पादप जगत का वर्गीकरण : पुष्पोद्भिद (Phanerogams) एवं अपुष्पोद्भिद (cryptogams)

दोस्तों विज्ञान की श्रृंखला में आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक पादप जगत का वर्गीकरण : पुष्पोद्भिद (Phanerogams) एवं अपुष्पोद्भिद (cryptogams) है। हम आशा करते हैं कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपकी इस टॉपिक से जुड़ी सभी समस्याएं खत्म हो जाएगी ।

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पादप जगत का वर्गीकरण : पुष्पोद्भिद (Phanerogams) एवं अपुष्पोद्भिद (cryptogams)

पादप जगत का वर्गीकरण : पुष्पोद्भिद (Phanerogams) एवं अपुष्पोद्भिद (cryptogams)
पादप जगत का वर्गीकरण : पुष्पोद्भिद (Phanerogams) एवं अपुष्पोद्भिद (cryptogams)

पुष्पोद्भिद (Phanerogams) एवं अपुष्पोद्भिद (cryptogams)

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सजीवों के सम्पूर्ण अध्यय के लिए प्राचीन काल से ही जीवधारियों को वर्गीकृत करने के विभिन्न प्रयास होते रहे हैं, क्योंकि पादप गमनशील नहीं होते। अतः उनमें विविधता को पूर्णतया ज्ञात कर उन्हें विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत करना अत्यन्त ही दुष्कर कार्य है। सर्वप्रथम इस कार्य को करने का प्रयास थियोफ्रेस्टस (Theophrastus; 370-225 BC) ने किया था। उन्होंने पादपों को तीन समूहों; जैसे-शाक (Herbs), क्षुप (Shrubs) और वृक्ष (Trees) में वर्गीकृत किया था। इसके उपरान्त समय-समय पर अनेक वनस्पति वैज्ञानिकों ने पादप आकारिकी एवं विकास-क्रम के आधार पर विभिन्न पादपों को उनकी समानता और असमानता को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न समूहों में बाँटा है।

पादप वर्गीकरण की विभिन्न पद्धतियाँ / Different Systems of Plant Classification

पादप वर्गीकरण के लिए प्राचीन काल से अब तक निम्न तीन प्रकार की पद्धतियाँ प्रयोग में लाई गई हैं।

(i) कृत्रिम पद्धति (Artificial System) – प्राचीनतम पद्धति, जो कुछ दृष्यमान लक्षणों (Visible characters) पर ही आधारित थी; उदाहरण-पादपों को शाक, क्षुप और वृक्ष में वर्गीकृत करना अथवा एकवर्षीय (Annual), द्विवर्षीय (Biennial) एवं बहुवर्षीय (Perennial) में वर्गीकृत करना मात्र एक-एक लक्षण पर आधारित था। ठीक इसी प्रकार पादपों को जलोद्भिद् (Hydrophytes), समोद्भिद् (Mesophytes), मरुद्भिद् (Xerophytes), लवणोद्भिद् (Halophytes) एवं अधिपादप (Epiphytes) में वर्गीकृत करना भी इसी पद्धति पर आधारित था।

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(ii) प्राकृतिक पद्धति (Natural System) – यह आजकल अपनाए जाने वाली पद्धति है, जिसमें पादपों के सभी महत्त्वपूर्ण लक्षणों एवं गुणों का ध्यान रखा जाता है।

(iii) जातिवृत्तीय पद्धति (Phylogenetic System) – वह पद्धति, जोकि मुख्यतया पादपों के विकास (Evolution) एवं उसके आनुवंशिक लक्षणों पर आधारित है।

वास्तविकता में पादपों के बारे में हमारा ज्ञान अभी इतना नहीं है, कि एक पूर्ण जातिवृत्तीय वर्गीकरण बनाया जा सके। अत: हम प्राकृतिक व जातिवृत्तीय वर्गीकरण को समायोजित करके अपने अध्ययन के लिए प्रयोग में लाते हैं।

पादप जगत का प्रारम्भिक वर्गीकरण / Early Classification of Plant Kingdom

वर्गीकरण की पुरानी पद्धतियों में आइकलर (Eichler; 1883) का वर्गीकरण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने पादप जगत को मुख्यतया जातिवृत्तीय आधार पर वर्गीकृत किया। आइकलर की वर्गीकरण पद्धति के अनुसार, पादप जगत को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है –

अपुष्पोद्भिद्  ( Cryptogams )

सर्वप्रथम ‘क्रिप्टोगैम्स’ शब्द का प्रयोग लिनियस (Linnaeus) ने उन पौधों के लिए किया था, जिनमें बाहर से दिखाई देने वाले जनन अंग उपस्थित नहीं थे। इन पौधों में पुष्प, फल एवं बीज नहीं बनते हैं। आइकलर ने अपने वर्गीकरण में इन्हें प्रमुख स्थान दिया। अपुष्पोद्भिद् को निम्नलिखित तीन विभागों में विभाजित किया गया है

1.थैलोफाइटा Thallophyta
(Gr. Thallos – अविभेदित; phyton-पौधा)

ये सबसे निम्न श्रेणी के, सरल एवं प्राचीन पौधों का समूह हैं, जिसमें पादप शरीर सुकाय (Thallus) के रूप में उपस्थित होता है अर्थात् इनका शरीर वास्तविक जड़, तना एवं पत्ती में विभाजित नहीं होता। इस आधार पर इन्हें थैलोफाइटा कहते हैं। इन पौधों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा गया है–

(i) शैवाल (Algae) – ये पौधे हरे होते हैं तथा इनमें पर्णहरिम
(Chlorophyll) पाया जाता है। ये अधिकांशतया पानी में अथवा नमी वाले स्थानों में उगते हैं; उदाहरण- क्लैमाइडोमोनास (Chlamydomonas), यूलोथ्रिक्स (Ulothrix), स्पाइरोगायरा (Spirogyra), कारा (Chara), आदि ।
(ii) कवक (Fungi) – ये वे थैलोफाइट्स हैं, जिनमें पर्णहरिम नहीं पाया जाता है। ये परपोषी (Heterotrophic) होते हैं; उदाहरण- राइजोपस (Rhizopus), पेनिसीलियम (Penicillium), एगैरिकस (Agaricus), खमीर (Yeast), आदि।
(iii) जीवाणु (Bacteria) – ये एककोशिकीय (Unicellular) पूर्वकेन्द्रकीय (Prokaryotic) और अत्यन्त सरलतम संरचना वाले जीव होते हैं।
(iv) लाइकेन्स (Lichena) – इनका निर्माण कवक एवं शैवाल के मिलने से होता है। यहाँ कवक, माइकोबायोन्ट (Mycobiont) और शैवाल फोटोबायोन्ट (Photobiont) कहलाते हैं।

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2. ब्रायोफाइटा Bryophyta
(Gr. Bryon-मॉस: phyton-पौधा)

इस विभाग के अन्तर्गत आने वाले पादप थैलोफाइटा से अधिक विकसित होते हैं। इनका पादप शरीर युग्मकोद्भिदी (Gametophytic) होता है। इन पादपों में दारु (Xylem), पोषवाह (Phloem), सत्य पत्ती एवं तने का अभाव होता है। इनमें वास्तविक जड़ें भी अनुपस्थित होती हैं और इनके स्थान पर मूलाभास (Rhizoids) पाए जाते हैं। इन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटा गया है –
(i) लिवरवर्ट्स (Liverworts) इनमें पादप शरीर सूकाय से अधिक विकसित परन्तु मॉसेस से कम विकसित होता है। इन पादपों पर धागों के आकार के मूलाभास उपस्थित होते हैं; उदाहरण- मार्केन्शिया (Marchantia), रिक्सिया (Riccia), आदि।
(ii) मॉसेस (Mosses) इनमें पादप शरीर मूलाभास, असत्य तने एवं पत्ती में विभाजित रहता है; उदाहरण- फ्यूनेरिया (Funaria), पॉलीट्राइकम (Polytrichum), आदि।

3. टेरिडोफाइटा Pteridophyta
(Gr. Pleris – फर्न; phyton-पौधा)

इनका पादप शरीर बीजाणुद्भिद् (Sporophytic) होता है तथा वास्तविक जड़, तना एवं पत्ती यहाँ भी अनुपस्थित होती इन पादपों में संवहन ऊतक सुविकसित होता है। अतः ये पादप संवहन अपुष्पोद्भिद् (Vascular cryptogams) भी कहलाते हैं।
इन पादपों में पुष्प एवं बीज का निर्माण नहीं होता है; उदाहरण- फर्न (Fern), सिलैजिनेला (Selaginella), इक्वीसीटम (Equisetum), लाइकोपोडियम (Lycopodium) |

पुष्पोद्भिद् Phanerogams

ये पुष्प एवं बीजयुक्त उच्च श्रेणी के विकसित पादप होते हैं। पादप जगत में इन पादपों की संख्या सर्वाधिक है।
इन्हें निम्नलिखित दो विभागों में बाँटा गया है

1. अनावृतबीजी Gymnosperm
(Gr. Gymnos-नग्न; sperma-बीज)

• इनमें बीज नग्न होते हैं अर्थात् बीज अण्डाशय में ढ़के नहीं होते हैं।
• ये निम्न श्रेणी के पुष्पी पौधे कहलाते हैं।
इन्हें निम्नलिखित दो मुख्य वर्गों में बाँटा गया
(a) साइकैड्स (Cycads); उदाहरण- साइकस (Cycas)
(b) कोनीफर्स (Conifers); उदाहरण- पाइनस (Pinus)

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2. आवृतबीजी Angiospermware
(Gr. Angion-ढ़के हुए; sperma-बीज)

इन पादपों के बीज सदैव ढ़के रहते हैं अर्थात् बीज अण्डाशय में बनते हैं। ये उच्च श्रेणी के पुष्पी पौधे कहलाते हैं।
इन्हें निम्नलिखित दो मुख्य वर्गों में बाँटा गया है
(a) एकबीजपत्री (Monocotyledons) इन पादपों के भ्रूण में केवल एक ही बीजपत्र (Single cotyledon) होता है; उदाहरण-गेहूँ, मक्का, आदि।
(b) द्विबीजपत्री (Dicotyledons) इनके भ्रूण में दो बीजपत्र
(Two cotyledons) होते हैं; उदाहरण- चना, मटर, आदि।





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