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बालकों के विधिक (कानूनी) अधिकार / Legal Rights of Children in hindi
Legal Rights of Children in hindi / बालकों के विधिक (कानूनी) अधिकार
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बालकों के विधिक (कानूनी) अधिकार / Legal Rights of Children in hindi
20 नवम्बर सन् 1989 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा बालकों के विविध अधिकारों की घोषण की गयी। 11 दिसम्बर सन् 1992 को भारत सरकार द्वारा इन बाल अधिकारों को स्वीकार किया गया जिन्हें संक्षेप में निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया गया है-
(1) प्रत्येक बालक को जन्म के तुरन्त बाद राष्ट्रीयता प्राप्त करने का और पंजीकरण का अधिकार है।
(2) प्रत्येक बालक को अपना नाम और राष्ट्रीयता बनाये रखने का अधिकार है।
(3) बच्चों को अपने परिवार से सम्बन्ध बनाये रखने का अधिकार है।
(4) अभिभावकों द्वारा बच्चों के साथ दुर्व्यवहार की स्थिति में राष्ट्र द्वारा संरक्षण देना।
(5) गोद लिये गये बच्चों के हितों पर ध्यान देना।
(6) बच्चों को बालश्रम और मानसिक शोषण से बचाव।
(7) लैंगिक शोषण से बचाव ।
(8) नशीले द्रव्यों से बचाने का अधिकार ।
(9) बच्चों के अपहरण, क्रय-विक्रय एवं व्यापार को रोकने के लिये कानून बनाना भी बच्चों का अधिकार है।
(10) किसी भी बालक को उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके माता-पिता से अलग नहीं किया जाना।
भारत सरकार द्वारा दिये गए बाल अधिकार
भारत सरकार द्वारा जो अधिकार बालकों को प्रदान किये गये हैं उन्हें हम दो शीर्षकों में विभक्त कर सकते हैं-
(अ) बालकामगारों की विधियाँ (Methods of Children Workers)
बालकामगारों की विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. बालकों के लिये श्रमगिरवीकरण अधिनियम [The Children (Pledging of Labour)Act 19937
उपरोक्त अधिनियम बालकों के श्रम को गिरवी करने के लिये करार
करने तथा उन बालकों के जिनका श्रम गिरवी किया गया है, नियोजन का प्रतिषेध करने के लिये अधिनियमित किया गया।
इस अधिनियम के अनुसार बालक के श्रम को गिरवी करने का करार शून्य होगा। इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये ‘बालक’ से अभिप्राय 15 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति है। ‘बालकों के श्रम को गिरवी करने का करार’ से ऐसा लिखित या मौखिक, अभिव्यक्त या विवक्षित करार अभिप्रेत है। जिसके द्वारा बालक का माता-पिता संरक्षण अपने द्वारा प्राप्त किया गया, प्राप्त किये जाने वाले किसी सन्दाय प्रसुविधा के बदले में इस बात का वचन देता है कि वह बालक की सेवाओं का उपयोग किसी नियोजन में किया जाना पारित अनुज्ञात करेगा। यहाँ अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिये, दण्ड की भी व्यवस्था है।
2. कारखाना अधिनियम (Factories Act 1948)
बालकों के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने वाला एक महत्त्वपूर्ण अधिनियम, कारखाना अधिनियम, 1948 है। इस अधिनियम
के प्रावधानों के अनुसार बालकों से तात्पर्य उस व्यक्ति से है जिसने 15 वर्ष की वय प्राप्त कर ली हो। जिसने 15 वर्ष की उम्र प्राप्त कर ली हो किन्तु 18 वर्ष की वय न प्राप्त कर ली हो, वह’किशोर’ है।
बालकों के कार्य की शर्तों से सम्बन्धित प्रावधान मुख्यतया अध्याय VII धाराएँ 67-77 में पाये जा सकते हैं। यहाँ अधिनियम की कतिपय अन्य धारोएँ 23,27,98 और 104 भी बाल समस्याओं से सम्बन्धित प्रावधानों की विवेचना करती हैं। कोई बालक धारा 67 के अनुसार जिसने 14 वर्ष की आयु न प्राप्त कर ली हो, किसी कारखाने में नियोजित नहीं किया जायेगा। इस प्रकार 14 वर्ष से कम आयु के बालकों का कारखाने में नियोजन प्रतिबन्धित है, अर्थात् प्रतिषेध पूर्ण है। 14 वर्ष के ऊपर के बालकों को कतिपय शर्तों के साथ नियोजित किया जा सकता है।
3. खान अधिनियम (Mines Act 1952)
बाल श्रम को ‘खान अधिनियम’ खान में अथवा किसी भूमिगत खान में बालक की उपस्थिति या खुली खदानों में जहाँ खुदाई सम्बन्धी क्रिया चल रही हो प्रतिबन्धित करता है।
यहाँ मूलरूप में बालक से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति जिसने 15 वर्ष की आयु न प्राप्त कर ली हो, से है किन्तु अब यह उम्र 14 वर्ष कर दी गयी है। अन्य अधिनियमों की भाँति यह भी कार्य के घण्टों, साप्ताहिक आराम आदि के लिये प्रावधान करता है।
4. मोटर परिवहन कर्मकार अधिनियम (Motor Transport Workers,Act1961)
यह अधिनियम किसी मोटर परिवहन उपक्रम में बालक के नियोजन का, किसी भी विभाग में प्रतिषेध करता है। उपरोक्त अधिनियम किशोर के नियोजन की अनुमति तो देता है, किन्तु कतिपय शर्तों के साथ ।
यहाँ ‘बाल’ से तात्पर्य उस व्यक्ति से है जिसने 14 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं की हो और ‘किशोर’ से तात्पर्य उस व्यक्ति से है जिसने 14 वर्ष की आयु तो पूरी कर ली हो किन्तु 18 वर्ष की आयु न पूरी की हो।
5. बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियम) अधिनियम [Child Labour (Prohibition and Regulation) Act, 19861
बालक के कतिपय नियोजनों को प्रतिषेधित करने के लिये
तथा कतिपय अन्य नियोजनों में कार्य की शर्तों का विनियमन करने हेतु, इस अधिनियम को अधिनियमित किया गया है। इस अधिनियम की धारा 2 के प्रावधानों के अनुसार ‘बालक’ एक व्यक्ति से अभिप्रेत है जिसने अपनी उम्र के चौदह वर्ष पूरा न किये हों।
यह अधिनियम बालकों के नियोजन को उन उपजीविकाओं में जो इसके साथ संलग्न अनुसूची के भाग ‘क’ में दिये गये हैं, या ऐसे किसी कर्मशाला में जिसके अनुसूची के भाग ‘ख’ में उल्लिखित प्रक्रियाएँ जारी रखी जाती हैं, का प्रतिषेध करता है। किन्तु इसके प्रावधान ऐसी कर्मशाला पर जिसके अन्तर्गत प्रक्रियाएँ जारी रखी जाती हैं, अपने परिवार या किसी विद्यालय जिसकी स्थापना सरकार द्वारा की गयी है या जिस सरकार से सहायता या मान्यता प्राप्त है की सहायता से लागू नहीं होते।
अन्य बाल अधिकार
अधिनियम के साथ संलग्न अनुसूची के भाग’क’ में उल्लिखित उपजीविकाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) रेलवे स्टेशनों पर खान-पान व्यवस्था में काम करना जहाँ विक्रेता का अवागमन अन्तर्ग्रस्त हो या स्थापन के किसी कर्मचारी का एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म पर या गाड़ियों में आना जाना होता हो।
(2) रेल मार्गद्वारा यात्रियों,माल या डाक का परिवहन।
(3) अधजला कोयला इकट्ठा करना, राख के गड्ढ़ों को साफ करना।
(4) रेलवे स्टेशनों से सम्बन्धित निर्माण कार्य या ऐसा अन्य निर्माण कार्य जो रेलवे लाइन के सन्निकट चल रहा हो।
(5)चमड़ा-निर्माण।
(6) अभ्रक की कटाई तथा तुड़ाई।
(7) माचिस, विस्फोटक और पटाखों का निर्माण।
(8) कपड़े की छपाई, रंगाई और बुनाई।
(9) सीमेण्ट निर्माण तथा सीमेण्ट बोरियों में भरना।
(10) गलीचा बनाना।
(11) बीड़ी बनाना।
उपरोक्त उपजीविकाओं की सूची से स्पष्ट है कि ये जीवन, अंग और स्वास्थ्य के लिये जोखिम पैदा करने वाली हैं। यहाँ हमें यह नहीं मानना चाहिये कि सूची विस्तृत है तथा इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपजीविका अथवा प्रक्रिया ऐसी नहीं हो सकती जो परिसंकटमय न हो। अधिनियम में इसके अतिरिक्त काम के घण्टे और अवधि, साप्ताहिक छुट्टी तथा बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा से सम्बन्धित प्रावधान भी दिये गये हैं। इस सम्बन्ध में शिक्षु अधिनियम (Apprenties Act, 1961) तथा बीड़ी तथा सिगार कर्मकार (नियोजक की शर्ते) अधिनियम (The Beedi and Cigar Worker (Conditions of Employment Act, 1966) कर्मकार उपकर अधिनियम, 1976 बीड़ी कर्मकार कल्याण निधि अधिनियम, 1976 का भी उल्लेख अप्रासंगिक न होगा, जो बच्चों के अधिकार और कल्याण से सम्बन्धित हैं।
(ब) अपचारी और उपेक्षित शिशुओं से सम्बन्धित अधिकार (Laws Relating to Delinquent and Neglected Children)
इस सम्बन्ध में मुख्य रूप से किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice, Act) 1986 का उल्लेख सुसंगत होगा। विशेष रूप से यह अधिनियम अपेक्षित अथवा अपचारी किशोरों की देखरेख, संरक्षण उपचार, विकास और पुनर्वास का तथा अपचारी किशोरों से सम्बन्धित विषयों के न्याय निर्णयन का और उनके आवास आदि का उपबन्ध करने के लिये अधिनियमित किया गया है।
अन्य शब्दों में, यह अपचारी और अपेक्षित किशोरों की देखरेख, संरक्षण और उनसे सम्बन्धित अपराधों के न्याय निर्णयन आदि के लिये विस्तृत कानूनी ढाँचा तैयार करता है। इस अधिनियम अन्तर्गत ‘किशोर’ से अभिप्रेत है ऐसा बालक जिसने सोलह वर्ष की आयु प्राप्त न की हो अथवा ऐसी बालिका जिसने 18 वर्ष की आयु प्राप्त न की हो। इसके अतिरिक्त ‘अपचारी किशोर से ऐसा किशोर अभिप्रेत है जिसके विषय में यह ठहराया गया है कि उसने अपराध किया है।”
उपेक्षित किशोर से ऐसा किशोर अभिप्रेत है जो भीख माँगता है, जिसके पास कोई निश्चित निवास स्थान या जीवन निर्वाह का दृश्यमान साधन नहीं है, जिसके माता-पिता या संरक्षक उस पर नियन्त्रण रखने में असमर्थ हैं, जो वेश्यावृति या उसके प्रयोजनार्थ उपभोग में लाया जाता है और जिसका अनैतिक या अवैध प्रयोजनों या लोकात्मा के विरुद्ध लाभ के लिये दुरुपयोग या शोषण किया जा रहा है।
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