सामाजिक अध्ययन शिक्षण का अर्थ,प्रकृति, महत्व,आवश्यकता एवं उद्देश्य | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए सामाजिक विज्ञान विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक सामाजिक अध्ययन शिक्षण का अर्थ,प्रकृति, महत्व,आवश्यकता एवं उद्देश्य | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY है।

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सामाजिक अध्ययन शिक्षण का अर्थ,प्रकृति, महत्व,आवश्यकता एवं उद्देश्य | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

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सामाजिक अध्ययन-विज्ञान : अर्थ एवं प्रकृति

इसके नाम से ही प्रतिध्वनित होता है-एक ऐसे विज्ञान से है जिसका संबंध समाज तथा उसकी प्रक्रिया के अध्ययन से हो। यह ऐसी ही बात है कि जैसे प्राकृतिक विज्ञान के अर्थ को समझने में हम उन्हें ऐसे विज्ञान का दर्जा देते हैं जिनका संबंध प्रकृति और उसके कार्य व्यापार (भौतिक तथा जैविक) के अध्ययन से होता है।

कोलम्बिया एनसाइक्लोपीडिया-“सामाजिक विज्ञान से तात्पर्य अध्ययन के उन क्षेत्रों से है जो मानवमात्र को उनके सामाजिक संबंध के संदर्भ में समझने में सहायता करते हैं।’

अमेरिकन हिस्टोरिकल एसोसिएशन-कमीशन ऑन सोशल स्टडीज के अनुसार,“सामाजिक विज्ञान के अध्ययन में ऐसे परम्परागत विषयों जैसे इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र,एन्थ्रोपोलोजी तथा दर्शन आदि के अध्ययन को स्थान दिया जाता है जिनका सीधा संबंध व्यक्ति और समाज से है। “

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद्-“सामाजिक अध्ययन लोगों तथा सामाजिक एवं भौतिक वातावरण के प्रति उनकी पारस्परिक क्रिया से सम्बन्धित है।”

एम.पी. मफात-“सामाजिक अध्ययन वह क्षेत्र है जो मूलभूत मूल्यों, वांछित आदतों, स्वीकृत वृतियों तथा उन महत्वपूर्ण कुशलताओं के निर्माण के लिए आवश्यक है जिनको प्रभावशाली नागरिकता का आधार माना जाता है।

इस प्रकार उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर सामाजिक विज्ञान विषय की प्रकृति के बारे में निम्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं-

(i) विद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले सामाजिक विज्ञान विषय के अध्ययन में इतिहास, भूगोल,अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान आदि विषयों का अध्ययन शामिल होता है।
(ii) सामाजिक विज्ञान/अध्ययन का मुख्य केन्द्र बिन्दु मानव और वह समाज है जिसमें वह रहता है।
(iii) सामाजिक विज्ञान के अध्ययन से विद्यार्थियों को अपने समाज और परिवेश को जानने, समझने तथा उसमें भलीभांति समायोजित होने में मदद मिलती है।
(iv) सामाजिक विज्ञान में मानव व्यवहार के सामाजिक-सांस्कृतिक पक्ष को अच्छी तरह उजागर करने का प्रयत्न किया जाता है।

(v) सामाजिक विज्ञान का अध्ययन हमें सामाजिक जीवन बिताने संबंधी आवश्यक ज्ञान, समझ,कौशलों तथा अभिवृतियों के विकास में भली-भांति सहायक सिद्ध हो सकता है।
(vi) सामाजिक विज्ञान में जो विषय-वस्तु है वह ठोस, धरातल पर खड़ा होता है क्योंकि उसे विशेष अनुसंधान तथा जांच पड़ताल द्वारा समाज मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रकाश में लाया जाता है।
(vii) सामाजिक अध्ययन एवं सामाजिक विज्ञान अन्तःअनुशासित विषय है जिनकी सामग्री मानव विज्ञान एवं अनुभवों पर आधारित है।
(viii) सामाजिक अध्ययन, सामाजिक विज्ञान के उस रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनकी विषय सामग्री और उद्देश्यों को सामाजिक उपादेयता की दृष्टि से सरलीकृत कर दिया जाता है।

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सामाजिक विज्ञान/सामाजिक विज्ञान की अवधारणा

सामाजिक विज्ञान समाज के विविध सरोकारों को समाविष्ट करता है तथा इतिहास, भूगोल, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र आदि विषयों से सामग्रियां लेता है। एक सार्थक सामाजिक विज्ञान पाठ्यचर्या अपनी पाठ्य सामग्री के चयन व गठन द्वारा विद्यार्थियों में समाज की आलोचनात्मक समझ विकसित करने में समर्थ होती है, अतः यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस संदर्भ में नये आयामों और सरोकारों को शामिल किए जाने की अपार सम्भावनाएं हैं। विशेषत: विद्यार्थियों के जीवन के निजी अनुभवों से।

विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2000 में सामाजिक विज्ञान के लिए बोधगम्य पाठ्यचर्या पर बल दिया गया जिसे सूचनाओं के द्वारा बोझिल न बनाया जाए। साथ ही यह विशिष्ट विषय-वस्तुओं और मुद्दों के चयन द्वारा विचारों को अन्तर्सम्बन्धित किए जाने की आवश्यकता को भी स्पष्ट करता है, “भूगोल, इतिहास, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र से सन्तुलित ढंग से विषय-वस्तु ली जा सकती है जिन्हें जटिल से सरल तथा अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष की ओर उपयुक्त क्रम से रखा जाए”

सामाजिक विज्ञान की नई पाठ्य पुस्तकों को विषय-वस्तुओं के अनुसार क्रमबद्ध किया गया है, जो,जहां तक सम्भव हो, विषय क्षेत्रों में अन्तर्सम्बन्ध स्थापित करती हैं। अतः छठी से दसवीं कक्षा तक प्रत्येक कक्षा में सामाजिक विज्ञान की एक-एक पाठ्य-पुस्तक है।

एम.पी. मफात के अनुसार “सामाजिक अध्ययन ज्ञान का वह क्षेत्र है जो युवकों को आधुनिक सभ्यता के विकास को समझने में सहायता देता है। ऐसा करने के लिए यह अपनी विषय-वस्तु को समाज, विज्ञानों तथा समसामयिक जीवन से प्राप्त करता है।”

जॉन यू माइकेलिस के अनुसार “सामाजिक अध्ययन का कार्यक्रम मनुष्य तथा अतीत, वर्तमान तथा विकसित होने भविष्य के सामाजिक और भौतिक पर्यावरणों के प्रति उनके द्वारा की गई पारस्परिक,क्रिया का अध्ययन है।”

सामाजिक विज्ञान के विषय; जैसे इतिहास, भूगोल, राजनीति-शास्त्र और अर्थशास्त्र प्रायः सीमाओं को बनाए रखने को न्यायोचित ठहराते हैं। इन विषय की सीमाओं को खोले जाने की तथा निर्दिष्ट सिद्धान्त को समझने के लिए कई प्रकार के दृष्टिकोणों को अपनाने की आवश्यकता है।

सामाजिक अध्ययन शिक्षा का महत्व एवं उद्देश्य

(1) सामाजिक अध्ययन का शिक्षण कई कारणों से महत्वपूर्ण है। यह बच्चों को इस योग्य बनाता है कि वे उस समाज को समझे जिसमें वे रहते हैं। यह सीखें कि समाज की संरचना, शासन एवं प्रबन्ध कैसे होता है? यह भी समझे कि कौन-से बल समाज को अनेक तरीकों से बदलते हैं तथा अनुप्रेषित करते हैं?
(2) भारतीय संविधान में प्रतिष्ठित मूल्यों जैसे-न्याय, स्वतन्त्रता, समानता, भाईचारा, एकता और राष्ट्रीय एकीकरण से अवगत हों और एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक समाज के निर्माण के महत्व को समझ सकें।
(3) समाज के सक्रिय, जिम्मेदार और चिन्तनशील सदस्य के रूप में समर्थ हों।
(4) विविध मतों, जीवन शैलियों और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का सम्मान करना सीखें।

(5) ग्रहण किए गए विचारों, संस्थाओं और परम्पराओं के सम्बन्ध में प्रश्न कर सकें और उनकी जांच-पड़ताल कर सकें।
(6) उस आनन्ददायक पाठ्य सामग्री को पढ़कर आनन्द प्राप्त करें जो उन्हें उपलब्ध कराई गई है।
(7) ऐसे क्रिया-कलापों में संलग्न हों जो उनमें सामाजिक और जीवन सम्बन्धी कौशलों का विकास करे और उन्हें यह समझाएं कि ये कौशल सामाजिक अन्तर्सम्बन्ध हेतु महत्वपूर्ण हैं।
(8) पाठ्य-पुस्तकों और कक्षाओं में विषय-वस्तु, भाषा तथा भावों में स्पष्टता होनी चाहिए। जेण्डर संवेदनशीलता तथा सामाजिक वर्गों और हर प्रकार की असमानताओं के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए।

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सामाजिक विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

सामाजिक विज्ञान द्वारा शिक्षा के सामाजिक, सांस्कृतिक तथा नागरिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता प्रदान की जाती है। यह इस प्रकार है-
1. प्रजातंत्रीय भावना का विकास करना
2.उत्तम नागरिकता का विकास करना
3. राष्ट्रीय एकता व स्वदेश प्रेम की भावना का विकास करना
4. विश्व बन्धुत्व एवं अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का विकास करना।
5. जीविका-उपार्जन की क्षमता का विकास करना
6. व्यवसाय, कृषि तथा उद्योग के बारे में बोध करना
7.अवकाश के समय का सदुपयोग करना
8. वर्तमान सामाजिक समस्याओं का निराकरण करना
9.सामाजिक तथ्यों, सिद्धान्तों, नियमों, प्रत्ययों व धारणाओं के द्वारा दैनिक जीवन की समस्याओं के हल सम्बन्धी बोध कराना।
10. वातावरण का ज्ञान कराना

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने सामाजिक विज्ञान शिक्षण के व्यावहारिक उद्देश्यों को इस प्रकार प्रतिपादित किया है-

1. सामाजिक तथ्यों एवं सिद्धान्तों का बोध कराना
2.सामाजिक चरित्र का विकास करना
3. छात्रों में अपेक्षित कौशल का विकास करना
4. सामाजिक विज्ञान शिक्षण द्वारा रुचि, अभिरुचि व मूल्यों आदि गुणों का विकास करना।
5. सामाजिक विज्ञान शिक्षण से तर्कपूर्ण चिन्तन का विकास करना।

सामाजिक अध्ययन/विज्ञान के शिक्षण-सूत्र

(1) सरल से जटिल की ओर : – विद्यार्थियों के नवीन ज्ञान के प्रति रुचि उत्पन्न करके आत्मविश्वास विकसित करना सफल शिक्षण की कुंजी है। इस दृष्टि से यदि शिक्षण को सफल बनाना है तो सरल से जटिल बातों का ज्ञान दिया जाना चाहिए।

(2) ज्ञात से अज्ञात की ओर : – इस का अर्थ यह है कि हम नवीन ज्ञान का आधार विद्यार्थी के पूर्व ज्ञान को बनाएं। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब विद्यार्थी के सामने एकदम नवीन ज्ञान को प्रस्तुत किया जाता है तो इसे प्राप्त करने में उन्हें कठिनाई होती है। परन्तु यदि पूर्व ज्ञान से सम्बद्ध कर नवीन ज्ञान को प्रस्तुत किया जाए तो अधिगम अपेक्षाकृत अधिक सफल एवं स्थायी होता है।

(3) विशिष्ट से सामान्य की ओर : – इस सूत्र का तात्पर्य है कि विद्यार्थियों के समक्ष पहले विशिष्ट उदाहरण रखे जाएं तथा उन्हीं उदाहरणों द्वारा सामान्य नियम अथवा सिद्धान्त निकलवाए जाएं।

(4) मनोवैज्ञानिक से तर्कात्मक क्रम की ओर : – इस सूत्र का तात्पर्य यह है कि विद्यार्थियों को ज्ञान देते समय मनोवैज्ञानिक से तर्कात्मक क्रम को अपनाना चाहिए। मनोवैज्ञानिक क्रम के अनुसार, किसी वस्तु अथवा विषय के ज्ञान को विद्यार्थियों की आयु, जिज्ञासा, रुचि तथा आवश्यकता एवं ग्रहण शक्ति के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है। इसके विपरीत, तर्कात्मिक क्रम का अर्थ विद्यार्थियों के समझ ज्ञान को तर्कात्मक ढंग से विभिन्न खण्डों में विभाजित करके प्रस्तुत करना है।

(5) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर : – प्रारम्भिक अवस्था में विद्यार्थी का ज्ञान अस्पष्ट तथा अनिश्चित एवं अव्यवस्थित होता है। उसके ज्ञान को स्पष्ट तथा निश्चित एवं सुव्यवस्थित करने के लिए विश्लेषण से संश्लेषण नामक सूत्र का योग करना परम आवश्यक है। विश्लेषण का तात्पर्य किसी समस्या को ऐसे जीवित अंशों अथवा भागों में विभाजित करना है जिनके जोड़ने पर समस्या का समाधान हो जाए।

अभ्यास प्रश्न ( बहुविकल्पीय प्रश्न )

1. सामाजिक अध्ययन के लिए वांछित अभिवृति है।
(a) विश्व एकता एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के कार्यों की प्रशंसा करना
(b) सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक संस्थाओं में सक्रिय भाग लेना
(c) सामाजिक परिवर्तन हेतु योगदान
(d) उपरोक्त सभी

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2. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् के अनुसार सामाजिक विज्ञान शिक्षण के व्यावहारिक उद्देश्य हैं-
(a) अपेक्षित कौशल का विकास
(b) तर्कपूर्ण चिन्तन का विकास
(c) तथ्यों एवं सिद्धांतों का बोध कराना
(d) उपरोक्त सभी

3.”सामाजिक विज्ञान से तात्पर्य अध्ययन के उन क्षेत्रों से है जो मानवमात्र को उनके सामाजिक संबंध के संदर्भ से समझने में सहायता करते हैं। ‘यह परिभाषा है-
(a) राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद
(b) एम.पी. मफात
(c) कोलम्बिया एनसाइक्लोपीडिया
(d) अमेरिकन हिस्टोरिकल एसोसिएशन कमीशन ऑन सोशल स्टडीज

4. सामाजिक अध्ययन शिक्षण का उद्देश्य है –
(a) विश्व नागरिकता का विकास
(b) शान्ति की स्थापना
(c) राजनैतिक विकास
(d) उपरोक्त सभी

5. सामाजिक अध्ययन की विशेषता है।
(a) यह अर्थशास्त्र, नागरिक शास्त्र, इतिहास, भूगोल का संघ है।
(b) यह व्यक्ति तथा समूह में सामंजस्य स्थापित करता है
(c) इसमें मानव जीवन को प्रधानता दी गई है
(d) उपरोक्त सभी

6. सामाजिक अध्ययन की शिक्षण प्रक्रिया के दौरान अध्यापक किस प्रकार ‘नीरस व उबाऊ प्रस्तुति को रोचक बना सकता है।
(a) कठिन शिक्षण सूत्र अपनाकर
(b) नीरस अवधारणाओं की विस्तृत व्याख्या देकर (c) वास्तविक जीवन के उदाहरणों से सम्बन्धित करके
(d) लघु परीक्षाओं की सहायता द्वारा

7. सामाजिक विज्ञान के बारे में कौन सा एक कथन गलत है? (a) सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत विषय-वस्तु का बौद्धिक स्तर निम्न होता है।
(b) विद्वता और सामाजिक उपयोगिता सामाजिक विज्ञान के प्रमुख तत्व हैं।
(c) साधारण विज्ञान से गहन एवं गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति होती है।
(d) सामाजिक विज्ञान एक गम्भीर विषय है।

8. सामाजिक अध्ययन शिक्षण को प्रभावशाली बनाने हेतु निम्न दिए गए शिक्षण सूत्रों में से कौन-सा एक अधिक महत्वपूर्ण है?
(a) सरल से जटिल की ओर
(b) ज्ञात से अज्ञात की ओर
(c) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर
(d) उपरोक्त सभी

9. ‘विशिष्ट से सामान्य की ओर’ शिक्षण-सूत्र से तात्पर्य है-
(a) पहले विशिष्ट नियम/उदाहरण रखे जाएं तथा उन्हीं द्वारा सामान्य नियम व सिद्धान्त निकलवाए जाएं।
(b) विद्यार्थियों को पहले विशिष्ट जगहों पर ले जाया जाए बाद में सामान्य जगहों पर
(c) पहले विशिष्ट पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराकर बाद में विद्यार्थियों को सामान्य पाठ्य सामग्री दी जाए।
(d) पहले विद्यार्थियों में विशिष्ट चीजों के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करके सामान्य वस्तुओं के प्रति अभिरुचि उत्पन्न कराई जाए।

10. विज्ञान/अध्ययन का मुख्य केन्द्र बिन्दु और समाज है।
(a) मानव
(b) पर्यावरण
(c) भूगोल
(d) अर्थशास्त्र

उत्तरमाला –   1.(d)  2.(d) 3.(c) 4.(d) 5.(d) 6.(c) 7.(a) 8.(d) 9.(a) 10.(a)

                           ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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