संघ प्लैटीहेल्मिन्थीज : सामान्य लक्षण एवं इसके प्रमुख जंतु / information of platyhelminthes phylum in hindi

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संघ प्लैटीहेल्मिन्थीज : सामान्य लक्षण एवं इसके प्रमुख जंतु

संघ प्लैटीहेल्मिन्थीज : सामान्य लक्षण एवं इसके प्रमुख जंतु / information of platyhelminthes phylum in hindi
संघ प्लैटीहेल्मिन्थीज : सामान्य लक्षण एवं इसके प्रमुख जंतु / information of platyhelminthes phylum in hindi

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संघ- प्लैटीहेल्मिन्थीज Phylum Platyhelminthesis
(Platy-चपटा; helminth- कृमि)

इनका शरीर पृष्ठ- अघर अक्ष (Dorsoventral axis) से चपटा होता है। ‘प्लैटीहेल्मिन्थीज’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम गैगेनबॉर (Gegenbaur) से 1859 में दिया। ये विभिन्न जन्तुओं में पाए जाने वाले अन्तः परजीवी हैं।

प्लैटीहेल्मिन्थीज संघ के सामान्य लक्षण / General Characteristics of platyhelminthes in hindi

(i) इनका शरीर त्रिस्तरीय (Triploblastic), अगुहिक (Acoelomate) व द्विपार्श्व सममित (Bilaterally symmetrical) होता है तथा शारीरिक संगठन अंग स्तर (Organ level) का होता है।

(ii) कुछ सदस्यों में शरीर पर कूटविखण्डीकरण (Pseudometamerism) पाया जाता है।

(iii) सिर का विभेदीकरण (Cephalisation) इसी संघ के जन्तुओं से प्रारम्भ हुआ है, परन्तु वास्तविक सिर (Head) इस संघ के किसी भी जन्तु में नहीं पाया जाता है।

(iv) इनमें गमनांगों का अभाव होता है किन्तु चूषकांग या आसंजक अंग पाए जाते हैं।

(v) इनके शरीर पर मोटी क्यूटिकल की पर्त होती है, जो अम्ल, क्षार या एन्जाइम प्रतिरोधी होती है।

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(vi) इनमें आहारनाल अल्पविकसित या अनुपस्थित होती है।

(vii) इनमें कंकाल तन्त्र, श्वसन तन्त्र व परिसंचरण तन्त्र अनुपस्थित होता है। तथा श्वसन त्वचा द्वारा व प्रायः अवायवीय होता है।

(viii) इनमें उत्सर्जन विशिष्ट ज्वाला कोशिकाओं (Flame cells) द्वारा होता है। इसे वृक्क विकास का उद्गम बिन्दु मानते हैं।

(ix) ये द्विलिंगी (Bisexual) होते हैं तथा जनन क्षमता अत्यधिक विकसित होती है। इनमें अन्त: निषेचन पाया जाता है; उदाहरण- प्लेनेरिया, टीनिया सोलियम, एम्फीलीना, फैशियोला हिपेटिका, शिस्टोसोमा हीमेटोबियम (रुधिर कृमि), पेरागोनिमस (फेफड़ा कृमि), आदि।

प्लैटीहेल्मिन्थीज संघ के मुख्य सदस्य / प्लैटीहेल्मिन्थीज संघ के मुख्य जीव

फैशियोला हिपेटिका Fasciola hepatica

यह प्राय: भेड़ों में पाया जाता है। इसे यकृत कृमि (Liver fluke) भी कहते हैं। यह मुख चूषक परजीवी द्विपरपोषी (Digenetic) है। इसका प्रथम पोषक भेड़ व द्वितीयक पोषक घोंघा है। मुख्य रूप से यह प्रथम पोषद की पित्तवाहिनी में पाया जाता है।
यह कोमल पत्तीनुमा, चपटा, द्विलिंगी व 2.5-6 सेमी लम्बा जीव है। इसके शरीर के अग्रभाग में मुखीय चूषक (Oral sucker) पाया जाता है तथा अधर सतह पर अधर चूषक (Acetabulum) पाया जाता है। उत्सर्जन ज्वाला कोशिका द्वारा होता है। परनिषेचन पाया जाता है व अप्रत्यक्ष परिवर्धन होता है। यह जन्तु अपने बहुरुपीय
लार्वा (Polymorphic larva) की वजह से भी प्रसिद्ध है।

टीनिया सोलियम Taenia solium

यह भी एक द्विपरपोषी (Digenetic) प्रकार का अन्तः परजीवी (Endopar-asite) है। इसका शरीर खण्ड युक्त होता है, संख्या में 800-1000 तक हो सकते हैं। इसे चपटा कृमि भी कहते हैं। इसका प्राथमिक पोषक सूअर व द्वितीयक पोषक मानव है।

इनका शरीर लम्बा, चपटा, फीतानुमा व द्विलिंगी होता है। इसका शरीर तीन भागों में बँटा होता है।
(i) शीर्ष या स्कोलेक्स (Scolex) यह घुण्डीनुमा व चूषकों युक्त होता है।
(ii) ग्रीवा (Neck) इसमें छोटे व अपरिपक्व खण्ड पाए जाते हैं।
(iii) स्ट्रोबिला (Strobila) यहाँ परिपक्व लैंगिक अंग युक्त खण्ड पाए जाते हैं।
टीनिया मनुष्य के अतिरिक्त भेड़, बकरी, आदि की आंत में पाया जाता है। इसमें प्रायः आहारनाल अनुपस्थित होती है। यह त्वचा द्वारा अवायवीय श्वसन तथा भोजन का अवशोषण करता है। इसमें परिसंचरण तन्त्र, तन्त्रिका तन्त्र, पाचन तन्त्र, आदि का अभाव होता है। यह एनीमिया, अल्सर, पेचिस, दस्त, कुपोषण, आदि रोग उत्पन्न कर देता है।

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