अधिगम का स्थानांतरण या अधिगम अंतरण || transfer of learning

दोस्तों आज हम आपको अधिगम का स्थानांतरण टॉपिक को विधिवत पढ़ाएंगे।

तो इस श्रृंखला में आज hindiamrit आपको यह टॉपिक विधिवत पढ़ाने का प्रयास करेगा।

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अधिगम का स्थानांतरण या अधिगम अंतरण || transfer of learning

अधिगम अंतरण का अर्थ या अधिगम का स्थानांतरण का अर्थ || ट्रांसफर ऑफ लर्निंग थ्योरी इन हिंदी

मानव विकास में सीखने का प्रमुख स्थान है।

हम प्रत्येक कार्य को सीखने में अपने संचित ज्ञान की सहायता लेते हैं।

यह संचित ज्ञान हमारे सीखने को सरल बनाता है। इस प्रकार से सीखने में समय एवं शक्ति दोनों की बचत हो जाती है और संचित ज्ञान की पुनरावृति भी हो जाती है।

अतःजब पूर्व सीखे गए ज्ञान का नवीन सीखे जाने वाले ज्ञान पर प्रभाव पड़ता है तो उसे सीखने का स्थानांतरण या अधिगम अंतरण कहते हैं।

अधिगम का स्थानांतरण की परिभाषा || अधिगम अंतरण की परिभाषा

सीखने में स्थानांतरण या अधिगम में स्थानांतरण की परिभाषाएं इस प्रकार है―

डीच के अनुसार

“सीखने का स्थानांतरण तब होता है जब एक कार्य का सीखना अथवा निष्पादन दूसरे कार्य के सीखने अथवा निष्पादन में लाभ या हानि पहुंचाता है।”

क्रो एंड क्रो के अनुसार

“सीखने की एक क्षेत्र में प्राप्त होने वाले ज्ञान या कुशलताओं का चिंतन करके, अनुभव करने और कार्य करने की आदतों का सीखने के दूसरे क्षेत्र में प्रयोग करना साधारणतः प्रशिक्षण या स्थानांतरण कहा जाता है।”

कॉलसनिक के अनुसार

“शिक्षा के स्थानांतरण से आशय एक परिस्थिति में प्राप्त ज्ञान, आदत, निपुणता,अभियोग्यता का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना है।”

सोरेनसन के अनुसार

“शिक्षा के स्थानांतरण के द्वारा व्यक्ति उस सीमा तक सीखता है जब तक एक परिस्थिति से प्राप्त योग्यताएं दूसरी में सहायता करते हैं।”

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Transfer of learning

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अधिगम स्थानांतरण के प्रकार

तो आइये जानते है अधिगम अंतरण के प्रकार

इसके निम्नलिखित प्रकार होते है

(1) धनात्मक स्थानांतरण / सकारात्मक स्थानांतरण (positive transfer)

(2) ऋणात्मक स्थानांतरण / नकारात्मक स्थानांतरण (negative transfer)

(3) शून्य स्थानांतरण (zero transfer)

धनात्मक स्थानांतरण / सकारात्मक स्थानांतरण (positive transfer)

जब एक परिस्थिति में सीखा गया ज्ञान या क्रिया दूसरी परिस्थिति में ज्ञान या क्रिया को अर्जित करने में सहायक सिद्ध होता है।

तो यह सकारात्मक या धनात्मक अधिगम स्थानांतरण कहलाता है।

जैसे – साइकिल का ज्ञान मोटरसाइकिल सीखने में सहायक होता है।

ऋणात्मक स्थानांतरण / नकारात्मक स्थानांतरण (negative transfer)

जब पूर्व संचित ज्ञान नवीन ज्ञान के सीखने में रुकावट उत्पन्न करता है तो इसे ऋणात्मक स्थानांतरण कहते हैं।

जैसे – हिंदी भाषा में गिनती सीखने पर हम अंग्रेजी भाषा की गिनती सीखते हैं तो हिंदी भाषा की गिनती की बनावट हमें अंग्रेजी भाषा की गिनती सीखने में रुकावट उत्पन्न करती है।

शून्य स्थानांतरण (zero transfer)

जब पूर्व संचित ज्ञान नवीन ज्ञान सीखने में सहायता नहीं करता और ना ही रुकावट बनता है।

तो ऐसा स्थानांतरण शून्य स्थानांतरण कहलाता है।

बहुत से मनोवैज्ञानिकों ने इसे स्थानांतरण माना ही नहीं है।

जैसे – मानव मस्तिष्क में ऐसा बहुत सा ज्ञान होता है जो किसी समय मानव के सीखने को प्रभावित नहीं करता है।

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अधिगम का स्थानांतरण के सिद्धांत || अधिगम अंतरण के सिद्धांत

तो आइये जानते है की अधिगम स्थानांतरण के सिद्धांत कितने प्रकार के होते हैं? सीखने में स्थानांतरण के सिद्धांतों को दो भागों में बाँटकर पढ़ना पड़ता है-

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(1) स्थानांतरण के प्राचीन सिद्धातं

इसके अंतर्गत निम्न सिद्धान्त आते है-

(A) मानसिक शक्तियों का सिद्धान्त

(B) औपचारिक मानसिक प्रशिक्षण का सिद्धांत

(2) स्थानांतरण के आधुनिक सिद्धांत

इसके अंतर्गत निम्न सिद्धान्त आते है-

(A) समरूप तत्वों का सिद्धान्त

(B) सामान्यीकरण का सिद्धांत

(C) आदर्श एवं मूल्यों का सिद्धान्त

सीखने में स्थानांतरण के सिद्धान्तों में आधुनिक सिद्धान्त ही प्रचलित है तो आइये इन सिद्धान्तों को जानते है-

(A) समरूप तत्वों का सिद्धान्त

इस सिद्धांत के प्रतिपादक थार्नडाइक हैं।

थार्नडाइक ने सीखने के प्रयोगों में पाया कि जब व्यक्ति संचित अनुभवों में से नवीन सीखने के लिए समरूप तत्वों को छांट लेता है।

और उनका प्रयोग करके नवीन कार्य को शीघ्र सीख लेता है। तो इसे समरूप तत्वों का सिद्धांत कहा जाता है।

सरलीकरण के रूप में कहा जा सकता है कि नवीन कार्य और संचित अनुभव में से सामान तत्वों को छांट लेना ही सीखने में उन्नति करता है अर्थात स्थानांतरण हो पाता है।

जैसे – दर्शन शास्त्र का ज्ञान मनोविज्ञान के सीखने में सहायता देता है।

(B) सामान्यीकरण का सिद्धांत

इस सिद्धांत के प्रतिपादक सी०एच०जड है।

इन्होंने बताया कि बालक अपने विकास के साथ-साथ विभिन्न अनुभव अर्जित करता है।

अनुभव मिलकर एक निष्कर्ष निकालते हैं जिसे नियम में सिद्धांत का नाम दिया जाता है।

इस सिद्धांत के अनुसार निष्कर्ष निकाला कि स्थानांतरण किसी कार्य के नियमों एवं सिद्धांतों को समझने से और उसका सामान्यीकरण करने से होता है।

(C) आदर्श एवं मूल्यों का सिद्धान्त

इसके प्रतिपादक डब्ल्यू०सी०बाग्ले है।

इन्होंने सीखने में स्थानांतरण को बहुत ही महत्वपूर्ण माना है। सामान्यीकरण एवं समान तत्वों के बीच आदर्श एवं मूल्य माने हैं।

जो सीखने में स्थानांतरण को सफल बनाते हैं इसीलिए इन्होंने सिद्धांत का नाम आदर्श एवं मूल्यों का सिद्धांत रखा है।

इस सिद्धांत के अनुसार बालक में विकास के साथ-साथ आदर्श एवं मूल्यों का गठन होता रहता है।

वे जीवन भर उनका प्रयोग करते हैं।इस प्रकार आदर्श एवं मूल्यों से अधिगम का स्थानांतरण हो पता है।

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जैसे – बालकों में यदि स्वच्छता एवं सौन्दर्यता का भाव विकसित करना है। तो उन्हें सैद्धांतिक और व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षित किया जाए ताकि भविष्य में वे स्वयं अपने इस आदर्श का पालन अपने जीवन में करते रहेंगे।

अतः यह कहा जा सकता है कि शिक्षा के द्वारा बालकों में आदर्शों एवं मूल्यों का गठन करना चाहिए ताकि वह जीवन भर उनका स्थानांतरण करके लाभ उठा सकें।

अधिगम स्थानांतरण में शिक्षक की भूमिका || सीखने के हस्तांतरण की शैक्षिक निहितार्थ

(1) सीखाने वाले की पूर्ण तैयारी

(2) शिक्षक द्वारा उपयुक्त विधियों का प्रयोग

(3) सामान्यीकरण का प्रशिक्षण

(4) विषय का पूर्ण ज्ञान

(5) समान तत्वों का चयन

(6) स्थानांतरण का अभ्यास

अधिगम स्थानांतरण के महत्व

अधिगम के स्थानांतरण द्वारा हम शिक्षा व्यवस्था में बदलाव ला सकते है जिनको हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझते है-

(1) बालक को अधिक से अधिक सामान्यीकरण करने को कहा जाए बालक अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर सामान्य सिद्धांत निकाल लेता है तो अपने अधिगम का अंतरण कर लेता है।

(2) शिक्षक को विषयों में समन्वय करके पढ़ाना चाहिए।

(3) अधिगम के अंतरण के लिए बालक को अपने विषय का पूर्व ज्ञान होना चाहिए।

(4) अधिकतम अधिगम के स्थानांतरण के लिए बालक को अर्थपूर्ण तथ्य अधिक से अधिक सीखने चाहिए।

(5) उपयुक्त शिक्षण विधि अधिगम के अंतरण में सहायता करती है।

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