हैं (Auditory Impairment or Hearing Defect)
श्रवण-दोष अथवा सुनने के दोष का अर्थ बालकों को सुनने में होने वाली कठिनाइयों से है। श्रवण-दोष मानसिक परिपक्वता को भी प्रभावित करता है।
श्रवण बाधित बालक के प्रकार
श्रवण-दोष से पीड़ित बालकों को प्रमुख रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता
1. बधिर बालक-ऐसे बालक जो जन्म से ही बहरे होते हैं और वे कुछ भी नहीं सुन सकते। कुछ बालक बोलना सीखने से पूर्व ही किसी न किसी कारण से सुनने की शक्ति खो बैठते हैं।
2. ऊँचा सुनने वाले बालक-कुछ बालक ऐसे होते हैं जो ऊँचा सुनते हैं। ऐसे बालकों को श्रवण सहायक यन्त्रों की सहायता से सुनायी देने लगता है।
डेसिबल के अनुसार श्रवणक्षीणता के प्रकार
(1) अल्प श्रवण बाधित बालक – ( 35 – 51 ) डेसिबल
(2) मध्यम श्रवण बाधित बालक – ( 55 – 69 ) डेसिबल
(3) गंभीर श्रवण बाधित बालक – ( 70 – 89 ) डेसिबल
(4) गहन श्रवण बाधित बालक – ( 89 – 100 ) डेसिबल
श्रवण-दोष के कारण
श्रवण-दोष के प्रमुख रूप से निम्नलिखित कारण हैं-
(1) श्रवण-दोष कुछ बालकों को वंश परम्परा के रूप में मिलता है।(2) बहुत तेज ध्वनि निरन्तर सुनने से श्रवण शक्ति चली जाती है या कम हो जाती है। (3) कुछ बालकों में उनकी श्रवण शक्ति किसी दुर्घटना में कान पर चोट लगने से चली जाती है। (4) खसरा, चेचक, मोतीझरा तथा कन्फेड आदि के कारणों से भी श्रवण शक्ति चली जाती है या कम हो जाती है। (5) कुछ बालक गर्भावस्था में ही अपनी श्रवण शक्ति खो बैठते हैं। साथ ही कुछ बालक जन्म के समय सावधानी नहीं रखने पर भी अपनी श्रवण शक्ति खो बैठते हैं। (6) कान के मध्य भाग में घाव होने, मवाद भर जाने अथवा अधिक कैल्सियम जमा हो जाने पर भी श्रवण शक्ति कम हो जाती है अथवा चली जाती है।
श्रवण-दोष वाले बालकों की पहचान
इस प्रकार के बालकों को देखकर आसानी से नहीं पहचाना जा सकता परन्तु बातचीत करने पर और उनके हावभाव देखकर उनको पहचाना जा सकता है।
श्रवण क्षमता स्तर का मापन
इसकी दो विधियां हैं
(1) ऑडिओमीटर
(2) नाड़ी जांच परीक्षण
श्रवण-दोष वाले बालकों की विशेषताएँ
श्रवण-दोष वाले बालकों की विशेषताएँ प्रमुख रूप से निम्नलिखित होती हैं-
(1) इस प्रकार के बालकों में अन्य विकलांग बालकों की तरह ही आत्म-विश्वास की कमी होती है। (2) भविष्य के प्रति बहुत चिन्तित होते हैं। (3) ऐसे बालक तनाव में रहते हैं क्योंकि चलचित्र, दूरदर्शन तथा रेडियो आदि से अपना मनोरंजन नहीं कर पाते। (4) ऐसे बालकों में भाषा का विकास देर से होने के कारण बौद्धिक विकास भी देर से होता है। (5) इनका समाज से समायोजन भली-भाँति नहीं हो पाता क्योंकि वे अन्य व्यक्तियों की बात ठीक प्रकार से नहीं सुन सकते।
श्रवण-दोष वाले बालकों की शिक्षा
श्रवण-दोष से पीड़ित बालक/बालिकाओं की शिक्षा के लिये निम्नलिखित उपाय काम में लाने आवश्यक हैं-
(1) ऐसे बालकों की शिक्षा के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों को लगाना चाहिये। (2) कम सुनने या ऊँचा सुनने वाले बालकों को कक्षा में सबसे आगे बैठाना चाहिये। (3) ऐसे बालकों को शाला में आने से पूर्व ओष्ठों द्वारा पढ़ने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। (4) ऐसे बालकों के लिये विशेष विद्यालयों की स्थापना की जाय, वहीं उन्हें पढ़ाया जाय। (5) अन्य साथियों एवं व्यक्तियों द्वारा उनकी हँसी नहीं उड़ायी जाय, अपितु उनके प्रति सहानुभूति रखी जाय। (6) इन बालकों को सामान्य बालकों के साथ पढ़ाना उपयुक्त है क्योंकि ये बालक भी सामान्य बालकों के समान अभियोजन कर सकते हैं। फिर भी इन बालकों की शिक्षण विधि तथा पाठ्यक्रम में कुछ आवश्यक परिवर्तन किये जा सकते हैं।
(7) कम सुनने वाले बालक या बिल्कुल न सुनने वाले बालकों को पढ़ाने में चार या पाँच विधियों का प्रयोग किया जा सकता है-(i) हस्त विधि (Manual method), (ii) मौखिक (Oral method), (iii) चिह्न भाषा विधि (Sign language method), (iv) शृव्य-दृश्य विधि (Audio visual method) तथा (v) श्रवण य निधि (Oral method) । (8) कम या ऊँचा सुनने वालों के लिये श्रवण सहायक यन्त्रों के व्यवस्था की जानी चाहिये तथा इन्हें सामान्य बालकों के साथ शिक्षा दी जा सकती है क्योंकि ये श्रवण सहायक यन्त्रों की सहायता से सामान्य बालकों की भाँति शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। (9) इनकी वाक् शक्ति अच्छी होती है इसलिये बोलने के दोष नहीं होते। ध्वनि विज्ञान द्वारा इनकी इस विकलांगता को दूर करने का प्रयास किया जा सकता है।
(10) ऐसे बालकों की शिक्षा में इस बात का ध्यान रखना अति आवश्यक है कि उनमें किसी प्रकार की हीनता, लज्जा, चिन्ता तथा घबराहट आदि न हो। (11) ऐसे बालकों की शिक्षण व्यवस्था में सहायक साधनों का महत्त्व है। इन सहायक साधनों में शृव्य एवं दृश्य दोनों प्रकार के साधनों का महत्त्व होता है लेकिन दृश्य साधनों का अधिक महत्त्व है। इसमें दूरदर्शन वी.सी.आर, मॉडल, चित्र तथा मानचित्र आदि प्रमुख हैं। (12) मूक बधिक बालों की शिक्षण व्यवस्था में शैक्षिक यात्राएँ इनकी शिक्षा के लिये निश्चित रूप से उपयोगी सिद्ध होंगी। बालकों को वास्तविक पदार्थ अथवा वस्तु दिखायी जा सकती हैं। इससे बालक स्वयं अनुभव करके सीख सकेंगे।
श्रवण बाधित बालकों के लिये शैक्षिक उपकरण
इनके लिये विविध प्रकार के श्रवण छोटा और बड़ा दर्पण, फ्लैश कार्ड,खेल खिलौने तथा विविध शिक्षण सामग्री उपयोग में लायी जा सकती है। इन उपकरणों की आवश्यकता के साथ-साथ सबसे अधिक ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन उपकरणों का रख-रखाव या देखरेख भली-भाँति हो। साथ ही यह भी आवश्यक है कि इन उपकरणों का संग्रह अच्छी प्रकार से हो। विकलांग बालकों के लिये सभी जगह विद्यालय स्थापित नहीं हुए हैं, परन्तु जहाँ सामान्य विद्यालयों में यह योजना चलती है वहाँ इनके लिये अलग से कक्ष होते हैं। इन कक्षों में आवश्यकतानुसार उपयुक्त फर्नीचर होना आवश्यक है।
सामान्य बालकों की तुलना में इनके लिये ऐसा फर्नीचर हो जिससे कि इनकी विकलांगता में बाधा नहीं पहुँचती हो और वे आसानी से अध्ययन कर पाते हों। इन उपकरणों के संग्रह एवं सुरक्षा के लिये यह आवश्यक है कि पर्याप्त आलमारियाँ, सन्दूक, बुक-शैल्फ,शोकेस आदि हों।इनमें सभी वस्तुओं को भली-भाँति रखा जा सकता है। कक्षों में बड़े श्यामपट्ट भी होने चाहिये। साथ ही ऐतिहासिक भवन, विभिन्न अन्य भवन, व्यक्तियों, अवशेषों तथा मूर्तियों आदि के चित्र भी होने चाहिये। विभिन्न प्रकार के चार्टस, रेखाचित्र, मानचित्र,समयचित्र एवं समय रेखा दण्ड आदि दीवारों पर बनाये जा सकते हैं।
स्वनिर्मित उपकरण अलमारियों में भली-भाँति रखे जा सकते हैं। विकलांग बालकों हेतु प्रयोग में लाये जाने वाले रेडियो, ग्रामोफोन, टेपरिकॉर्डर, दूरदर्शन, वी.सी.आर.,ओ.डी.ओ. तथा कैसेट्स आदि का रख-रखाव अच्छी प्रकार से होना चाहिये। अध्यापक को इन्हें अच्छी प्रकार से ऑपरेट करना आना चाहिये। इनके संचालन हेतु अध्यापकों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिये। इस हेतु अल्पकालीन प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये और उपकरणों की देखरेख हेतु एक तकनीशियन भी रखा जा सकता है। विद्यार्थियों को इन उपकरणों को पूरा उपयोग करने की स्वतन्त्रता देनी चाहिये जिससे वे अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकें। ये उपकरण शो-पीस नहीं है, जिन्हें केवल देखा जाय और प्रयोग में न लाया जाये।
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