हिंदी भाषा शिक्षण में अभिव्यक्ति का महत्व | CTET HINDI PEDAGOGY

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हिंदी भाषा शिक्षण में अभिव्यक्ति का महत्व | CTET HINDI PEDAGOGY

हिंदी भाषा शिक्षण में अभिव्यक्ति का महत्व | CTET HINDI PEDAGOGY
हिंदी भाषा शिक्षण में अभिव्यक्ति का महत्व | CTET HINDI PEDAGOGY

भाषा में अभिव्यक्ति का महत्त्व

भाषा के माध्यम से बालकों में आत्म-विश्वास जगाया जाता है, जिससे वे अपने विचारों को सरलता, सहजतापूर्वक दूसरों के समक्ष व्यक्त कर सकें। मौखिक भाषा ही शिशु बोल सकता है। इससे शिशु की झिझक दूर होती है और वे अपना अभिप्राय दूसरों को आसानी से समझा सकते हैं। मौखिक प्रक्रिया द्वारा बालकों को प्रभावशाली तथा रोचक ढंग से बातचीत करने का अवसर मिलता है। जिन वस्तुओं अथवा विषयों में बालकों की अधिक रुचि होती है, उनके विषय में प्राय: उन्हें बातचीत करते हुए पाया जाता है।इस प्रकार से आरम्भ में ही बालकों को स्वाभाविक रूप से अपने विचारों को प्रकट करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिये। इन सब प्रक्रियाओं में बालकों को अपने विचारों की अभिव्यक्ति को स्पष्ट करने का अवसर प्राप्त होगा और उन्हें भाषा को गतिशील बनाने का समय मिलेगा।

मौखिक कार्य और बोलना सिखाना, दोनों ही लिखना और सिखाने के सर्वोत्तम साधन हैं। यदि बालक बातचीत में अपने विचारों को भली-भाँति व्यक्त कर पाता है तो वह अच्छी तरह से प्रवाहयुक्त लिख भी सकता है। आत्मभिव्यंजना का यह प्रारम्भिक स्वरूप आगे चलकर बालक को कुशलं वक्ता बनने में सहायक होता है। अतः ऐसे नागरिकों की जो अपने विचारों की अभिव्यक्ति द्वारा दूसरों का मन मोहकर राष्ट्रभक्ति की धारा देश में बहा सकें,राष्ट्र को आवश्यकता होती है। नेतृत्व शक्ति भी भाषण की क्षमता से वृद्धि पाती है। प्राय: देखने में आता है कि आरम्भिक दिनों में भाषा की शुद्धता की ओर ध्यान देने की आवश्यकता अनुभव नहीं होती है परन्तु बालकों की झिझक दूर करने के लिये अध्यापक द्वारा इस कृत्य की ओर ध्यान देना आवश्यक हो जाता है क्योंकि इसी कारण से बालक शुद्ध एवं साहित्यिक भाषा बोलना प्रारम्भ कर देता है।

वार्तालाप से भाषण की सीढ़ी तक पहुँच पाने के लिये बालक अपनी जिज्ञासाओं के समाधान हेतु प्रश्नोत्तर, कल्पनाओं को उड़ान देने हेतु कहानी, घटना और अनुभव कथन तथा भाषा को सजीव बनाकर शैलीगत विशेषताओं के परिचय हेतु दृश्य, यात्रा और चित्र वर्णन के सोपान पार करने का प्रयत्न करता है। वाद-विवाद, विचार-विमर्श तथा व्याख्याओं का आधार लेकर बालक भाषण की उचित योग्यता प्राप्त करता है।
डॉसन (Dason) के अनुसार, “मौखिक अभिव्यक्ति भाषा की नींव तैयार कर देती है। क्योंकि मौखिक भाषा तथा लिखित भाषा के तुल्य अंग समान ही होते हैं।” मनुष्य जीवन में लिखित कार्यों की अपेक्षा मौखिक अभिव्यक्ति का महत्त्व अधिक होता है।

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इसके महत्त्व के प्रमाण में हम निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार करने हेतु ध्यान आकर्षित कर सकते हैं-

1. अधिगम की सरलता (Easiness in learning)-भाषा का उद्भव मौखिक प्रक्रियाओं द्वारा सम्भव होता है। इसीलिये सीखने की प्रक्रिया को अति सरल बनाने हेतु भाषा का मौखिक रूप अति आवश्यक होता है।

2. अनुकरण एवं अभ्यास (Follow up way and practice) – भाषा को मौखिक रूप में सीखने के लिये शिशु अनुकरण का मार्ग अपनाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि बालक अपने माता-पिता, बड़े भाई एवं बहन तथा अन्य परिवारीजनों के बोलने को दक्षतापूर्वक देखता है। पास-पड़ोस के लोगों की बातचीत श्रवण करता है। इसी क्रम में बालक इस दृश्य-परिदृश्य के समान ही बोलने का प्रयत्न करता है और भाषा की अभिव्यक्ति करना उसी भाँति सीख जाता है। बालक इस अनुकरण से बोलना प्रारम्भ कर देता है। सर्वाधिक शिक्षा देने से भाषा के मौखिक स्वरूप का अभ्यास करना बालक का प्रथम कार्य माना जाता है।

3. विचाराभिव्यक्ति, भावाभिव्यक्ति एवं आत्म प्रकाशन का अवसर  (Chances ofthought expression, gesticulation and self expression)-मौखिक भाषा की अभिव्यक्ति के माध्यम से बालक को विचाराभिव्यक्ति, भावाभिव्यक्ति एवं उसके अपने आत्मप्रकाशन का अवसर प्राप्त होता है।

4. रुचि जागृत होना (Awareness of interest)-भाषा का मौखिक अभ्यास एवं शिक्षण बालकों में सजीवता एवं रुचि उत्पन्न करता है। साथ ही प्रश्नोत्तर विधि बालकों को पाठ याद करने में अधिक सहायता प्रदान करती है। छात्र भी इस प्रयास में अधिक रुचि पाते हैं।

5. भाषण कला में निपुणता (Expertness in the art of speech) – भाषा को मौखिक रूप में सँवारने की प्रक्रिया, बालक की अभिव्यक्ति का एक विशिष्ट रूप है। भाषण कला में निपुणता प्राप्त करने के लिये भाषा का मौखिक रूप ही भाषण कला का अविभाज्य अंग है। अतः बालकों को भाषण कला-सरलता, स्पष्टता, मधुरता एवं प्रभावोत्पादकता में निपुण बनाने हेतु मौखिक भाषा का अभ्यास अति महत्त्वपूर्ण है।

6. एकाग्रचित्त एवं सक्रियता (Concentration and activeness) – भाषा में निपुणता प्राप्त करने के लिये बालकों को सक्रियता की ओर अग्रसरित करना अति आवश्यक है। इस प्रकार बालकों को भाषा की अभिव्यंजना हेतु सक्रिय बनाना तथा पाठ के प्रति उन्हें एकाग्रचित बनाना एवं मौखिक भाषा को उत्कृष्ट रूप में प्रस्तुत करने की कला में निपुण बनाना,अध्यापक का दायित्व बनता है। इस प्रकार से मूर्धन्य लेखक लैम्बोर्न (Lamborne) मौखिक भाषा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए लिखते हैं, “मेरा अपना निश्चित मत यह है कि पाठशाला के जीवन में अन्तिम वर्ष तक लिखित कार्य की अपेक्षा मौखिक कार्य अति आवश्यक है।”

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7. दृढ़ता में सहायक (Associate in boldness)-एक दूसरे से किया गया अनवरत प्रक्रियावश वार्तालाप (Conversation) मौखिक भाषा अभिव्यक्ति का ही एक अंग है। वार्तालाप की दक्षता बालक के व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाती है। इसका मूल कारण यह है कि भाषा किसी के मस्तिष्क में अधिक समय तक दृढ़ बनी रहती है।

8. कुशल बनाने में सहायक (Associate in making skilful)- अधिकतर मानव जीवन मौखिक भाषा के स्वरूप पर अवलम्बित है क्योंकि मानव प्रतिदिन मौखिक भाषा के माध्यम से ही विचारों का आदान-प्रदान करता है। मूल बात यह है कि भाषा की मौखिक अभिव्यक्ति बालकों को अपनी दैनिक प्रक्रिया में कुशलता प्रदान करती है। बालक का कुशल, योग्य एवं निपुण बनना, मौखिक भाषा के सम्यक ज्ञान तथा उसके महत्त्व पर निर्भर करता है।

9. स्पष्टीकरण में सरलता (Easiness in clarification) – यह बात इस उद्देश्य को स्पष्ट करती है कि किसी बात की अभिव्यंजना को जितना खुलकर मौखिक भाषा के माध्यम से समझाया जा सकता है, उतना लिखित रूप में व्यक्त करके नहीं समझाया जा सकता है। इसीलिये कहा जाता है कि मौखिक भाषा की अभिव्यंजना करना व्यावहारिक जीवन में विचार विनिमय का आधार है।

10. शुद्ध आचरण एवं अभिव्यक्ति का सरलतम रूप (Easiest form of perfect behaviour and expression)- इस बात पर विचार करना आवश्यक है कि जैसी अभिव्यक्ति हम बोलकर प्रकट करते हैं, उसी प्रकार की अभिव्यक्ति लिखकर भी प्रकट की जा सकती है। अतः जब तक शुद्ध बोलना बालक नहीं सीख पायेगा तब तक वह शुद्ध लिखने की कला में भी निपुणता प्राप्त नहीं कर सकता।

11. सजीवता एवं भाव प्रदर्शन (Aliveness and gesticulation) – मौखिक भाषा द्वारा बालक की अभिव्यक्ति के माध्यम से वातावरण में अधिकतम सजीवता एवं भाव प्रदर्शन सम्भव बनाया जा सकता है।

12. आत्म अभिव्यक्ति में निपुणता (Skill in self expression) – वार्तालाप के माध्यम से बालकों में कुशलता की वृद्धि की जा सकती है। इस प्रकार छात्र आत्म अभिव्यक्ति एवं सामाजिक सम्बन्धों में दृढ़ता एवं निपुणता प्राप्त करते हैं।

13. भावात्मक विकास में सहायक (Associate in the development of gesture)-बोलने वाले व्यक्ति, संकोची व्यक्ति की अपेक्षा अपना सम्पर्क अतिशीघ्र स्थापित कर लेते हैं। विचारों का यह आदान-प्रदान एवं स्नेह सहानुभूति का क्षेत्र बढ़ाता है। इससे भावात्मक विकास तथा एकता उत्पन्न करने में मौखिक भाषा सहायक होती है। यही अभिव्यक्ति व्यक्तित्व के विकास के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।

14. मानसिक एवं बौद्धिक विकास का साधन (Source of mental and Intellectual development) – यह सहज अनुमान लगाना सत्य अवधारणा पर आधारित है कि बालक सर्वप्रथम बोलना सीखता है। बालक की लेखन कला तथा मौखिक भाषा अभिव्यक्ति से पूर्णतः प्रभावित होतो है। यह प्रक्रिया उसके व्यक्तित्व के विकास में सहायता पहुँचाती है। वास्तविक अर्थ यह है कि यह मानसिक क्षमता का साधन बनती है।

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15. भाषा का दैनिक जीवन में महत्त्व – वर्तमान समय तथा मानव जीवन में भाषा का अपरिमित महत्त्व है। भाषा को मानवीय विकास का पर्याय माना जाता है। मानव-शिशु समाज के बीच विकसित होता है। समाज में भाषा की सुनिश्चित परम्परा विद्यमान होती है। इसी भाषायी परिवेश में बालक का विकास होता है। मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति, विचारों तथा भावों की अभिव्यक्ति, मानसिक तथा संवेगात्मक विकास एवं ज्ञानार्जन के लिये भाषा पर निर्भर रहता है। अतः यह कहा जा सकता है कि समस्त मानवीय गुणों का विकास भाषा के द्वारा होता है। आज के वृहत् समाज में ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों का विकास, आध्यात्मिक, नैतिक तथा सांस्कृतिक उत्थान के मूल में भाषा की शक्ति विद्यमान है। संस्कृत तथा भाषा का अभिन्न सम्बन्ध मानव जीवन में भाषा के महत्त्व को स्वतः स्पष्ट कर देता है। भाषा के इस सार्वभौम महत्त्व को सभी देशों और कालों में स्वीकार किया गया है।

ऋग्वेद का ऋषि- समुदाय भी भाषा के महत्त्व को व्यक्ति की प्रभुता के साथ स्वीकार करता है अर्थात् भाषा को दैवी शक्ति का वरदान प्राप्त हुआ। आचार्य दण्डी ने भी माना है कि यदि शब्दरूपी ज्योति संसार में प्रकाशित न होती तो यह सारा त्रैलोक्य गहन अन्धकार में डूब जाता। ब्लूम फील्ड के शब्दों में, “लेखन भाषा नहीं, वह दृश्य संकेतों द्वारा भाषा को अंकित करने का साधन मात्र है।” (Writing is not language but merely a way of recording language by means of visible marks.) आधुनिक विद्वान् राबर्ट लैडो भी भाषा की महत्ता को स्वीकार करते हुए कहते हैं-“भाषा का गहन सम्बन्ध मानव अनुभूतियों तथा क्रियाओं से है-इसका उपयोग प्रत्येक व्यक्ति कार्य, पूजा अथवा खेल में करता है। चाहे वह भिखारी हो अथवा पूँजीपति, चाहे जंगली हो या सभ्य।” आपने देखा होगा कि मानव जीवन में भाषा का बहुत अधिक महत्त्व है।


                        ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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